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बहुजन कीर्तन

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बहुजन
बहुजन
के भजन में
गोपाला
बहुजन है कहां

आज भी ये
आदमी नही
राजा के
मदारियों के
बंदर भालू हैं
फ्री की सेना
फ्री के मंजूर
हैं पशु समान
ये आदमी नहीं

ये न आदमी
होना चाहते
न शोषक को
जानना
समझना

न यह समझना
चाहते
शोषित की
कोई जाति
नही होती

ये यह भी
नही मानते
कि इंसान इंसान
बराबर होते हैं

यह भी
नही मानते
वर्ण जाति
ढोंग है

यह भी
नही मानते
पीड़ित पीड़ित
एक समान
शोषित शोषित
एक समान

वे इस तरह
न रहना चाहते
न दिखना चाहते
न मानना चाहते
बंदर भालू
जनावर
पशु समान

जीवन उनका
अपना है
अपने को क्या
उनका सुख
वो जाने
अपना दुख
अपने साथ

बहुत सुखी हैं वे
बंदर भालू होकर
रामराज की
लेकर पताका

  • बुद्धिलाल पाल
    30/08/2022

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