एक मुस्लिम शासक बादशाह अकबर किस कदर सहिष्णु और देश प्रेमी था कि उसने अपनी एक हिन्दू प्रजा सूरदास के एक पत्र का न केवल जवाब ही दिया बल्कि उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए अपने अधीनस्थ एक अधिकारी को तत्काल बर्खास्त कर उस जगह नये अधिकारी नियुक्त करने का अधिकार भी अपनी प्रजा को ही दे दिया. बादशाह अकबर द्वारा अपनी प्रजा एक हिन्दू कवि सूरदास को लिखा गया यह पत्र इस मामले में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के गाल पर एक तमाचा है, जो आये दिन देश के सम्मानित लोगों और छात्रों द्वारा मोदी को लिखे गये पत्र के जवाब में उन पर देशद्रोह जैसे संगीन जुर्म के तहत फर्जी मुकदमा दर्ज करवाता है. बादशाह अकबर इस मायने में भी नरेन्द्र मोदी जैसे टुच्चे अपढ़ प्रधानमंत्री के गाल पर एक तमाचा ही जड़ते हैं जब वे अपनी पढ़ने-लिखने की कमजोरी को विभिन्न जुमलों या फर्जी डिग्री के माध्यम से छुपाने का कुचक्र नहीं रचते.
हम सभी जानते हैं कि बादशाह अकबर अपने पिता की असमय मृत्यु और शासन की बागडोर खुद संभालने के कारण पढ़-लिख नहीं सके थे, लेकिन वे अपनी इस कमी को दूर करने के लिए अपने दरबार में विद्वानों को जुटाया, उन्हें सम्मानित किया और सम्राट अशोक के बाद पहले वे शासक बने जो पूरे देश को एकजुट किया. इसके उलट लोकतंत्र के नाम पर बदनुमा दाग बना यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र दास दामोदर मोदी न केवल अपनी अपढ़ता या कुपढ़ता को छिपाने के लिए पद की गरिमा को कलंकित करते हुए फर्जी डिग्री उत्पन्न किया बल्कि देश के तमाम विद्वानों, साहित्यकारों, छात्रों का अपमान किया, उन्हें पददलित किया, उनपर झूठे मुकदमा लगाये, छात्रों को शिक्षण संस्थानों से न केवल निकालने का कुचक्र ही किया वरन् उनकी संस्थानिक हत्या (रोहित वेमुला) की, उन्हें देशद्रोह के फर्जी मुकदमें लगा कर जेल में बंद किया, पुलिस से पिटाई करवाई. अभी एक बार फिर नरेन्द्र दास दामोदर मोदी को पत्र लिखने के जुर्म में 6 छात्रों को विश्वविद्यालय से बर्खास्त कर दिया है. आईये, देखते हैं बादशाह अकबर द्वारा एक हिन्दू कवि सूरदास के पत्र का जवाब वह किस तरह देते हैं.
यह भक्त सूरदास के नाम बादशाह अकबर का पत्र है, जो बताता है कि अकबर अपनी हिन्दू प्रजा का कितना खयाल रखता था.
अकबर के शासन काल की घटना है. संवत 1645 में काशी के हाकिम ने वहां की हिन्दू प्रजा के प्रति भेदभाव बरतना आरंभ किया. फरियादी हिन्दुओं ने न्याय पाने के लिए भक्त कवि सूरदास से संपर्क किया, जो कि उन दिनों काशी में प्रवास कर रहे थे. सूरदास ने काशी के तत्कालीन मुगल हाकिम के अनाचारों को प्रकट करते हुए बादशाह अकबर को पत्र लिखा.
भक्त सूरदास के उक्त पत्र को पढ़ कर अकबर को काशी के हाकिम के ऊपर बहुत क्रोध आया. अकबर ने अपने प्रधानमंत्री अबुल फजल से कह कर भक्त सूरदास को यह पत्र भेजा, जिसका मजमून इस प्रकार है –
‘परमात्मा को पहचानने वाले ब्राह्मणों, योगियों संन्यासियों, महापुरुषों के शुभ चिंतन और तपस्या से ही बादशाहों का कल्याण होता है. साधारण से साधारण बादशाह भी अपनी मति के विपरीत भगवत भक्तों की आज्ञा का पालन करते हैं. तब वो बादशाह धर्म नीति और न्याय परायण हैं, वह तो भक्तों की इच्छा के विपरीत चल ही नहीं सकता. मैंने आपकी विद्या और सद्बुद्धि की प्रशंसा निष्कपट आदमियों से सुनी है. मैंने आपको अपना मित्र माना है. आपके पत्र से पता चला है कि काशी के करोड़ी का बर्ताव अच्छा नहीं है. अबुल फजल लिखते हैं कि बादशाह को यह सुन पर बहुत बुरा लगा है. बादशाह ने उस हाकिम को बर्खास्तगी का फरमान लिख दिया है. अब नए करोड़ी की नियुक्ति का भार बादशाह ने आपके ऊपर छोड़ा है. इस तुच्छ अबुल फजल को हुक्म हुआ है कि आपको इसकी सूचना दे दें. आशा है कि आप ऐसा करोड़ी चुनेंगे जो कि गरीब और दुःखी प्रजा का समस्त भारत सम्हाल लेे. आपकी सिफारिश आने कर बादशाह उसकी नियुक्ति करेंगे. बादशाह आपमें खुदा की रहमत देखते हैं इसलिए आपको यह तकलीफ दी है. काशी में ऐसा हाकिम होना चाहिए जो आपके सलाह के मुताबिक काम करे. कोई खत्री जिसे आप काबिल समझें ऐसा व्यक्ति जो ईश्वर को पहचान कर प्रेम से प्रजा का लालन पालन करे. उसका नाम आपकी तरफ से आने पर उसे प्रजा का करोड़ी बना दिया जाएगा. परमेश्वर आपको सत्कर्म करने की श्रद्धा दे और आपको सत्कर्म करने के ऊपर स्थिर रखे.
विशेष सलाम
आपका दास
अबुल फजल’
अकबर के पास अपने साम्राज्य के अंधे (मैं सूरदास को दृष्टिहीन नहीं लिख पा रहा और दिव्यांग लिखना नहीं चाह रहा) कवि की बात सुनने और उसके कहे पर अपने बड़े ओहदेदार को हटाने की सूझ और सलाहियत थी. उसने एक तरह से अपने समय के कवियों को हाकिम नियुक्त करने के अधिकार दे रखे थे. काशी की इस घटना के बाद आगे कभी अकबर सूरदास से मिलने वृंदावन गये भी थे.
पत्र की भाषा बताती है कि क्यों अकबर के समकालीन भक्त कवि और प्रजा उसके साथ रही होगी. क्यों अकबर के देहांत पर जौनपुर में पंद्रह दिन शोक मनाया गया होगा क्योंकि अकबर ने उन ‘विधर्मी’ कवियों को अपना मित्र मानता था और वे कवि अपने समय के साम्राज्य में हस्तक्षेप करने का हक रखते थे. वे अपने को समाज और सरकार के नियंताओं में भी पाते थे.
अगर अकबर हिन्दू उत्पीड़क होता तो क्या वह संत सूरदास के कहे पर भेदभाव करने वाले काशी के हाकिम को बदलता और उनसे कहता की वे काशी का नया हाकिम चुन कर नियुक्त करे ं! अगर अकबर हिन्दू विरोधी होता तो क्या सूरदास उसे पत्र लिख कर शिकायत करने की सोचते ? यह सोचने वाली बात है !
नोट: जिस सूबे का कर ढाई लाख होता था, वहां का हाकिम करोड़ी कहलाता था. सूरदास के पत्र का संदर्भ भारतीय संस्कृति, वी. एन. पांडे, पृष्ठ – 108-109
(हिमांशु कुमार के सौजन्य से)
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