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बढ़ती बेरोज़गारी से बढ़ेगी मुश्किल ?

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बढ़ती बेरोज़गारी से बढ़ेगी मुश्किल ?

Ravish Kumarरविश कुमार

भारत की मार्च तिमाही की जीडीपी 5.8 प्रतिशत पर आ गई है. शुक्रवार को जो डेटा जारी हुआ है उसके अनुसार जनवरी से मार्च की जीडीपी पिछले पांच साल में सबसे कम है. पिछले डेढ़ साल में पहली बार हुआ है जब भारत की जीडीपी चीन की जीडीपी से पीछे हो गई है. चीन की जीडीपी 6.4 प्रतिशत है. जनवरी से मार्च की जीडीपी के बारे में फोरकास्ट था कि 6.3 प्रतिशत तक रहेगी लेकिन जीडीपी उससे भी कम हो गई है. रिज़र्व बैंक ने भी अनुमान ज़ाहिर किया था कि 2019-20 की जीडीपी 7.2 प्रतिशत तक जा सकती है. इस जीडीपी में खेती का योगदान और कम हुआ है.

जीडीपी भले कम हो, लेकिन वित्त मंत्रालय को आज 50 साल में पहली बार महिला वित्त मंत्री मिला है. 1970 में इंदिरा गांधी वित्त मंत्री थीं. निर्मला सीतारमण भारत की पहली रक्षा मंत्री रह चुकी हैं. अपने कार्यकाल के पहले दिन जीडीपी दर में आई कमी अच्छी तो नहीं है. क्या यह अर्थव्यवस्था में किसी ठहराव का संकेत है? ऑटोमोबिल सेक्टर पहले से ही गिरावट झेल रहा है. कार कंपनियों ने अपना उत्पादन कम कर दिया है. मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की हालत खराब है. पिछले साल जनवरी से मार्च के बीच मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की ग्रोथ रेट 9.5 प्रतिशत थी, लेकिन इस साल जनवरी से मार्च के बीच 3.1 प्रतिशत हो गई है. 2014-15 के बाद जीडीपी की दर इतनी कम हुई है. सरकार पर दबाव होगा कि वह ऐसी नीतियां बनाए कि लोग ज़्यादा पैसे ख़र्च करें क्योंकि उपभोक्ता वस्तुओं की खपत में भी ठहराव के आंकड़े आ रहे हैं. 5 जुलाई को बजट है.

चुनाव में बेरोज़गारी मुद्दा नहीं था. आपको याद होगा सरकार ने नेशनल स्टेस्टिकल कमीशन की रिपोर्ट जारी करने पर रोक लगा दी थी. 2017-18 के लिए सालाना रोज़गार सर्वे मंज़ूर होने के बाद भी जारी नहीं की गई. इसके विरोध में नेशनल स्टेटिस्टिकल कमीशन के पी सी मोहनन और जी वी मीनाक्षी ने इस्तीफा दे दिया था कि सरकार आंकड़ों को छिपा रही है. आज भारत सरकार के सांख्यिकी मंत्रालय ने आवधिक श्रमबल सर्वेक्षण रिपोर्ट 2017-18 जारी कर दिया. सांख्यिकी विभाग के सचिव का कहना है कि आवधिक श्रमबल सर्वेक्षण में इस बार पैमाने बदले गए हैं. इसलिए पुरानी रिपोर्ट से तुलना ठीक नहीं है. इस रिपोर्ट में वही बात है जो दिसंबर में बाहर आने से रोक दी गई थी.




31 मई को जारी रिपोर्ट में माना गया है कि बेरोज़गारी की दर 6.1 प्रतिशत हो गई है. शहरों में रोज़गार के लिए उपलब्ध युवाओं में बेरोज़गारी की दर 7.8 प्रतिशत है. गांवों में रोज़गार के लिए उपलब्ध युवाओं में बेरोज़गारी की दर 5.3 प्रतिशत है. यह औसत आंकड़ा है लेकिन अलग-अलग देखने पर स्थिति भयावह नज़र आती है. गांवों में जो बेरोज़गारी है उसका हमें अंदाज़ा भी नहीं है. ये और बात है कि बेरोज़गारी मुद्दा नहीं है फिर भी चूंकि रिपोर्ट में लिखा है तो ज़िक्र ज़रूरी हो जाता है. बेरोज़गारी का आंकड़ा औसत रूप में तो 6.1 लगता है मगर रिपोर्ट का डिटेल देखने पर स्थिति और भयंकर नज़र आती है. 2011-12 में गांवों में 15 से 29 साल के युवाओं में बेरोज़गारी 5 प्रतिशत थी. 2017-18 में गांवों में लड़कों के बीच बेरोज़गारी बढ़कर 17.4 प्रतिशत हो गई. 2011-12 में गांवों में 15 से 29 साल की लड़कियों में बेरोज़गारी 4.8 प्रतिशत थी. 2017-18 में बेरोज़गारी बढ़कर 13.6 प्रतिशत हो गई.

इसी तरह अगर आप शहरों में लड़के और लड़कियों में बेरोज़गारी की दर देखेंगे तो तस्वीर विस्फोटक नज़र आएगी. अर्बन मेल यूथ यानी शहरों के युवाओं में बेरोज़गारी की दर 2004-04 और 2011-12 में 7.5 और 8.8 प्रतिशत के बीच रही है. 2017-18 में 18.7 प्रतिशत बेरोज़गारी की दर हो गई. 2004-5, 2011-12 के बीच शहरी लड़कियों में बेरोज़गारी दर 13.1 और 14.9 प्रतिशत के बीच होती थी. 2017-18 में ये बेरोज़गारी की दर 27.2 प्रतिशत हो गई है.

दिसबंर में जो रिपोर्ट जारी होनी थी और नहीं हुई उसमें यह बात थी कि 45 साल में सबसे अधिक बेरोज़गारी दर है. अगर हमारे पास वह पैमाना न भी हो तो भी शहरों में औसत बेरोज़गारी की दर 7.8 प्रतिशत काफी है.

उधर प्रधानमंत्री सहित कई मंत्रियों ने अपना कार्यभार संभाल लिया और काम भी शुरू कर दिया. प्रधानमंत्री मोदी कैबिनेट की पहली बैठक में कुछ महत्वपूर्ण फैसले लिए गए. जीडीपी और बेरोज़गारी के खराब आंकड़ों के बीच सरकार के आज के फैसले बता रहे हैं कि सरकार का ज़ोर खर्च पर चला गया है. जिस तरह से व्यापारियों और किसानों को पेंशन देने के वादे पर फैसला हुआ है, पीएम किसान योजना का विस्तार हुआ है, उससे लगता है कि सरकार लोगों के हाथ में पैसा देकर खर्च की क्षमता बढ़ाना चाह रही है.




मगर इस बैठक में प्रधानमंत्री ने पहला फैसला शहीद परिवारों से संबंधित लिया. देश की रक्षा करते हुए शहीद होने वाले जवानों के बच्चों के लिए छात्रवृत्ति की राशि बढ़ा दी गई है. यही नहीं इस योजना में आतंकी और नक्सली हमले में शहीद हुए पुलिस सेवा के लोगों को भी शामिल किया गया है. प्रधानमंत्री ने अपने पहले फैसले को भारत को सुरक्षा देने वालों के नाम समर्पित किया है. नेशनल डिफेंस फंड के तहत प्रधानमंत्री स्कालरशिप दी जाती है. लड़कों की छात्रवृत्ति 2200 से बढ़ाकर 2500 प्रति माह कर दी गई है. लड़कियों के लिए 2250 से बढ़ाकर 3000 प्रति माह कर दी गई है. यही नहीं किसानों के लिए भी बड़ी घोषणा की गई है. पीएम किसान योजना का विस्तार किया गया है. इसमें 14 करोड़ 50 लाख किसान शामिल होंगे. पहले पीएम किसान योजना में 12 करोड़ लघु व सीमांत किसान थे. अब सभी किसानों को साल में 6000 मिलेगा. इसके लिए सरकार को हर साल 87000 करोड़ खर्च करने होंगे. व्यापारियों को भी 3000 पेंशन का फैसला कैबिनेट ने क्लियर कर दिया. डेढ़ करोड़ से कम टर्नओवर वाले 3 करोड़ खुदरा व्यापारियों को इसका लाभ होगा. 60 साल के किसानों को भी 3000 पेंशन देने का फैसला हुआ है.

अमित शाह गृहमंत्री बने हैं और राजनाथ सिंह रक्षा मंत्री. नरेंद्र सिंह तोमर कृषि मंत्री बने हैं और प्रकाश झावड़ेकर सूचना और प्रसारण मंत्री. स्मृति ईरानी को महिला व बाल विकास मंत्रालय दिया गया है. गिरिराज सिंह को पशुपालन, मत्स्य पालन विभाग का कैबिनेट मंत्री बनाया गया है. रामविलास पासवान और नितिन गडकरी का पुराना मंत्रालय ही मिला है. एक नया मंत्रालय बना है जिसका नाम है जल शक्ति मंत्रालय. इसके कैबिनेट मंत्री हैं गजेंद्र सिंह शेखावत. जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय था जिसे बदल कर जल शक्ति मंत्रालय कर दिया गया है. तब गंगा संरक्षण मंत्रालय बना था तो छानबीन होती थी कि गंगा मंत्रालय का क्या रिज़ल्ट है. अब मंत्रालय से गंगा का नाम हट गया है. जो लोग मंत्री नहीं बन सके हैं उन्हें निराश होने की ज़रूरत नहीं है. हम समझते हैं कि समर्थक घूर घूर कर परेशान कर देते होंगे कि आप क्यों नहीं बने. थोड़ा और ज़ोर लगाए होते. ऐसे सांसदों के पास अब भी बहुत कुछ करने के लिए है. उन्हें याद रखना चाहिए कि बीजेपी ने इस बार 85 से अधिक सांसदों के टिकट काट दिया था. इसलिए सांसद के रूप में भी अच्छा काम कर मंत्री न बन पाने का अफसोस मिटा सकते हैं. और पिछली सरकार में मंत्री रहे 36 लोग भी तो दोबारा मंत्री नहीं बने हैं. जो मंत्री बने हैं उनके बारे में बात करनी चाहिए.




मानव संसाधन मंत्रालय संभालने का जिम्मा मिला है रमेश पोरखरियाल निशंक को. 44 किताबों की रचना कर चुके हैं. इसके अलावा पार्ट टाइम में वे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भी रहे. 5 बार विधायक बने, सांसद रहे. इसलिए निशंक जी के राजनीतिक काम को पार्ट टाइम कहा क्योंकि इतनी व्यस्त ज़िम्मेदारी के बाद कोई 44 किताबें लिख डाले, कायदे से मानव संसाधन मंत्रालय उसे ही मिलना चाहिए था और मिला भी. निशंक की अपनी एक वेबसाइट भी है जिस पर पहली पंक्ति यह है कि निशंक मूल रूप से साहित्यिक विधा के व्यक्ति हैं.

इस वेबसाइट के बारे में आपको इसलिए भी बता रहा हूं कि यह भी सीखें कि राजनेता अपने सार्वजनिक जीवन में कितनी तैयारी रखते हैं. विधायक, मंत्री, मुख्यमंत्री, सांसद रहते हुए 44 किताबें लिखना कोई लूडो का खेल नहीं है. निशंक ने कविता संग्रह लिखा है. कहानी संग्रह लिखा है. उपन्यास और व्यक्तित्व का विकास चार श्रेणियों में कई किताबें लिखी हैं. मुझे विधाता बनना है, मेरी व्यथा, मेरी कथा, संसार कायरों के लिए नहीं है, तुम भी मेरे साथ चलो, खड़े हुए प्रश्न, ऐ वतन तेरे लिए, टूटे दायरे, अपना-पराया, सफलता के अचूक मंत्र. बच्चों के लिए भी रचना है. मेहनत पर भरोसा करो, भाग्य पर नहीं. बस एक ही इच्छा. निशंक जी ने लोकसभा की वेबसाइट पर लिखा है कि निशंक साहित्य बारह भाषाओं में अनुवाद हुआ है. भारतीय और विदेशी यूनिवर्सिटी में निशंक साहित्य पर शोध हुआ है. इनके लेखों को भारतीय और विदेशी यूनिवर्सिटी में पढ़ाया जाता है. मैं परिचय के सिलसिले में ये सब बता तो रहा हूं लेकिन खासकर वाइसचांसलर और प्रिंसिपल लोगों से अपील है कि वे मंत्री जी को प्रभावित करने के लिए इन किताबों की खरीद न शुरू कर दें. मंत्री जी भी विशेष रूप से पूछें कि आपने ये किताब मेरे मंत्री बनने के बाद पढ़ी या पहले से पढ़ी थी. मेरी एक चिन्ता और है. कई बार होता है कि मंत्री जी 44 किताबों के लेखक हैं तो हर लाइब्रेरी में उसकी खरीद धड़ाधड़ होने लगती है. निशंक साहब एक आदेश जारी कर सकते हैं कि मंत्री बनने के बाद उनकी किताबों की खरीद सरकारी लाइब्रेरी के लिए न हो. उन पर हितों के टकराव का आरोप लग सकता है. डॉ. निशंक खाली वक्त में सामाजिक और देशभक्ति की फिल्में देखना पंसद करते हैं.




लगता है भारत को योग्य मानव संसाधन मंत्री मिल गया है. उम्मीद की जा सकती है कि वे अपनी किताब सफलता के अचूक मंत्र का इस्तमाल करते हुए मानव संसाधन मंत्रालय को बदल देंगे. बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में कहा है कि अगले पांच साल में 200 केंद्रीय विद्यालय और नवोदय विद्यालय खोले जाएंगे. उच्च शिक्षा के बारे में कहा गया है पांच वादे हैं. ‘केंद्रीय विधि, इंजीनियरिंग, विज्ञान, प्रबंधन संस्थानों में हम अगले पांच सालों में कम से कम 50 प्रतिशत तक सीट बढ़ाने के लिए सभी ज़रूरी कदम उठाएंगे. पिछले पांच सालों में हमने शिक्षों के लिए ऑनलाइन पाठ्यक्रमों को एक बेहतर विकल्प समझा है और इन्हें महत्व दिया है. अगले पांच सालों में हम इसे उच्च शिक्षा का एक प्रमुख संसाधन बनाकर प्रस्तुत करेंगे. कला, संस्कृति और संगीत विश्वविद्लाय की स्थापना करेंगे. आतिथ्य एवं पर्यटन विश्वविद्यालय और एक पुलिस विश्वविद्यालय की स्थापनी होगी. पिछले पांच सालों में हमारा ध्यान उच्च शैक्षणिक संस्थानों की गुणवत्ता बढ़ाने पर था और उत्कृष्ट संस्थान इस ओर बढ़ाया गया एक कदम हो. हम इसे आगे बढ़ाते हुए अगले पांच वर्षों में यानी 2024 क ऐसे 50 संस्थान तैयार करेंगे.’

घोषणापत्र में सेंट्रल यूनिवर्सिटी में खाली पड़े पदों को भरे जाने का कोई वादा नहीं है लेकिन ऑनलाइन पाठ्यक्रम को विकल्प बनाने पर ज़ोर दिया गया है. नई सरकार अगर इस दिशा में बढ़ती है तो कैंपस का स्वरूप काफी बदलेगा. कैंपस में भर्तियों पर भी असर पड़ेगा. 3 दिसंबर 2014 को रमेश पोखरियाल निशंक ने लोकसभा में कहा था कि ज्योतिष विज्ञान नंबर एक विज्ञान है. उसके सामने विज्ञान कुछ भी नहीं है. लोकसभा में कहा था कि लाखों वर्ष पहले भारत ने अणु परीक्षण कर लिया था.

उम्मीद है निशंक ज्योतिष विज्ञान की पढ़ाई के लिए नए आईआईटी की स्थापना करेंगे. अगर ज्योतिष विज्ञान नंबर एक विज्ञान है तो ज्योतिष के लिए आईआईटी तो होनी ही चाहिए. बाद बाकी सब ठीक है. जब उन्होंने यह बयान दिया था तब हमारी सहयोगी निधि कुलपति ने निशंक से बात की थी. विज्ञान कहता है कि भूकंप की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है मगर निशंक निधि से कहते रहे कि ज्योतिष से भूकंप की भविष्यवाणी हो सकती है. भारत को निशंक जैसे वैज्ञानिक सोच वाले मानव संसाधन मंत्री की ज़रूरत है.

रमेश पोखरलियाल निशंक भारत के मानव संसाधन मंत्री हैं. अगर उनकी बात सही है तो राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन का चीफ किसी ज्योतिष को बनाना चाहिए ताकि भूकंप और तूफान का पहले ही पता चल जाए और बचाव का काम शुरू हो सके.




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