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सामूहिक सांस्कृतिक संपदा के निजीकरण के नायक बाबा रामदेव

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सामूहिक सांस्कृतिक संपदा के निजीकरण के नायक बाबा रामदेव
सामूहिक सांस्कृतिक संपदा के निजीकरण के नायक बाबा रामदेव
जगदीश्वर चतुर्वेदी

बाबा रामदेव को अभिताभ बच्चन के बाद सबसे बड़ा ब्रांड या मॉडल मान सकते हैं. वे योगी हैं और मॉडल भी. वे संत हैं लेकिन व्यापारी भी. वे गेरूआ वस्त्रधारी हैं लेकिन मासकल्चर के प्रभावशाली रत्न भी हैं. बाबा रामदेव ने योग की मार्केटिंग करते हुए जिस चीज पर सबसे ज्यादा जोर दिया है वह है – योग का ‘प्रभाव.’ वे अपने योग के सभी विवरण और ब्यौरों का प्रचार ‘प्रभाव’ को ध्यान में रखकर करते हैं. योग के ‘प्रभावों’ पर जोर देने का अर्थ है उनके वक्तव्य के विचारों की विदाई. वे बार-बार एक ही तरीके से विभिन्न आसनों को टीवी लाइव शो में प्रस्तुत करते हैं. उन्हें दोहराते हैं.

बाबा रामदेव ने योग के उपभोक्ताओं को अपने डीवीडी, सीडी आदि की बिक्री करके, लाइव टीवी शो करके योग के साथ आधुनिक तकनीकोन्मुख भी बनाया है. वे योग को व्यक्तिगत उत्पादन के क्षेत्र से निकालकर मासप्रोडक्शन के क्षेत्र में ले गए हैं. पहले योग का लोग अकेले में अभ्यास करते थे, लेकिन बाबा रामदेव ने योग के मासप्रोडक्शन और जनअभ्यास को टेलीविजन के माध्यम से संप्रेषित किया है. योग का आज बाबा की वजह से मासप्रोडक्शन हो रहा है. यह वैसे ही मास प्रोडक्शन है जैसे अन्य वस्तुओं का पूंजीवादी बाजार के लिए होता है. मास प्रोडक्शन (जनोत्पादन) और जनोपभोग अन्तर्ग्रथित हैं.

लोग सही ढ़ंग से योग सीखें, इसके लिए जरूरी है सही लोगों से प्रशिक्षण लें. सही लोगों को देश भर में आसानी से पा सकें इसके लिए जरूरी है मासस्केल पर योग शिक्षक तैयार किए जाएं. इसके लिए सभी इलाकों में योग प्रशिक्षण की सुविधाएं जुटायी जाएं और इसी परिप्रेक्ष्य के तहत बाबा ने योग के मासप्रोडक्शन और प्रशिक्षण की राष्ट्रीय स्तर पर शाखाएं बनायी हैं. बाबा के ट्रस्ट द्वारा निर्मित वस्तुओं के वितरण एजेंट हैं और दुकानदारों की पूरी वितरण प्रणाली है. यह प्रणाली वैसे ही है जैसे कोई कारपोरेट घराना अपनी वस्तु की बिक्री के लिए वितरण और बिक्री केन्द्र बनाता है.

बाबा रामदेव के प्रचार में व्यक्ति की क्षमता से ज्यादा योग की क्षमता के प्रचार-प्रसार पर जोर दिया जा रहा है. यह मानकर चला जा रहा है कि योग है तो ऊर्जा है, शक्ति है. इसके आगे वे किसी तर्क को मानने के लिए तैयार नहीं हैं. योग से शरीर प्रभावित होता है लेकिन कितना होता है ? कितने प्रतिशत लोगों को बीमारियों से मुक्त करने में इससे मदद मिली है ? इसके बारे में कोई स्वतंत्र वैज्ञानिक अनुसंधान अभी तक सामने नहीं आया है. कायदे से बाबा के सदस्यों में यह काम विभिन्न विज्ञान संस्थाओं को करना चाहिए, जिससे सत्य को सामने लाने में मदद मिले.

अवैज्ञानिक मिथों को बाजार देने के लिए आधुनिक चिकित्सा विज्ञान को निशाना बनाया

बाबा रामदेव का टेलीविजन से अहर्निश स्वास्थ्य लाभ का प्रचार अंततः विज्ञानसम्मत चेतना फैला रहा है या अवैज्ञानिक चेतना का निर्माण कर रहा है, इस पर भी गौर करने की जरूरत है. भारत जैसे देश में जहां अवैज्ञानिक-चेतना प्रबल है, वहां पर बाबा रामदेव का प्राचीनकालीन चिकित्साशास्त्र बहुत आसानी से बेचा जा सकता है. बाबा ने चिकित्सा विज्ञान को अस्वीकार करते हुए पुराने चिकित्सा मिथों का अतार्किक ढ़ंग से इस्तेमाल किया है. इस क्रम में बाबा ने चिकित्सा विज्ञान को ही निशाना बनाया है. उस पर तरह-तरह के हमले किए हैं.

बाबा रामदेव ने मासकल्चर के फंड़े इस्तेमाल करते हुए योग और प्रणायाम के अंतहीन अभ्यास और इस्तेमाल पर जोर दिया है. योग करना, प्राणायाम करना जिस समय बंद कर देंगे, शारीरिक स्वास्थ्य गड़बड़ाने लगेगा. अंतहीन योग-प्राणायाम का वायदा अंततः कहीं नहीं ले जाता.

बाबा रामदेव का फंडा है योग शिविर में शामिल हो, योग के पीछे चलो, वरना पिछड़ जाओगे. इसके सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही पक्ष हैं. जो योग के लिए खर्च कर सकते हैं, प्रतिदिन योग कर सकते हैं, उनके लिए शारीरिक उपद्रवों से कुछ हद तक राहत मिलती है. जो खर्च करने की स्थिति में नहीं हैं, जो रोज योग-प्राणायाम करने की स्थिति में नहीं हैं, वे बेचारे देख-देखकर कुण्ठित होते रहते हैं.

जो खर्च करने की स्थिति में हैं वे खाते-पीते घरों के थके-हारे लोग हैं. इन खाए-अघाए लोगों की सामाजिक भूमिका और श्रम क्षमता में बढ़ाने में मदद जरूर मिलती है. ये वे लोग हैं जिन्हें भारत की क्रीम कहते हैं. जिनके पास नव्य उदारीकरण के फायदे पहुंचे हैं. इन लोगों में नव धनाढ़यों का बड़ा हिस्सा है. बाबा रामदेव की योग मार्केटिंग में ये सबसे आगे हैं, इन्हें ही बाबा ने निशाना बनाया है.

बाबा रामदेव ने अप्रत्यक्ष ढ़ंग से कारपोरेट घरानों की सेवा की है. यह काम उन्होंने चिकित्सा विज्ञान पर हमला करके किया है. हम सब लोग जानते हैं कि कारपोरेट पूंजीवाद अपने हितों और मुनाफों के विस्तार के लिए मेडीकल साइंस तक को नष्ट करने की हद तक जा सकता है. और यह काम नव्य उदारतावाद के आने के बाद बड़े ही सुनियोजित ढ़ंग से किया जा रहा है. सरकार की तरफ से ऐसी नीतियां अपनायी जा रही हैं जिनके कारण सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं सिकुड़ती जा रही हैं. आज भी हिन्दुस्तान की गरीब जनता का एकमात्र सहारा सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं हैं, लेकिन केन्द्र सरकार सुनियोजित ढ़ंग इन्हें बर्बाद करने में लगी है.

फार्मास्युटिकल कंपनियां और बाबा रामदेव में समानता

दूसरी ओर फार्मास्युटिकल कंपनियां बीमारियों के उपचार पर जोर दे रही हैं. वे सरकार पर दबाब ड़ाल रही हैं कि सरकार इस दिशा में प्रयास न करे कि बीमारी क्यों पैदा हुई ? सरकार बीमारियों को जड़ से खत्म करने की दिशा में न तो नीति बनाए और नहीं पैसा खर्च करे. वे चाहते हैं बीमारी को जड़ से खत्म न किया जाए. वे बार-बार बीमारी की थेरपी पर जोर दे रहे हैं. वे बीमारी को जड़ से खत्म करने पर जोर नहीं दे रहे हैं.

बाबा रामदेव के योग का भी यही लक्ष्य है. उनके पास प्राचीनकालीन थेरपी है जिसे वे जड़ी-बूटियों और प्राणायाम के जरिए देना चाहते हैं. फार्मास्युटिकल कंपनियां यह काम अपने तरीके से कर रही हैं और बाबा रामदेव उसी काम को अपने तरीके से कर रहे हैं. इस क्रम में बाबा रामदेव और फार्मास्युटिकल कंपनियां बड़ी ही चालाकी से एक जैसा प्रचार कर रहे हैं.

मसलन, फार्मास्युटिकल कंपनियां किसी बीमारी की दवा के आश्चर्यजनक परिणामों के बारे में बताती हैं तो बाबा रामदेव भी अपने योग के जादू से ठीक होने वाले व्यक्ति को मीडिया में पेश करते हैं. हमारे देश में अनेक बीमारियां हैं जो आर्थिक-सामाजिक परिस्थितियों के कारण पैदा होती हैं. बाबा के योग के पास उनका कोई समाधान नहीं है. मसलन बड़े पैमाने पर प्रदूषित जल के सेवन या स्पर्श के कारण जो बीमारियां पैदा होती हैं उनका योग में कोई समाधान नहीं है. शराब के सेवन या नशीले पदार्थों के सेवन से जो बीमारियां पैदा होती हैं, उनका कोई समाधान नहीं है. शराब या नशे के कारण पैदा होने वाली समस्याओं को आप नशे की वस्तु की बिक्री बरकरार रखकर दूर नहीं कर सकते.

थैरेपी के जरिए सामाजिक क्रांति करने के सारी दुनिया में अन्तर्विरोधी परिणाम आए हैं. योग से संभवतः कुछ बीमारियों का सामान्य उपचार हो जाए. छोटी-मोटी दिक्कत कम भी हो जाए लेकिन इससे बीमारी रहित समाज तैयार नहीं होगा. सबल-स्वस्थ भारत तैयार नहीं होगा.

बाबा के योग को पाने के लिए व्यक्ति को अपनी गांठ से पैसा देना होगा. आयुर्वेद का इलाज बाबा के अस्पताल में कराने के लिए निजी भुगतान करना होगा. बाबा मुफ्त में उपचार नहीं करते. यही चीज तो कारपोरेट घराने चाहते हैं कि आम आदमी अपने इलाज पर स्वयं खर्चा करे और स्वास्थ्य लाभ करे, वे अपने तरीके से सरकारी चिकित्सा व्यवस्था पर मीडिया में हमले करते रहते हैं, बाबा रामदेव अपने तरीके से चिकित्सा विज्ञान की निरर्थकता का ढ़ोल बजाते रहते हैं. बाबा और कारपोरेट फार्मास्युटिकल कंपनियां इस मामले में एक हैं. दोनों ही चिकित्सा को निजी खर्चे पर करने की वकालत कर रहे हैं.

दोनों का लक्ष्य है अकूत मुनाफा कमाना

बाबा और कारपोरेट घरानों की स्वास्थ्य सेवाएं उनके काम की हैं जो इनमें इलाज कराने का पैसा अपनी गांठ से दे सकते हैं, जो नहीं दे सकते वे इस सेवा के दायरे के बाहर हैं. बाबा रामदेव और उनके अंधभक्त जानते हैं कि हिन्दुस्तान की 80 प्रतिशत से ज्यादा आबादी 20 रूपये पर गुजारा करती है. उसके पास डाक्टर को देने के लिए सामान्य फीस तक नहीं होती. ऐसी स्थिति में बाबा का योग उद्योग किसकी सेवा करेगा ?

फार्मास्युटिकल कंपनियों ने एंटीबायोटिक दवाओं का प्रचार करके समूचे चिकित्साविज्ञान को ही खतरे में डाल दिया है. दूसरी ओर बाबा रामदेव ने योग के पक्ष में वातावरण बनाने के लिए आधुनिक चिकित्सा विज्ञान को निशाना बनाया हुआ है. दोनों का लक्ष्य एक है आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की उपलब्धियों को नष्ट करो. दोनों का दूसरा लक्ष्य है मुनाफा कमाओ. ये दोनों ही सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं पर आए दिन हमले बोलते रहते हैं.

बाबा रामदेव और फार्मास्युटिकल कंपनियों के चिकित्साविज्ञान पर किए जा रहे हमलों के काऱण स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में असमानता और भी बढ़ेगी. हम पहले से ही आधी-अधूरी स्वास्थ्य सेवाओं के सहारे जी रहे थे लेकिन नव्य उदारतावादी हमलों ने इन सेवाओं को और भी महंगा और दुर्लभ बना दिया है.

इस युग का महामंत्र है – हर चीज को माल बनाओ. बाबा ने योग को भी माल बना दिया. बाबा की चिकित्सा सेवाएं कमोडिटी हैं, पैसे दीजिए लाभ लीजिए. पैसा से खरीदने के लिए आपको निजी बाजार में जाना होगा. इसके कारण विगत कई दशकों से स्वास्थ्य सेवाओं को निजी क्षेत्र के हवाले कर दिया गया है.

मजेदार बात यह है कि निजी स्वास्थ्य सेवाओं का जनता भुगतान करती है लेकिन फायदा निजी क्षेत्र को होता है. सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं के लिए भुगतान जनता करती है तो मुनाफा भी जनता के खाते में जाता है. लेकिन निजी कारपोरेट स्वास्थ्य सेवाओं से लेकर बाबा रामदेव की योग स्वास्थ्य सेवाओं तक भुगतान जनता करती है मुनाफा निजी कंपनियां और बाबा रामदेव की पॉकेट में जाता है. इस अर्थ में बाबा रामदेव ने योग को कारपोरेट मुनाफाखोरी के धंधे में तब्दील कर दिया है.

ध्यान रहे नव्य उदारीकरण का यह मूल मंत्र है – पैसा जनता का मुनाफा निजी कंपनियों का. सारी नीतियां इसी मंत्र से संचालित हैं और बाबा रामदेव का योग-प्राणायाम का खेल भी इसके सहारे चल रहा है.

यह स्वास्थ्य सेवाओं का व्यक्तिकरण है, व्यवसायीकरण है

जिस तरह का हमला सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं पर कारपोरेट घरानों और बाबा रामदेव ने किया है उसका लाभ किसे मिला है ? उसका लाभ निजी कंपनियों और बाबा रामदेव के ट्रस्ट को मिला है. इससे राष्ट्र खोखला हुआ है. बाबा रामदेव के ट्रस्ट और निजी स्वास्थ्य कंपनियों के हाथों अरबों-खरबों की संपदा के जाने का अर्थ यह भी है कि अब हम स्वास्थ्य के क्षेत्र में आगे नहीं पीछे जा रहे हैं. समाज के अधिकांश समुदायों को बेसहारा छोड़कर जा रहे हैं.

इनको मिलने वाले लाभ से राष्ट्र को कोई लाभ नहीं होने वाला. यह पैसा किसी नेक काम में, विकास के किसी काम में खर्च नहीं होगा. यह स्वास्थ्य सेवाओं का व्यक्तिकरण है, व्यवसायीकरण है. यह देशभक्ति नहीं है, पूंजी और मुनाफा भक्ति है. यह कारपोरेट संस्कृति है. यह भारतीय संस्कृति नहीं है. यह खुल्लमखुल्ला जनता के हितों के साथ गद्दारी है. यह जनता के साथ एकजुटता नहीं है.

स्वास्थ्य और बीमारी माल या वस्तु नहीं हैं. इन्हें पूंजीपतिवर्ग ने अपने मुनाफे के लिए माल या वस्तु में तब्दील किया है. बाबा का समूचा योग-प्राणायाम का कार्य व्यापार मुनाफे और माल की धारणा पर आधारित है. बाजार के सिद्धांतों पर आधारित है. योग हमारी विरासत का हिस्सा रहा है, यह बाबा रामदेव का बनाया नहीं है. इसे सैंकड़ो-हजारों सालों से भारत में लोग इस्तेमाल करते आ रहे हैं. यह अमूल्य धरोहर है. बाबा रामदेव ने इसे अपनी संपदा और मुनाफे की खान बनाकर जनता की धरोहर को लूटा है.

बाबा रामदेव को परंपरागत योग को माल बनाकर बेचने और उससे अबाध मुनाफा कमाने का कोई नैतिक हक नहीं है. योग निजी बौद्धिक उत्पादन या सृजन नहीं है. वह भारत की जनता की साझा सांस्कृतिक संपदा है. उससे कमायी गयी दौलत को बाबा को निजी ट्रस्ट के हवाले करने की बजाय राष्ट्र के हवाले करना चाहिए क्योंकि योग पर उनका पेटेंट राइट नहीं बनता. ऐसी अवस्था में वे इससे अर्जित मुनाफा अपने ट्रस्ट के खाते में कैसे डाल सकते हैं ?

योग के मिथ और यथार्थ

योग दिवस पर जितने योगी, योगिनी और बाइटस योगबटुक नजर आ रहे हैं और जिस परिवेश में उनको दिखाया जा रहा है, उस सबको देखकर लगेगा कि भारत तो स्वस्थ, सुखी और स्वच्छ परिवेश का समाज है !

योग की टीवी बाइटस लेने वाले जरा देश के गली, मुहल्ले, झुग्गी – झोंपड़ी, मजदूर, किसान, खेत मजदूर, औरतों, आदिवासियों की बस्तियों में जाकर पता करें कि क्या ये समुदाय योग करते हैं ? या भविष्य में करेंगे ? क्या इन समुदायों की रिहाइश के आसपास योगासन का वैसा ही परिवेश है जैसा टीवी में दिखाया जा रहा है ?

असल में यह योग दिवस के नाम पर सत्ता और संघ का ढोंग तंत्र है !
योग के बारे में बाबा रामदेव का गढ़ा मिथ है कि योग तो पतंजलि की सृष्टि हैं लेकिन यह सच नहीं है. पतंजलि ने योग नहीं बनाए, बल्कि उन्होंने योग विद्याओं का संकलन किया. योग से संबंध रखने वाले विभिन्न विचारों को एकत्र किया. बाद में उसे सांख्य तत्वमीमांसा के साथ जोड़ दिया.

पतंजलि के ‘योगसूत्र’ के प्रारंभिक भाष्य, ‘व्यास भास’ पर टीका करने वाले दो महान भाष्यकार वाचस्पति और विज्ञान भिक्षु इस बात पर एकमत हैं कि पतंजलि योग के प्रतिष्ठापक नहीं बल्कि संपादक थे. इनमें कोई चीज मौलिक नहीं है बल्कि दक्षतापूर्ण, सुनियोजित संपादन है, जिसमें समुचित टिप्पणियां भी दी गयी हैं. इन विचारकों का मानना है योग क्रियाएं पतंजलि से भी पुरानी हैं इसलिए योगसूत्र में पतंजलि के योगसंबंधी विचारों को खोजना गलत होगा.

योग के साथ बाबा रामदेव ने ‘ऊं’ को नत्थी किया है जबकि मूलरुप से योग क्रियाओं के साथ ‘ऊं’ का कोई संबंध नहीं था, स्वयं पतंजलि ने योग के साथ ईश्वर को नत्थी किया था. जबकि योग के साथ ईश्वर का भी कोई संबंध नहीं था. ‘ऊं’ को योग के साथ नत्थी करने का अर्थ है – ईश्वर को शामिल करना.

योग का सतह पर शरीर और स्वास्थ्य से संबंध दिखता है, लेकिन असल बात यह नहीं है. योग का संबंध तो मानवचेतना को अंतर्मुखी बनाने की प्रक्रिया से है. यह बात योग पर जितने भी लोगों ने पुराने जमाने में विचार किया है, उन्होंने स्थापित की है.

यह गलत प्रचार है कि योग को ब्राह्मणों ने बनाया. पतंजलि के जन्म के काफी पहले योग को असंस्कृत लोगों ने जन्म दिया. ए. ई. गौफ ने ‘फिलासफी आफ दि उपनिषदाज’ (1882) में लिखा है –

‘योग क्रियाओं का प्रादुर्भाव असंस्कृत लोगों की क्रियाओं से हुआ इसलिए आर्यों ने जब आक्रमण किया तो उन्होंने देश के मूल निवासियों से इन क्रियाओं को ग्रहण किया होगा.’

योग पर विचार करते समय यह बात ध्यान में रखें इस पूरे प्रपंच को आर्य-अनार्य के वर्गीकरण में सरलीकृत करके नहीं समझा जा सकता. अनार्य या आर्यों के आगमन के बहुत पहले से भारत की आदिम जातियों में योग-क्रियाएं मिलती हैं. इसका यह अर्थ नहीं है कि इसको आर्यों ने इनको अनार्यों से सीखा. इस बात को कहने का आशय मात्र यह है योग क्रियाएं आरंभ में आर्यों के दायरे के बाहर थी.

वैदिकजनों में जादू टोनों और संबंद्ध क्रियाओं के साथ योग का प्रादुर्भाव हुआ. वैदिकों ने तापस, ध्यान और तन्मयता को कला में बदल दिया. कालांतर में उपनिषद काल में योग के भाववादी रुप का निर्माण किया गया.

जाने योग के इमेज का खेल

मौजूदा समाज में इमेजों को देखना और उनमें ही जीना सामान्य बात हो गयी हो है. ऐसे में नज़ारे ही प्रमुखता अर्जित कर लेते हैं. इमेज और उनके नजारे ही एकता के सूत्र बन जाते हैं. अब हम नज़ारों को देखते हैं, नज़ारे हमें देखते हैं. एक-दूसरे को देखना ही एकीकरण का मंत्र बन जाता है. नज़ारे ही समाज को जोड़ने का उपकरण बन जाते हैं. समाज में जहां जाओ सब एक-दूसरे को घूर रहे हैं. अब घूरना ही चेतना का निर्धारक तत्व बन गया है. घूरना छद्मचेतना का प्रभावशाली आधार है. वंचित और समर्थ सभी एक-दूसरे को घूर रहे हैं. नज़ारों और घूरने के आधार पर ही हमारी चेतना बन रही है.

हम जब इमेज देखते हैं तो सिर्फ इमेजों को ही नहीं देखते बल्कि इमेजों के जरिए जनता के बीच के सामाजिक संबंधों को देखते हैं. जनता के सामाजिक संबंधों के बीच में सेतु का काम इमेज करती हैं. इमेजों को विज़न के दुरूपयोग के जरिए नहीं समझा जा सकता, बल्कि इमेजों का उत्पादन जनोत्पादन की तकनीक के गर्भ से होता है. हम जिन इमेजों को मीडिया के विभिन्न रूपों के माध्यम से देखते हैं वे सभी सामाजिक वर्चस्व वाले मॉडल का प्रतिनिधित्व करती हैं.

अब हमारे सामने तयशुदा चीजें पैदा करके रख दी गयी हैं और हमें अब इनमें से ही चुनना होता है. यह तय है कि किसमें से चुनना है, कितना चुनना है और क्यों चुनना है. यह सब पहले ही निर्धारित है.
नागरिकों को उपलब्ध उत्पादन संबंधों में से ही चुनना होता है. हम जो चुनते हैं वह अवास्तविक होता है, काल्पनिक होता है. जो चुनते हैं वह वास्तव सामाजिक यथार्थ में कुछ भी नया नहीं जोड़ता. इसमें हम सिर्फ जो उपलब्ध कराया जा रहा है, उसमें से ही चुनते हैं. उपभोग करते हैं.

विचार, प्रचार, विज्ञापन, मनोरंजन आदि का उपभोग करते हुए सामाजिक वर्चस्व का ही उपभोग करते हैं. फलतः सामाजिक वर्चस्व का हिस्सा मात्र बनकर रह जाते हैं. हम जिन नज़ारों को देखते हैं वे रूप और अन्तर्वस्तु में मौजूदा व्यवस्था की वैधता को ही हमारे ज़ेहन में उतारते हैं. मौजूदा व्यवस्था के लक्ष्य और परिस्थितियों की वैधता को पुष्ट करते हैं. नज़ारे हमारे मन में व्यवस्था के लक्ष्य और परिस्थितियों के प्रति स्थायी वैधता पैदा करते हैं.

बाबा रामदेव कारपोरेट पूंजीवाद के महान सेवक

मुझे बाबा रामदेव अच्छे लगते हैं. वे इच्छाओं को जगाते हैं, आम आदमी में जीने की ललक पैदा करते हैं. भारत जैसे दमित समाज में इच्छाओं को जगाना ही सामाजिक जागरण है. जो लोग कल तक अपने शरीर की उपेक्षा करते थे, अपने शरीर की केयर नहीं करते थे, उन सभी को बाबा रामदेव ने जगा दिया है.

इच्छा दमन का कंजूसी के भावबोध, सामाजिक रूढ़ियों और दमित वातावरण से गहरा संबंध है. बाबा रामदेव ने एक ऐसे दौर में पदार्पण किया, जिस समय मीडिया और विज्ञापनों से चौतरफा मन, शरीर और पॉकेट खोल देने की मुहिम आरंभ हुई है. यह एक तरह से बंद समाज को खोलने की मुहिम है, जिसमें परंपरागत मान्यताओं के लोगों को बाबा रामदेव ने सम्बोधित किया है.

परंपरागत भारतीयों को खुले समाज में लाना, खुले में व्यायाम कराना, खुले में स्वास्थ्य चर्चा के केन्द्र में लाकर बाबा रामदेव ने कारपोरेट पूंजीवाद की महान सेवा की है. बाबा रामदेव ने जब अपना मिशन आरंभ किया था तब उनके पास क्या था ? और आज क्या है ? इसे जानना चाहिए.

आरंभ में बाबा रामदेव सिर्फ संयासी थे, उनके पास नाममात्र की संपदा भी नहीं थी, आज वे पूंजीवादी बाजार के सबसे मंहगे ग्लोबल ब्रॉण्ड हैं. अरबों की संपत्ति के मालिक हैं. यह संपत्ति योग-प्राणायाम से कमाई गई है. इतनी बडी संपदा अर्जित करके बाबा रामदेव ने एक संदेश दिया है कि अगर जमकर परिश्रम किया जाए तो कुछ भी कमा सकते हो. कारपोरेट जगत की सेवा की जाए तो कुछ भी अर्जित किया जा सकता है.

बाबा ने एक ही झटके में योग-प्राणायाम और जड़ी-बूटियों का बाजार तैयार किया है. योग को स्वास्थ्य और शरीर से जोड़कर योग शिक्षा की नई संभावनाओं को जन्म दिया है. पूंजीवादी आर्थिक दवाबों में पिस रहे समाज को बाबा रामदेव ने योग के जरिए डायवर्जन दिया है. सामान्य आदमी के लिए यह डायवर्जन बेहद मूल्यवान है, जिसके कारण वह कुछ समय के लिए ही सही प्रतिदिन तनावों के संसार से बाहर आने की चेष्टा करता है.

जिस समाज में आम आदमी को निजी परिवेश न मिलता हो उसे विभिन्न योग शिविरों के जरिए निजी परिवेश मुहैय्या कराना, एकांत में योग करने का अभ्यास कराना. जिस आदमी ने वर्षों से सुबह उठना बंद कर दिया था, उस आदमी को सुबह उठाने की आदत को नए सिरे से पैदा करना बड़ा काम है.

नई आदतें पैदा करने का अर्थ है नई इच्छाएं पैदा करना. स्वयं से प्यार करने, अपने शरीर से प्यार करने की आदत डालना मूलतः व्यक्ति को व्यक्तिवादी बनाना है और यह काम एक संयासी ने किया है, जबकि यह काम बुर्जुआजी का था.

बाबा रामदेव की सफलता का कारण

बाबा रामदेव की सफलता यह है कि उन्होंने व्यक्ति के शरीर में पैदा हुई व्याधियों के कारणों से व्यक्ति को अनभिज्ञ बना दिया. मसलन किसी व्यक्ति को गठिया है तो उसके कारण हैं और उनका निदान मेडीकल में है लेकिन जो आदमी बाबा के पास गया उसे यही कहा गया आप फलां-फलां योग करें, प्राणायाम करें, आपकी गठिया ठीक हो जाएगी. अब व्यक्ति को योग और गठिया के संबंध के बारे में मालूम रहता है, गठिया के वास्तव कारणों के बारे में मालूम नहीं होता.

बाबा चालाक हैं, अतः मेडीकल में जो कारण बताए गए हैं उनका अपनी वक्तृता में इस्तेमाल करते हैं, जबकि बाबा ने मेडीकल साइंस की शिक्षा ही नहीं ली है. ऐसी अवस्था में उनका मेडीकल ज्ञान अविश्वसनीय ही नहीं खतरनाक है और इस चक्कर में वे एक ही काम करते हैं कि समस्या के वस्तुगत ज्ञान से व्यक्ति को विच्छिन्न कर देते हैं. इस तरह बाबा ने व्यक्ति का उसकी वस्तुगत समस्या से संबंध तोड़ने में कामयाबी हासिल कर ली.

बाबा रामदेव की कामयाबी के पीछे एक अन्य बड़ा कारण है रामजन्मभूमि आंदोलन का असफल होना. भाजपा और संघ परिवार की यह चिन्ता थी कि किसी भी तरह जो हिन्दू जागरण रथयात्रा के नाम पर हुआ है, उस जनता को किसी न किसी रूप में गोलबंद रखा जाए और उत्तरप्रदेश और देश के बाकी हिस्सों में राममंदिर के लेकर जो मोहभंग हुआ था, उसने हिन्दुओं के मानस में एक खालीपन पैदा किया था. इस खालीपन को बाबा ने खूब अच्छे ढ़ंग से इस्तेमाल किया और हिन्दुओं को गोलबंद किया.

राममंदिर के राजनीतिक मोहभंग को चौतरफा धार्मिक संतों और बाबा रामदेव के योग के विस्फोट के जरिए भरा गया. राममंदिर के मोहभंग को आध्यात्मिक-यौगिक ध्रुवीकरण के जरिए भरा गया. राममंदिर का सपना चला गया लेकिन उसकी जगह हिन्दू का सपना बना रहा है. विभिन्न संतों और बाबाओं की राष्ट्रीय आध्यात्मिक आंधी ने यह काम बड़े कौशल के साथ किया है.

हिन्दू स्वप्न को पहले राममंदिर से जोड़ा गया बाद में बाबा रामदेव के सहारे हिन्दू सपने को योग से जोड़ा गया. बाबा के लाइव टीवी कार्यक्रमों में हिन्दू धर्म का प्रचार स्थायी विषय रहा है. बाबा रामदेव ने बड़ी ही चालाकी और प्रौपेगैण्डा के जरिए योग को हिन्दूधर्म से जोड़ दिया है और यही उनका धार्मिक भ्रष्टाचार है. इस तरह बाबा रामदेव ने योग के साथ हिन्दूधर्म को जोड़कर योग से उसके वस्तुगत विचारधारात्मक आधार को ही अलग कर दिया है.

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ROHIT SHARMA

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