जगदीश्वर चतुर्वेदी
बाबा रामदेव फिनोमिना योग के बहाने मध्यवर्गीय घरों में घुस आया है. बाबा के सिखाए योगासन के अलावा उनकी बनाई वस्तुओं का भी बड़े पैमाने पर घरों में सेवन हो रहा है. देशी बाजार की उन्नति के लिहाज से यह अच्छा है. बाबा रामदेव को लेकर मुझे कोई व्यक्तिगत शिकायत नहीं है. वे बहुत ही अच्छे योगी-व्यापारी हैं. उनका करोड़ों का योग व्यापार है. हजारों एकड़ जमीन की उनके पास संपदा है. करोड़ों रूपयों का उनका टर्न ओवर है. मेरे ख्याल से एक योगी के पास आज के जमाने में यह सब होना ही चाहिए.
स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी और योग का सत्ता और दौलत से सम्बन्ध
योग का पैसे से कोई अन्तर्विरोध नहीं है. आधुनिक समाज में अच्छा योगी, ज्योतिषी, पंडित, विद्वान, बुद्धिजीवी, राजनेता वह है जिसके पास वैभव हो, दौलत हो, वैभवसंपन्न लोग आते-जाते हों, उसकी ही समाज में प्रतिष्ठा है. आम लोग उसे ही स्वीकृति देते हैं. जब किसी व्यक्ति का मन प्रतिष्ठा पाने को छटपटाने लगे तो उसे वैभवसमपन्न और संपदा संपन्न लोगों का दामन पकड़ना चाहिए. मीडिया का दामन पकड़ना चाहिए बाकी चीजें स्वतः ठीक हो जाएंगी.
बाबा रामदेव मुझे बेहद अच्छे लगते हैं क्योंकि उन्होंने धीरेन्द्र ब्रह्मचारी के बनाए मानकों को तोड़ा है. उन्होंने महर्षि महेश योगी, रजनीश आदि के बनाए मार्ग का अतिक्रमण किया है. एक जमाने में धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में जबर्दस्त रुतबा था. मीडिया रिपोर्ट बताती हैं कि वे स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी को योग प्रशिक्षण देते थे.
योग को राजनीति, संस्थान और बाजार के करीब लाने में स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी की बड़ी भूमिका रही है. वे नियमित श्रीमती गांधी को योग शिक्षा देते थे. बाद में उन्होंने अपने काशमीर स्थित आश्रम में योग प्रशिक्षण शिविर लगाने शुरू कर दिए और श्रीमती गांधी पर दबाब ड़ालकर योग शिक्षक पदों की सबसे पहले केन्द्रीय विद्यालयों में शुरूआत करायी. मुझे याद है योग शिक्षक की नौकरी में स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी के योग संस्थान के प्रमाणपत्र की अहमियत होती थी.
स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी ने अपने इर्द-गिर्द राजनीतिक शक्ति भी एकत्रित कर ली थी और आपातकाल की बदनाम चौकड़ी के साथ भी उनके गहरे संबंध थे. स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी पहले आधुनिक संयासी थे जो योग को राजनीति के करीब लाए और योग को रोजगार की विद्या बनाया. योग को स्कूलों तक पहुंचाने की शुरूआत की. स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी ने योग को राजनीति से जोड़ा था, बाबा रामदेव ने योग को देह, स्वास्थ्य और सौंदर्य से जोड़ा है.
विदेशों में महर्षि महेश और रजनीश का विस्तार
जिस समय यह सब चल रहा था विदेशों में महर्षि महेश योगी और देश में आचार्य रजनीश ने मिलकर उच्चवर्ग, उच्च मध्यवर्ग और मध्यवर्ग में अपने पैर फैला दिए थे. गांव के गरीबों में बाबा जयगुरूदेव और उनके पहले श्रीराम शर्मा के गायत्री तपोभूमि प्रकल्प से जुड़ी युग निर्माण योजना ने बहुत जबर्दस्त सफलता हासिल की थी.
मुश्किल यह थी कि स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी से लेकर बाबा जयगुरूदेव तक धर्म उद्योग पूरी तरह बंटा हुआ था, इनमें अप्रत्यक्ष संबंध था ऊपर से लेकिन धर्म के क्षेत्र में श्रम-विभाजन बना हुआ था. बाबा रामदेव की सफलता यह है कि उनके योग उद्योग में उपरोक्त सभी का योग उद्योग में ही समाहार कर लिया है. बाबा के मानने वालों में सभी रंगत के राजनेता हैं जबकि धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का खेल सिर्फ श्रीमती गांधी तक ही सीमित था. बाबा रामदेव ने य़ोग के दायरे में समूचे राजनीतिक आभिजात्यवर्ग को शामिल किया है.
उसी तरह आचार्य रजनीश की मौत के बाद मध्यवर्ग और उच्चवर्ग के बीच में जो खालीपन पैदा हुआ था, उसे भरा है. रजनीश के योग को अपनी ओर खींचा है, उसके जनाधार को व्यापक बनाया है. महर्षि महेश योगी और रजनीश ने योग को कम्पलीट बहुराष्ट्रीय धार्मिक उद्योग के रूप में स्थापित किया था. बाबा रामदेव ने उसे एकदम मास मार्केट में बदल दिया और इन सबके जनाधार, राजनीतिक आधार, आर्थिक आधार, देशी बाजार, विदेशी बाजार आदि को सीधे सम्बोधित किया है और टेलीविजन का प्रभावी मीडियम के रूप में इस्तेमाल किया है. इस क्रम में अमीर से लेकर निम्न मध्यवर्ग और किसानों तक योग उद्योग का विस्तार किया.
अमीर से लेकर निम्न मध्यवर्ग और किसानों तक योग उद्योग का विस्तार
बाबा रामदेव फिनोमिना ऐसे समय में आया है जब सारे देश में नव्य उदार आर्थिक नीतियां तेजी से लागू की जा रही थीं और उपभोक्तावाद पर जोर दिया जा रहा था. भोग के हल्ले में बाबा रामदेव ने योग के भोग का हल्ला मचाया और भोग की बृहत्तर परवर्ती पूंजीवादी प्रक्रिया के बहुराष्ट्रीय प्रकल्प के अंग के रूप में उसका विकास किया.
बाबा रामदेव फिनोमिना का कामुकता, कॉस्मेटिक्स और उपभोक्तावाद के अंतर्राष्ट्रीय प्रोजेक्ट के लक्ष्यों के साथ गहरा विचारधारात्मक संबंध है. मजेदार बात यह है कि बाबा रामदेव के भाषणों में बहुराष्ट्रीय निगमों के द्वारा मचायी जा रही लूट की आलोचना खूब मिलेगी. वे अपने प्रत्येक टीवी कार्यक्रम में बहुराष्ट्रीय मालों की आलोचना करते हैं और देशी मालों की खपत पर जोर देते हैं.
इस क्रम में वे देशी माल और योग के ऊपर विशेष जोर देते हैं. इन दोनों की खपत बढ़ाने पर जोर देते हैं. इस समूची प्रक्रिया में बाबा रामदेव ने कई काम किए हैं जिससे नव्य उदार नीतियां पुख्ता बनी हैं. इन नीतियों के दुष्प्रभाव के कारण जो हताशा, थकान, निराशा और शारीरिक तनाव पैदा हो रहे थे, उनका विरेचन किया है. इससे देशी-विदेशी बुर्जुआजी को बेहद लाभ मिला है.
उन्हें इस तनाव को लेकर चिन्ता थी. वे समझ नहीं पा रहे थे कि क्या करें. उन्हें यह भी डर था कि कहीं यह तनाव बृहत्तर सामजिक तनाव का कारण न बन जाए. ऐसे में बाबा रामदेव का पूंजीपतिवर्ग ने सचेत रूप से संस्कृति उद्योग के अंग के रूप में विकास किया और उनकी ब्राण्डिंग की.
योग और कामुकता का अन्तस्संबंध
बाबा रामदेव फिनोमिना को समझने के लिए योग और कामुकता के अन्तस्संबंध पर गौर करना जरूरी है. योग का अ-कामुकता से संबंध नहीं है बल्कि योग का कामुकता से संबंध है. नव्य उदार दौर में संभोग, शारीरिक संबंध, सेक्स विस्फोट, पोर्न का उपभोग, सेक्स उद्योग, सेक्स संबंधी पुरानी रूढियों का क्षय, कामुकता का महोत्सव सामान्य और अनिवार्य फिनोमिना के रूप में उभरकर सामने आए हैं. इस समूची प्रक्रिया को योग ने देशज दार्शनिक आधार प्रदान किया है विरेचन के जरिए.
योगी लोग सेक्स की बात नहीं करते योग की बातें करते हैं, लेकिन योग का एक्शन अकामुक एक्शन नहीं होता बल्कि कामुक एक्शन होता है. इसका प्रधान कारण है योग की आंतरिक क्रियाओं का कामुक आधार. यह बात जब तक दार्शनिक रूप में नहीं समझेंगे, हमें कामुक उद्योग और योग उद्योग के अन्योन्याश्रित संबंध को समझने में असुविधा होगी.
योगासन का समूचा तंत्र कामुकता से जुड़ा है
योगासन का समूचा तंत्र कामुकता से जुड़ा है. योग को तंत्रवाद का हिस्सा माना जाता है. तंत्रवाद दार्शनिक तौर पर कामुक भावबोध, कामुक अंगों की इमेज और समझ से जुड़ा है. ऐतिहासिक तौर पर तंत्रवाद में सबसे ज्यादा उन अनुष्ठानों पर बल दिया जाता था जो स्त्री की योनि पर केन्द्रित थे. इसके लिए संस्कृत का सामान्य शब्द है ‘भग’, तंत्रवाद की विशिष्ट शब्दाबली में इसे लता कहते हैं.
इस प्रकार भग केन्द्रित धार्मिक क्रियाओं को भग यज्ञ कहा गया जिसका शाब्दिक अर्थ है स्त्री के गुप्तांग का अनुष्ठान या लता साधना. उल्लेखनीय है कि तांत्रिक यंत्रों में, अर्थात इसके प्रतीकात्मक रेखाचित्रों में स्त्री के गुप्तांग पर ही बल दिया जाता है. स्त्री की नग्नता का आख्यान सिर्फ भारत में ही उपलब्ध नहीं है बल्कि इसकी चीन, अमेरिका आदि देशों में परंपरा मिलती है. इसका स्त्रियों के कृषि अनुष्टानों के साथ गहरा संबंध है. यह विश्वव्यापी फिनोमिना है.
तंत्रवाद में स्त्री की योनि का संबंध प्राकृतिक उत्पादकता से
भारत में भग योग या लता साधना पर गौर करें तो पाएंगे कि तंत्रवाद में स्त्री की योनि का संबंध प्राकृतिक उत्पादकता से था. वह भौतिक समृद्धि की प्रतीक मानी गयी है. तांत्रिक परंपरा में भग को भौतिक समृद्धि के छः रूपों या ‘षड् ऐश्वर्य’ के संपूर्ण योग का नाम दिया गया है.
पुराने विश्वास के आधार पर स्त्री की योनि सभी प्रकार की भौतिक समृद्धि का स्रोत है. स्त्री के गुप्तांग का भौतिक संपत्ति के साथ क्या संबंध रहा है, इसके बारे में सैंकड़ों सालों से समाज ने सवाल पूछने बंद कर दिए हैं. किंतु यह उचित प्रश्न है और इसका एक ही उत्तर है कि स्त्री योनि भौतिक समृद्धि का स्रोत है. स्त्री के गुप्तांग के साथ समृद्धि कैसे जुड़ गयी, इसके बारे में हम आगे कभी विस्तार से चर्चा करेंगे.
रामदेव फिनोमिना और परवर्ती पूंजीवाद
बाबा रामदेव फिनोमिना और परवर्ती पूंजीवाद में एक बुनियादी साम्य है कि ये दोनों देहचर्चा करते हैं और दोनों ने देह को प्रतिष्ठित किया है. उसे सार्वजनिक विचार विमर्श और केयरिंग का विषय बनाया है. देह की महत्ता को स्थापित करने में कास्मेटिक उद्योग की महत्वपूर्ण भूमिका है. इस अर्थ में बाबा रामदेव और कॉस्मेटिक उद्योग एक जगह आकर मिलते हैं कि दोनों की चर्चा के केन्द्र में देह है.
उल्लेखनीय है तंत्रवाद में सबसे ज्यादा देहचर्चा मिलती है. योग में सबसे ज्यादा देहचर्चा मिलती है. आर्थिक उदारीकरण के दौर में देहचर्चा मिलती है, विज्ञापनों की धुरी है देहचर्चा. इस समूची प्रक्रिया में योगासन और प्राणायाम के नाम पर चल रहा समूचा कार्य-व्यापार देहचर्चा को धुरी बनाकर चल रहा है.
देहचर्चा का जातिप्रथा और वर्णाश्रम व्यवस्था से तीखा विरोध
देहचर्चा की खूबी है कि इसमें विभिन्न किस्म के भेद खत्म हो जाते हैं सिर्फ जेण्डरभेद रह जाता है लेकिन स्त्री-पुरूष का भेद खत्म हो जाता है. देहचर्चा करने वाले स्त्री-पुरूष को समान मानते हैं. देहचर्चा ने जातिप्रथा और वर्णाश्रम व्यवस्था का तीखा विरोध किया था. प्राचीन कवि सरह पाद ने तो ‘देहकोश’ के नाम से महत्वपूर्ण किताब ही लिखी थी. सरह पाद ने ‘देहकोश’ में धर्म के औपचारिक नियमों और विधान की तीखी आलोचना लिखी थी.
एस. वी. दासगुप्त ने ‘आव्स्क्योर रिलीजस कल्ट्स ऐज बैकग्राउण्ड ऑफ बेंगाली लिटरेचर’ (1951) में लिखा है, ‘उसका प्रथम विद्रोह समाज को चार वर्णों में विभाजित करने की उस रूढ़िवादी प्रणाली के विरूद्ध था जिसमें ब्राह्मणों को सबसे उच्च स्थान पर रखा गया था.’ सरह का मानना है कि ‘एक जाति के रूप में ब्राह्मणों को श्रेष्ठतम मानना युक्तिसंगत नहीं हो सकता क्योंकि यह कथन कि ब्राह्मण ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न हुए थे, कुछ चतुर और धूर्त लोगों द्वारा गढ़ी गई कपोल कल्पना है.’
मूल बात यह है कि देहचर्चा भौतिकवादी दार्शनिकों के चिंतन के केन्द्र में रही है. तंत्र और योग वालों ने इस पर कुछ ज्यादा ध्यान दिया है. सहजिया साहित्य में तो यहां तक कहा गया है कि ‘जिस व्यक्ति को अपनी देह का ज्ञान हो गया है, वही सबसे प्रज्ञावान है और यही संदेश सभी धर्मग्रंथों का है.’ वे यह भी मानते हैं कि ‘सभी ज्ञान शाखाओं का आधार यह देह है.’आगे लिखा है ‘यहां (इस देह के अंदर) गंगा और यमुना है, यहीं गंगा सागर, प्रयाग और काशी है और इसी में सूर्य तथा चंद्र हैं. यहीं पर सभी तीर्थस्थल हैं-पीठ और उपपीठ हैं. मैंने अपनी देह जैसा परम आनंद धाम और पूर्ण तीर्थ स्थल कभी नहीं देखा.’
कामुक इच्छाओं का उत्पादन और पुनर्रूत्पादन योग का बुनियादी लक्ष्य
कोई भी व्यक्ति जब योग-प्राणायाम करता है तो वह अपने शरीर को स्वस्थ रखता है, साथ ही इसका मूल असर उसकी कामुकता पर होता है. उसकी कामुक इच्छाएं बढ़ जाती हैं. कामुक इच्छाओं का उत्पादन और पुनर्रूत्पादन करना इसका बुनियादी लक्ष्य है. दूसरा लक्ष्य है देह को सुंदर बनाना और इस प्रक्रिया में वे तमाम वस्तुएं जरूरी हैं, जो देह को सुंदर रखें और यहीं पर बाबा रामदेव अपने पूरे पैकेज के साथ दाखिल होते हैं.
उनके पास देह को सुंदर बनाने की सारी चीजें हैं और यह काम वे बडे ही कौशल के साथ करते हैं. भारतीय परंपरा के प्राचीन ज्ञानाधार और चेतना के रूपों का योग-प्राणायाम के जरिए दोहन करते हैं और उसे संस्कृति उद्योग की संगति में लाकर खड़ा करते हैं. यह एक भौतिक और सभ्य बनाने वाला काम है.
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