रविन्द्र पटवाल : पीएमओ काले धन का हिसाब देश को नहीं बतायेगा, इसलिये राम मंदिर को देश का पहला और आख़िरी मुद्दा बनाओ … वीएचपी के अनुसार राम मंदिर के मुद्दे को धीरे धीरे सुलगाते रहेंगे, अगली तारीख़ 11 दिसम्बर. सुप्रीम कोर्ट को और संविधान को कोसते रहेंगे, वो भी संविधान दिवस के मौक़े पर. जबकि यह मुद्दा है 2.77 ऐकड़ ज़मीन का,जिसे इलाहाबाद हाई कोर्ट ने तीन पक्ष को बराबर बराबर बांटने का फ़ैसला किया था लेकिन मान जाते और मंदिर बन गया होता तो आज पब्लिक रोज़गार और रोटी के सवाल पर इनकी चमड़ी छील रही होती, यह बात धीरे धीरे सबको समझ भी आ रही है.
आशीष कुमार : फ्लॉप शो. अयोध्या में ढाई लाख लोगों को जुटाने का लक्ष्य रखा गया था. लखनऊ से 150 बसें लगाई गयी थी. प्रत्येक विधायक और नगर निगम के पार्षदों को भीड़ जुटाने का लक्ष्य दिया गया था, फिर भी अपेक्षित भीड़ कहीं नही दिख रही है. मीडिया चैनल सुबह से माहौल बना रहे हैं लेकिन आम जन मानस की उदासीनता साफ दिख रही है. कोई चैनल 50 हजार तो कोई 70 हजार की भीड़ के दावे कर रहा है. मुख्यमंत्री योगी ने अयोध्या में श्रीराम की कांस्य प्रतिमा लगवाने की घोषणा अवश्य की है किंतु ये स्टेचू पॉलिटिक्स भी अब परवान नही चढ़ने पा रही है.
अमित शाह उद्धव ठाकरे से पूछ रहे हैं कि साढ़े चार साल बाद उन्हें अयोध्या आने की सुधि आयी है ? जबकि यही सवाल रामभक्त अमित शाह और मोदी के ऊपर उल्टा दाग रहे हैं. आज पीएम मोदी के मन की बात 50वीं बार रेडियो पर सुनाई और टीवी चैनलों पर दिखाई गई है. मन की बात में एक बार भी राम मंदिर का जिक्र तक नही आया. इससे साफ पता चलता है कि माहौल बनाने का काम विहिप और संघ के जिम्मे छोड़ दिया गया है.
सत्ता के गलियारों में आम चर्चा है कि योगी दूसरे कल्याण सिंह नही बनना चाहते. बात भी सही है नई-नई कुर्सी कुर्बान करने के लिए बहुत बड़ा जिगर चाहिए.
सरकार द्वारा अरबो खरबो रुपया इस आयोजन पर फूंक दिया गया फिर भी आम जनता इसे चुनावी स्टंट ही मान रही है. वो तो गनीमत है कि कार्तिक पूर्णिमा के स्नान को आई भीड़ अभी अयोध्या में डटी है वरना गिनती और भी कम होती. सुप्रीम कोर्ट की चुप्पी पर अभी फिलहाल मैं कोई टिप्पणी नही कर रहा हूँ क्योंकि अभी 9 दिसम्बर बाकी है. वैसे भी बासी कढ़ी में उबाल नही आता.
कविश अजिज लेनिन : किन मुसलमानों ने रामजन्मभूमि पर दावा किया है, जो विश्व हिंदू परिषद ये बयान देने महाराष्ट्र से यहां तक आ गया, न तो वो कोर्ट में पक्षकार है ना सरकार में, सिर्फ प्रदेश के हिंदुओं को भड़काने के लिए आ गए.
मस्जिद वैसे भी विवादित स्थल पर नही बनाया जाता, इबादत के लिए सुकून ज़रूरी है, साढ़े चार साल से मन्दिर बनाने की बात करने के बजाय जुमलेबाजी हो रही थी और चुनाव आते ही भगवान को निशाना फिर बना लिया गया.
रही बात उन लोगों की जो समय समय पर मुसलमानों को आतंकी और दहशतगर्द कहते हैं वो ख़ुद इस बात का सबूत दे रहे कि धर्म के नाम पे कौन आतंक फैला रहा. एक मुसलमान अगर वंदे मातरम नही कहता तो बात टीवी की स्क्रीन तक पहुंच जाती है.
आज मेरी ही एक पोस्ट में मैंने एक बन्दे को बोला ‘जय हिंद’ तो उसने ‘जय श्री राम’ कहा. मैंने दोबारा कहा फिर उसने ‘जय श्री राम’ कहा, ऐसे लोग किस की औलाद हैं ? कम-से-कम किसी हिंदुस्तानी की तो नही हो सकते, जिनको जय हिंद कहते हुए शर्म आ रही. मुगलों को कोसिए जी भर कर लेकिन धर्म के नाम पर दहशत फैलाने वालों को भी बख्शिये नही.
शहर के हर बरगद के नीचे मन्दिर है. नदियों नहरों के किनारे मन्दिर हैं. बीच चौराहे पर मन्दिर है. मस्जिदों से लगे हुए मन्दिर है. रोज़ नए मन्दिर बन रहे. किसी मुसलमान ने विरोध नही किया तो राम जन्मभूमि पे मन्दिर बनाने का विरोध क्यों करेगा ? विरोधी शिव सेना, विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, आरएसएस और भाजपा है जिसके पास सत्ता में आने के लिए कोई मुद्दा नही, उनकी ढाल मन्दिर है.
रीतु सिंह : कल एक मित्र जो कि दिल्ली में रहता है, से लंबे समय के बाद बात हुई (लगभग 2 वर्षों बाद). मैंने उससे कहा कि तुम किसी दिन मेरे घर आओ तब बैठकर बातचीत करेंगे, क्योंकि लंबे समय से बातचीत भी नहीं हुई और मैं तुम्हें शादी में भी आमंत्रित नहीं कर पाई. इस पर उसने कहा आज कल वह घर से बाहर कहीं आता-जाता नहीं है. मैंने कहा ऐसा क्यों ? इस पर उसने जो जवाब दिया उसे सुनकर अवसाद ग्रस्त हूं.
उसने कहा- ‘एक तो मुस्लिम हूं, ऊपर से कश्मीरी हूं. पता नहीं कहां किस दिन मोबलीचिंग का शिकार हो जाऊं इसलिए कहीं आता जाता नहीं हूं.’
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