Home गेस्ट ब्लॉग आयात को राष्ट्रीय अस्मिता से जोड़ने की एक फूहड़, बेहूदा और आत्मघाती निर्णय

आयात को राष्ट्रीय अस्मिता से जोड़ने की एक फूहड़, बेहूदा और आत्मघाती निर्णय

4 second read
0
0
300
Subroto Chaterjiसुब्रतो चटर्जी

रक्षा मंत्रालय ने देश को रक्षा उपकरणों के मामले में देश को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में अहम फ़ैसला सुनाते हुए उन 69 चीजों का आयात नहीं करेगी, जो भारत में नहीं बनती. गधत्व के शिखर पर बैठा यह मूर्खों की सरकार का आयात को राष्ट्रीय अस्मिता से जोड़ने की एक फूहड़, बेहूदा और आत्मघाती निर्णय है.

संभव है कि दुनिया का भ्रष्टतम प्रधानमंत्री अपने 15 अगस्त के बौद्धिकी में अपने फटे हुए ढोल पर आत्मनिर्भर ताल पर बिके हुए लाल क़िले पर पैशाचिक नृत्य का बेशर्म मुज़ाहिरा पेश करे और गोदी मीडिया भारत की नब्बे प्रतिशत भूखी-नंगी, विचार शून्य जनता के लिए एक ऐसा मनोरंजक कार्यक्रम प्रस्तुत करें, जो कि इस चतुर्दिक असफल सरकार के डामर पुती चेहरे पर पोचाड़ा करे. वैसे भी भरी बारिश में पोचाड़ा तो घर में किसी की मौत के बाद ही नियमानुसार होती है.

हांं, यह सही है कि भारत काफ़ी हद तक मर चुका है. 9 अगस्त से 15 अगस्त तक के हफ़्ते को हमें एक राष्ट्रीय मनन सप्ताह के रूप में मनाना चाहिए. भारत छोड़ो आंदोलन से लेकर आज़ादी की तिथि तक सारा इतिहास इस एक सप्ताह में समझाया है.

अब देखिए, इस क्रिमिनल गिरोह ने भारत छोड़ो आन्दोलन की तर्ज़ पर गंदगी भारत छोड़ो का नारा दे कर कैसे 9 अगस्त का मान रखा. मिमिक्री अगर फूहड़ हो तो हंसाता नहीं है, दर्शकों के हाथों जूते थमा देता है.

अब ये आत्मनिर्भरता का राग ! इंटरनेट के जमाने में कैसी आत्मनिर्भरता ? क्या सैनिकों के लिए जूते के फ़ीते ख़रीद कर हम आत्मनिर्भर बन जाएंंगे ? विडंबना यह है कि जिस सरकार ने पिछले 6 सालों में देश की संपत्तियों को बेचने के सिवा कुछ नहीं किया है, वही देश को आत्मनिर्भर बनाने का ज्ञान बांंट रही है.

नोटबंदी, जीएसटी, लॉकडाउन से करोड़ों लोगों को भिखारी बनाने वाले क्रिमिनल, अंबानी-अदानी का दलाल आत्मनिर्भरता का उपदेश दे रहा है. जिस बेशर्म से एक मूर्ति देश में नहीं बनाया गया, वह सुखोई बनाएगा और हमारी मूर्ख जनता उस पर यक़ीन करेगी !

दरअसल, संघी जानते हैं कि अधिकांश भारतीय एक हीरो के द्वारा सौ लोगों के पीटने पर ताली बजाने वाली क़ौम है. ज़्यादातर अपने इतिहास में जीते हैं, जो तथाकथित रूप से स्वर्णिम था. वे मानते हैं कि दुनिया हीरो और विलन में बंटा हुआ एक रंगमंच है, जिसकी डोर किसी भगवान के हाथों में है.

भगवान की दासता से मुक्ति की छटपटाहट अपनी जगह और भाग्य के सामने समर्पण अपनी जगह. ऐसे दिमाग़ को सच से कोई लेना देना नहीं है. यह आधे अंधेरे और आधी रोशनी में सिकुड़ा हुआ अविकसित प्रज्ञा है, जिसे हाईजैक करने के लिए बस कुछ प्रतीकात्मक नारों की ज़रूरत है. यही कारण है कि जिस व्यक्ति को कोई भी सभ्य समाज 2002 में ही फांंसी पर चढ़ा देता, उसी व्यक्ति का हाथ थाम कर आज रामलला आज अपने घर जा रहे हैं.

मैं अपने लेखों में ज़्यादा आंंकड़े जानबूझकर प्रस्तुत नहीं करता, क्योंकि यह काम मुझसे बेहतर कई लोग करते हैं. मेरे शब्द सिर्फ़ बदलते हुए हालातों पर भावनात्मक और बौद्धिक प्रतिक्रिया है . ठंढा तर्क या cold logic भारतीयों के लिए अपनी संप्रेषण क्षमता खो चुका है. इसलिए, मेरा निष्कर्ष यह है कि 15 अगस्त 1947 तक हम जिस बौद्धिक स्तर पर थे, आज उससे बहुत पीछे चले गए हैं.

Read Also –

 

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…