आवारा लड़के
आवारा लड़कियों के पीछा करते हैं
आवारा लड़के लड़कियां
नामुराद होकर
दफ़्तरों के चक्कर लगाते हैं
नौकरी की तलाश में
जो नहीं है
ठीक उसी तरह
जैसे हम पूजाघरों के चक्कर लगाते हैं
उस ईश्वर की तलाश में
जो नहीं है
आवारा लड़के
और आवारा लड़कियां
ढूंढ लेते हैं एक दूसरे को
दिन के अंत मेंं
ठीक उसी तरह
जैसे वृद्धाश्रम में
कयी जोड़ी सूनी आंखें
ढूंढ लेती हैं तकने को
सूना छत
दिन के अंत के बाद
देर रात
जब घर लौटते हैं
आवारा लड़के और लड़कियां
सबकुछ समझ जाती हैं उनकी माएं
चेहरा देखकर
और चुपचाप परोस देतीं हैं
रोटी और दाल
आवारा बच्चे शिकायत नहीं करते.
- सुब्रतो चटर्जी
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