Home कविताएं मेरे अंगों की नीलामी

मेरे अंगों की नीलामी

0 second read
0
0
37
मेरे अंगों की नीलामी
मेरे अंगों की नीलामी

अब मैं अपनी शरीर के अंगों को बेच रही हूं
एक एक कर.
मेरी पसलियां तीन रुपयों में.
मेरे प्रवाहमान उरोज
उसके दानवी यौनिकता/पाशविक कामुकता के लिए.
मेरी योनि मेरे अस्तित्व के बदले.
मेरे पैर दो रुपए में.
मेरी गठियाग्रस्त अस्थियां
पचास रुपए में.
मेरी जबान बिनमोल.
मेरा दिमाग़ एक रुपए में
और मेरा दिल अन–बिका रह गया.
किसी को एक हृदय नहीं चाहिए.
सभी को मांसल और अस्थियुक्त बदन की आस है.

  • मौमिता आलम
    अनुवाद : ख़ाकसार तुषार

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
G-Pay
G-Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
  • गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध

    कई दिनों से लगातार हो रही बारिश के कारण ये शहर अब अपने पिंजरे में दुबके हुए किसी जानवर सा …
  • मेरा देश जल रहा…

    घर-आंगन में आग लग रही सुलग रहे वन-उपवन, दर दीवारें चटख रही हैं जलते छप्पर-छाजन. तन जलता है…
  • ‘लो मैं जीत गया…’

    सुदूर जंगल से लगा एक कस्बा एक खाली इमारत, चन्द कुर्सियां गहरी रात का पहर पांच वाट की पीली …
Load More In कविताएं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

मीडिया की साख और थ्योरी ऑफ एजेंडा सेटिंग

पिछले तीन दिनों से अखबार और टीवी न्यूज चैनल लगातार केवल और केवल सचिन राग आलाप रहे हैं. ऐसा…