मार्क्स ने कहा था कि जब इतिहास से नहीं सीखते हैं, तब इतिहास खुद को दोहराता था, पहली बार त्रासदी के रुप में और दूसरी बार प्रहसन के रुप में. आज भारत में ठीक यही हो रहा है. बौद्धकालीन भारत, जो समूची दुनिया में शिक्षा का केन्द्र माना जाता था, उसे ब्राह्मणवादियों ने जाति-वर्ण में बांटकर भारत की समस्त मेहनतकश लोगों को शुद्र बनाकर अछूत बना दिया और भारत को ‘शिक्षा के केन्द्र’ से पददलित कर नारकीय गुलामी की दलदल में धकेल दिया और भारत के स्वर्णिम इतिहास को दफन कर दिया.
अंग्रेजी शासनकाल में अंग्रेजी हुकूमत के विद्वानों, पुरातात्विकविदों और इतिहासकारों ने अथक परिश्रम और अथाह धन खर्च कर भारत के गौरवशाली इतिहास को कब्रों से खोद निकाला, जिसे ब्राह्मणवादी शैतानों ने लोगों की यादों तक से मिटा दिया और भारत को हजारों साल की त्रासदी भरी गुलामी में धकेल दिया. आज एक बार फिर इतिहास खुद को दोहरा रहा है और भारत को उसी ब्राह्मणवादी गुलामी में धकेल रहा है, जिससे बहुत बड़ी कुर्बानी देकर निकाला गया था. और अब यह एक प्रहसन के रुप में हो रहा है.
सेवानिवृत्त प्रिसिंपल राम अयोध्या सिंह अपने सोशल मीडिया पेज पर लिखते हुए बताते हैं कि राममंदिर में रामलला की मूर्ति में प्राणप्रतिष्ठा के पूर्व प्रधानमंत्री का अयोध्या के हवाईअड्डे से लेकर रेलवे स्टेशन और शहर तक रोड शो होगा, और जनता राम के इस नये अवतार की उसी तरह से स्वागत करेगी, जैसा कभी अयोध्यावासियों ने राम का स्वागत वन से सीता और लक्ष्मण के साथ लौटने पर किया था. हां साहब, हमारे मोदी जी आज भारत में रामावतार ही हैं, जो धर्म की प्रतिष्ठा और रामराज्य की स्थापना के लिए अवतरित हुए हैं.
नये साल में अयोध्या के राममंदिर में राम की मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा होगी, और रामराज्य की घोषणा भी होगी. रामराज्य की स्थापना के लिए आवश्यक बौद्धिक वातावरण पूरे देश में बनाने का मुहिम चलेगा. आजतक के सारे बौद्धिक कचरे की घर-घर जाकर सफाई की जायेगी, और इस महान कार्य के लिए संघ द्वारा शिक्षित, प्रशिक्षित और नियुक्त मूर्खों और लंपटों की फौज को विशेष निर्देश दिए जायेंगे।
संघ के ये कार्यकर्ता घर-घर जाकर हर किसी को वैसी तस्वीरों, पुस्तकों और उद्धरणों की सूची सौंपेंगे, जो आज तक भारत को विश्वगुरु बनने से रोके हुए हैं. वैसे यह काम बड़ा ही आसान है, क्योंकि अधिकतर भारतीय अव्वल तो पुस्तकें रखते नहीं, और रखते भी हैं, तो वैसी पुस्तकें रखते हैं, जो मूर्खता, अज्ञानता जड़ता, पाखंड, अंधविश्वास, धार्मिक कट्टरता, सांप्रदायिक वैमनस्य और अतीत का गुणगान करते हैं.
उनके पास तोता मैना, हनुमान चालीसा, रामायण, रामचरितमानस, महाभारत, गीता, वेद, उपनिषद और अट्ठारह पुराणों के संग्रह मिल जायेंगे, पर जिन्हें कोई सचेत, शिक्षित, विवेकशील, प्रगतिशील, आधुनिक और क्रांतिकारी विचारों वाला, व्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन करने वाला, मानवता के गीत गाने वाला, मेहनतकशों के अधिकारों की वकालत करने वाला अपने पास रखना अपनी तौहीन समझता है.
सबसे पहले ये खोजेंगे उन महापुरुषों की तस्वीरें, जो लोगों को मानवता, मानवाधिकार, प्रेम, दया, करुणा, जीवन के संघर्ष, अधिकार प्राप्ति के लिए संघर्ष, शोषणकारी व्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन के लिए प्रेरणास्रोत होते हैं. ऐसे महापुरुषों की तस्वीरें उनके हिट लिस्ट में पहले नंबर पर होंगी. बुद्ध, ईसा, मोहम्मद, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, रवीन्द्रनाथ टैगोर, भीमराव अंबेडकर, कबीर, रैदास, वी आर रामास्वामी पेरियार, ज्योती बा फुले, सावित्री बाई फुले, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, बटुकेश्वर दत्त, खुदीराम बोस, राजेन्द्र लाहिड़ी, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्लाह खान, बहादुरशाह जफर, अब्दुल गफ्फार खान, नेल्सन मंडेला, मार्टिन लूथर किंग जुनियर, रूसो, वाल्टेयर, ब्रुनो, गैलिलियो, कोपरनिकस, सुकरात, मार्क्स, ऐंजल, लेनिन, स्टालिन, माओ, फिदेल कास्त्रो, चे ग्वेरा, सार्त्र तथा ऐसे ही अनेक महान हस्तियों की तस्वीरें किसी को भी देशद्रोही साबित करने के लिए पर्याप्त होंगी.
लियोनार्डो डा विंची, पिकासो, शेक्सपियर, फ्रांसिस बेकन, गोर्की, लियो टॉल्स्टॉय, इवान चेखव, इयान दोस्तोवस्की, प्रेमचंद, हरिशंकर परसाई, राहुल सांकृत्यायन, निराला, यशपाल, नागार्जुन, लू शून जैसे साहित्यकार भी प्रतिबंधित किये जायेंगे, और उनकी पुस्तकों का किसी के घर मिलना उसे देशद्रोह का अपराधी साबित करने के लिए यथेष्ट प्रमाण होगा.
अमीर खुसरो, मल्लिक मोहम्मद जायसी, मीर तक़ी मीर, दाग देहलवी, मिर्जा गालिब, मजाज, सआदत हसन मंटो, ख्वाज़ा अहमद अब्बास, राजिन्दर सिंह बेदी, कुर्तुल-एन-हैदर, राही मासूम रज़ा सहित तमाम उन मुसलमान साहित्यकारों, उपन्यासकारों, लेखकों, पत्रकारों को भी उन लोगों की श्रेणी में डाल दिया जायेगा, जो देश के लिए खतरा खड़ा कर सकते हैं.
इसके साथ ही उस्ताद अलाउद्दीन खान, उस्ताद अमजद अली खान, अब्दुल बिस्मिल्ला खां, नौशाद, महबूब खां, साहिर लुधियानवी, कैफी आजमी, मोहम्मद रफी, शकील बदायुनी, दिलीप कुमार, बड़े गुलाम अली खान, नसीरुद्दीन खान, जान निसार अख्तर, हसरत जयपुरी, अहमद जान थिरकवा, उस्ताद अल रक्खा खान, उस्ताद जाकिर हुसैन, उस्ताद विलायत अली खान, हसीम जाफर साहब, फैयाज़ खान जैसे संगीतज्ञ, गीतकार, संगीतकार और गायक भी प्रतिबंधित लोगों की फेहरिस्त में शामिल होंगे.
जो कुछ भी मानवीय, प्रगतिशील, आधुनिक, क्रांतिकारी, वैज्ञानिक, तार्किक और लोगों को अंधकार से प्रकाश की ओर रास्ता दिखाने वाला होगा, उन सबको हमेशा के लिए दफना दिया जायेगा. उन सारे विचारों, विचारधाराओं, दार्शनिकों, विचारकों, चिंतकों, इतिहासकारों तथा मनीषियों की पुस्तकों को भारतीय सीमा में प्रवेश की मनाही कर दी जायेगी.
स्कूलों, कालेजों और विश्वविद्यालयों में वेद, पुराण, ब्राह्मण ग्रंथों, मनुस्मृति, महाभारत, गीता, रामायण और रामचरितमानस, भूतप्रेत, पिशाच, ज्योतिष, हस्तरेखा विज्ञान, फलित ज्योतिष, भजन और गीत पढ़ाये जायेंगे. कालेज और विश्वविद्यालयों से प्रयोगशाला और अनुसंधान केन्द्रों को हटा दिया जायेगा. पूरे देश के संघ द्वारा प्रशिक्षित गुरु लोग ही नियुक्त होंगे, जिनसे प्रश्न पुछने का अधिकार किसी भी विद्यार्थी को नहीं होगा. राजसत्ता से कहीं भी और किसी भी तरह के प्रश्न पुछने की सख्त मनाही होगी. सरकार या राजसत्ता से प्रश्न पुछना एक दंडनीय अपराध माना जायेगा.
नागरिक और नागरिक अधिकारों को खत्म कर दिया जायेगा. संविधान, लोकतंत्र, संसद, न्यायपालिका, मानवाधिकार और धर्मनिरपेक्षता जैसे विचार और संस्थाओं को दफना दिया जायेगा. देश से समाजवादियों, मार्क्सवादियों, क्रांतिकारियों और उन सबको भी देशनिकाला कर दिया जायेगा, जो जनचेतना, जनसंघर्ष और जनांदोलन में भाग लेंगे या उनका नेतृत्व करेंगे. देश की बहुसंख्यक आबादी को गुलाम बना दिया जायेगा, और उन्हें सिर्फ जीने भर ही खाने को मिलेगा.
देश में सिर्फ भक्त होंगे, जो मंदिरों में मूर्तियों को पूजेंगे, घंटा बजायेंगे और जय श्रीराम का नारा लगायेंगे. मनुस्मृति के अनुसार ब्राह्मणवादी व्यवस्था लागू की जायेगी, जहां शासक विष्णु का अवतार होगा, और जो सिर्फ ईश्वर के प्रति उत्तरदायी होगा, किसी व्यक्ति या संस्था के प्रति नहीं. हर व्यक्ति के लिए हनुमान चालीसा पढ़ना अनिवार्य कर दिया जायेगा. अब देश और सरकार के बदलते मिजाज के अनुसार सर कोई अपनी भूमिका तय कर ले.
गिद्ध मुर्दों की तलाश में आकाश में उड़ते हैं या ताड़ के पेड़ पर बैठते हैं. आज हमारे देश में ऊंची कुर्सियों पर बैठे गिद्ध अपना पेट भरने के लिए देश की आमजनता को मुर्दे बनाने के लिए प्राणपण से जुटे हुए हैं. वैसे भी गिद्धों के पेट कभी भरते नहीं. जब कभी उन्हें भोजन की कमी महसूस होती है, वे एकाएक आम आदमी पर आक्रमण कर देते हैं, और उन्हें मारकर अपनी भुख मिटाते हैं.
आज का भारत हीनता और कुंठा से ग्रसित वैसे लोगों के हाथों में कैद है, जो अपने चारित्रिक और नैतिक पतनशीलता, बौद्धिक और सांस्कृतिक दरिद्रता, अपनी मूर्खता और अज्ञानता एवं काल्पनिक सुनहरे अतीत के प्रति मोहग्रस्तता, भविष्य के प्रति लापरवाह और दिशाहीनता पर भी सिर्फ इसलिए गौरवान्वित हैं कि वे देश के शासक हैं, और अक्षम और असमर्थ होते हुए भी देश की बागडोर संभालने का उन्हें सौभाग्य मिला हुआ है.
अपने इस दृष्टिकोण को उचित ठहराने के लिए उन्हें आवारा पूंजी, लंपट, मूर्ख और दिग्भ्रमित युवाओं की भीड़, धर्म की अफीम, चापलूस पत्रकारों और मीडिया समूह, सत्ता के तलवे चाटने वाले बुद्धिजीवी और भ्रष्ट नौकरशाहों का साथ मिला हुआ है. समाज में व्याप्त मूर्खता और अज्ञानता का सागर; गरीबी, भूखमरी और अभाव का दंश सहती बहुसंख्यक जनता की गुलामी की सदियों पुरानी परंपरा, दकियानूसी विचार, रूढ़िवादी रीति-रिवाज; और जीवन के प्रति तर्कहीन, विवेकहीन और अवैज्ञानिक दृष्टिकोण ने उन्हें सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक आधार प्रदान कर दिया है.
अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए हर तरह के गंदे, गलत, अवैध, गैरकानूनी और आपराधिक कृत्य करने के लिए सतत सक्रिय इनके लिए न संविधान, लोकतंत्र, संसद, न्यायपालिका और संवैधानिक संस्थाओं का कोई महत्व है, और न ही बहुसंख्यक जनता के प्रति कोई उत्तरदायित्व ही उनके लिए कोई मायने रखता है. सत्ता और शासन का मतलब ही इनके लिए जनता का शोषण, लूट और उत्पीड़न है. मनोवैज्ञानिक दृष्टि से ये परपीड़क सुखवाद और वैचारिक दृष्टि से प्रतिक्रियावादी विचारधारा के कट्टर समर्थक हैं.
राम अयोध्या सिंह की लेखनी यही तक है. लेकिन मौजूदा सत्ता की यह ब्राह्मणवादी क्रूरता लगातार आगे बढ़ रही है. देश के प्रगतिशील लोग ठीक बौद्ध भिक्षुओं की तरह अपने सर कलम करवाने या देश छोड़कर भागने के लिए मजबूर होगें और मेहनतकश जनता गुलामी की उसी जुंए को अपने कांधों पर ढ़ोने के लिए मजबूर किये जायेंगे, जिससे अभी महज 70 साल पहले निकल कर आये थे क्योंकि इस पतनशील ताकतों के खिलाफ कोई मजबूत शक्ति खड़ी नहीं हो पा रही है, जैसे बौद्ध काल में खड़ी नहीं हुई होगी.
कहना न होगा इन ब्राह्मणवादियों ने आज जिस राम, रामायण का सहारा लेकर मोदी सत्ता तमाम प्रगतिशील ताकतों को खत्म कर रही है, ठीक इसी तरह बौद्धों की बेरहमी से हत्या करने के लिए राम, रामायण जैसे कपोलकल्पना का सहारा लिया था. इस रामायण में इन ब्राह्मणवादियों ने साफ तौर पर दर्ज किया था –
जैसे चोर दण्डनीय होता है, उसी प्रकार (वेदविरोधी) बुद्ध (बौद्धमतावलम्बी) भी दण्डनीय है. तथागत (नास्तिकविशेष) नास्तिक (चार्वाक) को भी यहां इसी कोटि में समझना चाहिए. इसलिए अनुग्रह करने के लिए राजा द्वारा जिस नास्तिक को सजा दिलाया जा सके, उसे तो चोर के समान दण्ड दिलाया ही जाये, परन्तु जो वश के बाहर हो, उस नास्तिक के प्रति विद्वान ब्राह्मण कभी उन्मुख न हो, उससे वर्तालाप न करें.
ठीक आज यही मोदी सत्ता राम, रामायण और राममंदिर के बहाने तमाम प्रगतिशीलों, नास्तिकों (कम्युनिस्टों) के साथ कर रही है. कल जो बौद्धों के साथ किया गया था, आथ वह कम्युनिस्टों के साथ किया जा रहा है. हजारों लोगों को गोलियों से भूना जा रहा है, हजारों लोगों को जेलों में दर्दनाक मौतें दी जा रही है.
ऐसे में भारत को इस पतनशील ताकतों से बचाने के लिए केवल एक ही शक्ति है, जो उसे इस आसन्न गुलामी से बचा सकता है, वह है भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी). इसके लिए यह जरूरी होगा कि देश की जनता इस एकमात्र उम्मीद को मजबूत कर उसकी लड़ाई में उतर जाये और भारत के इन सत्ताधारी गुंडों को मार भगाये.
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