Home ब्लॉग आत्महत्या के लिए मजबूर हताश व निराश बेरोजगार युवा

आत्महत्या के लिए मजबूर हताश व निराश बेरोजगार युवा

22 second read
0
0
460

आत्महत्या के लिए मजबूर हताश व निराश बेरोजगार युवा

खुद को भिखारी और फकीर घोषित करने वाले देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हर रोज चार लाख रुपये का खाना खाते हैं और तकरीबन 10 लाख का सूट पहनते हैं. खुद के उड़ने के लिए 19 करोड़ डॉलर यानी 1400 करोड़ रुपये का स्पेशल विमान (एयर फोर्स वन) और रहने के लिए 20 हजार करोड़ रुपये का आलिशान महल ‘सेन्ट्रल विष्टा’ बनवा रहा है, यह सब देश के युवाओं की जिन्दगी की कीमत पर तैयार हो रहा है.

दूसरी ओर की देश की विशाल आबादी हर दिन भूख और बेरोजगारी से हताश होकर मौत को गले लगा रहे हैं. राम चन्द्र शुक्ल अपने सोशल मीडिया के पेज पर एक मध्यमवर्गीय परिवार के खर्च का लेखा जोखा पेश करते हुए लिखते हैं कि शहर में निवास करने वाले 5-6 सदस्यों वाले ऐसे परिवार के मासिक खर्च का विवरण, जिसका अपना खुद का आवास है :

  1. बिजली का बिल-3000/-
  2. दूध (दो लीटर)-3000/-
  3. गैस सिलिंडर-1000/-
  4. सब्जी-3000/-
  5. फल-1500/-
  6. दवा-3000/-
  7. किराना-5000/-
  8. बर्तन, झाड़ू, पोंछा-1000/-
  9. पेट्रोल-1500/-
  10. विविध व्यय-3000/-
    —————————
    कुल योग-24500/-00
    —————————

अगर खुद का आवास नहीं है तो इस खर्च में कम से कम 05 से 06 हजार मासिक और जोड़ना होगा. इस तरह कुल मासिक खर्च लगभग 30 हजार प्रतिमाह बैठता है. मोबाइल व इंटरनेट सेवा बनाए रखने के लिए भी एक परिवार को कम से कम एक हजार प्रतिमाह चाहिए.

यह आंकलन मध्यम श्रेणी के शहरों का तथा निम्नमध्यम वर्गीय परिवारों का है. ऐसे परिवार जिनके पास ले-दे कर दोपहिया वाहन हैं. इन परिवारों पर भी अब पेट्रोल का खर्च तथा डीजल के बढ़े दामों के कारण बढ़ रही मंहगाई भारी पड़ रही है. मेरे आकलन में शिक्षा व प्रतियोगितात्मक परीक्षाओं की तैयारी व कोचिंग आदि का खर्च नहीं जोड़ा गया है.

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक परिवार जो महज 30 हजार रुपये भी अपने जीवन यापन के लिए उपलब्ध नहीं कर पा रहा हो, उस देश का प्रधानमंत्री चार लाख रुपया रोज का खाना खा जाता हो और देश के खजाने का लाखों करोड़ रुपये अपने औद्योगिक मित्रों को कर्ज के नाम पर दान कर देता हो, उस देश की जनता भूख से नहीं मरे तो और उसकी नियति ही क्या हो सकती है.

राम चन्द्र शुक्ल लिखते हैं कि निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों का युवा वर्ग भारी हताशा व निराशा का शिकार बन चुका है. मजदूर परिवारों के युवाओं की तरह वह मेहनत मजदूरी भी करने की स्थिति में नहीं है. यह हताशा नगरीय व कस्बाई क्षेत्रों में ज्यादा है, जहां खेती बागवानी व पशुपालन जैसे विकल्प भी उपलब्ध नहीं हैं. ऐसे में शैक्षणिक स्तर के हिसाब से रोजगार हासिल न होने पर युवाओं को अपनी जिंदगी बेमतलब लगने लगती है और उन्हें आत्मघात के सिवा दूसरा रास्ता जीवन में नहीं दिखता. इन हालात के लिए बहुत हद तक वर्तमान राजनीतिक नेतृत्व जिम्मेदार है जिसने शिक्षित बेरोजगारों के लिए जीवनयापन के सारे रास्ते बंद कर दिए हैं.

चन्दशेखर जोशी लिखते हैं कि बेरोजगारी जान पर बन आई, बहुत बुरा हाल है. एक युवक ने अपने एम.कॉम. समेत सभी सर्टिफिकेट फाड़ दिए, फिर पेड़ से लटक कर जान दे दी. मामला उत्तराखंड के नैनीताल जिले के रामनगर कस्बे का है.

बताया जा रहा है कि 24 साल का सोनू बिष्ट एक साल से बेरोजगार था. उसकी मां गंभीर बीमार है. कुछ समय उसने सीटीआर निदेशक के कार्यालय में कंप्यूटर ऑपरेटर का कार्य किया, बाद में उसे हटा दिया गया. वह तीन-चार बार सेना में भर्ती के लिए भी गया, पर भर्ती न हो पाया. गुरुवार को वह घर से चला गया. शुक्रवार शाम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के बिजरानी रेंज जंगल में उसका पेड़ से लटका शव मिला.

यही हाल देश और प्रदेश के लाखों युवाओं का है. नौकरियां छूटने से युवा अवसाद में हैं. घरों में कोई व्यवस्था नहीं है. भोजन जुटा भी लिया जाए तो अन्य खर्चों के लिए भारी अभाव हो चुका है. उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद भी हाथों के लिए काम नहीं है. हाल में कुछ युवाओं ने घर का धन लगाकर, लोन लेकर दुकानें खोली थी, अब ये दुकानें भी धड़ा-धड़ बंद होने लगी हैं. हर व्यक्ति भारी कर्ज में डूब चुका है.

खाली पेट व भरे पेट की चिंता में फर्क है. भरे पेट वालों की चिंता में मंदिर, मस्जिद, सेना, जवान, गाय व तथाकथित राष्ट्रवाद शामिल होगा. 2014 में सत्ता में आने के बाद से वर्तमान सत्ताधारी शासक इन्हीं खयाली बातों में देश की बहुसंख्यक जनता को उलझाए हुए हैं. इस काम में उनकी मदद बिकाऊ न्यूज़ चैनल, अखबार व पत्तलकार बखूबी कर रहे हैं.

वहीं खाली पेट वालों की चिंता में मंहगाई, बेरोजगारी, बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, कपड़े, जूता-चप्पल, बेटे-बेटियों का ब्याह, खेती किसानी, शाक-सब्जी, आटा- दाल, नाते-रिश्ते व बुढ़ापे में शारीरिक रूप से असमर्थ होने पर जीवन का निबाह – आदि अनंत विषय शामिल होंगे.

शातिर किस्म को लड़के नशा, चोरी, व्यभिचार, बदमाशी में लगे हैं. सामान्य युवा भारी डिप्रेशन में जी रहे हैं. हंसते-खेलते घर-परिवार की जिम्मेदारी उठाने वाले युवाओं को अब मौत आसान लगने लगी है. हरियाली पर पौधे लगाने वाले नेता, घरों को उजाड़ने पर तुले हैं. यहां जंगल आबाद हो रहे और घर बर्बादी की कगार पर पहुंच चुके हैं. सोनू की आत्महत्या जवां सपनों की हत्या है, ये एक मरते समाज की निशानी है. सरकारें इसकी अपराधी हैं. राजनेताओं का सत्यानाश हो.

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करे…]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…