हिमांशु कुमार, गांधीवादी चिंतक
आपने विज्ञापन देखे होंगे. कम्पनियां अपना माल बेचने के लिए आपकी भावनाओं को संतुष्ट करने वाले विज्ञापन बनाती हैं. जैसे मोटर साईकिल वाला विज्ञापन कहेगा यह मोटर साइकिल आपको फ्रीडम देगी. अब आप मन में फ्रीडम को पसंद करते हैं तो आप फ्रीडम की चाह में मोटर साइकिल खरीद लेंगे. इसी तरह मोबाइल कम्पनी कहेगी कि हमारे मोबाइल से टूगेदरनेस यानी साथ रहना बढेगा या ब्यूटी प्रोडक्ट वाले कहेंगे ‘लड़कियों कर लो दुनिया मुट्ठी में.’
हम सब जानते हैं कि मोटरसाइकिल से फ्रीडम नहीं मिलती. मोबाइल से टुगेदरनेस कम ही हुई है और ब्यूटी प्रोडक्ट से दुनिया लड़कियों की मुट्ठी में नहीं हो जाती. असल में हम चाहते कुछ और हैं लेकिन उसके लिए करते कुछ और हैं.
हमारी ज़रूरतें तो भावनात्मक हैं. जैसे हम इज्ज़त, संतुष्टी और सुरक्षा चाहते हैं लेकिन हम उसके लिए अच्छे कपडे, बहुत सारी खरीददारी और बहुत सारा सामान इकट्ठा कर लेते हैं. अंत में हमें पता चलता है कि सामान इकट्ठा करने से ना तो इज्ज़त मिलती है, ना संतुष्टी मिलती है ना ही सुरक्षा मिलती है.
कुछ लोगों ने तो खुद की सुरक्षा के लिए इतना ज्यादा ज़मीन, जायदाद इकट्ठा कर लिया कि दुनिया के करोड़ों लोगों को भूखा और बिना मकान रहना पड़ रहा है. यह कुछ इस तरह से है जैसे किसी इन्सान को यह पता हो कि भूख लगने पर पानी पीना चाहिए तो वह भूख लगने पर पानी पीता है. थोड़ी देर के लिए उसे भास होता है कि पेट भर गया लेकिन कुछ देर के बाद उसे फिर भूख लगने लगती है. वह इंसान फिर पानी पी लेता है.
पानी पीने से उसकी भूख फिर भी नहीं मिटती. वह बहुत सारा पानी इकठ्ठा कर लेता है. दुसरे लोग प्यासे मरने लगते हैं. फिर एक अक्लमंद इंसान आकर कहता है कि पानी पीने से भूख नहीं मिटती बल्कि खाना खाने से मिटती है.
इसी तरह हम सब भी भूखे किसी और चीज़ के हैं लेकिन इकठ्ठा कुछ और ही कर रहे हैं. चाहते सम्मान, संतुष्टी और सुरक्षा हैं लेकिन इकट्ठा संपत्ति करने लगते हैं. और दुसरे लोगों के हिस्से का भी अपने पास जमा करके उनके जीवन को दु:खी बना देते हैं. इज्ज़त और सुरक्षा की यही चाहत आपको जातिवादी और साम्प्रदायिक भी बनाती है.
आप सोचते हैं कि दुसरे इंसानों को खराब नीचा और गलत बता कर आप अच्छे ऊंचे और सही माने जायेंगे इसलिए आप दुसरे इंसानों से उनकी जाति धर्म जन्म के स्थान या खाल के रंग या उनके कपडे पहनने के ढंग या पेशे की वजह से नफरत करते हैं. यह नफरत आपको अपने बारे में एक झूठा आभास देती है. आप सोचते हैं कि देखो यह लोग खराब हैं और मैं कितना अच्छा हूं.
ध्यान दीजिये आपने सम्मान पाने के लिए दूसरों के अपमान का रास्ता अपनाया
बदले में आपको भी अपमान ही मिला. आप दुसरे धर्म और जाति को नीचा कहते हैं, बदले में वो आपको खराब कहते हैं तो आप जो चाहते हैं उसका उल्टा आपको मिलता है. आप चाहते हैं सम्मान, लेकिन आपको मिलता है अपमान. फिर आप क्रोध से भर जाते हैं और दुसरे धर्म या जाति वालों पर हमला कर देते हैं.
पुरुष स्त्री को इसीलिए पीटता है कि यह मेरा सम्मान नहीं करती. वह सोचता है कि पीटने से स्त्री डर पर पुरुष का सम्मान करने लगेगी लेकिन पीटने से सम्मान नहीं पैदा होता. विद्रोह पैदा होता है.
बड़ी जाति वाले भी दलित जातियों पर यही सोच कर हमला करती हैं कि हमले से डर कर दलित जातियां हमारा सम्मान फिर से करने लगेंगी. इसी तरह अम्बानी इतना धन क्यों इकठ्ठा कर रहा है ? क्योंकि वह डरा हुआ है. उसे लगता है कि किसी दिन धन समाप्त ना हो जाय इसलिए इतना कमा लूं कि यह धन कभी समाप्त ना हो. जैसे गुफा मानव सोचता था कि इतना खाना इकट्ठा कर लूं ताकि बारिश या ठण्ड में खाने के लिए मिल जाय, ठीक वही असुरक्षा आज भी अम्बानी जैसे इंसान के भीतर उसे भी डरा रही है.
जैसे ही आप ध्यान देते हैं. आपको समझ में आ जाता है कि आप चाहते कुछ और हैं
लेकिन कर कुछ और रहे हैं. फिर आप इज्ज़त पाने के लिए दूसरों को नीचा समझना बंद करते हैं. फिर आप सुरक्षा पाने के लिए पागलों की तरह सामान इकट्ठा करना छोड़ देते हैं. अपनी चाहत को पहचानिए. इसका रास्ता है ध्यान देना. खुद के सोचने पर ध्यान दीजिये.
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