विनय ओसवाल, वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक
आस्था के भावनात्मक हथियार के बल पर संविधान में आस्था रखने वालों को धूल चटाने के अपने इरादों को लेकर वह 2019 का रण जीतना चाहती है. परन्तु भाजपा के अमित शाह से लेकर निचली सीढ़ी तक के नेता और आस्था की पैरोकारी में ईंट से ईंट बजाने की हुंकार भरने वाले हिन्दू संगठन तक अब इन दोनों मामलों में हिन्दू मतदाताओं से नजरें चुरा रहे हैं.
केंद्र सरकार ने एक सोची-समझी रणनीति के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या में विवादित भूमि (2.77 एकड़) को छोड़ कर शेष 67 एकड़ जमीन को रामजन्म भूमि न्यास को लौटाने के लिए याचिका दाखिल करके आरएसएस को उस मुहिम से पीछे हटने के लिए एक बहाना थमा दिया है, जो वह अयोध्या में राममन्दिर निर्माण को लेकर पूरे देश में पिछले दो माह से चला रही थी. इसे आधार बना कर अब विश्व हिंदू परिषद् ने छः माह के लिये अयोध्या प्रकरण पर चुप्पी साधे रखने की घोषणा कर दी है. इससे पूर्व तक अयोध्या में राममन्दिर बनाने के लिए आरएसएस सुप्रीमों मोहन भागवत तक संसद में कानून न बनाने के लिए सरकार को कठघरे में खड़ा करते रहे हैं.
आरएसएस और सरकार के बीच पक रही इस खिचड़ी से अनभिज्ञ कुम्भ में आयोजित धर्मसंसद में जुटे विहिप के हजारों साधु-संतों और कार्यकर्ताओं को उम्मीद थी कि इस बार आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत अयोध्या में चुनाव पूर्व “आस्था बनाम कानून“ की लड़ाई में “आस्था“ की सत्ता को स्थापित करेंगे और “संविधान की सत्ता“ की दखलंदाजी से उसे मुक्त घोषित करेंगे.
एक उदाहरण हिन्दू आस्था को चित्रित करने के लिए काफी होगा – “हिंदुस्तान में डायनासोर के जीवाश्म के तौर पर मिलने वाले उसके अंडों को शिवलिंग समझ देवालय में स्थापित कर पूजने लगते हैं“. यह बात उस प्रकरण से सामने आई जब हिंदुस्तान में डायनासोर के जीवाश्म के संरक्षण की मांग करने वाले, कई दशकों से दुनियां भर में इन जीवाश्मों के संरक्षण का कार्य कर रहे वैज्ञानिक अशोक साहनी और मध्यप्रदेश के धार जिले के बाग क्षेत्र में डायनासोर के अंडों के जीवाश्म खोजने वाले समूह “मंगल पंचायन परिषद्“ के विशाल शर्मा ने, अशोक साहनी की बात हिंदुस्तान में डायनासोर के जीवाश्म संरक्षण कानून की आवश्यकता का समर्थन करते हुए और इस कानून के अभाव में इन जीवाश्मों के नष्ट होने के उदाहरण के रूप में रखी. उन्होंने कहा कि ‘कुछ (नास्तिक) उनका इस्तेमाल मसाला पीसने के काम में करते हैं.’
इस जानकारी को हिंदुस्तान में “आस्था“ को वर्तमान कानूनों से ऊपर बता हिन्दू आस्थाओं के अनुरूप हिन्दू राष्ट्र स्थापना की मुहिम चला रहे संगठनों से जोड़ कर देखे कि भविष्य में भाजपा कैसे राष्ट्र निर्माण की दिशा में कदम बढ़ा रही है?
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने वर्तमान संविधान के रहते अयोध्या में चुनाव पूर्व राममन्दिर निर्माण की शुरुआत न कर पाने की केंद्र सरकार की मजबूरी को समझ, खुद अपनी ही मुहिम के मंसूबों की हवा तो निकाली, पर हवा निकालते हुए वे पहली बार बहुत लाचार भी नजर आए. उन्हीं की मौजूदगी में साधु-संतों, विहिप कार्यकर्ता और 1992 के “कारसेवकों“ ने अपनी नाराजगी खुल कर व्यक्त की.
भागवत जी को कहना पड़ा आप अपने इस आक्रोश को छः महीने और बनाये रखें. इस देश के लोगों को मोदी सरकार और आरएसएस पर विश्वास है कि अयोध्या में “वहीं“ और “वैसा“ ही, जैसा उसका भव्य मॉडल दिखाया गया है, राम मन्दिर शीघ्र बनाएगी. इसलिए एक बार फिर मोदी सरकार को सत्ता में वापस लाने पर अपना ध्यान केंद्रित करें.
उन हिंदूओं (इस लेख में सभी जगह हिन्दू शब्द का संदर्भ धर्म से नहीं जीवन पद्धति से लिया जाय) के लिए जो आरक्षित वर्ग में सम्मिलित नही हैं और जातिगत आरक्षण की नींव को मजबूत बनाने की सरकार की ताजा गतिविधियों से नाराज हो भाजपा से छिटक रहे हैं, की पीड़ा दूर करने के लिए सरकार द्वारा अभी हाल ही में संविधान में संशोधन कर सरकारी नौकरियों में और शिक्षण संस्थानों में प्रवेश में दस प्रतिशत स्थान आरक्षित कर उन्हें आरक्षित जाति वर्ग के बगल में बिठा कर उनके मुंह पर ताला लगा दिया है.
फिलहाल जातिगत आरक्षण को लेकर आरक्षित वर्ग के प्रति इस उच्च जाति वर्ग की दुखती नब्ज का दर्द दूर हो गया है. सवर्ण “हिन्दू“ इसे सरकार के साहसिक कदम के रूप में अपनी अपेक्षाओं के अनुरूप देखने लगे हैं. परन्तु हाल ही में अयप्पा मन्दिर देवासम ट्रस्ट ने सुप्रीमकोर्ट में उसके आदेशों का पालन करने का शपथ-पत्र दाखिल करके अब तक इस मामले में आस्था के पैरोकार हिंदुओं के किये धरे पर पानी फेर दिया है. विदित है कि सबरीमाला अय्यप्पा मन्दिर में 10 से 50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश पर परम्परागत प्राचीन रोक को सुप्रीम कोर्ट द्वारा असंवैधानिक बताते हुए सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दी थी. आरएसएस ने इसे भी “हिन्दूओं“ की आस्था से जुड़ा मुद्दा मानते हुए सुप्रीमकोर्ट के आदेश को दरकिनारे कर उसके विरोध में सड़कों पर उतरे लोगों के पीछे खड़े हो कर, हिन्दूओं की आस्था को कानून से लड़ने के हथियार के रूप में इस्तेमाल करके केरल में हिंदुओं के ध्रुवीकरण का प्रयास किया था. ऐसे प्रयास वह अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर करती रही है.
इसी आस्था के भावनात्मक हथियार के बल पर संविधान में आस्था रखने वालों को धूल चटाने के अपने इरादों को लेकर वह 2019 का रण जीतना चाहती है. परन्तु भाजपा के अमित शाह से लेकर निचली सीढ़ी तक के नेता और आस्था की पैरोकारी में ईंट से ईंट बजाने की हुंकार भरने वाले हिन्दू संगठन तक अब इन दोनों मामलों में हिन्दू मतदाताओं से नजरें चुरा रहे हैं.
हिन्दू आस्थाओं की समर्थक पार्टियां 2019 का महाभारत देश के संविधान में आस्था रखने वाले राजनैतिक दलों को बेईमान, ठग, कौरवों की सेना बता जीतना चाहती है और वर्तमान संविधान के कानूनों पर निर्वाचित होने वाली सरकार की वर्तमान व्यवस्था को हमेशा-हमेशा के लिए समाप्त कर हिन्दू आस्था के अनुरूप नए संविधान को स्थापित कर भविष्य में नई व्यवस्था के अंतर्गत “एक देश, एक कानून“ जिसमें प्रांतीय सरकारें पंगु और केंद्रीय सरकार पर आश्रित बन जाएंगी, ऐसी हिन्दू राष्ट्रवादी सरकार की सत्ता कायम करना चाहती है. इस व्यवस्था में चुनाव महज एक धार्मिक क्रिया सरीखा कर्म काण्ड मात्र ही रह जाएगा. ऐसी सत्ता में सरकारें हिन्दू आस्थाओं के अनुरूप नए संविधान की रक्षक होगी.
वर्तमान में सरकार को ढ़ला-ढ़लाया संविधान मिला है जिसमं सरकारों पर उसके अनुरूप ही कार्य करने की बन्दिश है. बन्दिश तोड़ने पर सरकारें भी कानून के कटघरे में खड़े होने को मजबूर है, जिस तरह सामान्य नागरिक मजबूर है. 2019 का यह महाभारत बडा विचित्र है. एक तरह से अंग्रेजों के हाथों से सत्ता के हस्तांतरण की तरह ही है.
हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा और वर्तमान संविधान कभी न मिल सकने वाले नदी के दो पाटों की तरह हैं, जिसमें वर्तमान सरकार की स्थिति सांप छछून्दर वाली है. कभी इस पाट तो कभी उस पाट.
इन सभी पेंचोंखम से दूर कुम्भ में जूट उत्साहित साधु-संतों और हिन्दू कारसेवकों व अन्य कार्यकर्ताओं के मन में इस विश्वास ने अपनी जडं़े मजबूती से जमा ली थी कि इस बार आरएसएस “आस्था की सत्ता की सर्वोच्चता संविधान और कानून से ऊपर“ स्थापित करके ही रहेगी और राममन्दिर निर्माण के लिए एक बार फिर “श्री राम के काज“ के लिए कारसेवा करने का पुण्य प्राप्त होगा.
कुम्भ में आयोजित साधु-संतों की धर्मसंसद में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने घोषणा की, कि ‘‘सुप्रीम कोर्ट में मन्दिर की जमीन को लेकर सरकार द्वारा दायर याचिका पर फैसला आने तक या अधिकतम छः माह तक हमें इंतजार करना चाहिए. साथ ही एक बार फिर से केंद्र में मोदी सरकार को सत्ता में लाने के लिए संतों को जमीन तैयार करने की कबायद भी करनी होगी. फैसले के इंतजार तक पूरे देश में राम नाम का जनजागरण चलाया जाएगा. मन्दिर निर्माण नाम के लिए हमें केंद्र में एक बार फिर मोदी सरकार की आवश्यकता होगी. उन्होंने चेतावनी भरे लहजे में ललकारते हुए कहा कि ‘यदि छः महीने में कुछ नहीं होता है तो फिर हम देखेंगे.’
विहिप के केंद्रीय अध्यक्ष वी. एस. कोकजे ने कहा कि मन्दिर निर्माण में देरी से साधु-संतों और कार्यकर्ताओं में गुस्सा आना स्वाभाविक है. अयोध्या में राममन्दिर न्यास के अध्यक्ष नृत्यगोपाल दास ने भी मोदी को फिर से सत्ता में लाने की बात कही. धर्म संसद में पास किये गए प्रस्ताव की मुख्य बातों का उल्लेख भी जरूरी है –
1. अयोध्या मामले की प्रति दिन सुनवाई हो.
2. मन्दिर निर्माण में बाधा उत्पन्न करने वालों को “राष्ट्रद्रोही“ माना जाय.
3. देश में कहीं भी बाबर के नाम से कोई मस्जिद बनाने की इजाजत नहीं दी जाएगी.
4. फिलहाल छः माह तक देश में (सम्भवतः राममन्दिर निर्माण को लेकर) कोई आंदोलन नहीं किया जाएगा.
5. अखाड़ा परिषद् और अन्य सन्तों के अयोध्या कूच के घोषणा की निंदा की गई.
सरकार की तथाकथित कल्याणकारी योजनाओं के ढ़ोल-नगाड़ों की आवाज से देश के लोगों के दिल-ओ-दिमाग में जो छवि बनती है, और 2014 में किये गए वादों की जो जमीनी हकीकत उसकी आंखों में बनी हुई है, उन दोनों में बड़ी असमानता है. इस असमानता से देश का जनमानस खिन्न है. सरकार ने भी हाल की चुनावी पराजय के बाद इस खिन्नता का संज्ञान लेना शुरू कर दिया है. वह गम्भीर भी दिख रही है. बजट को लोकलुभावन बनाने के जो प्रयास हड़बड़ी में किये गए है, वो इस हड़बड़ी को दर्शाते भी हैं. बजट की एक दो घोषणाओं को छोड़ कर सभी का क्रियान्वयन अगली सरकार करेगी, वर्तमान नहीं, यह तथ्य भी अभी बहुतों को साफ-साफ पता नहीं है.
देश के साधू-सन्त इस मुद्दे पर दो-फाड़ दिखते हैं. एक धड़ा चाहता है कि ‘आरएसएस इस मुद्दे से खुद को दूर रखे और इसे भाजपा को सत्ता में लाने का औजार न बनाये.’ जबकि सत्ता के सुख का सोमरस पीकर मदमस्त हो झूम रहा दूसरा धड़ा है जिसे यह सीख फूटी आंख नहीं भा रही. उसका प्रयास है ‘लोगों में मन्दिर निर्माण के जनून को चुनाव होने तक बनाये रखना, ’ और भाजपा को फिर से सत्ता में लाना. क्या तब तक आम वोटर में यह जनून बना रह सकता है ? यह विचारणीय और अलग-अलग दृष्टिकोणों से अलग-अलग निष्कर्ष देने वाला प्रश्न है.
पिछले 45 साल में अपने चरम पर पहुंच गयी बेरोजगारी, विभिन्न स्तरों पर सरकारी पहरे में किये जा रहे भ्रष्टाचार, लोगों का उपहास उड़ाती सरकारी घोषणायें, निजी अस्पतालों में डॉक्टरों की लूट, न्यायालयों में वकीलों की लूट, निजी शिक्षण संस्थानों के मालिकों की लूट, आदि-आदि से कराहती जिंदगी को अभी इस जनून के दौर से ‘राम नाम का जागरण’ करते हुए गुजरना होगा.
जय श्रीराम !
सम्पर्क नं. +91 7017339966
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