Home लघुकथा सांपों की सभा : ‘हमें लोकतंत्र को लोकतांत्रिक ढंग से खत्म करना है’

सांपों की सभा : ‘हमें लोकतंत्र को लोकतांत्रिक ढंग से खत्म करना है’

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सांपों की सभा : 'हमें लोकतंत्र को लोकतांत्रिक ढंग से खत्म करना है'‘तुम में जहर नहीं है, इसलिए तुम कमजोर हो !’ सांप ने चूहे से कहा.

‘जिसके अंदर जहर होता है दुनिया उसकी इज्जत करती है…उनका सिक्का चलता है.’

‘आज तुम्हारा जहर ही तुम्हारे लिए अमृत है !’

चूहा ध्यान से सब सुनता रहा.

‘जब तुम्हारे पास जहर होगा, तभी लोग तुमसे डरेंगे !’ सांप शांत स्वर में बोला.

चूहे को बात समझ में आयी.

‘फिर मुझे क्या करना चाहिए !’ चूहे ने पूछा.

‘सीधी-सी बात है…तुम्हें अपने अंदर जहर पैदा करना चाहिए !’

‘वह सब तो ठीक है, मगर अपने अंदर जहर कैसे पैदा करूं ?’ स्पष्ट था कि चूहा हर हाल में समाधान चाहता था.

‘तुम चाहो तो मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूं !’ सांप ने मदद की पेशकश की.

‘कैसे ?’

‘चाहो तो मुझसे जहर ले लो !’

ताकत की चाह में चूहे ने फौरन हामी भर दी. सांप मुस्कुराया.

फिर क्या था, मौका मिलते ही सांप ने अपना जहर चूहे में उतार दिया. रगों में लहू के साथ जहर मिलते ही चूहे का बदन नीला पड़ गया. चूहा हमेशा के लिए शांत हो गया.

2

चूहे की डेड बॉडी लेकर सांप अपनों की सभा में पहुंचा. जहां उसका अभूतपूर्व स्वागत हुआ.

चूहे की डेड बॉडी देखकर सभी सांप उत्साह से भर उठे. वे जोर-जोर से फुफकारते हुए नारे लगाने लगे.

सभा शुरू हुई –

‘दोस्तों ! मेरे प्यारे दोस्तों !’ सांप बोला.

साथी सांप गौर से उसे सुनने लगे. वहां शांति छा गई.

‘दोस्तों ! जैसा कि मैंने आप से कहा था, वह मैंने कर दिखाया है.’
‘रिजल्ट आप सबके सामने है.’ चूहे की डेड बॉडी को दिखाते हुए वह बोला.

सभी सांपों ने हिश! हिश! करके उसका समर्थन किया.

वह आगे बोला, ‘हम पहले से ही बहुत बदनाम हैं. अब हमें और बदनाम नहीं होना है ! अब देखिए साथियों ! मैंने यह काम लोकतांत्रिक ढंग से किया.’

‘अब हम पर कोई हिंसा का इल्जाम नहीं लगा सकता. इस चूहे ने मुझसे खुद जहर मांगा…’ यह कहते हुए सांप का फन तन गया.

सभी सांपों ने हिश! हिश! कर काफी देर तक अपनी खुशी जाहिर की.

‘साथियों ! आप पहले दिलों में जहर भरिए ! वह जहर, जेहन में खुद ब खुद आ जायेगा और सब्जेक्ट अपने रगों में उतारने के लिए बेचैन हो जाएगा !’

‘सब्जेक्ट’ शब्द सुनकर सांपों के बदन में सुरसुरी-सी दौड़ गई.

वह धारा प्रवाह बोलता रहा, ‘बस हमें सपने और भय दोनों साथ-साथ दिखाने होंगे.’

अच्छे-अच्छे शब्दों के चयन पर ध्यान केंद्रित करना होगा!’ उसने चूहे की डेड बॉडी पर एक नजर मारी. फिर बोला,’देखिए ! कैसे हमारे रंग में यह रंगने के लिए तैयार हो गया !’

सभी सांप चूहे के नीले बदन को देखने लगे. वे अजब रोमांच से भर उठे.

वह आगे बोला, ‘जहर भरिए, खूब भरिए, मगर उपदेश की शक्ल में …आप देखेंगे कि उपदेश स्वतः उन्माद में बदलता जाएगा… बस फैलकर हर जगह हमें अपना काम लगातार करते रहना है. क्या समझे !’

एक बूढ़ा सांप जोश में बोला,’ समझ गए ! हमें लोकतंत्र को लोकतांत्रिक ढंग से खत्म करना है.’

‘बिल्कुल सही !’ सांप गर्व से बोला.

‘ये चूहा तो फंस गया, मगर क्या गारंटी है कि सभी फंसेंगे !’ दुविधा से भरे एक युवा सांप ने सवाल किया.

‘वेरी गुड क्वेश्चन !’ सांप यह बोलकर थोड़ी देर के लिये चुप हो गया.
फिर फुफकारता हुआ बोला, ‘जब तक लोगों में वर्चस्व की भावना प्रबल रहेगी, तब तक मुझे कोई दिक्कत नहीं दीखती…’. यह सुनते ही सभी सांपों में हर्ष की लहर दौड़ गई.

‘बस वर्चस्व को उत्कर्ष की शक्ल में बेचो !’ उसने बुलन्द आवाज में यह बात कही.

पल भर में सभा जोशीले नारों से गूंज उठी और सांपों की सभा ने एकमत से उसे अपना नेता चुन लिया.

नये नवेले नेता ने बहुत प्यार से कहा, ‘आइए !अब हम प्रार्थना शुरू करते हैं !’

सभी सांप समवेत स्वर में प्रार्थना करने लगे.

‘लोकतंत्र खुद को डसवाकर हमको दूध पिलाता है,
जो जितना जहरीला है, वह उतना पूजा जाता है’

चूहे की डेड बॉडी पड़ी हुई थी. अभी न जाने और कितनी बॉडी वहां आने वाली थीं…

  • अनूप मणि त्रिपाठी

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