हिमांशु कुमार, प्रसिद्ध गांधीवादी
हमारी एक मित्र अभी क्यूबा में पर्यावरण बचाने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं की एक बैठक में भाग लेकर लौटी हैं. क्यूबा में कारें, मशीनें और घर सब पुराने हैं. ऐसा लगता है हम साठ के दशक में पहुंंच गये हैं. इसका कारण है संयुक्त राज्य अमेरिका ने क्यूबा की आर्थिक नाकेबंदी की हुई है.
असल में संयुक्त राज्य अमेरिका पूंजीवादी देश है. संयुक्त राज्य अमेरिका को समाजवाद या साम्यवाद शब्द से ही बुखार चढने लगता है. इसलिए क्यूबा में फिदेल कास्त्रो और चे ग्वेरा ने जब समाजवादी क्रांति की, उसके बाद चिढ़ कर संयुक्त राज्य अमेरिका ने सारी दुनिया को यह दिखाने के लिए कि ‘देखो समाजवाद सफल नहीं हो सकता’, क्यूबा की आर्थिक घेराबंदी कर दी.
क्यूबा की मदद सोवियत रूस करता रहा लेकिन सोवियत रूस में साम्यवादी शासन का अंत होने के बाद क्यूबा आर्थिक संकट में घिर गया. लेकिन क्यूबा के लोगों ने हार नहीं मानी. क्यूबा के लोग पुरानी कारों, मशीनों को ठीक करके चलाने में माहिर हो गये. छतों पर सब्जियां उगाना शुरू किया ताकि खाने की कमी ना हो. राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो खुद गन्ने के खेत में गन्ने काटने जाते थे.
आज पूंजीवादी देश गरीबों के लिए नर्क बने हुए हैं. इस मीटिंग में क्यूबा के एक सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा कि हम स्वर्ग तो नहीं है लेकिन हम नर्क भी नहीं है. हमारी साथी ने कहा लैटिन अमेरिकी देशों के लोग अपनी सोच में बिलकुल साफ़ हैं. उनसे अगर पूछो कि इस सब का विकल्प क्या है ? तो वे लोग बिना एक क्षण की देरी के कहेंगे समाजवाद. लेकिन भारत में हम लोग रणनीतियां ही बनाते रहते हैं कि अच्छा अब हम सरकार के इस कदम का कैसे जवाब देंगे ? इसलिए भारत में आज विपक्ष के पास या सामाजिक कार्यकर्ताओं के पास कोई वैकल्पिक विचारधारा भी नहीं है. जबकि लैटिन अमेरिकी देशों में कार्यकर्ताओं के पास वैकल्पिक माडल है. इसलिए आज संयुक्त राज्य अमेरिका भी उनसे डरता है.
संयुक्त राज्य अमेरिका की सहायता से इन देशों के राष्ट्राध्यक्षों की हत्याएं करवा देना, चुनी हुई सरकारों को गिरा देना सामजिक कार्यकर्ताओं की हत्याएं खूब होती रहती हैं. भारत अब इस लुटेरे संयुक्त राज्य अमेरिका का पिछलग्गू बनने में शान समझ रहा है लेकिन अमेरिकी सरपरस्ती में पूंजीवाद जब हमारा सब कुछ लूट कर ले जाएगा, शायद तब हमें होश आएगा.
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अगर यह समाज हर पैदा होने वाले बच्चे को एक ही स्तर का मकान, हर बच्चे को एक ही स्तर का स्कूल, हर बच्चे को एक ही स्तर का खाना नहीं देता तो यह संविधान के विरुद्ध है. अपने जन्म का स्थान चुनना किसी भी बच्चे के अपने वश में नहीं है, इसलिये बच्चा चाहे सफाई कर्मचारी का हो चाहे किसी अम्बानी का, दोनों के बच्चों को जन्मजात बराबरी का अधिकार है. और यह बात आपके संविधान के पहले पन्ने पर लिखी हुई है, लेकिन समाज अभी भी इस बात को स्वीकार करने के लिये तैयार नहीं है, इसलिये सरकारें भी ऐसा क्यों सोचें ?
आज तो शहरी बच्चे – ग्रामीण बच्चे, बड़ी ज़ात के बच्चे – दलित बच्चे, साक्षर मांं बाप के बच्चे – निरक्षर मांं बाप के बच्चे सब को भयंकर भेदभाव जन्म से मिलता है..इस तरह आप कभी भी अवसर की समानता, सामजिक, आर्थिक, राजनैतिक न्याय को वास्तविक नहीं बना पायेंगे.
समाज में समता के बिना शांति नहीं आयेगी, इस तरह सामजिक हिंसा के लिये यह समाज खुद ही ज़िम्मेदार है.
प्रकृति ने तो सभी को सामान बनाया है, पर समाज ने असमानता पैदा की है, और यह समाज, समानता की बात करने वालों को असामाजिक और आतंकवादी कह कर उन पर हमला कर देता है. अब बताइये असली असामाजिक तत्व कौन हैं ?
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