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मनुवाद का तीर

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जी करता है दिखा दूं सीना चीर के,
कलेजा छलनी हुआ पड़ा है,
मनुवाद के तीर से !

हमारे पूर्वज राक्षस और राक्षसों के,
अवतार हो गये !!
इस तरह हम चक्रवर्ती से कुर्मी और कुम्हार हो गये !

ये आर्य भारत में शरणार्थी बन कर आये थे !
रोटी भी हम लोगों से मांग कर खाये थे !!
फिर धीरे-धीरे वो हमारे,
कबीलों के सरदार हो गये !!
इस तरह हम चक्रवर्ती से पाल और कलार हो गये !!

हमारी संस्कृति और सभ्यता को मिटाया था, जान ना ले हकीकत इसलिए,
हमारा इतिहास भी जलाया था !
रहते थे जो फिरंगी मेहमान बन कर
वो राजा, वजीर और सूबेदार हो गये !
इस तरह हम चक्रवर्ती से कहार हो गये !!

वैदिक सभ्यता थी इनकी सनातन धर्म था !
जो इंसान को इंसान ना समझे,
वो धर्म नहीं ऐसा अधर्म था !!
वर्णवाद और जातिवाद के कारण,
समाज के टुकड़े हजार हो गये !
इस तरह हम चक्रवर्ती से तेली, नाई, लोधी और महार हो गये !

सरेआम बहन-बेटियों की इज्ज़त को ,
नीलाम करवा दिया !
बांध कर गले में हांड़ी और पीछे झाड़ू,
आत्मसम्मान भी हमारा खत्म करवा दिया !
देख-देख हाल अपने समाज का,
हम शर्मसार हो गये !
इस तरह हम चक्रवर्ती से अहिरवार हो गये !!

जिह्वा कटवाते थे,
कानों में शीशा डलवाते थे !
मर जाता था प्यासा एक अछूत,
मगर ना उसको पानी पिलाते थे !
ऐसा गुलामी भरा जीवन पाकर,
हम कुत्तों से भी बेकार हो गये !
इस तरह हम चक्रवर्ती से रावत, कोरी और बरार हो गये !

‘अपना दीपक खुद बनो’ महात्मा बुद्ध ने,
सत्य की राह दिखाई थी !
क्या होती है तर्क और विवेक की शक्ति,
हम सब को बतलायी थी !!
लेकर बुद्ध की शिक्षा ‘सम्राट अशोक’
अरब देशों के पार हो गये !
इस तरह हम चक्रवर्ती राजा से, केवल मौर्या हो गये !

कह गये सतगुरु रविदास ‘मन चंगा तो कठौती
में गंगा’ पढ़े हमारे समाज का हर एक बंदा !
मधुमक्खियों की तरह रहो मिलकर ताकि,
ले ना सके कोई तुमसे पंगा !
पाकर ऐसा रहबर, पाकर ऐसा सतगुरु
परमात्मा के भी साक्षात्कार हो गये !
इस तरह हम चक्रवर्ती से अहीर और लुहार हो गये !

‘बाबा आंबेडकर साहेब’ ने शिक्षा, संघर्ष और
संगठन का गहरा नाता बताया था !
लिख संविधान हर गुलाम को,
गुलामी से मुक्त कराया था !
पर अब भूलकर बाबा साहेब को ,
देवी-देवता तुम्हारे अपार हो गये !
इस तरह हम चक्रवर्ती से चमार हो गये।

  • विक्की सिंह अम्बेडकर

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