पत्रकारिता के नाम पर देश में फर्जी खबरों को परोसने और न्यूनतम मानवीय शिष्टाचार को भी जूते के नीचे रौंदने वाले रिपब्लिक टीवी के मालिक अर्नब गोस्वामी को मुम्बई की पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है. इस गिरफ्तारी में सबसे अहम् बिन्दु है गोस्वामी पर लगे आरोप, जिसमें अर्नब गोस्वामी ने न्यूनतम व्यवसायिक और मानवीयता को भी दरकिनार कर दिया है. मामला है इंटीरियर डिजाइनर अन्वय नाइक और उनकी माता कुमुद नाइक के आत्महत्या की. अर्नब गोस्वामी ने अन्वय नाइक से एक करार के तहत रिपब्लिक टीवी के स्टूडियो का इंटीरियर करवाया था, जिसमें 5.40 करोड़ रूपये का भुगतान अर्नब गोस्वमी ने उन्हें नहीं किया, जिसकी वजह से उन्हें भयानक आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा और अंत में अपनी माता के साथ आत्महत्या कर लिया.
कहा जाता है कि अर्नब गोस्वामी की वजह से भयानक आर्थिक तंगी से बदहाल अन्वय नाइक और उनकी माता कुमुद नाइक की आत्महत्या को ढ़कने के लिए ही अर्नब गोस्वामी ने सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या को हत्या बताने के लिए ऐन-केन-प्रकारेण पूरी कोशिश लगा दी थी. परन्तु, लाख कोशिशों के वाबजूद वह सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या को हत्या साबित नहीं कर पाया. इस कोशिश में उसने फर्जी तरीके से सोशल मीडिया पर फर्जी अकाउंट बनाकर मुम्बई पुलिस, मुम्बई सरकार और मुम्बई फिल्म सिटी को बदनाम करने की हर मुमकिन कोशिश की. यहां तक कि पूरी मुम्बई की फिल्म सिटी को ही हत्यारा और ड्रग के नशे में झूमनेवाला साबित करने की कोशिश की, जिसमें वह बकायदा शिष्टाचार के न्यूनतम सीमा को भी पार कर गया, जबकि वह खुद अन्वय नाइक और उनकी माता कुमुद नाइक को आत्महत्या करने पर मजबूर करने का अपराधी था.
दरअसल, मई 2018 में 53 वर्षीय इंटीरियर डिजाइनर अन्वय नाइक और उनकी मां कुमुद नाइक अलीबाग तालुका के कावीर गांव के अपने फार्महाउस पर मृत पाए गए थे. अन्वय प्रथम मंजिल पर मृत पाए गए, जबकि उनकी मां का शव ग्राउंड फ्लोर पर मिला था. इसके बाद 48 वर्षीय अन्वय की पत्नी अक्षता नाइक ने आत्महत्या का मामला दर्ज कराया था. उस घटना के बाद जो सुसाइड नोट मिला, उसमें मृतक ने आरोप लगाया था कि उसे और उसकी मां को अपनी जिंदगी समाप्त करने के लिए मजबूर होना पड़ा, क्योंकि उन्हें अर्नब गोस्वामी और दो अन्य फिरोज शेख और नितेश सरदा के द्वारा 5.40 करोड़ रुपये की बकाया राशि का भुगतान नहीं किया गया.
सुसाइड नोट की छायाप्रति
मई 2020 में अन्वय नाइक की बेटी अदन्या ने महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख से से दोबारा जांच करने की गुहार लगाई. अन्वय नाइक की बेटी अदन्या ने आरोप लगाया कि अलीबाग पुलिस ने मामले की ठीक से जांच नहीं की थी. इसके बाद महाराष्ट्र के गृहमंत्री ने नए सिरे से जांच की घोषणा की. भाजपा की महाराष्ट्र सरकार ने इस मामले को दबाने की भरपूर कोशिश की, जिसे वर्तमान महाराष्ट्र की सरकार ने नये सिरे से जांच की, और इसी मामले में पत्रकारिता को बदनाम करने वाले अर्नब गोस्वामी को मुम्बई की पुलिस उठा कर ले गई.
इस मामले में सबसे दिलचस्प वाकया यह है कि अर्नब गोस्वामी को गिरफ्तार करने में केन्द्र की मोदी सरकार की भूमिका है. दरअसल सुप्रीम कोर्ट की शरण में जाने वाले अर्नब गोस्वामी को सुप्रीम कोर्ट ने भी गहरी फटकार लगाई और उसे कोई राहत देने से साफ इंकार कर दिया. समूचा देश यह जानता है कि सुप्रीम कोर्ट मोदी के पैरों की जूती है, जो उसके इशारे पर नाचती है वरना उस सुप्रीम कोर्ट के जज की भी खैर नहीं. भारत के सुप्रीम कोर्ट को इतनी साहस नहीं है कि वह मोदी के खिलाफ कोई बयान या फैसला दे सके. अगर मोदी के सामने असहाय सुप्रीम कोर्ट अर्नब गोस्वामी को राहत नहीं दी है तो इसका साफ कारण यही है कि खुद मोदी सरकार भी अब अपने पालतू कुत्ता अर्नब को बचाना नहीं चाहती है क्योंकि वह हद से ज्यादा बदनाम हो चुका है और भाजपा की मोदी सरकार उसे बचा कर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी और फजीहत नहीं कराना चाहती.
अर्नब गोस्वामी को मुम्बई पुलिस द्वारा गिरफ्तारी और मोदी सरकार द्वारा उसे बचाने से इंकार ने देश की जनता के सामने यह तो एक बार फिर से साफ कर दिया कि गुंडों का सरगना अपने पालतू कुत्ते की तभी तक हिफाजत करता है जब तक वह उसका सुरक्षित इस्तेमाल करती रहती है. ज्योंहि वह बदनाम हो जाता है, समाज की नजरों में गिर जाता है, तब वह उस बदनाम मोहरे को उसके हाल पर छोड़ देता है. अर्नब गोस्वामी के साथ अब ठीक यही हो रहा है. जब तक वह मोदी के प्रोपगैंडा के तहत काम कर रहा था, उसको लगातार बचाता रहा लेकिन ज्योंहि वह हद से ज्यादा बदनाम हो गया, उसे उसके हाल पर छोड़ दिया, भले ही भाजपा नेता उसके पक्ष में अब बयानबाजी ही क्यों न कर रहा हो.
अर्नब गोस्वामी अपने इस हालत के लिए जिम्मेदार स्वयं है. मोदी की दलाली में वह खुद को इतना ज्यादा गिरा लिया कि न केवल देश के अन्दर बल्कि अन्तराष्ट्रीय स्तर पर भी बदनाम और हास्यास्पद हो गया था. उसने अपने साथ ही साथ पत्रकारिता के स्तर को भी गाली-गलौच और मदारी के बन्दर तक ले आया था. अर्नब की गिरफ्तारी पत्रकारिता जगत, खासकर उन दलाल मीडिया चैनलों के लिए भी एक स्पष्ट संकेत है कि वे किसी की दलाली में नीचे गिरकर बदनाम हो जाने के बजाय अपना काम इमानदारी से करें, वरना कल किसने देखा है ? जनता एक दिन हर किसी का हिसाब करती है, भले ही उसको अंजाम तक कोई दूसरा गुंडा गिरोह ही उसे क्यों न पहुंचा दे.
अर्नब गोस्वामी पर पुलिसिया कार्रवाई को दो गुंडा गिरोह के बीच की परस्पर लड़ाई के तौर पर देखा जाना चाहिए. इसमें किसी का भी पक्ष लेना नुकसानदेह ही है क्योंकि अर्नब को पकड़ने वाली यह पुलिसिया गिरोह देश के तमाम प्रगतिशील लोगों को भी ठिकाने लगा रही है. अर्नब भी चूंकि एक गुंडा गिरोह का कुत्ता है, देर सबेर वह बच भी जायेगा, परन्तु देश की जनता को तो अपनी रक्षा स्वयं करनी होगी.
Read Also –
‘द नेशन वांट्स टु नो !’ की जाने हकीकत
द ग्रेट बनाना रिपब्लिक ऑफ इंडिया
जानिए, आपका टीवी एंकर आपके खिलाफ लड़ रहा है
दीपक चौरसिया : दलाल पत्रकारिता का विद्रुप चेहरा
जस्टिस मुरलीधर का तबादला : न्यायपालिका का शव
59 ग्राम गांजा पर वितंडा : अब प्रतिरोध और प्रतिकार जरूरी
दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एपी शाह का भाषण
[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]