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डराते हो गिरफ्तारियों से…?

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डराते हो गिरफ्तारियों से...?
डराते हो गिरफ्तारियों से…?

डराते हो गिरफ्तारियों से
डराते हो जेलों से
डराते हो यातनाओं, बंदूकों और हत्याओं से
तुम चाहते हो कि इन
गिरफ्तारियों, जेलों, यातनाओं, बंदूकों,
हत्याओं से डरकर
हम क्रांति का सपना छोड़ दें
अपने विचारों और सिद्धांतों से समर्पण कर दें

तो सुनो
हम वारिस हैं बुद्ध के
जिनके पास रहने के लिए
आलीशान महल था लेकिन उन्होंने
लोगों के दुःखों का कारण और
निवारण ढूंढने के लिए महलों और
तख्तों को लात मार दिया

हम वारिस हैं महावीर के
जिनके पास वस्त्रों की कमी नहीं थी
लेकिन मुक्ति की तलाश में जो
विलासितापूर्ण जीवन को
लात मारकर नंगा निकल गए

हम वारिस हैं मार्क्स-एंगेल्स-लेनिन के
जिन्हें रोटी की दिक्कत नहीं थी
लेकिन सबके लिए रोटी-कपड़ा-मकान और
सम्मान के लिए जिन्होंने
खुद भूखा और परेशान रहना मंजूर किया

हम वारिस हैं स्टालिन-माओ के
जिन्होंने लाखों स्पार्टाकसों के सपनों को
जमीन पर उतारा और उसे
समाजवाद के लाल झंडे के रूप में
पहली बार धरती की अतल गहराईयों में गाड़ा

हम वारिश हैं भगत सिंह-उधम सिंह के
जिन्होंने हंसते हुए फांसी के फंदे को
सिर्फ इसलिए चूमा था की
उनकी कुर्बानी मिसाल बनकर
लाखों युवाओं को प्रेरणा देगी

हम वारिस हैं उस चारु मजूमदार के
जिसने 72 साल की उम्र में
पुलिसिया यातना झेलकर इसलिए
शहीद होना मंजूर किया
ताकि भारतीय क्रांति को
क्रांतिकारी दिशा दी जा सके

तुम उन्हें भला क्या डराओगे
जिन्होंने भूख से चिपके पेटों को देखा है
कर्ज में घुटते लोगों को देखा है
इलाज के अभाव में
दम तोड़ती सांसों को देखा है
दो-चार की अय्याशी को
कइयों की बजबजाती ज़िंदगी का
कारण बनते देखा है
जिन्होंने इंसान से उसकी इंसानियत
छीन लेने वाली व्यवस्था के दंश को देखा,
झेला और महसूस किया है
अगर तुम सोचते हो कि
तुम्हारी जेल की ऊंची-ऊंची
चहारदिवारियां, तुम्हारी गोलियां
उनके सपनों को कुचल देंगी
तो तुम गलती पे हो

ये पेशवाई का दौर नहीं है
ये नक्सलबाड़ी के दौर की निरंतरता है
उन लोगों का दौर है जिन्होंने
तुम्हारी जेलों और संगीनों के सामने
झुकने से इंकार कर दिया है
जिन्हें सर उठाना, सर कटाना और
सर कलम करना भी आता है

  • रितेश विद्यार्थी

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