सिर के बल खड़ी दुनिया को पैर के बल खड़ा कर देने वाले महान चिंतकों मार्क्स-एंगेल्स में एक आज एंगेल्स स्मृति दिवस है. निजी स्वामित्व पर टिके पूंजीवादी समाज में मार्क्स-एंगेल्स की दार्शनिक और इल्मी दोस्ती अपने समय से बहुत आगे की दोस्ती है. यह दोस्ती बताती है कि ज्ञान कोई व्यक्तिगत (व्यक्तिगत की तर्ज़ का सामाजिक भी) उपभोग की चीज़ नहीं; गतिमान सामाजिक ज़िम्मेदारी है.
‘पूंजी’ भाग-2 और भाग-3 एंगेल्स ने मार्क्स की मृत्यु के बाद अपना जीवन लगाकर पूरा किया. कम्युनिस्ट घोषणपत्र का एक ज़रूरी हिस्सा भी ऐंगल्स ने अकेले पूरा किया. एंगेल्स ने प्रकृति-विज्ञान को आधार बनाकर वैज्ञानिक नज़रिए से समूचे समाज की संरचना पर बुनियादी किताबें लिखी, जिनमें ‘परिवार, निजी संपत्ति और राज्य की उत्पत्ति’, ‘एन्टी-ड्यूरिंग’ ‘डायलिक्ट्स ऑफ़ नेचर’, ‘समाजवाद: काल्पनिक और वैज्ञानिक’, ‘वानर से नर बनने की प्रक्रिया में श्रम की भूमिका’ और ‘वैज्ञानिक और जर्मन इडिओलजी’ बेहद महत्वपूर्ण रचनाएं हैं.
भारत में मार्क्सवाद की स्थिति का मूल्यांकन कर वर्तमान को समझने में ‘समाजवाद : काल्पनिक और वैज्ञानिक’ किताब अहम है. एक बड़ा समूह समाज बदलने के नाम पर यूटोपिआई जज़्बाती ढंग से अपनी ऊर्जा ऐसे कामों में खर्च कर निराश हो जा रहा है और अंततः पूंजीवादी समाज के दबाव में या तो रोज़ी-रोटी में दब जा रहा है या अवसाद में आकर अकेला और अप्रासंगिक हो जा रहा है.
दूसरी ओर एक समुदाय ज़मीन से कटकर मार्क्सवादी सिद्धांत को यांत्रिक ढंग से पढ़कर कोरा बुद्धिजीवी बनकर रह जा रहा है. सिद्धांत से प्रैक्टिस और प्रैक्टिस से सिद्धांत की पूरी प्रक्रिया लगभग गायब है, इसके कारण मेहनतकश वर्ग की पहचान धूमिल हो रही और उनसे हमारा बड़े पैमाने पर अलगाव हुआ है.
‘समाजवाद: काल्पनिक और वैज्ञानिक’ में मार्क्स के लेखन के बहुत पहले तीन महान शख़्सियतों सेंट सायमन, चार्ल्स फ़ुरियर और रोबर्ट ओवन के माध्यम से एंगेल्स काल्पनिक समाजवाद की असफलता के कारण बताते हैं. इस असफलता के बावजूद वे इनके योगदान को कहीं नहीं नकारते और बहुत आदर के साथ उनके कामों को बताते हुए समाज की वैज्ञानिक प्रक्रिया को समझाते हैं.
वे लिखते हैं कि रोबर्ट ओवन ने अपने अनुभव और मनुष्यवत मन के आधार पर अतिरिक्त मूल्य और भविष्य में मज़दूरों के माध्यम से साम्यवादी समाज की एक कल्पना कर ली थी. कल्पना ही नहीं कर ली थी उस प्रक्रिया को भी जान लिया था और उस पर काम भी शुरू कर दिया था. वे सूती कपड़े के मध्यम कारख़ाने के मालिक थे. अपने अनुभव से उन्होंने जाना –
‘तो भी 2,500 व्यक्तियों की आबादी का काम करने वाला भाग समाज के लिए प्रतिदिन जितना वास्तविक धन उत्पन्न करता था. 50 साल से भी कम पहले उसे उत्पन्न करने के लिए 6,00,000 आबादी के काम करने वाले भाग की जरूरत पड़ती है. मैंने अपने आप से पूछा 6,00,000 आदमी जितना धन खर्च करते, उससे 2,500 आदमी बहुत कम धन खर्च करते, फिर शेष धन कहां चला जाता है ?’
अतिरिक्त मूल्य की अनुभवाधारित समझ उनकी यहीं से होती है.
एंगेल्स आगे लिखते हैं –
‘कम्युनिज्म की दिशा में प्रगति ही ओवन के जीवन का मोड़ था. जब तक वे परोपकारी भर थे, उन्हें धन, प्रशंसा, सम्मान, गौरव सब कुछ मिला. वे यूरोप के सबसे जनप्रिय व्यक्ति थे. उनके वर्ग के लोग ही नहीं बल्कि राजे महाराजे और राजनीतिज्ञ भी उनकी बात आदर के साथ सुनते थे और उनकी दाद देते थे किंतु जब उन्होंने अपने कम्युनिस्ट सिद्धांतों को पेश किया; परिस्थिति एकदम बदल गई.
‘समाज सुधार के रास्ते में उन्हें ख़ासकर तीन बड़ी कठिनाई दीख पड़ी- निजी स्वामित्व, धर्म और विवाह का प्रचलित रूप. वे जानते थे कि अगर उन्होंने इन पर आक्रमण किया तो परिणाम क्या होगा. समाज से निष्कासन, सरकारी हलकों द्वारा बहिष्कार और उनकी संपूर्ण सामाजिक प्रतिष्ठा की हानि लेकिन इन बातों का डर उन्हें रोक नहीं सका और उन्होंने परिणाम की चिंता किए बिना उन पर आक्रमण किया और जिस बात की आशंका थी वह होकर रही.
सरकारी हलकों ने उनका बहिष्कार किया. प्रेस ने उनकी ओर मौन उपेक्षा का रुख अपनाया. अमेरिका में होने वाले असफल कम्युनिस्ट प्रयोगों ने उन्हें चौपट कर दिया और उनमें उनकी सारी संपत्ति स्वाहा हो गई और तब उन्होंने अपना नाता सीधे मजदूर वर्ग से जोड़ा और उनके बीच 30 वर्ष तक काम करते रहे.
इंग्लैंड में मजदूरों की हर वास्तविक प्रगति हर सामाजिक आंदोलन के साथ उनका नाम जुड़ा हुआ है. 1819 में उनके 5 वर्षों के संघर्ष की बदौलत ही कारखानों में औरतों और बच्चों के काम के घंटों पर रोक लगने वाला पहला कानून पास किया गया था.’
न केवल इतना ही बल्कि उस ज़माने में ओवन ने अपने ज़बरदस्त अनुभव और प्रयोगों से मज़दूरों का एक कम्यून बना लिया और उनके बीच व्यापार के लिए एक अलग मुद्रा भी बना दी. ज़ाहिर सी बात है कि समाजवाद के लिए वह मुफ़ीद भौतिक परिस्थिति थी ही नहीं सो इन कामों में ओवन व्यक्तिगत रूप से बिल्कुल बर्बाद हो गए.
‘ओवन का कम्युनिज़्म इस विशुद्ध व्यावसायिक नींव पर आधारित था. कहना चाहिए कि व्यवसायिक लेखे-जोखे के फलस्वरूप ही उसकी उत्पत्ति हुई. उसका यह व्यवहारिक रूप अंत तक बना रहा. इस तरह हम देखते हैं कि 1823 में ओवेन ने आयरलैंड में पीड़ित लोगों के सहायतार्थ कम्युनिस्ट बस्तियां स्थापित करने का प्रस्ताव रखा और उनकी स्थापना की लागत सालाना खर्च और संभाव्य आय का पूरा तख़्मीना लगाया.
उन्होंने भविष्य की एक सुनिश्चित योजना, भविष्य का पूरा नक्शा बनाया-जिसमें नींव का नक्शा, सम्मुख, पार्श्व और विहंगम दृश्य सभी दिए हुए थे और उसका प्राविधिक ब्यौरा तैयार करने में उन्होंने ऐसे व्यवहारिक ज्ञान का परिचय दिया कि अगर समाज सुधार की ओवन पद्धति को एक बार स्वीकार कर लिया जाए तो फिर तफ़सीली बातों के इंतजाम के ख़िलाफ़ व्यावहारिक दृष्टि से शायद ही कोई ऐतराज किया जा सके.’
फ्रांस की क्रांति के बाद भाववाद से निकलकर भौतिकवाद की पहचान कराते हुए एंगेल्स साफ़ करते हैं कि भौतिकवादी ठोस परिस्थिति और प्रक्रिया की पहचान के बग़ैर समाजवाद नहीं आ जाता. अगर नेकनीयत और ईमानदारी से ही समाज बदलता तो ईमानदारों की कमी समाज में नहीं रही है, समाज बदलता है वैज्ञानिक प्रक्रिया और भौतिक आधारों पर.
इस तरह वे सुंदर समाज की काल्पनिकता, नेकनीयत, ईमानदारी और भाववाद में छंटनी कर हमारे सामने वैज्ञानिक समाजवाद के बनने की प्रक्रिया का भौतिकवादी नज़रिया रखते हैं.
- वंदना चौबे
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