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अंजना ओम कश्यप : चाटुकार पत्रकारिता का बेजोड़ नमूना

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अंजना ओम कश्यप : चाटुकार पत्रकारिता का बेजोड़ नमूना

अंजना ओम कश्यप कभी हकलाते हुए खुद को अंजना ओम मोदी कहकर परिचय दी थी. ऑन एयर देखे जाने वाली इस परिचय को जुबान का फिसलना माना जा सकता है, पर अंजना ओम कश्यप जिस प्रकार पूरे पांच साल मोदी सरकार की गोद में बैठकर कान खुजाती रहीं, वह उसके जुबान फिसलने का नहीं बल्कि उसका वास्तविक परिचय बन गया है.

मोदी सत्ता के सुर में तान मिलाने वाली अंजना को जब चमकी बुखार से मरने वाले बच्चों की संख्या 100 के पार पहुंच जाती है तब ख्याल आता है कि स्टूडियो में मंदिर-मस्जिद खेल-खिलाने के अलावा मुजफ्फरपुर से भी तो टीआरपी कैश की जा सकती है. मैडम जी एक हफ्ते बाद सीधे अस्पताल के आईसीयू में लैंड करती हैं. डॉक्टर पर चिल्लाती हैं, चींखती हैं और हेडलाइन बनती है कि – बच्चों के इलाज के लिए डॉक्टर से भिड़ गई ‘एंकर’

फ्लो फ्लो में मैडम डॉक्टर की छाती पर तंबू गाड़कर पूंंछती हैं कि बढ़ती हुई संख्या में बच्चों को कहांं एडजस्ट करिएगा ? मैडम जी की मानें तो अस्पताल में बैड कम होने के जिम्मेदार डॉक्टर हैं. अस्पताल में डॉक्टरों की संख्या कम होने के जिम्मेदार भी डॉक्टर हैं. अस्पताल के कमरों की चौड़ाई कम होने के जिम्मेदार भी डॉक्टर हैं. मतलब सारी समस्या के जिम्मेदार ही डॉक्टर हैं, न नीतीश कुमार हैं और न ही प्रधानमंत्री मोदी हैं.

मोदी चालीसा की एक-एक चौपाई रटी हुईं पुलित्जर पुत्री अंजना को कोई बताए कि इस देश की जनता ने मोदी-नीतीश को चुना है, डॉक्टरों को नहीं. देश का संचित निधि कोष मोदी-नीतीश के हाथों में है, डॉक्टरों के हाथ में नहीं.

मैडम जी से कोई पूछे कि जिस सरकार के चरणों में आप गिरी ही नहीं बल्कि चरणों में लहालोट हो गईं हैं, उस सरकार से आपने कितनी बार सवाल किया कि कितने अस्पताल बने ? आपने तो चुनाव के समय प्रधानमंत्री का इंटरव्यू भी लिया था ! आपने उस इंटरव्यू में कितनी बार पूछा कि कितने नए एम्स खुले ? कितने नए मेडिकल कॉलेज खुले ? नहीं पूछे. तब आप मोदी जी की मुस्कान और थकान पर मुग्ध होकर श्रृंगार रस की कविताएं लिख रही थीं. अब डॉक्टर से पूछ रही हैं कि ‘वह मरीजों को कहांं एडजस्ट करेंगे ?’

अंजना जी इतनी हिप्पोक्रेसी मत कीजिए कि हिप्पोक्रेसी भी आपकी हिप्पोक्रेसी देखकर रेस्ट इन पीस हो जाए.

–  किशोर कुणाल (थोड़े संशोधन के साथ)

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