अब यह एक कड़वी सच्चाई बन चुका है कि भारत में दो सरकार समानान्तर सत्ता चला रही है. पहली सरकार माओवादियों के नेतृत्व में चल रही ‘जनताना सरकार’ है. दूसरी सरकार सामंती मिज़ाज वाली वह सरकार है, जिसका एक बांह भारत के कॉरपोरेट घराना थामे हुए है और दूसरा बांह अमेरिकी साम्राज्यवादी शक्तियों के नेतृत्व वाली विदेशी शक्तियां पकड़े हुए है और अपनी इच्छानुसार दोनों इसकी बांह मरोड़ता रहता है.
कोई भी सरकार के अधीन रहनेवाली जनता की क्या स्थिति है, इसे समझने का सबसे बेहतरीन तरीक़ा है यह देखना कि उनके प्रभाव वाले इलाक़े में महिलाओं की क्या स्थिति है. यानी महिलाओं के प्रति उस सरकार की क्या सोच है. जनताना सरकार के प्रभाव क्षेत्र वाले इलाक़े में महिलाएं बढ़चढ़ कर अपनी हिस्सेदारी निभा रही है.
मसलन, माओवादियों के सैन्य टुकड़ियों में महिलाओं की भागीदारी 60 से 70 प्रतिशत तक होती है और बलात्कार व घरेलू हिंसा जैसी घटनाएं विरल है. बल्कि वहां जो भी हत्या या बलात्कार जैसी घटनाएं होती है उसका कारण भारत सरकार की सामंती मिज़ाज वाली पुलिस, अर्द्ध सैनिक और उसकी सेना करती है, जिसे लाखों की तादाद में वहां भर दिया गया है.
अब आते हैं सामंती मिज़ाज वाली भारत सरकार के अधीन रहने वाली महिलाओं की दशा पर. अभी तक इनके इलाक़ों में सत्ता में महिलाओं की भागीदारी 40 प्रतिशत भी नहीं हो पाई है, जबकि उनके ख़िलाफ़ बलात्कार और हिंसा जैसी ख़ौफ़नाक वारदात दिल दहलाने वाली होती है. अब तो भारत सरकार की न्यायपालिका साफ़ तौर पर बताता है कि लड़कियों या महिलाओं के स्तन को पकड़ना और उसके योनी से छेड़खानी करना अपराध नहीं है.
अभी ही इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नोएडा पीजी की छात्रा के बलात्कार के आरोपी को यह कहते हुए जमानत दे दी कि जो भी हुआ उसमें छात्रा की भी गलती है. उसने शराब पी रखी थी. यानी, यदि किसी लड़की ने शराब पी लिया तो भारत सरकार की न्यायपालिका का मानता है कि किसी को उसके साथ बलात्कार करने का लाइसेंस मिल गया. यानी, बलात्कार भारत सरकार के संस्कृति का हिस्सा है.
बहरहाल हम इसे आंकड़ों में देखते हैं. भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के आंकड़े राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) द्वारा प्रकाशित किए जाते हैं. नवीनतम उपलब्ध आधिकारिक डेटा 2022 का है, क्योंकि 2025 का पूरा डेटा अभी तक सार्वजनिक नहीं हुआ है. 2022 के NCRB डेटा के अनुसार महिलाओं के खिलाफ अपराध के 4,45,256 मामले दर्ज किए गए. इसका मतलब है कि प्रतिदिन औसतन 1,220 मामले और प्रति घंटे लगभग 51 मामले दर्ज हुए.
महिलाओं के खिलाफ होने वाले प्रमुख अपराध :
- पति या ससुराल वालों द्वारा क्रूरता (घरेलू हिंसा) : 1,39,789 मामले (31.4%)
- अपहरण : 85,323 मामले (19.2%)
- महिला की लज्जा भंग करने के इरादे से हमला : 83,344 मामले (18.7%)
- बलात्कार : 31,516 मामले (7.1%), यानी प्रतिदिन औसतन 86 बलात्कार के मामले
- दहेज हत्या : 6,589 मामले
आंकड़े बताता है कि कि 2018 से 2022 तक महिलाओं के खिलाफ अपराध में 12.9% की वृद्धि हुई. 2021 की तुलना में 2022 में 4% की बढ़ोतरी दर्ज की गई (2021 में 4,28,278 मामले थे). राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS-5, 2019-21) के अनुसार, 15-49 आयु वर्ग की लगभग एक-तिहाई महिलाओं (लगभग 32%) ने अपने जीवन में किसी न किसी रूप में हिंसा का अनुभव किया है, जिसमें शारीरिक, यौन या भावनात्मक हिंसा शामिल है.
वैश्विक स्तर पर दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में अंतरंग साथी (intimate partner) द्वारा हिंसा के आंकड़े 37.7% हैं, जो भारत जैसे देशों में स्थिति की गंभीरता को दर्शाते हैं. ध्यान दें, ये आंकड़े केवल दर्ज मामले दर्शाते हैं. वास्तविक संख्या इससे अधिक हो सकती है, क्योंकि कई मामले सामाजिक stigma, डर या जागरूकता की कमी के कारण रिपोर्ट नहीं होते. 2023-2025 के लिए पूर्ण आधिकारिक डेटा अभी उपलब्ध नहीं है, लेकिन हाल के रुझानों से संकेत मिलता है कि मामले बढ़ रहे हैं.
भारत सरकार के ‘आदर्श’ राज्य में महिलाओं की स्थिति का एक उदाहरण
केन्द्र की सामंती मिज़ाज वाली मौजूदा भारत सरकार की प्रयोगस्थली उत्तर प्रदेश, जिसे वह अपना आदर्श राज्य मानती है, वहां की हालिया बारदात की एक झलक हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं. यह उदाहरण आपको साफ़ तौर पर बतायेगा कि भारत सरकार के अधीन रहने वाली महिलाओं के साथ भारत की पुलिस कितनी विभत्सता से पेश आती है.
उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में एक महिला के साथ पुलिस की क्रूरता की दिल दलहा देने वाली घटना सामने आई है. एक मामले में आरोपी भाई को पकड़ने पहुंची पुलिस ने उसकी बहन पर ऐसा जुल्म किया कि उसने अपनी जीवन लीला ही समाप्त कर ली. परिवार का आरोप है कि पुलिस की पिटाई से महिला के प्राइवेट पार्ट पर भी चोट आई थी.
आरोपी की बहन तीन बच्चों की मां थी. मृतक महिला के बेटे ने बताया कि पुलिस ने उसकी मां को खेत में पकड़ा और उसे जमकर पीटा. उसे इतना मारा कि वो बेहोश हो गई. इसके बाद पुलिस वालों ने उसे पानी पिलाया और होश में लाए. इसके बाद घसीटकर उसे पुलिस की गाड़ी में बैठाया और थाने ले गए.
थाने ले जाते वक्त भी उसकी पिटाई की. इसके बाद थाने में ले जाकर भी उसे नहीं छोड़ा. वहां पीटने के बाद पुलिसवालों ने कहा कि अब जाओ कल सुबह 10 बजे आना. पुलिस के इस बर्बरता से महिला में इतना खौफ बैठ गया कि घर पहुंचने के बाद उसने फंदे पर लटककर जान दे दी. मामला अलीगढ़ के पालीमुकीमपुर थाना क्षेत्र के हरनौट गांव का है. मृतका की उम्र 46 वर्ष बताई गई है.
मृतका के परिजनों ने आरोप लगाया कि पुलिस ने महिला के गुप्तांगों पर भी प्रहार किए और उसे अमानवीय यातनाएं दीं. घटना के बाद जब महिला का शव गांव पहुंचा तो ग्रामीण आक्रोशित हो उठे. परिजनों ने शव को थाने ले जाने और पोस्टमार्टम कराने से इनकार कर दिया. मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस अधीक्षक ग्रामीण अमृत जैन, सीओ इगलास महेश कुमार और अन्य उच्च अधिकारी मौके पर पहुंचे और परिजनों को शांत कराया.
दरअसल, 29 मार्च को दादों थाने की पुलिस प्रेम-प्रसंग के आरोपी छोटे उर्फ राकेश को पकड़ने के लिए हरनौट गांव पहुंची थी. पुलिस आरोपी के न मिलने पर उसकी बहन लक्ष्मी देवी को जबरन पकड़कर थाने ले गई. लक्ष्मी देवी अपने बेटे के साथ खेत में गेहूं काट रही थी, तभी पुलिस ने उसे घसीटते हुए गाड़ी में डाल दिया. रास्ते में भी, और थाने में उसे लगातार पीटा गया. शाम को पुलिस ने ग्राम प्रधान प्रतिनिधि के हस्तक्षेप के बाद मां-बेटे को रिहा कर दिया. लेकिन पुलिस ने अगले दिन सुबह 10 बजे फिर से पूछताछ के लिए बुलाया, जिससे डरी-सहमी लक्ष्मी देवी ने रात में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली.
30 मार्च की सुबह जब ग्रामीणों ने महिला का शव पेड़ से लटका देखा, तो पूरे गांव में हड़कंप मच गया. परिजनों ने पुलिस पर हत्या का आरोप लगाते हुए कार्रवाई की मांग की और शव का पोस्टमार्टम कराने से इनकार कर दिया. सूचना मिलते ही कई थानों की फोर्स मौके पर पहुंची.
बढ़ते तनाव को देखते हुए पुलिस अधीक्षक ग्रामीण ने दादों थाना प्रभारी योगेंद्र सिंह, महिला कांस्टेबल और अन्य पुलिसकर्मियों को तत्काल लाइन हाजिर कर दिया. साथ ही, निष्पक्ष जांच के बाद दोषियों को निलंबित करने और कानूनी कार्रवाई करने का आश्वासन दिया. परिजनों को प्रशासन से मुआवजा दिलाने की भी बात कही गई, जिसके बाद वे पोस्टमार्टम के लिए राजी हुए.
लक्ष्मी देवी अपने पीछे पति और तीन बेटों को छोड़ गई है. इस घटना के बाद पूरे गांव में आक्रोश है, और लोग पुलिस के इस अमानवीय कृत्य पर न्याय की मांग कर रहे हैं. पुलिस इस मामले की जांच कर रही है और दोषी पाए जाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की बात कही गई है. लेकिन पिछले उदाहरणों पर ग़ौर करें तो जांच की यह ख़ानापूर्ति महज़ जनआक्रोश को शांत करने की क़वायद के सिवा और कुछ नहीं है.
निष्कर्ष
किसी भी सरकार को पहचानने का सबसे सटीक तरीक़ा उस सरकार के अधीन रह रही महिलाओं की स्थिति का जायज़ा लेना है, तो हम पाते हैं कि भारत सरकार की सामंती मिज़ाज वाली व्यवस्था में महिलाओं के खिलाफ जुल्म बक़ायदा सरकारी तंत्र द्वारा संचालित किया जाता है, जिसमें व्यवस्थापिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका की संयुक्त भूमिका है. इसलिए सीधे कहा जा सकता है कि भारत सरकार के अधीन रहने वाली जनता शोषण और दमन की ज़बरदस्त शिकार होती है.
वहीं, जनताना सरकार के अधीन रहने वाली महिलाओं की स्थिति बेहतर है. वहां महिलाओं के खिलाफ हिंसा न के बराबर है. यदि कभी ऐसी स्थिति आती है तब जनताना सरकार सख़्त कदम उठाती है और उसकी न्यायपालिका त्वरित फ़ैसला लेती है और लागू होता है. जिस कारण जनताना सरकार के तहत 60 से 70 प्रतिशत भागीदारी महिलाओं की है.
उपरोक्त तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि जनताना सरकार देश की मेहनतकश आवाम के लिए सबसे मुफ़ीद सरकार है. जिसे ख़त्म करने के लिए भारत सरकार ने अपने लाखों की तादाद में भाड़े के सिपाही तैनात किया हुआ है जो आये दिन जनताना सरकार के प्रभाव वाले इलाक़े में दाखिल होकर नरसंहार और बलात्कार जैसी कुकृत्यों को अंजाम देती है. देश और दुनिया भर के लोगों को भारत सरकार के इस नीचता का विरोध करना चाहिए.
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