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बेशर्म अमित शाह ने कहा – ‘मोदी चाय वाला, गरीब आदमी’, लोगों का फूटा आक्रोश

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बेशर्म अमित शाह ने कहा - 'मोदी चाय वाला, गरीब आदमी', लोगों का फूटा आक्रोश
बेशर्म अमित शाह ने कहा – ‘मोदी चाय वाला, गरीब आदमी’, लोगों का फूटा आक्रोश (तस्वीर – ट्विटर)

‘चोर-चोर मौसरा भाई’ वाली लोक कहावत यूं ही नहीं कही गई है. यह भारतीय जनता पार्टी पर सटीक बैठ रही है. संसद में एक हत्यारा छाती ठोक कर कहता है कि ‘एक अकेला सब पर भारी है.’ तो वहीं दूसरा तड़ीपार ऐलान कर रहा है कि ‘प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक चाय बेचने वाले घर से आते हैं. वह देश को जानते हैं, गरीबी में जिए हैं, इसलिए नीतियां बनाते वक्त उनके मन में कोई कन्फ्यूजन नहीं होती है.’ यह एक ऐसा खुला मजाक है मानो ‘चाय बेचने वाला’, ‘गरीब घर से आने वाला’ उसके तमाम पापों को धोने का सर्टिफिकेट है.

इतिहास गवाह है हर लुटेरा, हत्यारा और बलात्कारी सबसे बड़ा पुजारी होता है. वह ‘हर हर महादेव’ और ‘काली माई की जय’ का उदघोष सबसे ज्यादा जोर से करता है. यहां तक की हत्या, लूट, बलात्कार के लिए भी वह मंदिरों को ही चुनता है और उसके आड़ में अपने पापों के धुल जाने की निश्चिंतता के आत्मविश्वास से लबरेज रहता है. जितना बड़ा पापी, उतना बड़ा पुजारी. पाप का जितना बड़ा घड़ा, उसे रखने के लिए उतना बड़ा मंदिर. यह उपरोक्त तथ्य भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर सटीक बैठता है.

यही कारण है कि मोदी का सिपहसालार गृहमंत्री अमित शाह जब टि्वट करते हुए मोदी के पापों को ढ़कने के लिए ‘चाय वाला’ और ‘गरीबी’ का सर्टिफिकेट बांटते हैं, तब लोगों के गुस्से का उबाल उनके ही टाईमलाईन पर फूट पड़ता है. राजेंद्र कुमार जवाब देते हुए लिखते हैं – ‘सही है ! यह उनकी नीतियों का ही परिणाम है कि जनसंख्या का 83% भुखमरी का शिकार 5 किलो प्रति माह मुफ़्त अनाज पर जीवित है. भारत की 77% संपत्ति पर 10% भारतीय कुंडली मार कर बैठे हैं. राष्ट्रीय आय का 57%, 10% जनसंख्या की जेब में जाता है. नीचे के 50% का आय में हिस्सा मात्र 13% है.’

वहीं, दिल है हिन्दुस्तानी के ट्विटर हैंडल से अमित कुमार लिखते हैं – ‘मस्त जोक मारा हंसो ! इसलिए मोदी जी ने प्रण लिया की मैं प्रतिदिन 10 पोशाक बदलूंगा, सारा पैसा खाऊंगा और फिर सभी को पकोड़े तलने का रोजगार दूंगा और अंधभक्त ताली बजाएंगे कि वो चाय बेच सकते हैं तो हम पकोड़ा क्यों नहीं ! सब गरीबी की कगार पे आ गए हैं. गर्व से बोलो मोदी है !’

इमानदार करदाता नामक ट्वीटर हैंडल से लिखा है – ‘गरीब घर से आने वालों के मन में संवेदना होती है. किसान मरते हैं तो कहता है मेरे लिए मरे ? गरीब को राशन इसलिए देता है ताकि वोट मिल सके. पांव इसके जमीन पर नहीं पड़ते. जनसंपर्क कब का टूट चुका है. देश में महंगाई, बेरोजगारी बेतहशा बढ़ी. छात्र, विदेशी कंपनियां और पेशेवर देश छोड़ कर भागे…’.

ए. के. सिंंह अडानी के फ्रॉड की बात करते हुए कहते हैं – ‘ उसकी डिग्री भी बता ही दो ? और हां ये चाय बेचने वाला और कितने चाय बेचने वाले को एमएलए, एमपी, पार्षद, मंत्री बनाया ? उल्टे ये चाय बेचने बाला हीरा काटने का काम करने वाले अपने खासम खास आई मीन andadani को दुनिया का अमीर आदमी कैसे और क्यों बनाया ?’

देवेंद्र मिश्रा लिखते हैं – ‘वाकई नरेंद्र मोदी एक चाय बेचने वाले के घर से आते हैं, चाय बेचते रहे हैं और विकास का आलम देखिए, अब देश बेच रहे हैं ! अब नरेंद्र मोदी से इससे ज्यादा विकास की और क्या उम्मीद करते हैं ?’ तो वहीं करुणा पाठक सीधे-सीधे पूछ लेते हैं कि – ‘चाचा एक आदमी देश के सामने ला दीजिए जिसने आपके मोदी जी के हाथ से बना चाय पिया हो ? कब तुक देश के सामने आप झूठ परोसोगे ?’

वहीं, एक अन्य लिखते हैं कि – ‘आजतक ऐसा कोई सबूत नहीं मिला जो साबित कर सके की मोदी जी चाय बेचते थे या गरीबी में जीवन काटा है. उनकी पुरानी से पुरानी तस्वीरों में उनके रहन सहन देखकर कोई भी बता देगा उनका गरीबों से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं था और इस बात की तस्वीरें भी मौजूद हैं. साक्ष्य नकारे नहीं जा सकते.’

एक अन्य इस जुमले को पुराना बताते हुए कुछ नया की फरमाइश करते हुए लिखते हैं – ‘ये चाय वाला जुमला कुछ पुराना नहीं हो गया महोदय ? कुछ नया सोचिए –  2024 लोकसभा चुनाव अब दरवाजे पर दस्तक दे चुका है. कुछ ऐसे नए झूठ का आविष्कार करें जो जनता आराम से, बिना सोचे–समझे लपक सके. मेरे खयाल से नेहरूजी भी अब 2024 में आपलोगों का साथ नहीं निभा पाएंगे.’

मो. सलाउद्दीन तंज कसते हुए लिखते हैं – ‘गरीबी में जीए हैं इसीलिए महंगाई बढ़ा दिए हैं ताकि कोई गरीब सिलेंडर खरीद ना सके और वो लकड़ी जलाकर ही खाना बनाए. रुपिया का क्या हुआ ????? डॉलर के मुक़ाबले में कहां खड़ी है ????’ इसी पर एक अन्य लिखते हैं – ‘गरीबी में जिये है तभी तो मंहगाई लगातार बढ़ती जा रही है. झूठे वादों से सरकार बना लेते हैं.’

रवि यादव आगे लिखते हैं – ’80 करोड़ परिवार को मुफ्त राशन देने के लिए धन्यवाद. 80×2 करने पर भी 160 करोड़ की जनसंख्या हो जाती है. बस यही फर्क है शिक्षा में जो हर परिवार को लेनी चाहिए. खैर वो स्मृति ईरानी थी, राहुल गांधी होते उनको मीडिया पप्पू साबित कर देती गप्पूओं की कोई बात नहीं करता.’

मोहन लिखते हैं – ‘जी बिल्कुल नीतियां बनाते वक्त उनके मन में कोई कन्फ्यूजन नहीं होती इसलिए हर नीति और योजना जाति आधारित बनाते हैं.

ओम प्रकाश लिखते हैं – ‘सही कहा. वे गरीब और गरीबी का नब्ज जानते हैं इसीलिए 21 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा में खींच लाए. अब उनकी तादाद 80 करोड़ हो गई. भुखमरी से मरते 80 करोड़ लोगों को पांच किलो अनाज तत्पश्चात वोट पक्का. इन्हें कहां फुरसत है. मित्रकाल में देश बेचने की खबर लें.’

एक भाजपा समर्थक दीपक कुमार लिखते हैं – ‘रहने दो साहब. ये बात और है कि हम भजपा के समर्थक हैं. इसका मतलब ये नहीं कि आप गरीब परिवार के बारे में सोच कर नीति बनाते हैं. अगर ऐसा होता तो एक साल पहले 20 रुपये किलो बिकने वाला आटा 36 रुपये, गैस 1050 का और चावल 32 रूपये नहीं होता. ये गरीबों के लिए ही है न ?? बढ़ाओ दाम हीरे, सोने, चांदी का.’

लक्ष्मी कांत लिखते हैं – ‘तभी कनपुर मे निर्दोष मां बेटी को भाजपा ने जिंदा जलवा दिया. भाजपा स्वर्ण विनाश की ओर तेजी से बढ़ रही है. यदि भाजपा का अंत नही हुआ तो सवर्णो का अंत निश्चित है.’

जनता के आक्रोश को अभिव्यक्त करते हुए सुरेंद्र नारायण लिखते हैं – ‘शायद अब जनता मर्यादा भूलकर तुम लोगों की इस तरह की बयानबाजी सुनके भड़क जाएगी और भाजपा की मोदी सरकार को सरेराह सरेआम गालियाँ देने लगेगी और जूते मारेगी. तो क्या जनता की आवाज़ दबाने के लिए पूरे देश को पुलिस, सीबीआई, ईडी की मदद से जेलों में डाल दोगे ? फिर सोचो तुम क्या खाक राज कर लोगे ?’

कहा जाता है ‘बेशर्मी में बहुत ताकत होती है.’ बेशर्म भाजपा और उसके हत्यारों-बलात्कारियों के गिरोह पर यह सटीक बैठता है.

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One Comment

  1. Harish chandra Gupta

    February 27, 2023 at 12:17 pm

    Very nice article, thank you,

    Reply

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