अमेठी में अमित शाह
अमित शाह की तारीफ इस बात के लिए भी की जा सकती है कि वे पहले आदमी हैं जिन्होंने खुलेआम एक चैनल पर अपने चुनावी घोषणापत्र को जुमला कहने का साहस दिखा सके. इसके पूर्व की तमाम सरकारें अपने पार्टी के घोषणापत्रों व वादों की लम्बी फेहरिस्तों को किसी न किसी बहाने ढकने की कोशिश करते दिखते थे. पर जिस साहस के साथ अमित शाह अपने घोषणापत्रों के बादों को सीधे-सीधे ‘जुमला’ कहकर किनारे लगा दिये और उसके घोषणापत्रों के वादों को पूरा करने की मांग करने वाले को ही बेवकूफ बता दिये, यह भारतीय राजनीति में एक नये युग की शुरूआत को दिखाता है, जिसमें पार्टी की घोषणापत्र कोई मायने नहीं रखता बल्कि इसके घोषणापत्रों पर यकीन करने वाले को ही बेवकूफ बनना पड़ता है. इसके बावजूद भारतीय जनता पार्टी की आगे के चुनावों में की जाने वाली घोषणाओं पर यकीन करना आम जनता के समय और धन की बर्वादी के अलावा और कुछ नहीं हो सकता.
अपने जुमलों की अगली कड़ी को अगली कड़ी को आगे बढ़ाते हुए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह अपने सरकार की बेहिसाब तारीफ करते हुए कहते अमेठी की एक सभा कहते हैं कि ‘‘मोदी सरकार तीन साल में गरीबों, दलितों, महिलाओं, युवाओं, पिछड़ों के लिए 106 योजनाएं लाई है’’ तो देश की आम जनता जो नोटबन्दी जैसे महाघोटाले के बाद जीएसटी जैसी भारी-भरकम अबूझ जंजीरों में जकड़ी जा चुकी है, ने सोशल नेटवर्किंग साईट पर जमकर कोसा है, और भाजपा के मोदी सरकार के मंशा पर ही सवाल उठा दिये हैं. अमन चतुर्वेदी कहते हैं, ‘‘ये सिर्फ जुमलेबाजी है, पहले अपने भ्रष्टाचारी बेटे का हिसाब दो. जुमलेबाजी गाय, गोबर बहुत कर लिए अब.’’ तो वहीं खलक सिंह ठाकुर कहते हैं, ‘‘फायदा गिनाओं योजनाएं मत गिनाओ.’’
वहीं संजीव कुमार ने सीधे-सीधे वह फार्मूला ही पूछ लिया जिससे अमित शाह के बेटे जय शाह ने एक साल में 16 हजार गुना धन कमाया है. उन्होंने कहा है कि, ‘‘भाई साहब, हमें तो वो योजना बताओ, जो 50000 लगाकर 80 करोड़ हो जाते हैं. ताकि सबकी गरीबी हट जाये.’’ तो वहीं प्रमोद बलानियां ने उनके 106 योजनाओं पर तंज कसते हुए कहा है कि, ‘‘जैसे बीएचयू में लड़कियों को पिटवाया, गोरखपुर में बच्चों की मौतें हुई, किसानों को 100 से कम मुआबजा, बेरोजगारी पूरी तरह से खत्म…’’ का है. लक्ष्मण बागुल अमित शाह पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहते हैं, ‘‘मालूम है टकले …, दलितों, महिलाओं, पिछड़ों पर अत्याचार और युवाओं को कर रहे हो बेरोजगार.’’ इस्लाम खान कहते हैं, ‘‘जनता को बेवकूफ समझ रखा. एक तू ही तो अकलमंद है, बाकी जनता बेवकूफ है.’’ विनित दीक्षित कहते हैं, ‘‘जितनी भी योजनाएं आई, भला तो आपके बेटे का ही हुआ अमित शाह जी.’’ मोहम्मद इमरान सवाल उठाते हुए कहते हैं, ‘‘106 लाख युवाओं को बेरोजगारी के कुंए में धकेल दिया. मैंने अपनी जिन्दगी में पहली बार ऐसा विकास देखा है, जो मंहगाई बढ़ा-बढ़ा कर विकास करने की बात कर रहा है. तबियत ठीक तो है न विकास कि ?’’ वहीं ‘विकास पागल हो गया है’ कि तर्ज पर गोल्डी नामदेव ने कहा है कि, ‘‘भाजपा को गुजरात चुनाव की हार का अंदेशा इतना पागल कर चुका है कि चुनाव गुजरात में है और प्रचार अमेठी में कर रहे हैं.’’
लगभग सभी लोगों ने अमित शाह के योजनाओं को ‘‘जुमला’’ ही बताया है. इसके साथ ही यह चुनावी जुमला के तौर पर लोगों ने माना है, जिसका वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं है. आईये, और ढ़ेर से लोग अमित शाह के इस बयान – इसे जुमला भी कहा जाता है – पर अपनी क्या-क्या राय रखे हैं –