Home गेस्ट ब्लॉग अमरीकी चुनाव से सीख

अमरीकी चुनाव से सीख

10 second read
0
0
363

अमरीकी चुनाव से सीख

Suboroto Chaterjee

सुब्रतो चटर्जी

अमरीका में वोटों की गिनती आख़िरी दौर में है. सारे संकेत जो बाईडेन के पक्ष में हैं. चुनावों में अपनी निश्चित हार देख कर ट्रंप ने पोस्टल बैलॉट को रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख़ किया है. यह वही सुप्रीम कोर्ट है, जहांं कुछ दिनों पहले ही ट्रंप ने अपने चमचों को बैठाया था. मतलब साफ है कि ट्रंप को अपनी हार का पूर्वाभास था. ये साधारण जानकारी है.

अब चलते हैं अमरीकी वोटिंग पैटर्न पर. ट्रंप के पीछे रिपब्लिकन पार्टी के धुर समर्थकों के अलावा ग्रामीण क्षेत्र के युवा खड़े दिखे. उनकी सरकार से लाभान्वित हुए पूंंजीपति तो ख़ैर थे ही. सवाल ग्रामीण युवाओं के ट्रंप के पीछे खड़े होने का है ! ज़्यादातर ग्रामीण युवा, ट्रंप में अपना आदर्श देखते हैं. ‘The great American Dream’ एक ऐसी परिकल्पना है, जिसमें व्यक्तिगत आज़ादी, लोकशाही और आर्थिक सामरिक संपन्नता के साथ साथ कहीं न कहीं व्यक्ति पूजा का पंथ भी शामिल है.

दर्जनों विदेशी रक्त और स्थानीय निवासियों से बना हुआ अमरीकी समाज, भारत से ज़्यादा ‘विविधता में एकता’ को प्रतिस्फलित करता है. ट्रंप के समय अमरीका आर्थिक रूप से मज़बूत हुआ, लेकिन, बेरोज़गारी में इतिहास रच दिया. स्वास्थ्य सुविधाओं में कटौती रही और समाज पूरी तरह से विभाजित रहा, जैसे मोदी युग में भारत में है. कोरोना कंट्रोल में ट्रंप असफल रहे, लेकिन देश की जनता की आर्थिक पक्ष को सरकारी अनुदानों से मज़बूत बनाए रखा.

यह एक मिश्रित ईंगित है. दरअसल, ऐसा सोचना कि ट्रंप प्रशासन की नीतियांं, जनता की सेवा के लिए की गई, सत्य से कोसों दूर है. ट्रंप जानते थे कि बेरोज़गारी भत्ता इत्यादि नहीं बढ़ाने पर आम जनता पूरी तरह से उनके विरुद्ध हो जाएगी. आप कहेंगे, चलो इसी बहाने तो जनता का कुछ भला हुआ, लेकिन सच इसके ठीक उलट है.

सब्सिडी और अन्य आर्थिक सहायता, समाजवादी और पूँजीवादी दोनों व्यवस्थाओं में कॉमन है, लेकिन लक्ष्य अलग-अलग है. इस बिंदु को ध्यान से समझने की ज़रूरत है. समाजवादी व्यवस्था में पूंंजी का सार्वजनिक करण करने की प्रक्रिया में, सरकार द्वारा समाज के कमज़ोर वर्गों को आर्थिक सहायता देना, देश की समग्र पूंंजी में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने का प्रयास है.

समाजवादी व्यवस्था का अगला पड़ाव कम्युनिस्ट व्यवस्था है, जिसका उद्देश्य वर्ग संघर्ष को मिटाना है, न कि बनाए रखना. इसलिए, ज़रूरी है कि समाज के बहुसंख्यक इस प्रक्रिया से जुड़े, और जीने-खाने आदि का समान अवसर सुनिश्चित करना इसी दिशा में किया गया एक सराहनीय प्रयास है.

ठीक इसके उलट, पूंंजीवादी व्यवस्था में ऐसी सब्सिडी और भत्ते, समाजवादी क्रांति को रोकने के हथियार के रूप में इस्तेमाल होता है. पूंंजी का सामाजीकरण इनका मक़सद नहीं है, इनका मक़सद असंतुष्ट जनता के मुंंह को ख़ैरात के निवालों से बंद रखना है. मनरेगा से लेकर वर्ल्ड फूड प्रोग्राम तक और खाद्य सुरक्षा क़ानून से लेकर सोवियत क्रांति के बाद यूरोप और अमरीका में अपनाए गए बेरोज़गारी भत्ता की राजनीति को इस नज़रिये से देखने की ज़रूरत है.

अब आईए, इस राजनीतिक प्रशासनिक व्यवस्था के नतीजों की समीक्षा करें. देश और समाज की सामग्रिक पूंंजी पर न्यूनतम भागीदारी के बावजूद, जब आप बेरोज़गारी भत्ता बांंटते हैं, तब आप राजनीतिक रूप से एक लुंपेन वर्ग तैयार करते हैं. इस भत्ते के अनेक रूप हैं. ममता बनर्जी की पश्चिम बंगाल के क्लबों को सहायता के रूप में हो या योगी आदित्यनाथ द्वारा कांवड़ियों और कुंभ मेला में शामिल लोगों को सहायता देना हो. आप इसमें मोदी जी द्वारा चलाए गए जन धन योजना, उज्ज्वला योजना को भी जोड़ सकते हैं.

मतलब ये कि अंबानी को विश्व का चौथा सबसे अमीर बनाने वाली व्यवस्था, जब कोरोना काल में बीस करोड़ ग़रीबों में प्रति माह पांंच सौ रुपए और छ: किलो अनाज बांंटती है, तब आपको इस विरोधाभास के प्रति सचेत हो जाना चाहिए. अब लौटते हैं अमरीका की तरफ़. ट्रंप समर्थक ग्रामीण युवा इसी लुंपेन संस्कृति के वाहक है.

संकटग्रस्त पूंंजीवाद समाज को लुंपेन बनाए बगैर टिक नहीं सकता. इसके लिए ज़रूरी है शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार आदि को जनता की पहुंंच से यथासंभव दूर करना. पिछले चार सालों में ट्रंप ने अमरीका में यही किया है, और भारत में 90 के बाद से इसकी गति ने ज़ोर पकड़ा है. चीन के विरुद्ध आर्थिक युद्ध में लगातार कमज़ोर पड़ते अमरीका की नीतियों में जो बाईडेन के जीत जाने से कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पडेगा, जैसे भाजपा के हारने और कांग्रेस के आने पर नहीं पड़ेगा.

फिर फ़र्क़ कहां है ? है, और बहुत बड़ा है. डेमोक्रेटिक पार्टि की जीत ट्रंप की बेशर्म फासीवाद की हार होगी, ठीक मोदी की हार की तरह. समाज थोड़ा कम बंटेगा नस्लीय आधार पर, ठीक हिंदू मुस्लिम में बंटे मोदी राज में भारत की तरह. लड़ाई जम्हुरियत और सामाजिक समरसता को बनाए रखने की है. United we stand, divided we fall.

Read Also –

 

[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…