कनक तिवारी
वैचारिक लेखन, मानवीय संवेदना के लिए जद्दोजहद, साम्राज्यवादी प्रवृत्तियों की प्रखर आलोचना और संघर्षशील शख्सियत का अभय चोम्स्की को इन्सानियत के लिए बेहद भरोसेमंद और दिलचस्प इंसान बनाते हैं. उनके चुंबकीय गुण वैचारिकों को अन्याय के खिलाफ लड़ने का हौसला देते हैं. एक मुल्क अन्य देश में उजड्ड की तरह घुस जाता है. उसी मुल्क में रहते इस दुर्लभ विचारक से ज़ुल्म का प्रतिरोध करने की सबको ताकत मिलती है. अमरीकी राष्ट्रपति और नोम चोम्स्की दो विपरीत ध्रुवों पर साम्राज्यवादी हविश और उसकी मुखालफत की बानगी में हैं.
अमरीका चोम्स्की की अभिव्यक्ति के निशाने पर है. वियतनाम, निकारागुआ, इराक, जापान सहित दुनिया के कई देशों पर अमरीकी हमले चोम्स्की की नफरत की अटकन में हैं. उनकी सूचनाएं, जानकारियां और सांख्यिकी विश्वसनीयता से लबरेज़ हैं. भाषा विज्ञान जैसा हाशिए का विषय भी उनके उद्यम से अकूत संभावनाएं उकेर देता है. अमरीकी हुक्मरान हरे भरे जंगलों में बारूदी आग लगा देते हैं, चोम्स्की उससे उलट इंसानी ऊष्मा और भविष्यदृष्टि के नवाचार के प्रतीक हैं.
महाबली देश को इतिहास का सच बताने में गुरेज़ नहीं करते कि संवैधानिक और सियासी मूल्यों का अमरीकी प्रोपेगेंडा घड़ियाल की पीठ जैसा सख्त है. उसकी देह को उलट दिया जाए तो नर्म खाल पर 11/9 के दिन की तरह कील गड़कर लहुलुहान कर देती है. समाजवादी, वामपंथी रुझान के चोम्स्की में प्रयोगधर्मिता है. वह चुन चुनकर अमरीकी फितरतों को कसौटी पर चढ़ाकर आदर्शों की निगाह से जांचते चलते हैं. उनका अवदान अमरीकी मूल्यों की फकत आलोचना नहीं है. वे आश्वस्त करते हैं कि दुनिया विकल्पहीन नहीं है.
चोम्स्की कुटिल अमरीकी तंत्र को भौंचक करते हैं, जो परमाणु बटन दबाकर दुनिया को तबाह करने मुगालता पाले ऐंठता रहा है. ‘इतिहास मर गया है’ – उद्घोष चाॅम्स्की ने सुना होगा. ‘पारम्परिक ज्ञानशास्त्र भोथरे हो गए हैं’ – उन्हें यह भी मालूम होगा. ‘मनुष्य आदिम आकांक्षाएं लिए पराजय की खोह में घुस जाना चाहता है’ -यह चिंता भी सालती होगी.
उनके प्रखर व्यक्तित्व में आत्मप्रवंचना से झुलसता ताप नहीं, बल्कि सोंधी मनुष्य-महक का गुनगुनापन है. नये मानवशास्त्र के बाल प्राइमर पढ़ने का बोध भी होता है. चोम्स्की मानव विश्वविद्यालय ही हैं. उंगली पकड़कर चलने अथवा गुरुदक्षिणा में अंगूठा काटकर देने की परम्परा के विद्यार्थियों में अन्यायी अधिकारतंत्र के खिलाफ खीझ, चिड़चिड़ापन और तल्खी की फसल भी उगाना चाहते हैं.
वैश्विक सभ्यताओं की मुठभेड़ की कथित थ्योरी के चलते चोम्स्की के लिए मनुष्य गिनी जाने वाली खोपड़ियों के बदले अणुओं की इकाइयां बल्कि अपने वजूद में अणु समुच्चय है. देश टूटते हैं. इतिहास कराहता है. इन्सानी मूल्य भाप बनकर उड़ रहे हैं. जीवन जीने और केवल जी लेने के बीच का घातक स्पेस वैश्वीकरण के तिलिस्म बाज़ार में सड़ांध सूंघ रहा है. तब भी कई बौद्धिकों के लिए इक्कीसवीं सदी जैसे नवजागरण की शुरुआत है.
चोम्स्की की यशमयी भूमिका दबंग अमरीकी मूल्यों को उनकी औकात या धता बताकर नस्ल सुधारते इतिहाससम्मत बनाने की प्रामाणिकता के तेवर लिए है. चोम्स्की अमरीका में नहीं रहे होते, तो शायद इतने प्रखर और प्रगल्भ नहीं होते. उन्होंने कभी नहीं कहा कि वे ताजातरीन विचारों की परिधि, नवाचार या मौनिकता के प्रस्थान बिंदु के अगुआ हैं. उनमें अतीत की समझ का दंभ और भविष्य की कुंडली पढ़ने का ज्योतिषशास्त्री पोंगापन भी नहीं है.
समकालीन दुनिया जटिल अहसासों का बोधसागर है. उसमें एक साथ ऑक्सीजन और सड़ांध की खों खों है. संसार में एटम के विनाश और एटम द्वारा विनाश के द्वंद्व का आलाप भी है. खण्ड खण्ड टूटते पाखण्ड और विचार को ही मुट्ठी बंद कर लेने का दुस्साहस भी है. वर्तमान समय और मनुष्य की मनुष्य से नफरत का निष्कर्ष और मनुष्य की मनुष्य के लिए करुणा का निकष भी है. ये संकेत सूत्र चोम्स्की को पढ़ते अंदर उगे बियाबान के धरातल पर पड़े मिल जाते हैं.
अमरीकी कुटिलता समकालीन दुनिया का घातक शोशा है. इस पर चोम्स्की की एैयार नज़र है. बाइबिल, शेक्सपियर और कार्ल मार्क्स सहित जो दस विचारकों के चिंतन की दुनिया को यदि ज़रूरत है तो उसमें चोम्स्की का शुमार है. ब्रिटेन और अमेरिका कुछ पिछलग्गू देशों के साथ दुनिया का चेहरा विकृत करते रहते हैं. ये आत्ममुग्ध मसीहा अपने मुंह मियां मिट्ठू हैं. उनका साम्राज्यवादी चेहरा बेशर्मी लादकर बलात्कार भी करने को रोमांस की पहली पायदान समझता है.
वियतनाम नीति को लेकर चोम्स्की ने अमरीका पर सबसे तीखे हमले किये. उनके फतवे में सभी अमेरिकी राष्ट्रपति उनकी थैली के चट्टे बट्टे हैं. जाॅन एफ. केनेडी के कथन को वियतनाम के लिहाज से चोम्स्की अमरीकी-दृष्टि का प्रस्थान बिंदु मानते हैं. चोम्स्की वैध इतिहासज्ञ नहीं हैं, लेकिन उनकी अचूक इतिहास-दृष्टि गवेषणाओं, शोधों और तार्किक व्याख्याओं पर आधारित हैं.
चोम्स्की को कुलीन, उच्चवर्गीय, शालीनता से ओतप्रोत विद्रोही व्यक्तित्व, शहरी संस्कृति का प्रतीक कहने वालों की जमात भी है. एक महिला ने सवाल पूछा था इतनी अधिक कर्मठता से विचार-युद्ध में खप जाने के बाद भी आप मौजूदा इतिहास में वह जगह क्यों नहीं बना पा रहे हैं, जिसके हकदार हैं ? उनकी पुस्तक ‘अंडरस्टैंडिंग पावर’ में इसका सिलसिलेवार उत्तर है. चोम्स्की ने कहा – उन्हें प्रसिद्धि या प्रचार से लेना देना नहीं है. इससे निराश भी नहीं होना है. वे मीडिया या कुलीन क्लबों में वाहवाही लूटने को भी बड़प्पन नहीं मानते.
मार्क्स के लिए चोम्स्की का पूछना है कि मार्क्स के कार्यो में कितना अंश बचाकर रखा जाए, या संशोधित किया जाए या खारिज कर दिया जाए ? मार्क्स की कई उपलब्धियां चोम्स्की की इतिहास-दृष्टि में हैं. मार्क्स की उन्नीसवीं सदी के इतिहास की व्याख्या को वे मानक मानते हैं. खुलासा तो नहीं किया लेकिन इशारा करते हैं कि मानव करुणा के अशेष गायक मार्क्स की चिंताओं से संवेदना की बारिश अब तक हो रही है. मार्क्स की स्थापनाएं और उपपत्तियां खंगाल कर संशोधित या रद्द भी की जा रही हैं. मानव अस्तित्व के अर्थशास्त्र का अप्रतिम चिंतक अपनी अभिधा और व्यंजना में अप्रतिम ही बना रहने के लिए पत्थर की लकीर की तरह स्थायी है.
चोम्स्की का मानना है परमाणु निशस्त्रीकरण संधि ताकतवर मुल्कों की इजारेदारी का ऐलान है कि ऐसे हथियार वे तो रखेंगे. आणविक अस्त्रों का ज़खीरा रखना इन्सानियत के खिलाफ गंभीर अपराध है. तीसरी दुनिया के अधिकांश देश अमरीकी पाखंड से परिचित हैं लेकिन कह पाने का साहस भारत सहित जुटा नहीं पा रहे हैं. चोम्स्की की टिप्पणी है पुरानी आदत छूटते छूटते ही छूट सकती है. भले ही लोग निःशस्त्रीकरण संधि के पाखंड के खिलाफ ठीक से बोल नहीं पा रहे हों.
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