शहीदों की अतुलनीय कुर्बानी के बाद हासिल थोड़ी-सी आजादी के बारे में देश के युवाओं को गीतों के माध्यम से बतलाया जाता था कि ‘हम लाये हैं तुफान से किश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के’ और ‘तुम्हारे हवाले वतन साथियों’ के गीतों की गूंज गानों में गूंजती रहती थी. लेकिन केन्द्र की मोदी सरकार ने इस देश कॉरपोरेट घरानों के हवाले कर दिया है. आज इस कॉरपोरेट घरानों की यह औकात हो गई है कि वह देश की राजनीति और लोगों के भविष्य को तय करने लग गया है.
देश के प्रधानमंत्री पद पर बैठाये गये इस टुच्चे नरेन्द्र मोदी ने खुद के साथ साथ देश की यह हैसियत कर दी है कि वह शेयर बाजार के दलालों (राकेश झुनझुनवाला) और कॉरपोरेट घरानों (अंबानी-अडानी) के सामने हाथ जोड़े नजर आता है. दयनीय फोटोशूट करवाता है और देश की करोड़ों जनमानस के सामने एक दलाल, एक कॉरपोरेट घरानों को महान स्थापित करने की घृणास्पद कोशिश करता है और यह बताने की घृष्टता करता है कि अब देश इसी के हवाले किया जा चुका है. अब यही दलाल और कॉरपोरेट घराना अंबानी-अडानी देश की जनता का भविष्य निर्धारित करेगा.
इसका सबसे ताजा मामला हिमाचल प्रदेश में कार्यरत अंबुजा और एसीसी सीमेंट की कम्पनियों का महज पांच महीने पहले ही अधिग्रहण किया था. उसके बाद पहले एसीसी और ट्रक ऑपरेटर के बीच हुए 15,000 मीट्रिक टन माल ढुलाई को कम कर 5,000 मीट्रिक टन किया. उसके बाद मालिकाना हट हासिल करने वाले अडानी ग्रुप ने भाजपा की सत्ता जाते ही इन कंपनियों के प्लांट को बंद कर 15 हजार लोगों को बेरोजगार बना दिया है.
विदित हो कि दोनों कंपनियां मिलकर सालाना 7 करोड़ टन सीमेंट बनाती हैं. इन दोनों कंपनियों के देशभर में 23 सीमेंट प्लाट्ंस, 14 ग्राइंडिंग स्टेशन, 80 रेडी-मिक्स कंक्रीट प्लांट्स और 50 हजार से ज्यादा चैनल पार्टनर्स हैं और यह देश के सीमेंट उद्योग में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है. अडानी देश की किसी भी कम्पनियों का अधिग्रहण किस तरह सत्ता के सहयोग से बलपूर्वक करती है, यह हम सब देख ही चुके हैं.
पत्रकार गिरीश मालवीय लिखते हैं – एकाधिकार देश के लिए कैसे घातक सिद्ध होता है, क्या आप जानना चाहते हैं ? आज देश का सीमेंट कारोबार अडानी के कब्जे में जा चुका है. देश की दो जानीमानी सीमेंट कारोबारी कंपनियों को इस साल के मध्य में अडानी ग्रुप ने एक साथ खरीद लिया. हम बात कर रहे हैं एसीसी और अंबुजा सीमेंट कम्पनियों की. इन दोनों कंपनियों के हिमाचल प्रदेश में बड़े प्लांट हैं, जो पूरे उत्तर भारत में सीमेंट आपूर्ति में महत्तवपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
पिछले हफ्ते अचानक अडानी ग्रुप ने हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिला के एसीसी और सोलन के दाड़लाघाट स्थित अंबुजा सीमेंट प्लांट को बंद कर दिया. आखिर ये निर्णय क्यों लिया गया, ये जानना दिलचस्प है.
मामला अंबुजा सीमेंट् प्लांट से जुड़ा हुआ है. जब इस प्लांट की स्थापना की गई थी तो इसके मालिक न्योतिया जी थे. सन् 1995 में अंबुजा सीमेंट कंपनी के मालिक व सीमेट फेक्ट्री की जमीन के लिए लिये गये लैंड भू-विस्थापितों में समझौता हुआ था कि परिवार के एक सदस्य को कंपनी में शैक्षणिक योग्यतानुसार नौकरी दी जाएगी तथा वह परिवार क्लींकर व सीमेंट ढुलाई के लिए ट्रक भी खरीद सकता है.
जिनकी जमीनें ली गई उन अधिकांश परिवारों ने टोकन लेकर अपने ट्रक भी संचालित किए तथा परिवार के एक सदस्य को कंपनी में नौकरी भी प्राप्त हो गई. जिन लोगों ने ट्रक ले लिए उन्होंने एक यूनियन बनाई. बाद में ये देश की सबसे बड़ी ट्रक यूनियन बन गईं और मजबूत होती चली गई. इस वक्त ट्रक ऑपरेटर सोसायटियों से जुड़ी यूनियन के करीब पांच हजार ट्रक संचालित होते हैं.
लेकिन जब कुछ महीने पहले अदानी समूह ने इस कंपनी को टेक ओवर किया तो उन्होंने कॉस्ट कटिंग पर काम करना शुरू कर दिया. प्रबंधक वर्ग ने कहा है कि ‘नौकरी व व्यापार इकट्ठा नहीं चलेगा. या तो नौकरी कर लो या ट्रक चला लो.’
दूसरी तरफ अडानी प्रबंधन ने ट्रक यूनियन से ट्रक द्वारा सीमेन्ट ढुलाई की दर को कम करने को कहा. अभी तक ट्रक यूनियन प्रति टन 10 रुपये ढुलाई ले रही थी, उसे अडानी प्रबंधन कंपनी ने 6 रुपये तक करने को कहा. अडानी ग्रुप चाहता है कि ट्रक ऑपरेटर 2005 में किए गए समझौते के हिसाब से 6 रुपए प्रति टन ले जबकि ट्रक ऑपरेटर 2019 वाला रेट मांग रहे हैं, जो कि सही भी है.
यहा दिक्कत यह भी है कि पहाड़ी राज्य होने के कारण हिमाचल में सीमेंट और अन्य माल ढुलाई का ट्रक भाड़ा ज्यादा रहता है. अन्य पहाड़ी राज्यों में भी माल ढुलाई का भाड़ा ज्यादा रहता है। जबकि मैदानी इलाकों में माल ढुलाई भाड़ा पहाड़ों से आधा रहता है। अडानी प्रबंधन चाहता है कि मैदानी क्षेत्रों वाला ही 6 रुपये प्रति टन ढुलाई दी जाए
ट्रक यूनियन वालो का कहना है कि वे साल 2019 के रेट पर ही काम कर रहे हैं, लेकिन कंपनी उन पर रेट कम करने का दबाव बना रही है. ऐसे में जब ट्रक यूनियन ने कंपनी की बात नहीं मानी, तो कंपनी ने नुकसान का हवाला देते हुए दोनों प्लांट को बंद करने का फैसला लिया है.।
इसके साथ ही कुछ महीने पहले अंबुजा और एसीसी ने अपनी सीमैंट महंगी की है, जिसे हिमाचल की नवनिर्मित कांग्रेस सरकार द्वारा कम करने को कहा जा रहा था. अडानी को हिमाचल प्रदेश में बनी कांग्रेस की सरकार फूटी आंख भी नही सुहा रही है.
चूंकि अब तक दोनों कंपनियों के मालिक अलग-अलग थे इसलिए आपस में कॉम्पिटिशन के कारण सरकार और जनता को प्रतिस्पर्धी रेट मिल जाता था लेकिन जैसे ही दोनो प्लांट एक ही आदमी यानी, अडानी ने खरीद लिए तो उसने अपनी मनमानी शुरू कर दी. इन दोनों सीमेंट प्लांट से हिमाचल प्रदेश के हजारों लोगों का रोजगार जुड़ा है. ऐसे में प्लांट बंद होने की वजह से इन लोगों के रोजगार पर खतरा मंडरा रहा है. साथ ही आम आदमी को भी सीमेंट महंगा मिल रहा है.
अगर किसी भी सेक्टर में एक ही कम्पनी रह जाती है और कॉम्पिटिशन समाप्त हो जाता है तो वहां एकाधिकार यानी, मोनो पॉली बन जाती हैं. सीमेंट निर्माण के क्षेत्र में अब अडानी की मोनीपॉली हो गई है और उनके सैया तो है ही कोतवाल !