पुलिस लाइन में तैनात एक महिला सिपाही काफी दिनों से बीमार थी. सिपाही को डेंगू हुआ था. वह काफी समय से छुट्टी मांग रही थी लेकिन उसे छुट्टी नहीं मिल रही थी. जब उसका स्वास्थ्य अधिक खराब हो गया तो उसे पटना के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया. इलाज के दौरान महिला सिपाही की मौत हो गई.
महिला आरक्षी सविता की मौत से ऊपजे विवाद और सैकड़ों की तादाद में आरक्षियों को बर्खास्त और तबादला कर बिहार की आतातायी नीतीश कुमार की सरकार ने निचले स्तर के पुलिसकर्मियों को एक सख्त संदेश दिया है कि उसकी किसी भी जायज मांगों को भी नहीं माना जायेगा. अगर उसने विरोध-प्रदर्शन का सहारा लिया तो उसका यही हश्र होगा, जो उन्होंने किया है – बर्खास्त और तबादला.
विदित हो कि नवनियुक्त महिला आरक्षीकर्मियों के साथ अमानवीय व्यवहार लगातार किया जाता है, जिसके खिलाफ वह आवाज भी नहीं उठा सकती और न ही कहीं शिकायत ही कर सकती है. महिला आरक्षियों ने बातचीत के क्रम में अपना दर्द विभिन्न माध्यमों से जिस प्रकार जगजाहिर किया है वह रौंगटे खड़े कर देने वाला है. महिला आरक्षियों के अनुसार उन्हें छुट्टी की समस्या से ज्यादा पीरियड के दौरान ड्यूटी करने में होती है. किसी भी हालत में उसे ड्यूटी खत्म करने की इजाजत नहीं मिलती जब तक कि वह गिरकर बेहोश न हो जाये. अधिकारी गलती होने पर अपशब्दों का प्रयोग करते हैं. ड्यूटी के दौरान शौचालय की व्यवस्था नहीं होने के कारण दूर जाना पड़ता है. इसी समय किसी अधिकारी के निरीक्षण पर आने पर वह बिना कुछ सुने सीधे रजिस्टर पर अनुपस्थित दर्ज कर देते हैं.
महिला सशक्तिकरण की गाथा गाने वाले केन्द्र वह राज्य सरकार का यह बहशियाना चेहरा तब और ज्यादा उजागर हो जाता है जब बीमार होने पर भी महिला आरक्षी को छुट्टी नहीं मिलती. उसे छुट्टी तभी नसीब होती है जब वह इस दुनिया को ही छोड़ कर चली जाती है. सवाल अनेकों हैं जिसका जवाब भ्रष्टाचार और सत्ता के बहशियाना चेहरा के नीचे दफन है.
ऐसी घटना सारे देश में हो रही है. विगत दिनों बाराबांकी की एक महिला आरक्षी ने भी छुट्टी न मिलने और अधिकारियों द्वारा प्रताड़ित किये जाने के कारण पंखे के लटककर आत्महत्या कर ली. आत्महत्या से पूर्व बाराबंकी की आरक्षी मोनिका ‘सुसाईड-नोट’ लिखी है, जिसमें उसमें अपनी व्यथा इस प्रकार दर्ज की है, “मैं मोनिका, थाना-हैदरगढ़, बाराबंकी में आरक्षी के पद पर नियुक्त हूं. मैं कार्यालय में सीसीटीएनएस पर कार्यरत् होने के बावजूद भी बार-बार बाहर ड्यूटी लगाकर टार्चर किया जाता है जबकि बाकी सीसीटीएनएस पर कार्यरत् लोगों की कहीं बाहर ड्यूटी नहीं लगती है. इस डिपार्टमेन्ट में अगर कुछ खुद के साथ गलत हो रहा है तो उसका विरोध करना गुनाह है, जो भी हो रहा है, चुपचाप सहते जाओ, तब ही शायद सभी खुश रहते हैं. जब मैंने इस चीज का विरोध किया तो कार्यालय में मौजूद मो. रूखसार अहमद, एसएचओ परशुराम ओझा द्वारा मानसिक तौर पर परेशान किया जाने लगा. और गैरहाजिरी भी अंकित करा दी गई.
आज 2़9.10.2018 को जब अपनी छुट्टी लेकर एसएचओ (परशुराम ओझा) के पास गई तो उन्होंने रजिस्टरर फेंक दिया और बोले ‘हम छुट्टी नहीं देंगे. सीओ के पास जाओ.’ मुझे समझ नहीं आता आखिर जिन छुट्टियों पर हमारा हक है, उनके लिए भी हमें उच्च अधिकारियों के सामने भीख मांगनी पड़ती है. आखिर कब तक यह सब कर्मचारियों को झेलना पड़ेगा ? अगर शायद आज छुट्टी दी गई होती तो यह कदम नहीं उठाना पड़ता और न ही रोना व परेशान होना पड़ता.’’
मोनिका ने अपने ‘सुसाईड नोट’ में काफी तफसील से अपनी पीड़ा को साझा किया है. अपने नोट को अंत करते हुए मोनिका अपने परिजन के माफी मांगते हुए लिखती है, ‘‘सॉरी मम्मी-पापा, जो भी आप लोगों के साथ गलत किया हो सके तो माफ कर देना – मोनिका.’’
ऐसे में निचले स्तर के आरक्षी, खासकर महिला आरक्षियों के साथ अधिकारियों व सरकार के अमानवीय रवैये को स-समय दूर किया जाये, अन्यथा सत्ता सिपाही विद्रोह जैसी स्थिति किसी भी समय हो सकती है, जिसका दारोमदार इसी भ्रष्ट और अमानवीय व्यवस्था और सरकार पर होगी.
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