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आखिर क्यों हम इन केंद्रीय बैंकरों के गुलाम बने बैठे हैं?

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[ जब अंकल सैम के सेंटा क्लॉज का हैदराबाद में स्वागत किया जा रहा था तब हमने आपसे एक सवाल पूछा था: “जब बोलीविया जैसे देश केंद्रीय बैंकरों से स्वतंत्रता की घोषणा कर सकते हैं तो भारत ऐसा क्यों नहीं कर सकता है? कृपया मुझे बताएं कि हम केंद्रीय बैंकरों के दास क्यों बने बैठे है ?” इस लेख में इसी सवाल पर शेली कसली द्वारा प्रकाश डाला गया है ]

आखिर क्यों हम इन केंद्रीय बैंकरों के गुलाम बने बैठे हैं?

बोलीविया के राष्ट्रपति ईवो मोरालेस ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा ऋण संगठनों से अपनी सरकार की स्वतंत्रता की घोषणा की है. साथ ही साथ उन्होंने राष्ट्र पर उनके हानिकारक प्रभाव को भी उजागर किया है.

“1944 में आज की तरह एक दिन ब्रेटन वुड्स इकोनॉमिक कॉन्फ्रेंस (USA) समाप्त हुआ, जिसमें IMF और विश्व बैंक स्थापित हुए थे” मोरालेस ने ट्वीट किया. “ये संगठन बोलिविया और विश्व के आर्थिक भाग्य को नियंत्रित करते हैं. आज हम यह कह सकते हैं कि हम उनसे पूरी तरह से स्वतंत्र हैं.“

मोरालेस ने यह भी कहा कि इन सेंट्रल बैंकरों पर बोलीविया की निर्भरता इतनी ज़्यादा थी कि IMF का सरकारी मुख्यालय में कार्यालय हुआ करता था और यहां तक ​​कि उनकी बैठकों में भी हिस्सा लिया करता था.

बोलिविया अब सेंट्रल बैंकरों की पकड़ से मुक्त दक्षिण कॉमन मार्केट का सदस्य बनने की प्रक्रिया में है.

कोचाबम्बा जल युद्ध : 2000 में अमेरिका स्थित बेचटेल कॉरपोरेशन के खिलाफ पानी निजीकरण और संयोजित विश्व बैंक की नीतियों के विरुद्ध बोलीविया का लोकप्रिय विद्रोह कोचाबम्बा जल युद्ध के रूप में जाना जाता है। इस युद्ध ने क्षेत्र के सामने आने वाले कुछ ऋण संबंधी मुद्दों पर प्रकाश डाला. दुर्भाग्य से भारत भी (अपने स्मार्ट सिटी कार्यक्रम से) उसी मार्ग का अनुसरण कर रहा है.

“विश्व बैंक और IMF इन देशों (वैश्विक दक्षिण) को “संरचनात्मक समायोजन (structural adjustment)” स्वीकार करने के लिए मजबूर कर रहे हैं. इसमें विदेशी कंपनियों के लिए देशी बाजारों को खोलना और राज्य संपत्तियों का निजीकरण भी शामिल है”, न्यू यॉर्कर की रिपोर्ट.

पिछले 60 वर्षों में बोलीविया के सब्से बड़े प्रतिरोध संघर्ष ने IMF और विश्व बैंक द्वारा लागू कि जाने वाली आर्थिक नीतियों को लक्षित किया है. अधिकांश विरोध सार्वजनिककरण, निजीकरण के फैसले, मजदूरी में कटौती और साथ ही साथ श्रम अधिकारों के कमजोर होने पर केंद्रित था.

2006 के बाद, मोरालेस सत्ता में आने के एक साल बाद, स्वास्थ्य, शिक्षा और गरीबी के कार्यक्रमों पर सामाजिक खर्च 45% से अधिक बढ़ा है.

क्या भारत भी बोलीविया की तरह केंद्रीय बैंकरों से स्वतंत्रता की घोषणा कर सकता है ?

जबकि बोलीविया ने अपने देश से केंद्रीय बैंकरों को निकाल फेंका है और अपने सबसे मूल्यवान राष्ट्रीय संसाधन ‘जल’ को वापस ले लिया है, भारत सरकार इनही केंद्रीय बैंकरों को खुली बाहों के साथ देश में आमंत्रित कर रही है. यहाँ तक की भारत सरकार हमारी अपनी नदियों और पीने के पानी को बेचने के लिए भी तैयार है.

भयानक जल संकट जिसने भारत के कई हिस्सों को प्रभावित करना शुरू कर दिया था, को हल करने के लिए सरकार ने 10 करोड़ रुपये का अनुदान प्रदान किया. यह अनुदान अग्रणी धारवाड़ विश्वविद्यालय को जल संकट का हल खोजने के लिए आवंटित किया गया था. भारतीय वैज्ञानिकों ने भारतीय धन के साथ काम किया और विश्वविद्यालय ने एक उत्कृष्ट अलवणीकरण प्रौद्योगिकी का उत्पादन किया.

लेकिन जैसे ही इस सरल तकनीक की खोज की गई, यह तकनीक सऊदी अरब को 100 से भी अधिक करोड़ रुपए में बेच दि गई. सऊदी अरब ने अपनी जल अलवणीकरण को लागू करने के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल किया है लेकिन भारत ने आज तक अपने वैज्ञानिकों द्वारा खोजी गई इस तकनीक को लागू नहीं किया है – जो वैसे भी पीने के पानी के लिए आर्कटिक हिमशैल के टुकड़े को अरब देशों में लाने की तुलना में काफी कम है.

सार्वजनिक धन के इस अपव्यय के लिए कोई याचिका दायर नहीं की गई. हमारे देश के सभी नागरिकों के लिए सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने के महत्वपूर्ण क्षेत्र में विश्वास का विश्वासघात करने के लिए कोई याचिका दायर नहीं की गई. दोषी को दंडित करने के लिए कोई जांच नहीं की गई और न ही इस मामले में कोई सुओ-मोटो मुक़दमा दायर किया गया.

इसके बजाय हम खुशी से कहते हैं: “भारत की अपनी नदियां और पेयजल, पेप्सी और कोकाकोला के लिए है” – जिनको एक दशक पहले बोलीविया सहित कई छोटे देशों में से निकाल दिया गया है. ये वही कंपनियां हैं जिन्होंने बोलिविया के समस्त पानी का स्वामी होने का दावा किया था, जिसमें बारिश का पानी भी शामिल था और बेशर्म होकर हम अपनी ही नदियों को इनही कंपनियों को बेच रहे हैं. कृपया मुझे बताएं कि हम इन कंपनियों के ग़ुलाम क्यों बने बैठे है ? क्या आपको गुलामी करने में मजा आता है ? अपना नहीं तो कम से कम अपने बच्चों के बारे में सोचें. क्या आप अपने बच्चों को गुलामी करते देखना चाहते हैं ?

क्या आपको पता है कि छत्तीसगढ़ में 22 साल के लिए नदी को किराए पर ले सकते हैं ? वह भी सिर्फ 1 रुपये प्रति वर्ष की कीमत पर, जबकि हजारों लोग प्यास से मर रहे हैं. क्या आपको पता है मदुरई की पीठ के उच्च न्यायालयने स्थानीय लोगों के खिलाफ थिमिरबारनी नदी से पानी की आपूर्ति करने के लिए तिरुनेलवेली जिले में कोका कोला और पेप्सी के पक्ष में फैसला सुनाया है ? क्या आपको पता है अगस्त 2016 में, कर्नाटक सरकार ने अबू धाबी-आधारित व्यापारी बीआर शेट्टी को 450 करोड़ रुपये में जोग फॉल्स को पर्यटक हॉटस्पॉट में बदलने के लिए बेचने की अनुमति दी हैं ? क्या आप कम से कम अब शर्म महसूस कर सकते हैं या नहीं ?

उसी समय जब बोलीविया ने अपने देश से इन केंद्रीय बैंकरों को निकाल दिया है तो हम भारत में राष्ट्र की हर संपत्ति को उन्हें बेचने के लिए तैयार हो रहे हैं. देश की हर एक संपत्ति बेचने के लिए एक सेंट्रल बैंक बनाया जा रहा है जो कि PARA (सार्वजनिक क्षेत्र की संपत्ति पुनर्वास एजेंसी) के नाम से जाना जाता है. यह विचार भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर, विरल आचार्य ने प्रस्तावित किया था. डिप्टी गवर्नर के रूप में नियुक्त करने से पहले, आचार्य न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय स्टर्न स्कूल ऑफ बिजनेस में एक प्रोफेसर थे. यही स्टर्न स्कूल ऑफ बिजनेस में श्री आचार्य को भारत की थोक बिक्री का विचार आया जो उन्होंने एक शोध पत्र में प्रकाशित किया.

क्या यह विडंबना नहीं है कि आजादी के बाद गत 70 सालों से, यह भारत है जो विश्व बैंक का सबसे बड़ा ऋण प्राप्तकर्ता है – जो अब 102.1 अरब डॉलर तक बढ़ चुका है – 1945 और 2015 के बीच (जुलाई 21, 2015 तक), बैंक की ऋण रिपोर्ट के मुताबिक. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के मुताबिक मार्च 2016 के अंत तक हमारे ऊपर 485.6 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज है.

हम इन ऋणों को कैसे चुकेंगे ? क्या हम कभी भी इन ऋणों का भुगतान करने में सक्षम होंगे ? अगर हां, तो कब तक ? क्या है किसी के पास इस सवाल का जवाब पुरे भारत मै ? देरी या डिफ़ॉल्ट के मामले में इन ऋणों से जुड़ी शर्तें क्या हैं ? क्या आपको कभी सरकार ने इन शर्तों के बारे में बताया है ? अगर नहीं, तो क्या कभी आपने ये सवाल उठाये है ? ट्रोइका (विश्व बैंक, IMF और ECB) द्वारा ऋणग्रस्त ग्रीस, साइप्रस, आयरलैंड, पुर्तगाल, स्पेन और वेनेजुएला की लूट की हालिया घटनाएं सो रहे भारतीयों के लिए एक चेतावनी घंटी होना चाहिए. क्या यह है वो नया भारत जिसका सपना हमें दिन-रात बेचा जा रहा है ? क्या हाल की स्वयं-घोषित राष्ट्रवादी सरकार बोलीविया की तरह इन केंद्रीय बैंकरों की ताकत के सामने निडर होकर खड़े होने का जिगर रखती हैं ? मैं एक बार फिर से आप सभी से पूछता हूँ, आखिर क्यों हम इन केंद्रीय बैंकरों के गुलाम बने बैठे हैं ?

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