गिरीश मालवीय
एयर इंडिया की बोली लगाने एक ऐसी कम्पनी सामने आई है, जिसका पूर्व इतिहास बेहद संदिग्ध है. आश्चर्य की बात है कि भारत का मीडिया और बड़े-बड़े बिजनेस अखबार इस कम्पनी के बैकग्राउंड पर चुप्पी लगाकर बैठे हुए हैं. एयर इंडिया के लिए टाटा समूह की होल्डिंग कंपनी टाटा संस ने सोमवार को समय सीमा समाप्त होने से पहले रुचि पत्र जमा किया. इसके साथ ही एक अनजान-सी कंपनी इंटरप्स इंक ने एयर इंडिया के 209 वरिष्ठ कर्मचारियों ने भी बोली में हिस्सा लिया है, जबकि पायलट और केबिन क्रू का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठन अपने सदस्यों को साफ-साफ बोली में भाग नहीं लेने की सलाह दे रहे हैं.
इंटरप्स इंक एक अमेरिकी सार्वजनिक सूचीबद्ध कंपनी है. 2012 में संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थापित किया गया था. अमेरिका के ओवर-द-काउंटर एक्सचेंज (US OTC) में लिस्टेड इंटरप्स इंक का m-cap केवल 28 मिलियन डॉलर है, लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि यह कंपनी भारत में दिवालिया हो चुकी कई कंपनियों को खरीदने के लिए बोली लगा चुकी है. इंटरप्स इंक ने जिन कंपनियों को खरीदने के लिए बोली लगाई, उनमें दिवालिया हो चुकी लवासा कॉर्पोरेशन, एशियन कलर कोटेड स्टील और रिलायंस नेवल जैसी कंपनियां शामिल हैं.
इस इंटरप्स इंक कम्पनी के शेयर 2016 से वैधानिक जानकारी दर्ज करने में असमर्थता के कारण एसईसी द्वारा यूएस स्टॉक एक्सचेंजों द्वारा निलंबित किये जा चुके हैं. अगर आप इस कम्पनी की वेबसाइट को देखे तो आप कहंगे कि इससे कही अच्छी वेबसाइट 5000 रुपये खर्च कर भारत के छोटे शहर का वेबसाइट डेवलपर बना देगा. इस कंपनी का एकमात्र चेहरा चेयरमैन लक्ष्मी प्रसाद है, जो कहते हैं कि उनके पास अमेरिका और यूरोप में कई एनआरआई इनवेस्टर हैं जो एयर इंडिया को खरीदने के लिए पैसे देने को तैयार हैं. उनके पास एक बड़ा फंड है लेकिन उपरोक्त तथ्यों के संदर्भ में उनका यह दावा संदिग्ध नजर आता है.
दरअसल नए नियमों के अनुसार एयर इंडिया का पूरा-पूर अधिग्रहण (100 फीसदी) नॉन रेसिडेंट इंडियन (एनआरआई) भी कर सकते हैं. पहले एनआरआई के लिए यह सीमा 49 फीसदी थी. इससे पहले एयरक्राफ्ट रूल्स के अनुसार यह कानून था कि किसी विमान सेवा कंपनी में विदेशी कंपनी की हिस्सेदारी 49 प्रतिशत से ज्यादा नहीं हो सकती.
एअर इंडिया के लिए रुचि जताने वाले दस्तावेज में 31 मार्च, 2019 को एअर इंडिया पर कुल कर्ज 60,074 करोड़ रुपये बताया गया है. इसमें से इसके खरीदार को 23,286.5 करोड़ रुपये वहन करने होंगे, जबकि बाकी कर्ज को विशेष उद्देश्य के लिए बनाए गए एअर इंडिया एसेट होल्डिंग्स लिमिटेड को ट्रांसफर कर दिया जाएगा. वास्तविकता यह है कि 23 हजार करोड़ तो छोड़िए कोई अगर 13 हज़ार करोड़ भी लगाए तो सरकार उसे खुशी-खुशी एयर इंडिया सौप देगी.
शुरुआत में यह इंटरप्स इंक हिंदुजा समूह के साथ एयर इंडिया के लिए संयुक्त रूप से बोली लगा रही थी लेकिन अब उसने एयर इंडिया के पूर्व कर्मचारियों के ग्रुप के साथ बोली लगाने का फैसला किया है. जब बिड की बात सामने आई थी तो यह बताया गया था कि एयर इंडिया की बोली में रुचि रखने वाले बोलीदाताओं का नेटवर्थ 3,500 करोड़ रुपये होना चाहिए. लेकिन किस आधार पर इसी कम्पनी को बोली लगाने की अनुमति दी जा रही है, ये समझ मे नहीं आ रहा ?
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