‘द कश्मीर फाइल्स’ नाम से कुख्यात फिल्म जैसी बहियात और देश में साम्प्रदायिक नफरत फैला रही है, उसे दिल्ली में भी टैक्स फ्री किए जाने की बीजेपी की मांग का दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा में बखिया उघेड़ कर रख दिया है. विदित हो कि देश में ब्राह्मणों के लिए अलग ‘देश’ की मांग करने वाले विवेक अग्निहोत्री ने कश्मीर से कश्मीरी पंडितों को ‘भगाये’ जाने को लेकर एक साम्प्रदायिक नफरत से भरी फिल्म बनाया है, जिसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘सच्चा इतिहास’ बताया है.
इसके बाद से ही भाजपा शासित पांच राज्यों में इस फिल्म को टैक्स फ्री कर दिया गया है, और अब दिल्ली में भी टैक्स फ्री करने का मांग कर रहा है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दिल्ली विधानसभा में बहस के दौरान विवेक अग्नीहोत्री की विवादित फ़िल्म ‘द कश्मीर फ़ाइल्स’ को दिल्ली में टैक्स फ़्री करने की मांग पर करारा जवाब देते हुए जवाब दिया –
8 साल केंद्र सरकार चलाने के बाद यदि किसी देश के पीएम को विवेक अग्निहोत्री के चरणों में शरण लेनी पड़े तो इसका मतलब कोई काम नहीं किया, खराब कर दिए हैं इतने साल
कह रहे हैं ‘कश्मीर फाइल्स’ टैक्स फ्री करो, अरे यूट्यूब पर डाल दो फ्री फ्री हो जाएगी. टैक्स फ्री क्यों करा रहे हो ? इतना ही तुमको शौक है तो विवेक अग्निहोत्री को कह दो यूट्यूब पर डाल देगा, सभी लोग एक ही दिन के अंदर फ़िल्म को देख लेंगे.
कश्मीरी पंडितों के नाम पर कुछ लोग करोड़ों-करोड़ों रुपए कमा रहे हैं और तुम लोगों को पोस्टर लगाने का काम दे दिया. आंखें खोलो कि तुम लोग कर क्या रहे हो. वो कश्मीरी पंडितों के नाम पर करोड़ों कमा गया और तुम पोस्टर लगाते रह गए.
हम आपसे झूठी फ़िल्मों के पोस्टर नहीं लगवाएंगे. जो भी करना हो, कम से कम यार ये फ़िल्मों का प्रोमोशन तो करना बंद करो, आप राजनीति में कुछ करने आए थे, कहां झूठी फ़िल्मों के पोस्टर लगा रहे हो.
BJP wants #TheKashmirFiles to be tax free.
Why not ask @vivekagnihotri to upload the whole movie on YouTube for FREE?
-CM @ArvindKejriwal pic.twitter.com/gXsxLmIZ09
— AAP (@AamAadmiParty) March 24, 2022
कश्मीरी पंडितों के पलायन पर बनी ‘द कश्मीर फ़ाइल्स’ बॉक्स ऑफ़िस पर ऐतिहासिक कमाई कर रही है. फ़िल्म ने अब तक ढ़ाई सौ करोड़ रुपए से अधिक कमा लिए हैं. फ़िल्म में 1990 के दशक में कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडितों के ख़िलाफ़ हुई हिंसा और फिर वहां से हुए पलायन को दिखाया गया है. फ़िल्म के समर्थकों का कहना है कि ये फ़िल्म कश्मीरी पंडितों के पलायन की सच्चाई को पेश करती है जबकि यह फ़िल्म बेहद हिंसक है और ये घटनाओं का एक ही पक्ष दिखाती है.
ये फ़िल्म इकतरफ़ा नैरेटिव पेश करती है और मुसलमानों की गलत छवि पेश करती है. इस फर्जी काल्पनिक फिल्म को बनाने के पीछे अग्निहोत्री का एकमात्र मकसद अपार दौलत कमाना है. यही काऋण है कि हाल ही में हरियाणा के एक नेता ने फ़िल्म की फ्री स्क्रीनिंग की घोषणा की थी लेकिन विवेक अग्निहोत्री ने इसका विरोध किया बल्कि धमकी भी दे डाला. यहां तक कि विवेक अग्निहोत्री ने हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को ट्वीट करते हुए लिखा था –
खुले में फ्री में फ़िल्म स्क्रीन करना एक अपराध है. मैं खट्टर जी से इस रोकने की अपील करता हूं.’ राजनीतिक नेताओं को रचनात्मक कारोबार का सम्मान करना चाहिए. सच्चे राष्ट्रवाद और सामाजिक सेवा का मतलब ये है कि टिकट लेकर क़ानूनी तरीके से फ़िल्म देखी जाए.
WARNING:
Showing #TheKashmirFiles like this in open and free is a CRIMINAL OFFENCE. Dear @mlkhattar ji, I’d request you to stop this. Political leaders must respect creative business and true Nationalism and Social service means buying tickets in a legal and peaceful manner. 🙏 pic.twitter.com/b8yGqdrmUh— Vivek Ranjan Agnihotri (@vivekagnihotri) March 20, 2022
विदित हो कि यह काल्पनिक साम्प्रदायिकता से भरी फिल्म देश में संघियों के द्वारा फैलाई जा रही नफरत को खाद-पानी देने का काम कर रही है. यही कारण है कि भाजपा और हिन्दुत्ववादी साम्प्रदायिकता ताकतें देश के कई हिस्सों में फ़िल्म की फ्री स्क्रीनिंग की जा रही है. कई जगह सिनेमाघर बुक करके लोगों को फ़िल्म दिखाई गई है और कई राज्यों में टैक्स फ्री कर जोर-शोर से प्रचार कर रहा है.
कश्मीरी पंडितों के साथ अभी तक ये पार्टियों गंदी राजनीति करतीं थीं।अब उनके नाम पर इन्होंने करोड़ों कमाने शुरू कर दिए
इस फ़िल्म को you tube पर डाला जाए ताकि सब उसे देख सकें।इस फ़िल्म ने 200 करोड़ रुपए से ज़्यादा कमाया है। ये सारा पैसा कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास/कल्याण पर खर्च हो
— Manish Sisodia (@msisodia) March 25, 2022
द कश्मीर फाईल्स मुस्लिम से ज्यादा हिन्दू विरोधी
कश्मीर फाईल्स देखकर निकले आशुतोष कुमार अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर लिखते हैं कि दोस्तों की भारी मांग पर मैंने भी कश्मीर फाइल देख ली. कहना न होगा कि इस फ़िल्म ने मुझे अंतरतम तक विचलित कर दिया है. यह एक हौलनाक हिन्दू विरोधी फ़िल्म है. कहना तो मानव विरोधी चाहिए. किसी फिल्म को समुदाय विशेष के समर्थन या विरोध की फ़िल्म के रूप में देखना ठीक नहीं. लेकिन यह फ़िल्म खुद ही हिन्दू मुसलमान की भाषा में बोलती है. बहुत से लोग इसे मुस्लिम विरोधी फ़िल्म समझ रहे हैं लेकिन यह हिन्दू विरोधी ज़्यादा है.
इस फ़िल्म में दो तरह के हिन्दू दिखाए गए हैं. कुछ तो वे हैं जिनकी इस्लामी आतंकवादियों के साथ सीधी सांठ गांठ है. वे बड़े प्रतिष्ठित और शक्तिशाली लोग हैं. बड़ी एलीट यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर और छात्र हैं लेकिन हिंदुओं के ‘जनसंहार’ में शामिल आतंकियों के मददगार हैं. लेकिन क्यों हैं ? कश्मीर को भारत से अलग कर उन्हें क्या मिलेगा ? फ़िल्म इस पर कुछ भी नहीं बताती. वे ऐसे ही हैं. ऐसा नहीं है कि वे विचारधारा के कारण आतंकवाद के समर्थक हो गए हैं. अगर ऐसा होता तो पल्लवी जोशी के चेहरे पर चालाकी और बेईमानी से भरी हुई मुस्कान हर समय नहीं दिखाई जाती. विचारधारा के कारण स्टैंड लेने वाले लोग मूर्ख हो सकते हैं, कमीने नहीं.
हिन्दू हीरो ऐसा घनचक्कर दिखाया गया है, जिसके पास न बुद्धि है, न विवेक. किसी प्रोफ़ेसर ने समझा दिया तो आज़ादी समर्थक हो गया. किसी और ने समझा दिया तो विरोधी हो गया. उसे कोई कुछ भी समझा सकता है. जब तक कोई और समझाने न आए, वह दी जा रही समझाइश पर कोई सवाल नहीं उठाता. क्या विश्वविद्यालयों में पढ़नेवाले हिन्दू नौजवान ऐसे होते हैं ?
दूसरे तरह के हिन्दू अकल्पनीय रूप से कमजोर, कातर और आत्महीन प्राणी दिखाए गए हैं. क्या कोई हिन्दू अपने बीवी-बच्चों को आतंकियों के सामने बेसहारा छोड़ कर चावल के ड्रम में छुप जाना चाहेगा ? क्या कोई हिन्दू नारी अपने मारे जा चुके पति के खून से भींगे चावल खाना मंजूर करेगी ? क्या इससे भी ज़्यादा अकल्पनीय और हौलनाक कोई बात हो सकती है ?
कमजोर व्यक्ति किसी भी समुदाय में हो सकते हैं लेकिन क्या उन्हें उस समुदाय के प्रतिनिधि चरित्र के रूप में दिखाया जा सकता है ?
बेशक कश्मीरी हिंदुओं के साथ इस्लामी आतंकियों के हाथों बर्बर घटनाएं हुई, मुसलमानों के साथ भी हुई लेकिन यह सच नहीं हो सकता कि स्थानीय हिंदुओं और मुसलमानों ने उनका मुकाबला नहीं किया – राजनीतिक तरीकों से, कलम से या कैमरे से. नहीं करते तो इतनी बड़ी संख्या में मारे ही क्यों जाते !
हजार हों या तीन हज़ार, पर आज भी पंडित वहां हैं. अगर इतनी कम संख्या में भी वे आतंकवाद का मुकाबला कर रहे हैं, तो अपनी पूरी संख्या से साथ भी बखूबी करते ही. उन्हें निकलना इसलिए पड़ा कि अपनी ही सरकार ने उनसे कहा कि उनकी सुरक्षा की गारंटी नहीं की जा सकती, यह सब फ़िल्म में दिखाया नहीं गया है. दिखाया यह गया है कि पिछले जमाने में ईरान से एक मुसलमान आता है और तलवार के जोर से लगभग समूची कौम को मुसलमान बना लेता है, हिन्दू कोई प्रतिरोध नहीं करते !
दिखाया यह गया है कि नए जमाने में कुछ मुसलमान आतंकी आते हैं और लाखों हिंदुओं का ‘जाति संहार’ कर डालते हैं. राज्य में हिंदूवादी राज्यपाल और केंद्र में हिंदूवादी समर्थित सरकार के रहते ! पुलिस फौज की ताकत के होते उन्हें निकलने के लिए सरकार द्वारा बाध्य किया जाता है और एक बार फिर वे किसी भी तरह का कोई प्रतिरोध किए बिना निकल जाते हैं.
किसी भी कौम में दो चार कमजोर चरित्र हो सकते हैं, लेकिन क्या पूरी की पूरी कौम ऐसी हो सकती है ? क्या ऐसे चरित्र हिन्दू कौम के नुमाइंदे हो सकते हैं ? यह फ़िल्म हिंदुओं का पूरी तरह इकतरफा चित्रण करती है. निर्माता-निर्देशक को ऐसा क्यों करना पड़ा ? कुछ सच्ची घटनाओं के सहारे बनाए गए एक झूठे नैरेटिव को लोगों को गले उतारने के लिए ? एक राजनीतिक समस्या को पूरी तरह साम्प्रदायिक रंग देने के लिए ? बेशक एक दौर में कश्मीर में इस्लामी आतंकवाद फला फूला लेकिन वह कश्मीर समस्या की जड़ नहीं, एक परिणति है. यह अकारण नहीं है कि बहुत से कश्मीरी हिन्दू इस फ़िल्म से दु:खी और नाराज़ हैं.
द कश्मीर फाईल्स से किसे फायदा होगा
इस कुख्यात फिल्म से फायदा हिन्दुत्ववादी साम्प्रदायिक ताकत आरएसएस और भाजपा को होगा क्योंकि देश में साम्प्रदायिक नफरत फैलाने का काम यह फिल्म कर रही है, यही कारण है कि भाजपा पूरी ताकत से इस फिल्म के प्रचार में जुट गया है और इसके प्रचार के लिए बड़े पैमाने पर देश की सत्ता का इस्तेमाल किया जा रहा है.
इस फिल्म से सबसे बड़ा फायदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को होना है क्योंकि कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से भगाने में तत्कालीन प्रधानमंत्री वी. पी. सिंह, आडवाणी, जगमोहन के साथ-साथ वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सबसे बड़ी भूमिका थी क्योंकि भाजपा की ओर से कश्मीर प्रभारी नरेन्द्र मोदी ही था. चूंकि वर्तमान में अन्य सभी जिम्मेदार अपराधियों में केवल नरेन्द्र मोदी का ही राजनीतिक जीवन बचा है, इसीलिए इस झूठ पर आधारित तथ्यहीन फिल्म का सबसे बड़ा फायदा नरेन्द्र मोदी को ही होना है.
इस फिल्म का अगला जिसे सबसे बड़ा फायदा है वह है विवेक अग्निहोत्री. एक फ्लॉप ‘डायरेक्टर’ विवेक अग्निहोत्री इस फिल्म से करीब ढ़ाई सौ करोड़ रुपये अब तक कमा चुके हैं और वह ऐसी कोई संभावना नहीं छोड़ना चाहता जिससे उसकी कमाई पर असर पड़े.
हमें क्या करना चाहिए
- कश्मीरी पंडितों के पलायन के असली जिम्मेदार भाजपा और आज के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भूमिका का बड़े पैमाने पर पर्दाफाश करना चाहिए.
- 1990 में दर्जनों कश्मीरी पंडितों के हस्ताक्षरयुक्त पत्र, जो अलसफा अखबार ने प्रकाशित किया था, उसका बड़े पैमाने पर पढ़ने के लिए सुलभ कराया जाये.
- इस फिल्म का विरोध या समर्थन करने के बजाय इसके झूठे और काल्पनिक ‘तथ्यों’ का भण्डाफोड़ करना चाहिए क्योंकि इसी झूठे और काल्पनिक ‘तथ्यों’ को भारत सरकार के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘सच्चा तथ्य’ बतलाया है.
- देश में साम्प्रदायिक नफरत फैलाने के खिलाफ साम्प्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देना चाहिए.
- द कश्मीर फाईल्स फिल्म से पंडितों के नाम पर कमाई गई सारी राशि कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास हेतु एक कमेटी के माध्यम से उपयोग में लाई जाये.
- इस फिल्म के बहाने कश्मीरी राष्ट्रीयता की लड़ाई का समर्थन करना होगा और भारत सरकार और उसकी सेना के कश्मीरी जनता पर चलाये जा रहे क्रूर दमन जो युद्ध का रुप ले लिया है, के खिलाफ उठ खड़ा होना होगा.
यही कुछ तरीके हैं, जिसे तत्काल अपनाया जाना चाहिए क्योंकि कश्मीर में हिंसा और पलायन का सीधा जिम्मेदार भारत सरकार की विस्तारवादी नीतियां हैं, जिसे नरेन्द्र मोदी की हिन्दुत्ववादी सरकार ने और तीखा बना दिया है.
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