रविश कुमार
सेना में भर्ती की तैयारी करने वाले नौजवानों में अग्निपथ योजना को लेकर नाराज़गी बढ़ने लगी है. सोमवार को इस योजना का एलान हुआ था कि सैनिक अब अग्निवीर कहे जाएंगे लेकिन मंगलवार दोपहर तक भावी अग्निवीर आगबबूला हो गए. सड़कों पर उतरने के बजाए इन आगबबूला वीरों को व्हाट्स एप ग्रुप में अपने रिटायर्ड अंकिलों से पूछना चाहिए कि क्या वे चार साल के लिए सेना में भर्ती होना चाहेंगे ? क्या वे इस देश के युवाओं के लिए अपने व्हाट्स एप ग्रुप में यही सपना देख रहे थे ?
चार साल के लिए भर्ती होगी, फिर जिन लोगों की भर्ती होगी, उनमें से 75 प्रतिशत जवान चार साल के बाद सेना से निकाल दिए जाएंगे. 25 प्रतिशत ही रहेंगे. केंद्र सरकार के इस फैसले से नाराज़ युवाओं ने आज कई जगहों पर प्रदर्शन किया है. बिहार में रेल रोकी गई है. यूपी के मुज़फ्फरनगर में भी प्रदर्शन हुए हैं. हरियाणा से लेकर राजस्थान तक में. ऐसा लगता है जैसे सेना में मनरेगा शुरू हुआ है, जैसे मनरेगा में सौ दिनों के काम की गारंटी है, उसी तरह से सेना युवाओं को वीर बनने के लिए चार साल की गारंटी दे रही है.
पिछले हफ्ते, नियम बदल कर सेना से रिटायर हो चुके अफसरों को चीफ आफ डिफेंस स्टाफ बनाने का बंदोबस्त किया गया है, अब इस हफ्ते, नियम आया है कि चार साल में ही जवान को बोरिया-बिस्तर समेत सेना से बाहर कर दिया जाएगा. आशंका है कि निकाले जाने के बाद गांव-गांव में इन अग्निवीरों को निष्कासित वीर कहा जाने लगेगा यानी ऐसा वीर जिसे सेना ने निकाल दिया हो. कमाल की बात है कि इस कमाल की योजना के बारे में पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वी. के. सिंह नई योजना का बचाव तक कर पाए. जनरल वी. के. सिंह, जो कि मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री हैं, कहते हैं कि पहले ज़मीन पर उतर जाए तब पता चलेगा कि कैसी योजना है.
क्या वाकई जनरल वी. के. सिंह को इस योजना के बारे में कुछ भी नहीं पता जिससे वे दो फायदे ही गिना सकें ? फ्रांस इज़राइल और जर्मनी की सेना से यह मॉडल आया है तो इसकी जानकारी तो होगी ही. सेना का इतना लंबा अनुभव रहा है, कम से कम दो फायदे ही गिना देते. ऐसा क्यों है कि अग्निपथ नामक इस योजना में युवाओं को अग्नि ही अग्नि नज़र आ रही है, पथ का पता नहीं चल पा रहा है ?
कितनी धूमधाम से इस योजना को लांच किया गया. इसके पहले ख़बरों के माध्यम से कई हफ्ता पहले अखबारों में माहौल भी बना दिया गया. रक्षा मंत्री आए, तीनों सेनाओं के प्रमुख आए. अग्निवीरों को चार साल बाद जब निकाला जाएगा तब ये अर्ध सैनिक बल और पुलिस में जा सकते हैं. क्या युवा और ऊर्जावान रहने का हक पुलिस और अर्धसैनिक बलों को नहीं है ?
जो सैनिक चार साल बाद सेना के लिए फिट नहीं होगा, वह अर्ध सैनिक बलों और पुलिस के लिए कैसे फिट होगा ? सीमा सुरक्षा बल तो सीमाओं पर रहता है, ITBP भी मुश्किल पहाड़ों में तैनात रहती है, इनके अफसर ही कहते हैं कि हमारी भूमिका भी सेना के जैसी ही है. किसी ने सोचा कि चार साल बाद जिन 75 फीसदी जवानों को निकाला जाएगा, उनके मनोबल पर क्या असर पड़ेगा ?
जिन विभागों की नौकरियों के इंतज़ार में साल साल निकल गए, उनकी इच्छा के नाम पर इस योजना का फायदा गिनाया जा रहा है कि वे अपनी नौकरियों में प्राथमिकता देंगे. चार साल लगाकर तैयारी करो और चार साल में बाहर आ जाओ. क्या इसके लिए ट्रेनिंग देकर प्राइवेट सेक्टर के हाथ में सैनिकों का दस्ता सौंपा जा रहा है ? यह भी सवाल उठ रहा है.
क्या कोई नहीं पूछेगा कि आपमें कुछ तो कमी होगी जिसके कारण 25 प्रतिशत में नहीं आए, तो आपका रेट यानी आपकी सैलरी कम होगी, इस तरह से प्राइवेट सैलरी के बाज़ार में सैनिकों का भी भाव गिर जाएगा. इसकी क्या गारंटी है कि चार साल में रिटायर कर देने का फार्मूला अर्ध सैनिक बलों और पुलिस के लिए नहीं आएगा ? जो फार्मूला सेना में चल जाएगा वो इनमें क्यों नहीं चलाया जाएगा ?
क्या 45-55 साल के अफसरों के होने से किसी देश की सेना नहीं बुढ़ाती है ? सेना के अफसरों को भी क्यों न चार साल में निकाल दिया जाए ? अगर युवा होती भारत की आबादी को अधिक से अधिक मौका देने के लिए यह योजना लाई गई है तो साफ है कि सरकार के पास नौकरी के अवसर पैदा करने की कोई नई योजना नहीं है. अलग-अलग देशों की किताबों से मटीरियल चेंप कर एक नई किताब बनाई गई है, इसका नाम ऐसा रखा गया है जैसे अमिताभ बच्चन की फिल्म अग्निपथ रिलीज़ होने वाली हो.
IAS, IPS, सांसद, विधायक, राज्यपाल और राष्ट्रपति को भी चार साल में रिटायर कर देना चाहिए. इन पदों पर 21 साल के बाद किसी की नियुक्त नहीं हो. इस तरह से भारत चार साल में भूतपूर्व हो जाने वालों का अभूतपूर्व राष्ट्र बन जाएगा. इस योजना का नाम अग्निपथ नहीं होना चाहिए था, इसका नाम होना चाहिए – ‘भरी जवानी में भूतपूर्व बनाने की अभूतपूर्व योजना.’
क्या यह नियम इसलिए लाया गया है कि लाखों की संख्या में युवा सेना की भर्ती का रास्ता छोड़ दें और दूसरी नौकरियों का रास्ता देखें ? क्या इसीलिए जिस दिन अग्निपथ की घोषणा हुई उसी दिन पहले यह बयान आता है कि डेढ़ साल में दस लाख भर्तियां होंगी ? कोरोना के कारण सेना में भर्तियां बंद थीं. जबकि चुनावी रैलियां हो रही थीं. लाखों नौजवानों के सपने टूट गए क्योंकि उनकी उम्र सीमा समाप्त हो गई. यूपी चुनाव में युवा पांच मिनट के लिए नाराज़ हुए तो केंद्रीय मंत्री संजीव बलियान ने रक्षा मंत्री को पत्र लिखा. छात्र अभी तक कह रहे हैं कि सरकार ने उम्र के बारे में कुछ नहीं किया.
ऊपर नीचे हो रहे इन पांवों में भारत के गांव बसते हैं, जहां के गरीब नौजवान अपने शरीर पर ही सारा अभ्यास करते हैं ताकि एक नौकरी मिल जाए. अच्छी शिक्षा से वंचित इन नौजवानों के पास अच्छी नौकरी के विकल्प के रूप में सेना और पुलिस की ही नौकरी बची रहती है और उसके लिए बचा रहता है एक शरीर, जिसे दिन रात धूप में तपा कर ये सैनिक बनते हैं, सिपाही बनते हैं. सोचिए आज इनके पांव कितनी मुश्किल से हवा में ऊपर नीचे कर रहे होंगे, जब पता चला है कि भर्ती के बाद चार साल की ही नौकरी होगी.
इन नौजवानों ने हर गलत का समर्थन किया. बिना नियम कानून के किसी के घर पर बुलडोज़र चला तो सपोर्ट किया, महंगाई का सपोर्ट किया, गोदी मीडिया पर नफरती डिबेट का समर्थन किया, खाने पीने के नाम पर किसी को भीड़ ने मार दिया तो उसके समर्थक भी कम नहीं निकले, अच्छा खासा एक मुल्क इनके सपनों में धर्म का चेहरा लेकर आने लगा, देश को धर्म के आधार पर देखते देखते इनके पांवों में ऐसे नियम बांध दिए गए हैं जिनका धर्म से कोई लेना देना नहीं. जिनका फ्रांस, इजराइल से लेना देना है.
सितंबर 2013 में हरियाणा के रेवाड़ी में भूतपूर्व सैनिकों और अफसरों की एक बड़ी रैली होती है. इस रैली में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी बुलाए जाते हैं और वन रैंक वन पेंशन की मांग का समर्थन करते हैं. इसी रैली में नरेंद्र मोदी अपने बचपन का एक सपना बताते हैं कि वे सैनिक स्कूल में पढ़ना चाहते थे. सेना में भर्ती होना चाहते थे. भूतपूर्व सैनिकों में मोदी को लेकर जोश आ जाता है.
सरकार बनती है, वन रैंक वन पेंशन का पता तक नहीं, अब वही भूत पूर्व सैनिक यानी अफसर आंदोलन करते हैं. जंतर मंतर पर बैठते हैं. वहां उनकी वर्दी और मेडल फाड़ डाले गए. कई हफ्तों तक धरना चला, गोदी मीडिया ने कवर करना छोड़ दिया बल्कि जितना भी कवर किया, भूतपूर्व अफसरों के धरने पर हमला ही किया. उनकी मांग को ज़िद बताया. उधर सरकार के लिए वकालत करने वाले भूतपूर्व सैनिकों और अफसरों की कमी नहीं थी.
गोदी मीडिया के ऐंकरों ने उन्हें डिबेट में बुलाया, सरकार से सवाल करने वालों को देशभक्ति औऱ सेना के नाम पर ललकारा, गद्दार ठहराया. बहस में एक भूतपूर्व सैनिक अफसर की मौजूदगी अनिवार्य हो गई, जो जेएनयू के छात्रों से लेकर अरुंधति रॉय और अन्य लोगों को गद्दार बताते, देशभक्ति का पाठ पढ़ाने के लिए तिरंगा लहराने की नसीहत देने लगे. फ्लैशबैक में याद कीजिए, याद आएगा कि कैसे भूतपूर्व जनरलों, मेजरों की आड़ में गोदी मीडिया ने अपनी पत्रकारिता जूतों से रौंद दी, दर्शकों को लगा कि जनरल बोल रहे हैं तो कभी ग़लत नहीं बोलेंगे.
इसी तरह के डिबेट में मेजर जनरल जी. डी. बख्शी का गुस्सा देखते बनता था, अब जब यही मेजर जनरल जी. डी. बख्शी अग्निपथ योजना की आलोचना कर रहे हैं तब इसका मतलब है कि इस योजना में बहुत कुछ अच्छा नहीं है. अक्षय कुमार तो आज इतिहासकार बने हैं, उनसे बहुत पहले हम सभी के सबसे सम्मानित मेजर जी. डी. बख्शी ने The Sarasvati Civilisation पर किताब लिख चुके हैं.
यही नहीं सेना से होने और देशभक्ति के नाम पर बीजेपी के करीब सरकते जाने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह भी इस योजना का विरोध कर रहे हैं. लेकिन आपको अग्निपथ योजना पर शक करने से पहले रिवाड़ी का यह भाषण सुन लेना चाहिए ताकि याद रहे कि प्रधानमंत्री सेना को कितना प्यार करते हैं.वे जिससे भी प्यार करते हैं, किसी से भी ज्यादा प्यार करते हैं.
प्रधानमंत्री सैनिक नहीं बन सके, सैनिक स्कूल नहीं जा सके. इसके लिए प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने एक सपना देखा और उस सपने को 2021-22 के बजट में साकार कर दिया गया कि राज्य सरकारें, NGO और प्राइवेट स्कूलों की मदद से 100 सैनिक स्कूल बनाए जाएंगे. PIB की रिलीज़ है कि इस साल 26 मार्च को सरकार ने 21 नए सैनिक स्कूल बनाने की मंज़ूरी दे दी है. विपक्ष ने कहा था कि सैनिक स्कूलों का निजीकरण है और यह आरएसएस के लिए है. फिर से कहता हूं इस दौर को कहानी की तरह देखिए. 2014 के बाद सेना राजनीति की सहायक नदी बन कर आती है, मुख्यधारा बन जाती है और अब फिर से सहायक होती हुई किनारे जाते नज़र आ रही है.
यही समझना है. जो जोश सेना से राजनीति में आता था, अब धर्म से आने लगा है. पहले सेना के नाम पर कई गलत चीज़ों को सही बताया गया, अब इसकी जगह धर्म की रक्षा ने ले ली है.धर्म के नशे में डूबा समाज किसी अत्याचार को गलत नहीं मानता. अब वह राजनीति के ज़रिए एक धर्म राष्ट्र का सपना देखने लगा है. उसके लिए गांव गांव में धर्म की राजनीति करने वालों की सेना बना दी गई. तभी मैंने कहा कि ये युवा एक नीति से नाराज़ हो . सकते हैं, राजनीति से नाराज़ नहीं होंगे क्योंकि धर्म से नाराज़ नहीं हो सकते हैं. सेना से आप चार साल में निकाल सकते हैं, धर्म से तो मरने के बाद भी नहीं निकाल सकते.
अग्निपथ योजना में साफ-साफ लिखा है कि चार साल बाद एकमुश्त सेवा निधि दी जाएगी, जिस पर कोई आयकर नहीं लगेगा लेकिन ग्रेच्युटी और पेंशन संबंधी लाभों का कोई अधिकार नहीं होगा. पेंशन नहीं, ग्रेच्युटी नहीं. क्या वन रैंक वन पेंशन के झंझट से छुटकारा पाने का यह रास्ता निकाला गया है ? याद कीजिए, वन रैंक वन पेंशन के सहारे राजनीति का सेना में प्रवेश होता है और अब सेना से ही पेंशन को बाहर किया जा रहा है. अब तो नौकरी ही चार साल की होगी तो पेंशन कहां से मिलेगी !
इस योजना की प्रचार सामग्री देखकर लगता है कि फिल्म तीसरी कसम की नाटक कंपनी के टिकट का पोस्टर लगा है. लिखा है कि प्रथम वर्ष का आकर्षक पैकेज 4.76 लाख. चौथे साल में लगभग 6 लाख 92 हज़ार तक की बढ़ोत्तरी हो सकती है. जोखिम और कठिनाई के भी भत्ते मिलेंगे. चार साल बाद करीब 12 लाख की सेवा निधि दी जाएगी, जिस पर टैक्स नहीं लगेगा. इस सेवा निधि में अग्निवीर को अपनी मासिक सैलरी का 30 प्रतिशत देना होगा. सरकार भी इतना ही देगी. चार साल की सेवा के दौरान अग्निवीरों को 48 लाख का जीवन बीमा भी मिलेगा.
भारत एक ग़रीब देश है. हेडलाइन में सुपर पावर और अमीर देश है जबकि 25000 हज़ार महीने का कमाने वाला भारत में टॉप टेन में आ जाता है, हो सकता है इस नए पैकेज के लिए मजबूर युवा दिन रात गर्मी बरसात में दौड़ना शुरू कर दें और अग्निपथ योजना सफल घोषित कर दी जाए.
एक और चीज़ दिखाई दे रही है. युवाओं में सेना की तैयारी करने वाला वर्ग अलग होता है. हो सकता है यह वर्ग कुछ समय के लिए नाराज़ हो लेकिन यह नाराज़गी सारे युवाओं में न फैले इसके लिए इस पैकेज में उनके लिए भी सपने हैं. जैसे कहा जा रहा है कि ITI और पोलिटेक्निक से भी अग्निवीर बनाए जाएंगे. ताकि कुछ लोगों को लगे कि सपना टूट गया तो कुछ लोगों को लगे कि नया सपना हाथ लग गया.
मैं नहीं कहना चाहता कि सेना की तैयारी करने वालों से तैयारी पर उनका दावा खत्म कर दिया गया है लेकिन सैनिकों का नया नाम दिलचस्प है. शूरवीर नहीं, क्रांतिवीर तो बिल्कुल नहीं, महावीर तो और भी नहीं, अग्निवीर रखा गया है. जवानों के सीने में अग्नि की ज्वाला ज्यादा देर तक धधकती रहे, ठीक नहीं होगी, इसलिए उन्हें चार साल में निकाल दिया जाएगा ताकि उसके बाद यू-ट्यूब पर जितेंद्र और हेमा मालिनी की फिल्म ज्योति बने ज्वाला देखते रहें.
मामला हाई फाई लगे इसलिए औसत उम्र टाइप की बातें हो रही हैं कि सेना के जवानों की औसत उम्र 33 साल है, अब 26 साल होगी. 33 साल का जवान क्या इतना सुस्त और बेकार होता है ? इसी औसत उम्र से तो भारत का जवान दुश्मनों के छक्के छुड़ाता है, टाइगर्स हिल्स पर तिरंगा फहरा देता है, कब से 33 साल की उम्र सेना के लिए बेकार हो गई ? और किस आधार पर ? इस साल 46000 अग्निवीर की भर्ती होगी.
प्रधानमंत्री मोदी से ज्यादा एक जवान का दर्द जवान भी नहीं समझ सकते हैं. अब जवानों को चार साल से ज़्यादा सेवा का दर्द नहीं हो, तभी तो इतनी सुंदर योजना बनी है. यकीन न हो तो सितंबर 2013 की रेवाड़ी की रैली में दिया उनका भाषण सुन लें.
जो लाभ खुद प्रधानमंत्री को उनके बचपन में नहीं मिला, शायद वही लाभ वह आप युवाओं की जवानी में देना चाहते हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने छोटी सी उम्र में जवानों को चाय देना, नाश्ता देना, पैर छूने का काम किया है. वो भी कई दिनों तक. यह भाषण इसलिए सुनाया ताकि नौजवान प्रेरित हो सके. ज़रूरी नहीं कि अमर चित्र कथा के नायकों से ही आप प्रेरणा ग्रहण करें, अक्षय कुमार से ही प्रेरणा ग्रहण करें, आज की राजनीति के महान नायकों से भी प्रेरणा लेनी चाहिए. इसके बाद भी अगर नौजवान अग्निवीर योजना से नाराज़ हैं तो यह सरासर सरकार की नहीं, गोदी मीडिया की विफलता है.
भारत के युवाओं ने जिस तरह से बिना किसी अदालती प्रक्रिया के किसी का घर ढहा देने की कार्रवाई पर ख़ुशी ज़ाहिर की है, भरोसा रखना चाहिए कि जल्दी ही ये युवा अग्निपथ योजना का भी समर्थन करेंगे. जब दूसरों का घर ढहा देना भा सकता है तो अपना घर बनने से पहले ही ढहा देने की कार्रवाई पे वे दिल लुटा देंगे.
यही वो युवा हैं जिनमें से ज्यादातर महंगाई और बेरोज़गारी का सपोर्ट करते रहे हैं, जज के फैसले से पहले बुलडोज़र का फैसला मंज़ूर करते रहें, इन पर भरोसा रखिएगा और गोदी मीडिया की ताकत पर भी. युवा चाहे तो मेरी यह बात लिखकर ऊपर की जेब में रख लें. वे अग्निपथ पर लथपथ-लथपथ होकर दौड़ते रहेंगे.
असल में आज के दौर में ऐसा हो ही गया है कि हर चीज़ में हर चीज़ दिखाई देती है. कोई चीज़ ऐसी नहीं जिसमें वो चीज़ नहीं दिखाई देती, जिसने हर चीज़ को रौंद दिया और जिसका स्वागत सबने किया. इस योजना से भारतीय सेना की क्षमता पर क्या असर पड़ेगा, इसके लिए आप अंग्रेज़ी बोलने वाले संपादकों के यू-ट्यूब वीडियो को ज़रूर सुनें. अंग्रेज़ी में उनकी बात न समझ आए तो केवल दो शब्द पर कान टिका कर रखिए. अगर उनके वीडियो में बार बार Reform, geo political आता है तो समझिए कि योजना शानदार है. जियो का मतलब रिलायंस जियो और उसकी पोलिटिक्स नहीं होती है. जियो पोलिटिक्स अलग चीज़ होती है.
अग्निवीर, अग्निवीर, अग्निवीर, थोड़े से युवा नीति से नाराज़ हैं, राजनीति से नहीं. खेल समझिए. करोड़ों युवा अलग-अलग नौकरियों की तैयारी करते हैं. भर्ती की नीति को लेकर सभी के मन में सवाल नहीं उठे, इसलिए कहा गया कि इसमें आईटी और पोलिटेक्निक को भी मौक़ा मिलेगा, जैसे पहले नहीं मिलता रहा होगा. जब सेना की भर्ती की तैयारी करने वाले अग्निपथ योजना को लेकर आशंकित होंगे, तो आईटी के लाखों छात्र आशान्वित होंगे कि उन्हें मौक़ा मिल रहा है.
इसी तरह आप देखेंगे कि अग्निपथ के लांच होने से पहले प्रधानमंत्री मोदी ट्विट करते हैं कि डेढ़ साल में दस लाख भर्तियां होंगी, ताकि युवाओं का वर्ग अलग-अलग फ़ैसलों और बोलियों के आधार पर बंट जाए और जो विरोध करेंगे वो चंद नज़र आए. इसलिए कुल मिलाकर युवाओं को ठगने वाली नीतियों को इस तरह लांच किया गया कि वे समग्र रुप से देख ही न सकें. अपने फ़ायदे और नुक़सान के आधार पर आधे इधर, बाक़ी उधर में बंट जाए.
इसलिए मेरी राय में जैसा कि पहले आपने किया है, हर ग़लत नीतियों का विरोध किया है, यह कहा है कि मोदी जी जो कर रहे हैं, सोच समझ कर ही कर रहे हैं, इस नीति का भी विरोध मत कीजिए. समर्थन में रहिए. इस समय नौकरी बड़ा प्रश्न नहीं है. धर्म है. जिसकी राजनीति आप काफ़ी शानदार तरीक़े से कर रहे हैं. मुझे पूरा विश्वास है कि इस मामले में आपने जितनी तैयारी की है, आप रिज़ल्ट के लिए भी क़ुर्बानी देंगे. मैं चाहूंगा कि ग़लत हो जाऊं लेकिन आप युवा हमेशा मुझे सही साबित करते हैं.
विपक्ष को नीतियों की आलोचना करनी चाहिए लेकिन नाराज़गी के नाम पर होने वाले प्रदर्शनों से बचना चाहिए. सरकारी भर्तियों को लेकर विपक्ष ने काफ़ी उम्मीद से आवाज़ उठाई, मगर युवाओं ने उनका आभार जताते हुए वोट कहीं और दिया. विपक्ष को अब वोट नहीं मिलेगा. ऐसे हर व्यक्ति से दूर रहें जो ऐसे प्रदर्शनों और नाराज़गी में अपने लिए उम्मीद रखते हैं. हो सके तो इस प्राइम टाइम में कही गई मेरी बात को याद रखें.
‘युवा नीति से नाराज़ हैं, राजनीति से नहीं. सेना से चार साल में निकाल दिए जाएंगे लेकिन धर्म से मरने के बाद भी कोई नहीं निकाला जा सकता.’ आप देखिएगा, शुरुआती विरोध के बाद युवा इसे बढ़-चढ़ कर स्वीकार करेंगे. चूंकि विरोध कर रहे हैं तो कवर करने में बुराई नहीं है, बस इस विरोध में विपक्ष बनने की उम्मीद में बुराई है क्योंकि इन्हीं युवाओं ने जनता के बीच बनने वाले हर तरह के विपक्ष का विरोध किया है और कुचला भी है.
सांप्रदायिक युवाओं की ताली कभी मत लीजिए. मैंने अपने फ़ेसबुक पेज पर कई बार लिखा है. मुझे सांप्रदायिक युवाओं का हीरो नहीं बनना है. मैं युवाओं से दो या तीन प्रतिशत ही उम्मीद करता हूं कि वे प्रिय राजनीतिक दल का समर्थन करते हुए उसकी कुछ ग़लत नीतियों का विरोध कर सकते हैं. आज के युवा अपने प्रिय दल का समर्थन करने के लिए एक नहीं, हर तरह की ग़लत नीतियों को गले लगा लेते हैं. अब इससे ज़्यादा साफ-साफ भारत के युवाओं से मेरे अलावा कोई और नहीं बोल सकता, इसलिए युवा मुझे पसंद भी करते हैं. उन्हें पता है कि मैं भी उन्हें ठीक से समझता हूं.
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