Home कविताएं गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध

गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध

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कई दिनों से
लगातार हो रही बारिश के कारण
ये शहर अब अपने पिंजरे में दुबके हुए
किसी जानवर सा दिखता है

मैं एक नब्बे प्रतिशत भीगे हुए
अधोवस्त्र को
बाक़ी दस प्रतिशत सूखे हुए हिस्से को
अपनी जद में लेने की जद्दोजहद को
चुपचाप देख रहा हूं

कितना मुश्किल होता है
अपने हाथ में कुछ नहीं होना
और कितना आसान होता है
ये सोच कर लेट जाना
भीगे हुए मिट्टी के फ़र्श पर चुपचाप

मुझे याद आता है
किस तरह पृथ्वी के चेहरे पर से उड़ गई थी
मेकअप की परतें
तुम्हारे जाने के बाद
और सूखी हवाओं के साथ उड़ती हुई धूल ने
बताया था मुझे रेगिस्तान की तासीर

उस समय भी मैं एक सूखी, तपती हुई
फ़र्श पर लेटा था
बरसात की आस में

भाले की नोक के निशाने पर रहते हुए
आदमी बस एक शिकार बन जाता है

इसलिए
अब गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध
खड़े होने का समय है
देर होने से पहले

  • सुब्रतो चटर्जी

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