अमेरिकी साम्राज्यवाद अन्य देशों की भांति ही सोवियत संघ को अंदर से खोखला कर खत्म कर दिया और उसे 15 टुकड़ों में बांट दिया, इसके बाद भी सोवियत संघ के सबसे बड़े टुकड़े रुस पर हमला करना बंद नहीं किया. इससे आजिज होकर रुस ने अपने पूर्व सहयोगी यूक्रेन पर हमला कर दिया. रुस की चेतावनियों के वाबजूद अमेरिका के नाटो गुंडें यूक्रेन की धरती पर रुसी फौज से लड़ाई ठान दिया है. अभी रुसी फौजियों द्वारा पकड़े गए नाटो सैनिक यही बताते हैं कि अमेरिकी साम्राज्यवाद यूक्रेन में रुसी फौजों के खिलाफ लड़ रहा है.
यही कारण है कि रुस और चीन ने मिलकर अब अंतरिक्ष पर अमेरिकी बर्चस्व के खिलाफ अपना तानाबाना मजबूत करना शुरू कर दिया है. यह जानकारी महत्वपूर्ण है कि पूर्व सोवियत संघ और चीन का भी तकनीक पक्ष अमेरिकी साम्राज्यवाद की तुलना में काफी मजबूत है. इसके पीछे दो कारण हैं. पहला यही है कि सोवियत संघ के उदय के साथ ही सोवियत संघ दुनिया भर के समूचे साम्राज्यवादी खेमा के निशाने पर आ गया, जिससे सोवियत संघ ने जो भी विकास किया वह अपने दम पर किया. इसमें समूचे देश की जनता ने उत्साहपूर्वक भाग लिया, जिससे काफी कम वक्त में ही महाशक्ति बन गया.
दूसरा, जो सबसे महत्वपूर्ण भी है वह है लेनिन-स्टालिन की सैद्धांतिक नीतियों ने समूची दुनिया की मेहनतकश जनता का हृदय जीत लिया, जिससे सारी दुनिया की मेहनतकश जनता ने अपने अपने तरीकों से सोवियत संघ के मदद और समर्थन में खड़ी रही. लेकिन 1953 में महान शिक्षक स्टालिन की मौत के बाद सोवियत संघ ने ज्यों ही लेनिन-स्टालिन की नीतियों को तिलांजलि दे दी, बस तभी से सोवियत संघ अपने पतन की राह पर चल पड़ा, जिसकी अंतिम परिणति 1991 में 15 टुकड़ों में बंटे ‘सोवियत संघ’ के रुप में हुई.
रुस के वर्तमान राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन को अपने स्वर्णिम अतीत का याद तो है लेकिन उन्हें लेनिन-स्टालिन की विजयी नीतियों पर भरोसा नहीं है, जो उनके कई बयानों से जाहिर भी हुआ है. यानी, पुतिन केवल विचारशून्य सैन्यबल और तकनीक के बूते अमेरिकी साम्राज्यवाद से लड़ना चाहते हैं, जो मुश्किल तो है पर असंभव नहीं है, क्योंकि अमरीकी साम्राज्यवाद भी विचारशून्य सैन्यबल और तकनीक से ही लड़ रहा है. लेकिन उसकी इस लड़ाई या जीत में दुनिया की मेहनतकश जनता के लिए कोई उपयोगिता नहीं है. तब यह युद्ध या महायुद्ध एक अच्छे गुंडे (रुस) और एक बुरे गुंडों (अमेरिका) की बीच की लड़ाई से ज्यादा महत्व नहीं रखता.
लेकिन, इससे यह तय हो गया है कि अमेरिकी साम्राज्यवाद के तीन दशक के अबाधित राज के दौर का अंत हो गया है और अब दुनिया एक बार फिर दो धुरी में बंट गया है. फिलहाल, रुस, चीन, उत्तर कोरिया एक साथ एक धुरी बना लिया है तो जाहिर है तकनीक और सैन्यबल में अपनी उच्चतम योग्यता का लोहा मनवा चुके रुस, चीन, उत्तर कोरिया धरती से लेकर अंतरिक्ष तक अपना भविष्य निर्धारित करेंगे.
खबर.के अनुसार चीन और रूस सक्रिय रूप से संघर्ष और अस्थिरता के माहौल में अंतरिक्ष में अपनी युद्ध शक्ति का प्रदर्शन कर रहे हैं. ये दोनों देश एक साथ मिलकर अंतरिक्ष-आधारित प्रणालियों पर अमेरिका की निर्भरता को निशाना बना रहे हैं. इस कारण अंतरिक्ष में अमेरिकी वर्चस्व को चीन और रूस से कड़ी टक्कर मिल रही है. यूएस डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी की हाल में ही जारी अंतरिक्ष में सुरक्षा के लिए चुनौतियां नाम की रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन के एक अंतरिक्ष शक्ति के रूप में उभरने और रूस के पुनरुत्थान ने अंतरिक्ष के सैन्यीकरण का विस्तार किया है. चीन और रूस अपने अंतरिक्ष और काउंटर-स्पेस क्षमताओं को राष्ट्रीय और युद्ध की रणनीतियों में शामिल कर रहे हैं ताकि अमेरिका को चुनौती दी जा सके.
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019 से 2021 के बीच चीन और रूस ने अपने अंतरिक्ष बेड़े 2015 से 2018 की तुलना में 70 फीसदी तेजी से बढ़े हैं. वहीं, दोनों देशों ने अपने संयुक्त उपग्रह बेड़े में 200 फीसदी की बढ़ोत्तरी की है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि चीन और रूस अमेरिका की ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) और अन्य अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों पर अपनी निर्भरता को कम करने के लिए सिस्टम विकसित कर रहे हैं. इतना ही नहीं, चीन और रूस अत्याधुनिक एंटी-सैटेलाइट (एएसएटी) हथियारों को विकसित करने पर भी ध्यान दे रहे हैं. ऐसा करके ये दोनों देश खुद को दुनिया के अग्रणी अंतरिक्ष शक्तियों के रूप में स्थापित कर रहे हैं.
यूएस डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी की रिपोर्ट में चीन और रूस के अंतरिक्ष युद्ध सिद्धांतों का भी जिक्र किया गया है। इसमें बताया गया है कि चीन काउंटर-स्पेस ऑपरेशंस को ताइवान में अमेरिकी हस्तक्षेप को रोकने के साधन के रूप में देखता है क्योंकि अमेरिकी सैटेलाइटों पर संभावित हमले के कारण अमेरिका और उसके दूसरे सहयोगी देश सटीकता के साथ मार करने वाले हथियारों का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे. इसमें यह भी चेतावनी दी गई है कि चीन अमेरिका और सहयोगी बलों को ‘अंधा’ करने के लिए खुफिया, निगरानी, टोही, संचार और अर्ली वॉर्निंग सैटेलाइटों को निशाना बना सकता है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि रूस अंतरिक्ष को अमेरिकी सेना के प्रोजेक्शन और प्रिसिजन स्ट्राइक कैपिबिलिटी के महत्वपूर्ण साधन के तौर पर देखता है. ऐसे में इन्हें नष्ट कर अमेरिकी सेना को टेक्नोलॉजी के आधार पर अंधा किया जा सकता है. रूस ने यूक्रेन में अपनी स्पेस डिनॉयल कैपिबिलिटी को तैनात किया है, ऐसे में रूसी सैटेलाइट्स यूक्रेनी सेना के बेस की जानकारी जुटाने के साथ उनके इंटरनेट और जीपीएस को जाम कर रहे हैं./हालांकि, यह भी कहा जा रहा है कि रूस ने यूक्रेन में अपनी इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर क्षमताओं को पूरी तरह से तैनात नहीं किया है. वहीं, अमेरिका की कॉमर्शियल सैटेलाइट सर्विसेज ने रूस के खिलाफ यूक्रेन को बड़ी मदद पहुंचाई है.
ऐसे में कोई शक नहीं है कि चीन यूक्रेन के घटनाक्रम को देख रहा है और ताइवान की अपनी रणनीति को लेकर सबक सीख रहा है. चीन ने संभवत: इस बात पर ध्यान दिया है कि यूक्रेन के साथ अमेरिकी खुफिया जानकारी ने रूसी सैन्य पराजय और भारी हथियारों के नुकसान में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. ऐसे में अगर चीन कभी भी ताइवान पर हमला करने का विकल्प चुनता है तो वह यूक्रेन में रूस के वर्तमान हालात से बचने की कोशिश जरूर करेगा. ताइवान के लिए लड़ाई में, इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि अमेरिका यूक्रेन की ही तरह खुफिया जानकारी साझा करेगा.
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