गिरीश मालवीय
जब भी आप 5 जी तकनीक संबंधी लेख पढ़ेंगे तो सबसे पहले यह कहीं न कहीं जरूर लिखा हुआ पाएंगे कि आदर्श परिस्थितियों में 5G तकनीक से पांच GB साइज की फिल्म महज 35 सेकंड में डाउनलोड हो जाएगी जबकि अभी 4G तकनीक से इसी साइज की फिल्म डाउनलोड करने में 40 मिनट लगते हैं. गोया आपका फिल्म डाउनलोड करना ही एकमात्र काम हो !
मेरा काम वैसे 4जी तकनीक से आसानी से चल जाता है. मैं यदि 3 घण्टे की फिल्म डाउनलोड करूंगा तो जाहिर है कि उसे देखूंगा भी और इस हिसाब से जितनी स्पीड चाहिए मेरा ब्रॉडबैंड या मोबाइल नेटवर्क मुझे प्रदान कर रहा है तो आखिर 5जी किसे चाहिए ?
हो यह रहा है कि 5जी का बिल आपके नाम पर फाड़ा जा रहा है, जबकि इसका असली फायदा आपको नहीं बल्कि मल्टीनेशनल कंपनियों को होने जा रहा है. इस बात को समझना बेहद जरूरी है. दरअसल 5 जी तकनीक के साथ ही चौथी औद्योगिक क्रांति की शुरूआत हो चुकी है. बहुत से लोग पूछेंगे कि चौथी ? बाकि 3 कब हुई ?
पहली औद्योगिक क्रांति हुई इंग्लैंड में. इस क्रान्ति से पहले मनुष्य हर प्रकार से जानवरों पर बहुत अधिक निर्भर था. इस क्रान्ति में जानवरों पर हमारी निर्भरता को समाप्त किया गया और ऊर्जा के प्राथमिक स्रोतों के रूप में कोयला जैसे जीवाश्म ईंधन के उपयोग होना शूरू हुआ. पहली क्रांति में ही भाप इंजन अस्तित्व में आया और समुद्र पर इंग्लैड दूसरे देशों से कहीं आगे निकल गया.
लुइस चौदहवे के खिलाफ युद्ध को धन मुहैया कराने के लिए बैंक ऑफ इंग्लैंड की स्थापना हुई और एक नई वित्तीय प्रणाली की शुरूआत हुई. राज्य को करों की सुरक्षा पर ऋण उपलब्ध कराया जानें लगा. शांतिकाल में यह पैसा ब्याज की मामूली दर पर आर्थिक और औद्योगिक विकास के लिए उपलब्ध था. माना जाता है कि इंग्लैंड में हुई पहली औद्योगिक क्रांति ने उसे इतना समृद्ध और शक्तिशाली बना दिया था कि वह नेपोलियन से हुए युद्ध के तनाव को झेल सका.
जैसे-जैसे औद्योगिक क्रांति आगे बढ़ी मशीनरी अधिक जटिल और महंगी होने लगी. नए कारखानों को स्थापित करने का खर्चा किसी एक व्यक्ति के वित्तीय संसाधनों से कहीं आगे निकल गया इसलिए सहकारी प्रयास के लिए आवश्यकता महसूस की गई. यहां कारपोरेट अस्तित्व में आया और लिमिटेड कंपनियों का कॉन्सेप्ट आया, जिसमें हजारों लोगों ने अच्छा लाभांश भी प्राप्त किया.
अब आई दूसरी औद्योगिक क्रांति. इसका समय 19वीं शताब्दी के अंत और 20वीं शताब्दी के पहले दो दशकों के बीच का माना जाता है, इस क्रान्ति में बिजली का उपयोग शूरू हुआ, और संचार के साधनों में वायर (तार) का प्रयोग होना शूरू हुआ. वायरलेस के बारे में खोज हुई इस बार बड़े पैमाने पर रेलमार्गों का निर्माण हुआ. बड़े पैमाने पर इस्पात उत्पादन शूरू हुआ. उत्पादन में मशीनरी का व्यापक उपयोग किया गया. टेलीग्राफ के इस्तेमाल से संचार आसान हुआ और पहली बार पेट्रोलियम का उपयोग किया गया.
1900 तक औद्योगिक उत्पादन में ब्रिटेन अग्रणी था. दुनिया का कुल 24% औद्योगिक उत्पादन वह अकेला कर रहा था लेकिन 20वीं शताब्दी की शुरूआत में यूरोप की भूमि युद्ध का मैदान बन गई और अमेरिका तेजी से आगे बढ़ा. वहां बड़े पैमाने पर व्यवसायों के संचालन के लिए आधुनिक संगठनात्मक तरीके उपयोग में लाए गए और पहली बार आधुनिक युग के बहुराष्ट्रीय निगम यानि मल्टीनेशनल अस्तित्व में आए.
तीसरी औद्योगिक क्रांति 1950 के दशक में शूरू हुई जन परिवहन प्रणाली, दूरसंचार नेटवर्क संबंधी क्षेत्रों में तेजी से प्रगति के साथ शुरू हुई. माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक और सर्विस इंडस्ट्री का विकास हुआ. तीसरी औद्योगिक क्रांति में भूमंडलीकरण की शुरूआत हुई और इंटरनेट के माध्यम से बाजार सबके लिए खुल गया है. यह हम सब देख ही रहे हैं.
अब हम अगले कुछ वर्षों में चौथी औद्योगिक क्रांति को घटता हुआ देखेंगे. एक नए युग की शुरुआत हो रही है. डिजिटलीकरण दुनिया के हर हिस्से, हर उद्योग धंधे, रोजगार को प्रभावित कर रहा है. क्या भारत जैसे बड़े देश में रहने वाला बुद्धिजीवी वर्ग इन परिवर्तनों के बारे में समझ बनाने का कोई प्रयास करता दिख रहा है ?
अंत में मैं यहां एक जरूरी प्रश्न उठा रहा हूं पहली, दूसरी और तीसरी औद्योगिक क्रांति ने जनसंख्या वृद्धि का समर्थन किया था और इन तीनों क्रांतियों ने रोजगार की असीम संभावनाएं पैदा की लेकिन यह चौथी क्रान्ति जनसंख्या वृद्धि को लेकर शंकास्पद है और बड़े स्तर पर बेरोजगारी फैलाने जा रही है.
5G के साथ ही गुलामी के एक नए युग की शुरूआत होने जा रही है. यह कुछ उसी प्रकार की युगांतरकारी घटना है जैसे एक वक्त यूरोप में औद्योगिक क्रांति हुई थी. चीजें बहुत तेजी से बदल रही है. कल हमारे शहर इन्दौर में, जो कि अब गोबरपट्टी में स्मार्ट सिटी बनने की रेस सबसे आगे चल रहा है. एक घोषणा हुई कि इंदौर डिजिटल एड्रेसिंग सिस्टम वाला देश का पहला शहर बनने जा रहा है.
शहर के हर घर-संस्थान का पता डिजिटल होगा. पते का फोटो और यूनिक नंबर ऑनलाइन दिखाई देगा. इन्दौर शहर की स्मार्ट सिटी कंपनी ने पता नेवीगेशन के साथ एमओयू साइन किया है. पता नेवीगेशन हर एड्रेस को विशेष कोड देगा. इस कोड से जियो टेग्ड लोकेशन पर पहुंचा जा सकेगा.
मुझे इस बात का आश्चर्य हुआ कि सारे पते तो पहले से डिजीटल है. आप अपने स्मार्टफोन में लोकेशन ऑन कर के किसी को भी अपनी लाइव लोकेशन भेज सकते हैं. गूगल मैप पर अपनी लोकेशन को यूनिक नाम से टैग कर सकते है तो इसमें अनोखा क्या है ? इसलिए मैने इस संबंध में और अधिक जानने की कोशिश की और परिणाम आश्चर्यजनक थे.
पता लगा कि दुनिया गूगल मैप से कहीं आगे निकल गई है. अब दुनिया के कोने-कोने को को 3 स्क्वैयर मीटर में डिवाइड किया जा चुका है. दुनिया में हर तीन मीटर पर एक वर्ड एड्रेस है यानी कि आपके आसपास के 3 मीटर की दूरी पर हर लोकेशन का एक कोड है, जिसे तीन शब्दों में बांटा गया है.
इसे what3words के नाम से जाना जाता है. इसका एप बनाया गया है. यह एक ब्रिटिश कंपनी है. What3words के लोगों का कहना है कि उन्होंने और हर स्क्वैयर को तीन शब्दों का एक यूनिक कॉम्बीनेशन दिया हैं.
आप और हम दुनिया को जगहों और उसके नाम से पहचानते हैं लेकिन इस ऐप में सबकुछ स्क्वायर और ग्रिड की मदद से होता है. आपके आसपास के 3 मीटर की दूरी पर हर लोकेशन का एक यूनिक कोड है, जिसे तीन शब्दों में बांटा गया है. जैसे कि इंडिया गेट का कोड नेम thrillers.widgets.income है.
यह टेक्नोलॉजी 50 भाषाओं में उपलब्ध है, जिसमें 12 दक्षिण एशियाई भाषाएं- हिंदी, मराठी, तमिल, तेलुगु, बंगाली, कन्नड़, नेपाली, उर्दू, गुजराती, मलयालम, पंजाबी और ओडिया शामिल हैं. इसे मोबाइल ऐप के बिना भी इसे यूज किया जा सकता है.
आपके पास अगर स्मार्टफोन है और उसमें जीपीएस है तो आप what3words एप का इस्तेमाल कर सकते हैं. संभव है कि इन्दौर के पता नेविगेशन वालों ने what3words वालों के साथ कोई करार किया हो या इसी तरह का अपना अलग सिस्टम डेवलप किया हो !
अब आप कहेंगे कि ये तो बहुत अच्छी बात है, इसमें गुलामी जैसी क्या बात है ? दरअसल ऐसा सिस्टम इसलिए डेवलप किया गया है ताकि ड्रोन से एग्जेक्ट लोकेशन पर डिलीवरी की जा सके. बिना ड्राइवर वाली ऑटेमेटिक कारें एग्जेक्ट लोकेशन पर आपको पहुंचा सके.
आप देख ही रहे हैं कि आप यदि जोमेटो स्विगी जैसे एप से कुछ आर्डर करते हैं तो डिलीवरी बॉय को एक निश्चित अवधि में वह सामान आपको डिलीवर करना होता है. ये कम्पनियां डिलीवरी टाइम को धीरे-धीरे कम कर रही थी. तेज डिलिवरी के चक्कर में वे तेजी से गाड़ियां भगाते हैं और उसके कारण सड़क दुर्घटनाएं बढ़ रही है.
लेकिन इतना सब होने पर पर कोई सवाल नहीं उठाता कि कंपनियां डिलीवरी टाइम क्यों घटा रही है ? उसके बजाए सोशल मीडिया पर यह प्रमोशन किया जाता है कि आप ही क्राउड फंडिंग कर साइकिल पर चलने वाले डिलीवरी बॉय को मोटर साइकिल दिलवा दें. डिलीवरी का समय इसलिए ही घटाया जा रहा है ताकि जब ऐसी नेवीगेशन ऐप के सहारे ड्रोन से डिलीवरी हो तो आप वाह-वाह कर सके !
आने वाले समय में चाहे वह फूड हो, मेडिसिन हो या घर का किराना सामान हो, सब ड्रोन से पहुंचया जायेगा. दरअसल 5जी इतना एडवांस है कि इसके जरिए सिर्फ लोग ही आपस में नहीं जुड़ेंगे बल्कि डिवाइसेज और मशीनें भी आपस में कनेक्ट रहेगी. आप किसी ऐप पर आर्डर करेगें, अगले ही सेकंड आपके फोन पर मैसेज आ जायेगा कि ड्रोन आपकी बिल्डिंग की छत पर आधे घण्टे में आपका आर्डर डिलीवर कर देगा.
यानी लाखों करोड़ों लोग जो इस प्रकार की लॉजिस्टिक में लगे हैं, वे बेरोजगार होने जा रहे हैं. ऑटेमेटिक कारें ओला-ऊबर के ड्राइवरों को घर पर बिठा देगी. बहुत कुछ बदलने जा रहा है जरा नजर बनाए रखिए.
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