अशफाक अहमद
अच्छा पहले मुझे नफरतियों को छोड़ बाकी सबसे प्रेम भी महसूस होता था, दीन-हीन पर दया भी आती थी और पशु पक्षियों पर उनकी बुरी स्थिति को देखते मन भी पसीजता था, जो एक संवेदनशील इंसान होने की निशानी है.
लेकिन फिर मुझे शाकाहारियों ने बताया कि जो नानवेज खाता है, वह न किसी से प्रेम कर सकता है, न उसे किसी पर दया आ सकती है. तब से मैं सोच रहा हूं कि इसका मतलब दया, करुणा और प्रेम वाले फीचर मुझमें हैं ही नहीं, वह बस शाकाहारियों में होते हैं ! मुझे किसी से भी न प्यार करना चाहिये और न किसी पर दया दिखानी चाहिये !
परसों मुझे यह क्लियर हो गया था कि नाॅनवेज खाने वाला कोई व्यक्ति किसी पर दया, करुणा, प्रेम दिखा ही नहीं सकता— तबसे मैंने यह रियलाईज कर लिया कि मेरी संवेदनाएं झूठी और नकली हैं, इसलिये एक नाॅनवेज खाने वाले के तौर पर मुझे अब किसी से न प्रेम करने का अधिकार है, न किसी पर दया दिखाने का.
बात फाईनल हो चुकी थी, लेकिन कल मुझे एकदम से कुछ और बातें समझ में आईं— सपोज अगर एक नाॅनवेज खाने वाला प्रेम, दया, करुणा दिखाने का अधिकारी नहीं, तो फिर इन फीचर्स पर स्वाभाविक रूप से इसके उलट खान-पान वालों, यानी शाकाहारियों की मोनोपोली होनी चाहिये और हर शाकाहारी को सबसे प्रेम करने वाला, दया और करुणा से भरा होना चाहिये ?
लेकिन क्या वाक़ई ऐसा है ? इस पर अपनी बीवी के बावन टुकड़े करने वाले, या तंदूर में लड़की डाल देने वाले, या दिन-रात एक वर्ग को अपनी नफरत के निशाने पर रखने वाले शाकाहारी गैंग के लोगों को छोड़ भी दें तो मुझे जर्मनी का एक पुराना और प्रसिद्ध शाकाहारी याद आता है, जिसे जानवरों से बड़ा प्रेम था, उनके लिये उसके मन में बड़ी करुणा और दया थी.
उसने पशु अधिकार कानून पास करवाया, जिसके जरिये जानवरों को दुर्व्यवहार, उपेक्षा आदि से बचाया. भेड़ियों तक का संरक्षण किया, जानवरों को निवास देने के लिये लाखों पेड़ लगवाये, वह अपने कुत्ते को अपनी पत्नी से ज्यादा प्यार करता था.
वह हमेशा शाकाहारी भोजन करता था. उसके मेहमान स्वीकारते थे कि वह खाने के दौरान इस बात पर बहुत कुपित होता था कि किसी की थाली के लिये किसी जानवर को मारा जाये. उसकी फूड टेस्टर टीम की सदस्य मार्गोट बताती हैं कि वह हमेशा ताज़ा फल और सब्जियां खाता था, उसके दांतों के अवशेष पर भी उसके कभी मांस खाने का कोई संकेत न मिला.
लेकिन यह शुद्ध शाकाहारी, जानवरों के लिये प्रेम, दया, करुणा से ओत-प्रोत शख़्स योरोप में लाखों लोगों की मौत का कारण बना. एक पूरी नस्ल को खत्म कर देने की कोशिश की, लोगों को गैस चेंबर में ठूंस कर मारा. नाम तो जानते ही होंगे— एडोल्फ हिटलर !
सोचते हुए समझ में आया कि पशुप्रेमी या शाकाहारी के लिये शायद इंसानी जान दया, और करुणा की लिस्ट से बाहर होती है और वह बस जानवरों के लिये हो, तभी उत्तम क़िस्म का शाकाहारी होना माना जायेगा. चलो जाने दो. इंसान जैसी सूक्ष्म और वाहियात चीज़ को. हमें सिर्फ जानवरों पर फोकस करना चाहिये.
यह जानवर खाने वाले तो काटते नहीं, वह तो बस सब्जी-अनाज की तरह दुकान से ले आते हैं. यह काटता-कटवाता कौन है ? कौन है जो बेच-बिकवा रहा है ? छोटे-मोटे लाखों लोग, जो रोज़ी-रोटी की मजबूरी में यह घृणित काम कर रहे हैं.. लेकिन ठहरिये !
इस खेल के बड़े खिलाड़ी कौन हैं ? — जो रोज़ी-रोटी की मजबूरी में ऐसा नहीं कर रहे, बल्कि जिनके लिये यह टाॅप क्लास बिजनेस है, जो बड़े-बड़े स्लाॅटर हाऊस चलाते हैं, जो इतना मीट एक्सपोर्ट करते हैं कि देश को मीट एक्सपोर्ट में टाॅप कंट्रीज में शामिल कर रखे हैं, जो ऑनलाइन मीट सप्लायर हैं, जिनके बड़े-बड़े होटल और रेस्तरां हैं, जो केएफसी जैसे ब्रांड की फ्रेंचाइजी लिये पड़े हैं ? इनमें ज्यादातर लोग उसी शाकाहारी गैंग का हिस्सा हैं— जिनमें वह जैन बंधु भी शामिल हैं, जिन्हें लहसुन-प्याज तक के नाम से नाक-भौं सिकोड़ते देख सकते हैं.
यानि प्रेम, दया, करुणा जैसे फीचर्स के लिये शाकाहारी होना कोई मायने नहीं रखता. इन सारी बातों को सोचने के बाद अब मैं फिर कन्फ्यूज हूं मित्रों— कि यह प्रेम, दया, करुणा जैसे फीचर्स के लिये मौलिक रिक्वायरमेंट क्या है आखिर ?
मैंने हज़ारों वीडियो देखे हैं. योरोप, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और अमेरिकन कांटीनेंट्स के लोगों के जहां के लोग इन फीचर्स से भरे दिखे— उनकी संवेदनाओं से ओत-प्रोत गतिविधियों को आप अक्सर सोशल मीडिया पर रील्स वगैरह में नाचते पायेंगे, लेकिन मुश्किल यह है कि सामान्यतः वे सब मांसाहारी ही होते हैं और बीफ, पोर्क बड़े शौक से खाते हैं, जिनके लिये इन जानवरों की बड़े पैमाने पर फार्मिंग की जाती है.
तो आखिर यह प्रेम, दया और करुणा का कोई तयशुदा पैमाना है या नहीं, है तो क्या है ?
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