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बैंकों का सबसे बड़ा कर्जदार है, दुनिया में चौथे नंबर का अमीर अडानी

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बैंकों का सबसे बड़ा कर्जदार है, दुनिया में चौथे नंबर का अमीर अडानी
बैंकों का सबसे बड़ा कर्जदार है, दुनिया में चौथे नंबर का अमीर अडानी
अडानी मार्च 2022 में SBI से बारह हजार सात सौ करोड़ का लोन ले चुके हैं. अब 14 हजार करोड़ रुपए का लोन और एसबीआई से मांग रहे हैं और बातें करते हैं 60 हजार करोड़ के दान की ! भाई दान कर ही क्यों रहे हो ? उसी रकम को यूज कर लो ! काहे एसबीआई को डुबाने में लगे हो ?

– गिरीश मालवीय

यह भी एक विडंबना है कि अपने साठवें जन्मदिन पर ₹60,000 करोड़ दान करने की घोषणा करने वाले गौतम अडानी ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से ₹14,000 करोड़ का ऋण मांगा है. अडानी ग्रुप, गुजरात के मुंद्रा में पीवीसी प्लांट बनाने के लिए, 19,000 करोड़ रुपये का शुरुआती निवेश करेगा, उसी के लिए अडानी समूह ने सरकारी बैंक एसबीआई से 14000 करोड़ रुपये का लोन मांगा है. अडानी ग्रुप पर पहले से ही 2.21 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है.

आम आदमी पार्टी के संजय सिंह ने नरेंद्र मोदी के ऊपर सीधे आरोप लगाते हुए कहा है कि सरकार और बैंकों ने, ₹72,000 करोड़ का कर्ज माफ कर दिया है. इसे तकनीकी या बैंकिंग भाषा में राइट ऑफ, एनपीए या कर्ज माफी या जो कुछ भी कहें, पर अडानी समूह को 2014 के बाद से उदारता से कर्ज भी मिलता गया है, और बैंक उनका कर्ज राइट ऑफ भी करते गए.

सरकार या इसे और स्पष्ट शब्दों में कहें तो प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी की कृपा इस समूह और इस उद्योगपति पर 2014 में सत्ता में आते ही हो गई थी, जो अब तक अनवरत जारी है. देश की 80 करोड़ जनता जहां 5 किलो राशन पर जीने के लिए अभिशप्त है, और गरीबी में देश नाइजीरिया से भी नीचे चला गया है, वहीं गौतम अडानी ने बिल गेट्स को भी अपनी धन वृद्धि में मात दे दी. पूंजी के अश्लील एकत्रीकरण का यह एक शर्मनाक दृश्य है. यह सरकार की आर्थिकी की घोर विफलता है.

अडानी समूह अपने मौजूदा व्यवसायिक साम्राज्य को बढ़ाने और नए उद्योगों के विस्तार करने तथा अन्य संभावनाओं को खोजने के लिए, ऋण लेकर वित्तपोषण की नीति का उपयोग जारी रखे हुए है. कैपिटलाइजेशन यानी पूंजीकरण यानी वित्तपोषण के आंकड़ों के अनुसार, अडानी समूह की कंपनियों का संयुक्त सकल कर्ज इस साल मार्च 2022 के अंत में ₹2.22 लाख करोड़ के उच्च स्तर पर पहुंच गया, जो एक साल पहले ₹1.57 लाख करोड़ था. यानी, एक साल में अडानी समूह का संयुक्त सकल कर्ज, 42 प्रतिशत अधिक बढ़ गया.

यानी अडानी समूह ने उदारता से कर्ज लिया भी और बैंको ने भी उस समूह को कर्ज देने में उत्साह से उदारता दिखाई भी. परिणामस्वरूप, अडानी समूह का सकल ऋण इक्विटी अनुपात मार्च 2022 के अंत में बढ़ कर 2.36 तक पहुंच गया जो पिछले चार साल के सबसे ऊंचे स्तर पर है. यही ऋण इक्विटी अनुपात, जो एक साल पहले 2.02 और वित्त वर्ष 2019 के अंत में 1.98 के स्तर पर था. 2017 में पब्लिक सेक्टर बैंकों यानी सरकारी बैंकों ने समूह की मदद भी खूब की और यह मदद ₹72,000 करोड़ के बट्टे खाते में डालने के रूप में की गई, जिसका उल्लेख संजय सिंह ने किया है.

जितनी उदारता से अडानी समूह को सरकारी बैंकों ने कर्ज दिया उतनी ही उदारता से इन्हीं बैंकों ने उस कर्ज को राइट ऑफ भी किया जो बैंकिंग शब्दावली में कर्ज माफी तो नहीं है, पर वह कर्ज माफी की ही तरह राहतनुमा भी है. ऐसे राइट ऑफ या एनपीए किए गए कर्ज, शायद ही कभी वसूले जाते हों या कभी वसूले गए हों. हो सकता है आप को कुछ आंकड़े इनके वसूली के मिल भी जाए, पर जब राइट ऑफ/एनपीए की गई राशि और राइट ऑफ/एनपीए के बाद उनकी वसूली की राशि का अनुपात देखिएगा तो पाइएगा कि जितना कर्ज राइट ऑफ/एनपीए किया गया है, उसकी तुलना में वसूली बहुत कम है और ऐसे आंकड़े बैंको की वेबसाइट पर मिलते भी नहीं है.

यदि कोई आरटीआई लगा कर पूछे तो शायद ही पूरी तरह से संतोषदायक उत्तर मिले. अडानी समूह को दिए गए कर्जों के विवरण के बारे में तो यह भी निर्देश है कि इसे सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है. ऐसा क्यों है, यह भी वित्त मंत्रालय और बैंकिंग सेक्टर ही बता पायेगा. यहीं यह भी आप को याद दिलाना समीचीन होगा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा बार-बार यह कहने के बाद कि ऋण डिफॉल्टर्स की सूची सार्वजनिक की जाय, सरकार ने कोई न कोई बहाना बना कर ऐसा करने से कन्नी काट ली. ऐसा क्यों किया गया यह सरकार ही बेहतर जानती होगी.

ऋण इक्विटी अनुपात, यानी debt डेट-टू-इक्विटी रेशियो (डी/ई) का उपयोग किसी कंपनी के वित्तीय लाभ के मूल्यांकन के लिए किया जाता है, और इसकी गणना इसके शेयरधारक, इक्विटी द्वारा कंपनी की कुल देनदारियों में भाग देने के द्वारा की जाती है. (डी/ई) रेशियो कारपोरेट फाइनेंस में प्रयुक्त एक महत्वपूर्ण पैमाना है. यह एक संकेत है, जिस पर कंपनी ऋण बनाम पूर्ण स्वामित्व वाले फंडों के जरिए अपने कारोबार का वितपोषण/पूंजीकरण कर रही है. विशिष्ट तरीके से कहा जाए तो यह व्यवसाय के मंदी की स्थिति में सभी बकाया ऋणों को कवर करने के लिए शेयरधारक की क्षमता को प्रदर्शित करती है. दरअसल, डेट-टू-इक्विटी रेशियो एक विशिष्ट प्रकार का गियरिंग रेशियो अर्थात पूंजी जुटाने का अनुपात है.

उच्चतर लाभ अनुपात से शेयरधारकों के लिए अधिक जोखिम वाले कंपनी या स्टॉक का संकेत मिलता है. बहरहाल, डी/ई रेशियो से पूरे उद्योग समूहों की तुलना करना कठिन है, जहां ऋण की आदर्श मात्रा अलग अलग होगी. डी/ई रेशियो किसी कंपनी की नेट एसेट वैल्यू की तुलना में उसके ऋण की माप करता है, जिसका अधिकतर उपयोग उस सीमा का अनुमान लगाने के लिए किया जाता है, जिसमें कंपनी अपने एसेट का लाभ उठाने के एक माध्यम के रूप में ऋण ले रही है. उच्च डी/ई रेशियो का संबंध अक्सर उच्च जोखिम के साथ जोड़ा जाता है, जिसका अर्थ यह हुआ कि कंपनी अपने ग्रोथ का वित्तपोषण ऋण के जरिए कर रही है. अगर ग्रोथ के वित्तपोषण के लिए बहुत अधिक ऋण लिया जाता है तो इसका अर्थ यह हुआ कि कंपनी संभवतः और अधिक आय अर्जित कर सकती थी, जो कि उस वित्तपोषण के बगैर होती.

ऐसा नहीं है कि केवल अडानी समूह ही कर्ज लेकर अपने व्यापार का विस्तार करता है बल्कि यह दुनिया भर के कारपोरेट के पूंजीकरण यानी कैपिटलाइजेशन की एक स्थापित प्रक्रिया है. यह कर्ज या तो बैंक देते हैं या वित्तीय संस्थान या इक्विटी से कंपनिया पैसे उठाती हैं. विभिन्न समूह कंपनियों के पास उपलब्ध नकदी और बैंक बैलेंस के लिए समायोजित समूह का शुद्ध ऋण-से-इक्विटी अनुपात वित्त वर्ष 2021- 22 के अंत में बढ़कर 2.07 हो गया, जो वित्त वर्ष 2017- 18 के बाद से सबसे अधिक है.

मार्च 2022 के अंत तक अडानी समूह की कंपनियां 26,989 करोड़ रुपये की नकदी और बैंक बैलेंस पर बैठी थी. इसके विपरीत, सूचीबद्ध टाटा समूह की कंपनियों ने इस साल मार्च 2022 के अंत में ₹3.35 लाख करोड़ के संयुक्त सकल ऋण की सूचना दी, जो साल-दर-साल 1.3 प्रतिशत कम है. समूह का सकल ऋण-से-इक्विटी अनुपात वित्त वर्ष 22 में एक साल पहले 1.2 से घटकर 1.01 हो गया.

यह विश्लेषण अदाणी समूह की सात सूचीबद्ध कंपनियों- अडानी इंटरप्राइजेज, अडानी पोर्ट्स एंड एसईजेड, अडानी पावर, अडानी ट्रांसमिशन, अडानी ग्रीन, अडानी टोटल गैस और अडानी विल्मर के संयुक्त वित्त पर आधारित है. अडानी पोर्ट्स को वित्त वर्ष 22 और वित्त वर्ष 22 की चौथी तिमाही के वित्तीय परिणाम घोषित करना बाकी है. समेकित आधार पर रिलायंस इंडस्ट्रीज का सकल ऋण वित्त अनुपात वर्ष 2012 में 4.2 से मार्च के अंत में 2.82 ट्रिलियन रुपये हो गया.

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अडानी ग्रुप का कर्ज वित्तीय वर्ष 2021-22 में 40.5 प्रतिशत से बढ़कर ₹2.21 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया. पिछले वित्तीय वर्ष 2020-21 में यह ₹1.57 लाख करोड़ था. वित्तीय वर्ष, 2021-22 में अडानी इंटरप्राइजेज के कर्ज में सबसे अधिक 155 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. इस दौरान कंपनी का कर्ज बढ़कर 41,024 करोड़ रुपये पहुंच गया. हालांकि अडानी पावर और अडानी विल्मर के कर्ज में कमी आई है. अडानी पावर की उधारी 2021-22 में 6.9 फीसदी घटकर 48,796 करोड़ रुपये रह गई. इसी तरह अडानी विल्मर का कर्ज 12.9 फीसदी घटकर 2568 करोड़ रुपये रह गया.

अब एक नजर बैंकिंग सेक्टर पर डालते हैं. रिजर्व बैंक (आरबीआई) के आंकड़े बताते हैं कि सरकारी बैंकों ने साल 2010 से कुल 6.67 लाख करोड़ रुपए के कर्जों को राइट ऑफ किया है. यह कुल कर्जों के राइट ऑफ का लगभग 76% है. निजी बैंकों का राइट ऑफ, कुल राइट ऑफ का 21% है. विदेशी बैंकों ने इसी दौरान 22 हजार 790 करोड़ रुपए के कर्ज को राइट ऑफ किया है. यह कुल राइट ऑफ का 3% हिस्सा है. वित्त वर्ष 2019-20 में इन बैंकों ने कुल 2.37 लाख करोड़ रुपए के कर्ज को राइट ऑफ किया है. यह पिछले 10 सालों के राइट ऑफ का एक चौथाई हिस्सा है, इसमें से 1.78 लाख करोड़ रुपए सरकारी बैंकों का है जबकि 53 हजार 949 करोड़ रुपए निजी बैंकों का है.

सबसे ज्यादा राइट ऑफ देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक ने किया है. इसने वित्त वर्ष 2020 में 52 हजार 362 करोड़ रुपए के कर्ज को राइट ऑफ किया है. इसके बाद इंडियन ओवरसीज बैंक ने 16 हजार 406 करोड़ रुपए, बैंक ऑफ बड़ौदा ने 15 हजार 886 करोड़ और यूको बैंक ने 12 हजार 479 करोड़ रुपए के कर्ज को राइट ऑफ किया है.

निजी बैंकों में सबसे ज्यादा कर्ज का राइट ऑफ ICICI बैंक ने किया है. इसने 10 हजार 942 करोड़ रुपए का कर्ज राइट ऑफ किया है. एक्सिस बैंक ने 10 हजार 169 और HDFC बैंक ने 8 हजार 254 करोड़ रुपए के कर्ज को राइट ऑफ किया है. कर्ज को राइट ऑफ किए जाने से बैंकिंग सिस्टम में एक तनाव भी बनता है क्योंकि यह पैसे वापस नहीं आते हैं और फिर इसके लिए बैंकों को दूसरा रास्ता अपनाना होता है.

रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक बैंकों का कुल बुरा फंसा कर्ज (ग्रॉस NPA) मार्च 2019 में 9.1% था जो मार्च 2020 में 8.2% रहा है. इसमें से ज्यादातर योगदान इसी तरह के राइट ऑफ का रहा है. बैंकों के NPA में ज्यादा हिस्सा 5 करोड़ रुपए से ज्यादा वाले लोन हैं. कुल NPA में इनका हिस्सा करीबन 80% है. एक और महत्वपूर्ण तथ्य जो आरटीआई से सामने आया है कि केंद्र की एनडीए सरकार ने पिछले 7 सालों में करीब 11 लाख करोड़ रुपये के लोन माफ किए हैं, जो यूपीए सरकार के तुलना में 5 गुना ज़्यादा है. इसका खुलासा आरटीआई में हुआ है और इससे कहीं ना कहीं बैंकों के कमज़ोर हो रहे हालात के बारे में समझा जा सकता है.

बैंकिंग सेक्टर की बदहाली पर रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर डॉ. रघुराम राजन और पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने भारतीय बैंकिंग सेक्टर के हालात पर एक रिसर्च पेपर लिखा है, जिसमें देश के बैंकिंग सेक्टर की समस्याओं और समाधान पर चर्चा करते हुए कई ऐसे रास्ते सुझाए हैं, जिससे इस सेक्टर को मजबूत किया जा सके. उन्होंने सरकारी बैंकों पर विशेष रूप से अपना ध्यान केंद्रित किया है. रघुराम राजन ने इस रिसर्च पेपर के बारे में अपने लिंक्डइन अकाउंट के जरिए जानकारी भी दी थी.

इस पेपर में दोनों अर्थशास्त्रियों ने सबसे पहले यह जानने की कोशिश की है कि बीते कुछ दशक के दौरान भारत में बैंकिंग सेक्टर क्यों चुनौतियों के दौर से गुजर रहा है, जिसमें खासतौर पर सरकारी बैंकिंग सेक्टर. दरअसल, प्राइवेट सेक्टर बैंकों की तुलना में पब्लिक सेक्टर बैंकों में बैड लोन की समस्या ज्यादा है. इनमें से अधिकतर धनराशि की वसूली नहीं हो पाती है. उन्होंने इस सेक्टर में संस्थागत जटिलताओं के बारे में भी जिक्र किया है. भारत में फंसे कर्ज के रिजॉल्युशन में यह भी एक समस्या है. उन्होंने यह भी बताया है कि कई दशकों से भारत में फंसे कर्ज की समस्या को कैसे सुलझाया जा सकता है.

इसमें उन्होंने खराब लोन से डील करने, पब्लिक सेक्टर बैंकों को बेहतर बनाने, पब्लिक सेक्टर बैंकों के वैकल्पिक स्वामित्व के बारे में, बैंकों के जोखिम प्रबंधन को बेहतर करने के बारे में और बैंकिंग स्ट्रक्चर में बेहतर वेराइटी के बारे में विशेष तौर से फोकस किया है. इस रिसर्च पेपर में उन्होंने यह भी कहा है कि इनमें से कई बातों पर पहले भी सुझाव दिए गए हैं. साल 2014 में पीजे नायक कमेटी का भी जिक्र है. केंद्र सरकार ने ‘ज्ञान संगम’ के तौर पर 2015 में इस कमेटी की सिफारिशों को लागू करने की कोशिश की थी.

यह सिफारिशें सरकारी बैंकों में नियुक्तियों और बैंकों के बोर्ड को सशक्त बनाने के लिए बैंक बोर्ड ब्यूरो बनाने से संबंधित थी. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस पर सहमति जताई थी. लेकिन, करीब 5 साल बाद भी स्थिति में कोई सुधार नहीं है. राजन रिपोर्ट के आए भी लगभग तीन साल हो रहे हैं पर अभी भी बैंकों की कार्यप्रणाली को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं, जिसका असर बैंकिंग सेक्टर पर जिस प्रकार से पड़ रहा है, वह सामने दिख भी रहा है.

  • विजय शंकर सिंह

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