इतना लिखता रहता हूं हिस्ट्री पर, जाने क्यों ये गजब इतिहास छूट गया. पर आज जमकर उगली आ रही है. रीलबाज, मीमिये, कम पढ़ने वाले दफा हो जायें. हिस्ट्री लवर्स आगे पढ़ें. तो मितरो, लाखों साल पहले जब इंडियन प्लेट, एशियन प्लेट से टकरायी, एक पहाड़ बना. हम उसे दक्षिण में, नीचे से देखते हैं, हिमालय कहते हैं. चाइनीज ऊपर से देखते हैं, तिब्ब्त का पठार कहते हैं. पर्वत के पार उज्बेकिस्तान से, जो लोग इसे देखते हैं, हिंदुकुश कहते हैं. पर ज्यादातर, हिंदुकुश का मतलब, हिमालय के पश्चिमी हिस्से से समझा जाता है. जो डुरंड लाईन से शुरू होता है.
पर्वत के उस पार है, आमू दरिया. इसे ग्रीक ने ऑक्सस रिवर कहा. आमू और हिंदुकुश के बीच उपजाऊ धरती है, जिसमें एक सभ्यता फली फूली. ऑक्सस सिविलाइजेशन कहते थे. सिकन्दर आया, और इन इलाकों को जीतते हुए, भारत में कदम रखे. यहां पोरस से दुर्घर्ष युद्ध हुआ. जीते, पर बड़ा नुकसान झेला. आगे ताकतवर मगध, और नंद वंश था. सेना, जो बरसों से लड़ रही थी, उसने सिकन्दर से इल्तजा की…लौट चलने की. मन मारकर सिकन्दर लौट गया. बेबीलोन पहुंचा. दो साल बाद मर गया. उसका साम्राज्य 5 जनरलों में बंटा. भारत, ईरान, और सेंट्रल एशिया, सेल्युकस को मिल गया. सेल्युसिड डायनेस्टी बनी.
ये लोग मेसिडोनियन, या ग्रीक थे. याने अब भारत के उत्तर और पश्चिम में ग्रीक साम्राज्य था. भारत में अब तक मौर्य वंश स्थापित हो चुका था. सेल्युकस-चन्द्रगुप्त की लड़ाई, सन्धि, उसकी पुत्री से विवाह, और 500 हाथी देने के किस्से से आप वाकिफ हैं. आगे, सेल्युकस के वंशज राज करते रहे लेकिन सेंट्रल एशिया में, ऑक्सिस इलाके के सामन्तों ने विद्रोह कर दिया. एक दो बार विद्रोह दबा दिया गया. पर अंततः बैक्ट्रिया सेल्युसिड डायनेस्टी से अलग हो गया. दुनिया की छत-पामीर के पास बसा…इंडिपेंडेंट किंगडम ऑफ बैक्ट्रिया.
इसके दक्षिण में था मौर्य एम्पायर, जो अब तक डिक्लाइन की ओर था. बैक्ट्रियन बढ़े और खैबर से सिंध तक बड़ा इलाका जीत लिया. कालक्रम में पश्चिम भारत (पार्ट अफगानिस्तान, पाकिस्तान और पंजाब) में इन्होंने एक विशाल साम्राज्य बनाया. इंडो ग्रीक एक फेडरेशन जैसी व्यवस्था थी. एक राजा होता, पर और इलाकों के लगभग स्वतंत्र क्षत्रप होते. इस व्यवस्था ने इन्हें मजबूत किया, विस्तार कराया, फिर टुकड़े करवा दिये.
जो बैक्ट्रियन ग्रीक भारत में बस गए, उन्होंने यहां का धर्म याने बुद्धिज्म, और कल्चर अपना लिया. तो इन्हें इंडो ग्रीक कहा जाता है. इनका फेमस राजा मिनांडर था. मिनांडर की कहानी पूरी फिल्मी है. उसका बाप, बैक्ट्रिया का राजा था. गंधार के क्षत्रप ने विद्रोह किया, तो वह विद्रोह दबाने गंधार आ गया. तो उधर बैक्ट्रिया में उसके सेनापति ने विद्रोह कर सिंहासन पर कब्जा जमा लिया. राजाजी लौटकर वहां गए, तो मारे गए. बेटा जी भागकर आ गए गंधार, जहां भी विद्रोही वापस कब्जा कर चुके थे, मगर विद्रोही राजा ने मिनांडर को न सिर्फ शरण दी, बल्कि अपनी इकलौती बेटी ब्याह दी. उत्तराधिकारी बना लिया.
कुछ बरस बाद मिनांडर राजा बना. पहला काम बैक्ट्रिया पर हमले का किया. बाप के कातिल को मारा. फिर जमकर राज विस्तार किया. उसका राज ऊपर आमू दरिया से नीचे इलाहाबाद में यमुना तक था. यह आज के भारत से बड़ी टेरेटरी है. राजधानी थी – सियालकोट.
ये राजा आगे बौद्ध बन गया. हम मिलिंद कहते है. मिलिन्दपन्हों (मिलिन्द के प्रश्न) एक जबरजस्त किताब है. यह बौद्ध भिक्खु नागसेन और मिनांडर के बीच की प्रश्नोत्तरी है. जीवन, चेतना पर बुद्धिस्ट आईडियोओलॉजी समझने का जरिया है. मिनांडर मरा, तो उसकी राख पर स्तूप बने. उसके बाद इंडो ग्रीक का डिक्लाइन होने लगा. उन्हें खत्म किया इंडो सिथियन्स ने.
सीथियन मध्य एशिया के ओरिजिनल घुमन्तु कबीले थे. उन्हें यूची लोगों ने हराकर भगा दिया तो एक शाखा यूरोप की तरफ गयी, दूसरी भारत की तरफ आकर, स्वात घाटी में सेटल हुए. ये पहले सेल्युसिड, और फिर बैक्ट्रियन ग्रीक के दौर में मुंह गाड़े बैठे रहे. मौका पाकर ताकतवर हुए. इन इंडो सिथियन्स को हम ‘शक’ कहते हैं.
शको ने बैक्ट्रियन राजाओं का सूपड़ा साफ कर दिया. इलाके जीतते हुए दक्षिण में सिंध से गुजरात और मथुरा तक राज्य बिठा दिया. ये भी बुद्धिस्ट हो गए, पर अपनी मूल संस्कृति को जीवित रखा. लेकिन 100 साल पूरा होते होते अब इंडो पार्थियन आ गए. ये शको को निपटाने वाले थे.
पार्थियन, मूल ईरानी थे. पहले सिकंदर, फिर सेल्युकस, फिर बैक्ट्रियन, फिर शको के दबाव में रखा. पर एक छोटी टेरेटरी में ये बने रहे. शक और इंडो ग्रीक लड़ाई का लाभ उठाकर ये ताकतवर हो गए. इनका राजा हुए गोंडोफेरिस. उसने शको का सूपड़ा साफ कर दिया. इनकी सीमा मध्य ईरान, अफगानिस्तान से मथुरा तक थी.
राजधानी थी – तक्षशिला.
पर आप यूची को तो नहीं भूले न. वही जिन्होंने शको को, मध्य एशिया से भगाया था. ये लोग अब ताकतवर हो रहे थे. कुजुल कडफिस, विमा कडफिस आपको याद न होगा, पर विमा के बेटे कनिष्क को तो जानते हैं. इन्हें आप कुषाण वंश कहते हैं.
उन्होंने आमू दरिया की ओर से, बैक्ट्रिया के इलाके जीतना शुरू किया. फिर भारत की ओर बढ़े. पार्थियन को हराकर, सेंट्रल एशिया से लेकर उत्तर में काशी तक का सारा इलाका इन लोगों ने जीता. राजधानी थी- पेशावर. इन्होंने भी बुद्धिज्म अपना लिया.
तो बामियान से लेकर पेशावर तक बने स्तूप, बुद्ध की मूर्तियां, भारतीयों ने नहीं, बाहरी लोगों ने बनवाये. अखण्ड भारत का नारा गाने वालो सुनो, हम अफगानिस्तान के मालिक नहीं थे. सेंट्रल एशिया वालों ने अफगानिस्तान समेत हमें जरूर जीता था.
अब आपके दिमाग का दही हो चुका है. मेरा भी होता है भई. जब उत्तर के पठानों और पंजाब के सिखों, पश्तून, गूजर, जाट, सिख, लोगो के फिजिकल फीचर्स देखता हूं. उनकी आंखों का रंग, स्किन कलर, फैशियल फीचर और कदकाठी देखता हूं. असल में कोई पार्थियन है, कोई सिथियन, कोई ग्रीक, कोई ईरानी…या इनके बीच के मिक्स फीचर्स. डीएनए स्टडीज यह प्रमाणित कर चुकी हैं.
ये वारियर हैं, जिन्दादिल लोग. भारत के रक्षक. यहां घुल मिल गए, इंडियन हो गये. पुरखे यही मिट्टी में मिले. पर आज सबके अलग धर्म, अलग भाषा, अलग भगवान, अलग पार्टी. क्या आप कह सकते हैं- अरे कि तुम भारत के वंश नहीं ? तुम यूची हो, सीथियन हो, तुम्हारी धरती कहीं और है ? पर कुछ लोग कहेंगे. भला मूर्ख की जुबान को कौन रोक सकता है. वे जुबान से, पगड़ी से, कपड़ों से पहचानकर, किसी को आतंकी, किसी को जिहादी, किसी को गद्दार कह देते हैं.
ठीक है. उन्हें बताइये की आगे, कभी कोई गद्दार मिले तो उसे पाकिस्तान जाने को न कहें. सही इतिहास बताऐं. बोलिये – बैक्ट्रिया जाओ. पर्वत के उस पार …
- मनीष सिंह
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