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अभिव्यक्ति की आजादी पर रोक और मोदी की सरकारी तानाशाही

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एडिटर गिल्ड के सदस्य होने के साथ-साथ बीबीसी और अमर उजाला जैसे समाचार चैनलों के साथ रहे विनोद वर्मा को एक झूठे मुकदमें में फंसा कर जेल में बंद करने वाली छत्तीसगढ़ की भाजपाई सरकार ने प्रेस की स्वतंत्रता पर दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से प्रहार किया है. पिछले ही दिनों मोदी की मिमिक्री करने वाले एक कलाकार को गिरफ्तार कर लिया गया था. पत्रकार सागरिका घोष को भी धमकी दी गई. एनडीटीवी के पत्रकार रविश कुमार की भी लगातार हत्या व धमकी देने का सिलसिला थम नहीं रहा है. अमित शाह के बेटे की 16 हजार गुना बढ़ी जायदाद का खुलासा करने वाली पत्रकार रोहिणी सिंह व वेबसाईट के सम्पादकों पर 100 करोड़ का आपराधिक मानहानि मुकदमा दर्ज कराया गया. पत्रकार गौरी लंकेश की न केवल हत्या ही की गई वरन् भाजपा-आरएसएस जैसे संगठनों ने इस नृशंश हत्या पर जश्न भी मनाया और अश्लील शब्दों से अलंकृत भी किया था.

पत्रकारों की स्वतंत्रता पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मार्कंडेय काटजू सटीक विश्लेषण करते हुए कहते हैं, ‘‘दुनिया भर में मीडिया काॅरपोरेट के हाथ में है, जिसका एकमात्र उद्देश्य अधिक से अधिक फायदा कमाना है, वास्तव में कोई प्रेस स्वतंत्रता है कि नहीं. बड़े पत्रकार मोटा वेतन लेते हैं और इसी वजह से वे फैंसी जीवनशैली के आदी हो गये हैं. वो इसे खोना नहीं चाहेंगे और इसीलिए ही आदेशों का पालन करते हैं और तलवे चाटते हैं.’’

आज के चैनलों और उनके पत्रकारों के तलवे चाटने का विश्लेषण करते हुए वरिष्ठ समीक्षक सुधीश पचौरी बेहद ही संजीदा तरीके से बताते हुए कहते हैं, ‘‘एक चैनल कहता है, सच के लिए सा… कुछ भी करेगा अैर ‘सच’ के लिए सचमुच ‘कुछ भी’ करता रहता है. दूसरे ने अपना नाम ही ‘नेशन’ रख लिया है और किसी जिद्दी बालक की तरह हर वक्त जोर-जोर से चीखता रहता है, ‘‘नेशन वांट्स टू नो ! नेशन वांट्स टू नो’., तीसरे ने अपने आप को गणतंत्र ही घोषित कर रखा है. इस गणतंत्र में एक आदमी रहता है, जिसका पुण्य कर्तव्य है कि वह हर समय कांग्रेस के कपड़े उतारता-फाड़ता रहे ! चौथा कहता रहता है कि सच सिर्फ अपने यहां मिलता है और तौल में मिलता है – पांच, दस, पचास ग्राम से लेकर एक टन, दो टन तक मिलता है. हर साईज के सच की पुड़िया हमारे पास है. पांचवें चैनल का एक एंकर देश को बचाने के लिए स्टूडियो में नकली बुलेट प्रुफ जैकेट पहने दहाड़ता रहता है – पता नहीं कब दुष्ट पाकिस्तान गोली चला दे और सीधे स्टूडियो में आकर लगे. उसे यकीन है कि बुलेट प्रुफ जैकेट उसे अवश्य बचा लेगी. अपने यहां ऐसे ही चैनल हैं. बहाुदरी – (इसे चापलूसी और दलाली पढ़ेंं) – में सब एक से एक बढ़कर हैं.’’

अन्तराष्ट्रीय संस्था ‘रिपोर्ट्स विदाउट बाॅडर्स’ ने भारत में प्रेस स्वतंत्रता को 136वां स्थान दिया था. यह बेहद ही शर्मनाक है जब हम विश्व गुरू बनने की ख्वाहिशों को पाले हुए हैं – यह अलग बात है कि भारत में गुरूओं की दुर्दशा विश्व में सबसे ज्यादा शर्मनाक और उनकी परिस्थितियां बेहद ही जटिल है – जबकि प्रेस स्वतंत्रता में भारत जिम्बाब्बे और म्यामांर जैसे देशों से भी पीछे है. रिपोर्ट्स विदाउट बॉर्डर कि रिपोर्ट्स के अनुसार, ‘‘भारत में प्रेस की स्वतंत्रता को मोदी के राष्ट्रवाद से खतरा है और मीडिया डर की वजह से खबरें नहीं छाप रही है. भारतीय मीडिया में सेल्फ सेंसरशिप बढ़ रही है और पत्रकार कट्टर राष्ट्रवादियों के आॅनलाईन बदनाम करने के अभियानों के निशाने पर है. सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों को रोकने के लिए मुकदमें तक किये जा रहे हैं.’’

भारत में प्रेस और पत्रकारों की स्वतंत्रता एक खतरनाक दौर से गुजर रहा है, जहां खबरें बनाना मौत या जेल का रास्ता दिखा सकती है. खासकर भाजपा सरकार की नीतियों के जनविरोधी व काॅरपोरेटपस्त नीतियों का पर्दाफास करने पर. मोदी सरकार सोशल मीडिया को भी नियंत्रित करने का एक से बढ़कर एक कानून बनाने की कोशिश कर रहे हैं.

3 मई को प्रेस स्वतंत्रता दिवस बड़े ही धूमधाम से मनाया गया था. स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ट्वीट करते हुए कहे थे कि ‘‘विश्व प्रेस फ्रीडम दिवस के पर हम स्वतंत्रता और बहुमुखी पत्रकारिता का ढृढ समर्थन करते हैं, यह लोकतंत्र के लिए बहुत जरूरी है.’’ मोदी को अपने ही इस ट्वीट का पालन करना चाहिए. इसके वावजूद वे पत्रकारों-बुद्धिजीवियों की हत्या या उनकी आजादी पर सरकारी तानाशाही के खिलाफ एक शब्द तक नहीं कहते. पत्रकार और चैनल या तो भाजपा की सरकारी नीतियों और उसके मंत्रियों-विधायकों व आला अफसरानों का दलाल बन गया है अथवा जो पत्रकार दलाल बनने को तैयार नहीं उसको हर तरीके से खामोश करने की कोशिशि की जा रही है. सरकारी तानाशाही केवल पत्रकार और चैनल तक ही सीमित नहीं रह गई है, वरन् वह सिनेमा जगत की व्यवस्था की पोल खोलती फिल्मों तक पर लागू हो रही है.

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