अब वे झुंड में आयेंगे
और एक एक कर
सबको उठा ले जायेंगे
गांव के बाहर तंबू गाड़ दिया है वो आदमखोर दैत्य
उसे हर घर से रोज़ एक आदमी चाहिए
भूख मिटाने के लिए
अपने बीच सिक्का उछालो
या पुर्ज़ा निकालो
तय कर लो किसे किसके पहले जाना है
दैत्य के मुंह में
दैत्य की क्षुधा असीम है
वह बंधा हुआ है अपनी प्रतिज्ञा से
अपने आकाओं से की गई प्रतिज्ञा से
कि वो सतत बलि लेगा
बिना थके
बिना हारे
आबाल, वृद्ध, वनिता
सभी होंगे उसकी थाली पर
हां इसमें कुछ व्यतिक्रम भी है
जैसे पहले वो हरे वस्त्र पहने
लोगों को
फिर सफेद वस्त्र वालों को
और, अंत में
केसरिया वस्त्र वालों को
ये वादा किया है उसने अपने आकाओं से
और इसी शर्त पर उसे चूमने दिया गया
मंदिर की सीढ़ियों को
इसी शर्त पर उसे
शपथ दिलाई गई
पवित्र ग्रंथ को छूकर
अब तुम्हारे पास बचने का कोई रास्ता नहीं
तुमने चुन ली है अपनी मौत
बस अपनी बारी का इंतजार करो
या फिर
समय रहते क़मर उठाओ
और सर कलम करो
वैष्णवी भेष में छुपे
उस आदमखोर दैत्य का
चुनाव तुम्हारा है
- सुब्रतो चटर्जी
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