अर्बन नक्सल से कलम नक्सल तक के विकास पर मोदी के इस भाषण को बहुत ध्यान से सावधानीपूर्वक अध्ययन करना चाहिए. यह पुलिस सिस्टम को केंद्रीकृत करने (one nation, one police dress), 5G टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और ह्यूमन इंटेलीजेंस को मजबूत करने, कलम वाले नक्सल के नाम पर कम्युनिस्ट और प्रोग्रेसिव इंटीलेकटुअलस का दमन करने (UAPA ही इस काम के लिए पर्याप्त है लेकिन अब IPC में भी बदलाव होने जा रहा है और यह बदलाव डीकोलनाईजेशन व सुधार के नाम पर करेगा) आदि की बात कर रहा है.
इस भाषण में मोदी का डर भी साफ दिख रहा है. वो कह रहा है कि अगर कलम वाले नक्सलों पर काबू नहीं किया गया तो चीजें हमारे हाथ से निकल जाएंगी. हमें भले ही अभी उतना कॉन्फिडेंस न हो लेकिन रूलिंग क्लास भविष्य में होने वाले भीषण संघर्षों के प्रति बहुत सचेत है. NIA को इतना पावर दिया जा रहा है कि संघीय ढांचा बेमतलब हो जाएगा. हर राज्य व जिले में NIA का मुख्यालय बनेगा. पुलिस सिस्टम को भी केंद्र सरकार के अधीन लाया जाएगा. इस भाषण को ‘between the lines’ पढ़ने की जरूरत है.
रेवोल्यूशनरी लेफ्ट अगर उनकी स्ट्रैटजी और टैक्टिस का ठोस अध्ययन नहीं करेगा और उसके अनुसार अपनी स्ट्रैटजी और टैक्टिस नहीं विकसित करेगा तो वो अनुकूल होती जा रही परिस्थितियों का लाभ नहीं उठा पायेगा – सम्पादक
केंद्रीय मंत्रिमंडल में मेरे सहयोगी श्री अमित शाह, मुख्यमंत्री, गृह मंत्री, विभिन्न राज्यों के पुलिस महानिदेशक, गृह मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी, अन्य सभी गणमान्य व्यक्ति, देवियों और सज्जनों !
देश में इन दिनों उत्सव का माहौल है. देशवासियों ने ओणम, ईद, दशहरा, दुर्गा पूजा और दीपावली सहित कई त्योहार शांति और सद्भाव के साथ मनाए हैं. अब छठ पूजा सहित कई अन्य आगामी त्योहार हैं. विभिन्न चुनौतियों के मद्देनजर इन त्योहारों के दौरान देश की एकता को मजबूत करना भी आपकी तैयारियों का प्रतिबिंब है. भले ही कानून और व्यवस्था संविधान के तहत राज्यों की जिम्मेदारी है, लेकिन यह काफी हद तक देश की एकता और अखंडता से संबंधित है. सूरजकुंड में हो रहा गृह मंत्रियों का यह ‘चिंतन शिविर’ भी सहकारी संघवाद का एक अच्छा उदाहरण है. हर राज्य को एक-दूसरे से सीखना चाहिए, एक-दूसरे से प्रेरणा लेनी चाहिए और देश की बेहतरी के लिए मिलकर काम करना चाहिए. यही संविधान की आत्मा है और देशवासियों के प्रति यह हमारी जिम्मेदारी भी है.
मित्र, आजादी का ‘अमृत काल’ हमारे सामने है. अगले 25 साल देश की ‘अमृत’ पीढ़ी को आगे बढ़ाएंगे. यह ‘अमृत’ पीढ़ी ‘पंच प्राण’ (पांच प्रतिज्ञा) के संकल्पों को आत्मसात करके बनाई जाएगी. विकसित भारत का निर्माण, गुलामी की हर अवधारणा से मुक्ति, अपनी विरासत, एकता और एकजुटता पर गर्व करना और सबसे महत्वपूर्ण नागरिक कर्तव्य – आप सभी इन पांच प्रतिज्ञाओं के महत्व को समझते हैं. यह एक विराट संकल्प है, जिसे ‘सबका प्रयास’ से ही पूरा किया जा सकता है. तरीके अलग हो सकते हैं, हमारे रास्ते और प्राथमिकताएं अलग हो सकती हैं, लेकिन ये ‘पंच प्राण’ देश के हर राज्य में हमारे शासन की प्रेरणा होनी चाहिए. जब ये सुशासन के मूल में होंगे तो भारत की क्षमता का व्यापक विस्तार होगा. जब देश की क्षमता बढ़ेगी, तब देश के हर नागरिक, हर परिवार की ताकत बढ़ेगी. यह सुशासन है, जिसे देश के प्रत्येक राज्य को समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति तक सुनिश्चित करना है. इस संबंध में आप सभी की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है.
मित्र, आप में से अधिकांश जो इस ‘शिविर’ में शामिल हो रहे हैं, या तो अपने राज्य का नेतृत्व कर रहे हैं, या कानून और व्यवस्था के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं. कानून व्यवस्था का सीधा संबंध राज्य के विकास से है. इसलिए राज्यों में विकास के लिए अनुकूल माहौल बनाने में आपके निर्णय, नीतियां और व्यवहार बहुत महत्वपूर्ण हैं.
मित्र, पूरी कानून व्यवस्था का विश्वसनीय होना और जनता के बीच उसकी धारणा का होना भी उतना ही जरूरी है. आपने देखा है कि किसी भी प्राकृतिक आपदा की स्थिति में एनडीआरएफ और एसडीआरएफ एक बड़ी ताकत बनकर उभरे हैं. किसी भी संकट से पहले उनकी उपस्थिति ने देशवासियों में यह विश्वास पैदा कर दिया है कि अब स्थिति नियंत्रण में होगी और हमें उनका पालन करना चाहिए और यदि हम उनकी बात सुनेंगे तो हमें कम नुकसान होगा. आप खुद देखिए एनडीआरएफ और एसडीआरएफ में कौन हैं ? वे आपके सहयोगी हैं. वे सशस्त्र बलों के जवान हैं. लेकिन, समाज में उनके लिए एक तरह का सम्मान है. एनडीआरएफ-एसडीआरएफ की टीम जैसे ही आपदा प्रभावित क्षेत्र में पहुंचती है, लोग आश्वस्त महसूस करते हैं कि एक विशेषज्ञ टीम है जो स्थिति का ध्यान रखेगी.
मित्र, पुलिस जैसे ही अपराध के किसी भी स्थान पर पहुंचती है, लोगों में यह भावना पैदा हो जाती है कि सरकार आ गई है. हमने कोरोना काल में पुलिस की साख में जबरदस्त सुधार देखा. पुलिसकर्मी जरूरतमंदों की मदद कर रहे थे, जरूरी संसाधनों का इंतजाम कर रहे थे और यहां तक कि अपनी जान भी दांव पर लगा रहे थे. यानी जहां तक कर्तव्य के प्रति समर्पण की बात है तो इसमें कोई कमी नहीं है. हालांकि, सकारात्मक धारणा बनाए रखने की भी जरूरत है. इसलिए पुलिस बल को प्रेरित करने और उसके अनुसार योजना बनाने के लिए ऊपर से नीचे तक एक अथक प्रक्रिया होनी चाहिए. किसी भी गलत काम को रोकने के लिए उन्हें हर छोटे मुद्दे पर नियमित रूप से निर्देशित किया जाना चाहिए.
मित्र, हमें एक बात और समझनी होगी. अब कानून-व्यवस्था किसी एक राज्य के दायरे में नहीं रह गई है. अब अंतरराज्यीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपराध हो रहे हैं. तकनीक की मदद से एक राज्य में बैठे अपराधी दूसरे राज्य में भीषण अपराध करने का दुस्साहस करते हैं. देश की सीमाओं के बाहर अपराधी भी तकनीक का दुरूपयोग कर रहे हैं इसलिए हर राज्य की एजेंसियों के बीच समन्वय और केंद्र और राज्य की एजेंसियों के बीच समन्वय बहुत जरूरी है. आपको याद होगा कि मैंने डीजीपी सम्मेलन के दौरान यह दोहराया था कि दो राज्यों के आसपास के जिलों की समस्याओं का समय-समय पर आकलन किया जाना चाहिए और उन्हें मिलकर काम करना चाहिए. यह एक नई शक्ति के निर्माण की ओर ले जाएगा.
कभी-कभी केंद्रीय एजेंसियों को कई राज्यों में एक साथ जांच करनी पड़ती है और उन्हें दूसरे देशों में भी जाना पड़ता है इसलिए किसी भी राज्य या केंद्रीय एजेंसी को पूरा सहयोग देना हर राज्य की जिम्मेदारी है. सभी एजेंसियों को एक दूसरे का सहयोग करना चाहिए. किसी भी एजेंसी की शक्ति और डोमेन पर अनावश्यक रूप से ध्यान नहीं देना चाहिए. कभी-कभी, हम पाते हैं कि अपराध के क्षेत्र और थाने के क्षेत्र में भ्रम के कारण प्राथमिकी दर्ज नहीं की जाती है. ये बातें सिर्फ पुलिस या थाने तक ही सीमित नहीं हैं, यह राज्यों के बीच भी होता है, यह केंद्र और राज्यों के बीच भी होता है. यह भारत और विदेशों की एजेंसियों के बीच भी होता है. इसलिए हमारी अपनी दक्षता और परिणाम के साथ-साथ देश के आम नागरिक को सुरक्षा प्रदान करने के लिए सभी स्तरों पर समन्वय, संकलन और सहयोग बहुत महत्वपूर्ण है. यदि सभी स्तरों पर सहयोग हो तो प्रत्येक राज्य को लाभ होगा.
मित्र, हमें साइबर अपराध से निपटने के लिए तकनीक पर काम करते रहने की जरूरत है या हथियारों और ड्रग्स की तस्करी में ड्रोन तकनीक के इस्तेमाल की जरूरत है. आप देखिए, यह 5G का युग है. अब 5जी के फायदों के साथ-साथ उस स्तर पर जागरूकता भी जरूरी होगी. 5G चेहरे की पहचान तकनीक, स्वचालित नंबर-प्लेट पहचान तकनीक, ड्रोन और सीसीटीवी मैनिफोल्ड जैसी तकनीकों के प्रदर्शन में सुधार करने जा रहा है. हम जितनी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं, वैश्वीकरण के कारण आपराधिक दुनिया भी उतनी ही रफ्तार पकड़ रही है. वे तकनीक में समान रूप से माहिर हैं. इसका मतलब है कि हमें उनसे दस कदम आगे की योजना बनानी होगी. हमें अपनी कानून व्यवस्था को स्मार्ट बनाने के लिए और अधिक तत्परता से काम करना होगा.
मित्र, मैं सभी से आग्रह करूंगा कि बजट को तकनीक के इस्तेमाल में न आने दें इसलिए मैं सभी सम्मानित मुख्यमंत्रियों और गृह मंत्रियों से आग्रह करता हूं कि इस मुद्दे पर एक टीम बनाएं और गंभीरता से विचार करें कि कैसे तकनीक प्रेमी आपराधिक दुनिया बन रही है और हमारे पास उपलब्ध तकनीक हमारे लोगों को सुरक्षा कैसे प्रदान कर सकती है. इससे संबंधित बजट को अनावश्यक खर्चों को बचाकर पूरा किया जा सकता है. प्रौद्योगिकी का बेहतर उपयोग न केवल पूरे पुलिस ढांचे को मजबूत करता है, बल्कि इससे आम नागरिकों में अपनी सुरक्षा के प्रति विश्वास भी पैदा होता है. प्रौद्योगिकी अपराध की रोकथाम और अपराध का पता लगाने में भी मदद करती है. यह अपराधों की जांच में भी बहुत उपयोगी है. आप देखिए, सीसीटीवी की वजह से आज कई अपराधियों को गिरफ्तार किया जा रहा है. स्मार्ट सिटी अभियान के तहत शहरों में बनाए गए आधुनिक कमांड और कंट्रोल सिस्टम भी काफी मदद कर रहे हैं.
मित्र, केंद्र सरकार ने नई तकनीकों के विकास के लिए पुलिस प्रौद्योगिकी मिशन भी शुरू किया है. कई राज्य इस संबंध में अपने स्तर पर काम भी कर रहे हैं लेकिन अनुभव हमें बताता है कि विभिन्न स्तरों पर अलग-अलग प्रयोगों के कारण तकनीक बेमानी हो जाती है और इसलिए हमारी ऊर्जा भी बर्बाद हो जाती है. अक्सर जांच सामग्री संबंधित राज्य के पास रहती है और उसे साझा नहीं किया जाता है. हमें ऐसी जानकारी साझा करने के लिए एक साझा मंच के बारे में सोचने की जरूरत है. उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति कुछ (तकनीक) का दावा करता है जो बहुत अच्छा है और इसे किसी के साथ साझा नहीं करने का निर्णय लेता है. फिर एक समय आएगा जब उसके पास सबसे अच्छी तकनीक हो सकती है, लेकिन उसके स्टैंडअलोन दृष्टिकोण के कारण यह किसी काम का नहीं होगा. इसलिए, प्रौद्योगिकी भारत उन्मुख होनी चाहिए. हमारे सभी सर्वोत्तम अभ्यास और सर्वोत्तम नवाचार सामान्य उपयोग के लिए होने चाहिए.
मित्र, आज फॉरेंसिक साइंस का महत्व बढ़ रहा है और यह केवल पुलिस विभाग तक ही सीमित नहीं है. कानूनी बिरादरी, न्यायपालिका के साथ-साथ अस्पतालों को भी फोरेंसिक विज्ञान के बारे में ज्ञान विकसित करना होगा. अपराध को सामने लाने और संयुक्त प्रयासों से अपराधी को सजा सुनिश्चित करने में फोरेंसिक विज्ञान का उपयोग बहुत काम आ सकता है. फोरेंसिक साइंस केवल पुलिस विभाग का ही डोमेन रह जाए तो काफी नहीं होगा. गांधीनगर स्थित नेशनल फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी देश के तमाम राज्यों के लिए मददगार साबित हो रही है. इसके अलावा दुनिया के 60-70 देश भी इस फोरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी का फायदा उठा रहे हैं. हमारे सभी राज्यों को इस विश्वविद्यालय का अधिक से अधिक उपयोग करना चाहिए. यह पूरी तरह से भविष्यवादी प्रौद्योगिकी संचालित प्रणाली है. इसमें मानव संसाधन विकास के साथ-साथ नए प्रौद्योगिकी उपकरण बनाना शामिल है. इसकी लैब बेहद कठिन मामलों को सुलझाने में भी उपयोगी हो रही है. मुझे लगता है कि सभी राज्यों को इस प्रणाली का सक्रिय रूप से उपयोग करना चाहिए.
मित्र, कानून और व्यवस्था बनाए रखना 24×7 का काम है लेकिन यह भी जरूरी है कि हम प्रक्रियाओं में लगातार सुधार करते रहें और उन्हें आधुनिक बनाए रखें. पिछले कुछ वर्षों में भारत सरकार द्वारा किए गए कानून और व्यवस्था में सुधार ने पूरे देश में शांति का माहौल बनाने में मदद की है. जैसा कि आप जानते हैं कि भारत की विविधता और विशालता के कारण हमारी कानून प्रवर्तन प्रणाली पर जबरदस्त दबाव है. इसलिए यह बहुत जरूरी है कि हमारे सिस्टम ऊर्जा को सही दिशा में लगाएं. अन्यथा हमने देखा है कि कई अनावश्यक मामलों में छोटी-छोटी गलतियों की जांच में पुलिस विभाग की ऊर्जा बर्बाद होती है. इसलिए हमने अब व्यापार और व्यापार से जुड़े कई प्रावधानों को अपराध से मुक्त कर दिया है और उन्हें अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है. 1,500 से अधिक पुरातन कानूनों को समाप्त करके एक बड़ा बोझ कम किया गया है. मैं राज्यों से अपने स्तर पर भी कानूनों का मूल्यांकन करने का आग्रह करता हूं. आजादी से पहले मौजूद सभी कानूनों को मौजूदा जरूरतों को देखते हुए बदलें. हर कानून में आपराधिक कोण और निर्दोष नागरिकों के लिए परेशानी अब गायब हो गई है.
अब, पर्यटन दुनिया में एक बड़ा बाजार बनकर उभरा है. भारत में पर्यटन के कई अवसर बढ़ रहे हैं. दुनिया भर से भारत आने वाले पर्यटकों का प्रवाह बढ़ने वाला है. दुनिया में कई देश ऐसे हैं जो पर्यटन के क्षेत्र में काफी आगे हैं. उन देशों में पर्यटन के लिए एक विशेष पुलिस बल है. उस बल का एक बिल्कुल अलग प्रशिक्षण है. उन्हें अलग-अलग भाषाएं भी सिखाई जाती हैं. उनका व्यवहार भी बहुत अलग होता है. उन देशों में आने वाले विदेशी पर्यटक भी जानते हैं कि यह पुलिस बल उनकी मदद के लिए है. देर-सबेर हमें इस शक्ति को अपने देश में विकसित करना ही होगा. एक अलग देश से भारत आने वाले पर्यटक और एक विदेशी निवेशक के बीच बहुत बड़ा अंतर है. एक विदेशी पर्यटक तुरंत आपके देश का राजदूत बन सकता है. वह देश के अच्छे और बुरे दोनों छापों को घर ले जाएगा. एक निवेशक को कुछ भी अच्छा या बुरा पहचानने में काफी समय लगता है लेकिन एक पर्यटक को यह खबर फैलाने में मुश्किल से दो दिन लगते हैं कि यहां का हाल यही है.
भारत में भी, मध्यम वर्ग के लोगों के उदय के साथ पर्यटन में बदलाव देखा जा रहा है. पर्यटन को यातायात के रूप में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. यदि हम पहले से योजना नहीं बनाते हैं, तो पर्यटन केंद्र अपने आप नहीं बदलने वाले हैं. अगर हम किसी को शिमला न जाने और किसी अन्य पर्यटन स्थल की यात्रा करने का सुझाव दें, तो क्या वह ऐसा करेगा ? जो लोग शिमला जाना चाहते हैं, वे शिमला जाएंगे. नैनीताल, श्रीनगर, गुलमर्ग आदि जाने के इच्छुक लोगों के साथ भी ऐसा ही है. हमें सिस्टम विकसित करने की जरूरत है.
मित्र, स्वामित्व योजना के तहत देश के गांवों में ड्रोन तकनीक का उपयोग करके संपत्ति कार्ड वितरित करने की सरकार की पहल से भूमि संबंधी विवादों को कम करने में भी मदद मिलेगी. नहीं तो गांवों में हिंसक झड़पें तब होती थीं, जब कोई अपने पड़ोसी से एक फुट की जमीन भी जबरदस्ती ले लेता था.
मित्र, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से ऐसे कई प्रयासों ने भी कानून प्रवर्तन एजेंसियों को अपनी प्राथमिकताएं निर्धारित करने में मदद की है. लेकिन अगर हम अपनी रणनीति नहीं बदलते और 20-30-50 साल पुराने तरीकों को अपनाते रहेंगे तो ये प्रयास सफल नहीं होंगे. पिछले कुछ वर्षों में केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों ने भी कानून व्यवस्था को मजबूत किया है. आज देश में आतंकवाद, हवाला नेटवर्क और भ्रष्टाचार के खिलाफ अभूतपूर्व सख्ती (!) है. लोगों में विश्वास विकसित हो रहा है. यूएपीए जैसे कानूनों ने आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक लड़ाई में व्यवस्था को मजबूती दी है. संक्षेप में कहें तो हम एक तरफ देश की कानून व्यवस्था को मजबूत कर रहे हैं और दूसरी तरफ उन पर से अनावश्यक बोझ भी हटा रहे हैं.
मित्र, हमारे देश की पुलिस के लिए एक और अहम मुद्दा है. आज वन नेशन, वन राशन कार्ड, वन नेशन-वन मोबिलिटी कार्ड, वन नेशन-वन ग्रिड, वन नेशन-वन साइन लैंग्वेज आदि की व्यवस्था है. क्या पुलिस की वर्दी के संबंध में ऐसा दृष्टिकोण विकसित किया जा सकता है ? क्या हमारे राज्य एक साथ बैठकर इस पर विचार कर सकते हैं ? कई फायदे होंगे. एक, गुणवत्तापूर्ण सामग्री उत्पाद होंगे क्योंकि यह बड़े पैमाने पर होगा. करोड़ों कैप की जरूरत होगी. करोड़ों बेल्ट की जरूरत होगी. और देश के किसी भी नागरिक के लिए यह आसान होगा कि वह जहां भी जाए एक पुलिसकर्मी को पहचान सके.
उदाहरण के लिए, एक डाकघर बॉक्स है. भारत के पढ़े-लिखे और अनपढ़ लोग इस बात से अवगत हैं कि यदि आप उस बॉक्स में एक पत्र पोस्ट करते हैं तो वह अपने गंतव्य तक पहुंच जाएगा. इसकी अपनी पहचान है. जहां तक पुलिस की वर्दी का सवाल है, हमारे लिए यह जरूरी है कि हम इस पर गंभीरता से विचार करें. इसे थोपने की जरूरत नहीं है, लेकिन इसे विकसित किया जा सकता है. मुझे लगता है कि यह बहुत फायदेमंद होगा और एक-दूसरे की ताकत में इजाफा करेगा. एक राष्ट्र-एक पुलिस वर्दी में संबंधित राज्य के अलग-अलग टैग और नंबर हो सकते हैं, लेकिन एक समान पहचान होनी चाहिए. यह सिर्फ मेरा विचार है और आपको इस पर विचार करना चाहिए. अगर यह सही लगता है, तो इसे 5-50-100 साल बाद माना जा सकता है. इसी तरह विशेषज्ञता के लिए विभिन्न प्रकार की पुलिस के नए विभाग शुरू किए गए हैं.
अब, पर्यटन दुनिया में एक बड़ा बाजार बनकर उभरा है. भारत में पर्यटन के कई अवसर बढ़ रहे हैं. दुनिया भर से भारत आने वाले पर्यटकों का प्रवाह बढ़ने वाला है. दुनिया में कई देश ऐसे हैं जो पर्यटन के क्षेत्र में काफी आगे हैं. उन देशों में पर्यटन के लिए एक विशेष पुलिस बल है. उस बल का एक बिल्कुल अलग प्रशिक्षण है. उन्हें अलग-अलग भाषाएं भी सिखाई जाती हैं. उनका व्यवहार भी बहुत अलग होता है. उन देशों में आने वाले विदेशी पर्यटक भी जानते हैं कि यह पुलिस बल उनकी मदद के लिए है. देर-सबेर हमें इस शक्ति को अपने देश में विकसित करना ही होगा.
एक अलग देश से भारत आने वाले पर्यटक और एक विदेशी निवेशक के बीच बहुत बड़ा अंतर है. एक विदेशी पर्यटक तुरंत आपके देश का राजदूत बन सकता है. वह देश के अच्छे और बुरे दोनों छापों को घर ले जाएगा. एक निवेशक को कुछ भी अच्छा या बुरा पहचानने में काफी समय लगता है लेकिन एक पर्यटक को यह खबर फैलाने में मुश्किल से दो दिन लगते हैं कि यहां का हाल यही है.
भारत में भी, मध्यम वर्ग के लोगों के उदय के साथ पर्यटन में बदलाव देखा जा रहा है. पर्यटन को यातायात के रूप में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. यदि हम पहले से योजना नहीं बनाते हैं, तो पर्यटन केंद्र अपने आप नहीं बदलने वाले हैं. अगर हम किसी को शिमला न जाने और किसी अन्य पर्यटन स्थल की यात्रा करने का सुझाव दें, तो क्या वह ऐसा करेगा ? जो लोग शिमला जाना चाहते हैं, वे शिमला जाएंगे. नैनीताल, श्रीनगर, गुलमर्ग आदि जाने के इच्छुक लोगों के साथ भी ऐसा ही है. हमें सिस्टम विकसित करने की जरूरत है.
मित्र, कोरोना काल में हमने देखा है कि कैसे पुलिस कर्मी फोन पर अपने क्षेत्र के लोगों का हालचाल पूछते थे. महत्वपूर्ण रूप से, कई शहरों में कई वरिष्ठ पुलिस कर्मियों ने वरिष्ठ नागरिकों की स्वेच्छा से देखभाल करने की यह जिम्मेदारी ली. नागरिकों का विश्वास तब बढ़ता है जब पुलिस कर्मी लगातार वरिष्ठ नागरिकों से उनकी कुशलक्षेम पूछ रहे होते हैं या क्या उन्होंने अपने घरों में ताला लगाकर बाहर जाने की योजना बनाई है. इस तरह की बातचीत भी आपके लिए बहुत बड़ी ताकत बन जाती है. हम पेशेवर तरीके से इस तरह के इंटरैक्शन का जितना अधिक उपयोग करेंगे, बहुत कुछ अच्छा होगा. यदि किसी वरिष्ठ नागरिक को सप्ताह में एक बार पुलिस थाने से गंभीर और एनिमेटेड फोन किया जाता है, तो वह पूरे महीने पुलिस के अच्छे काम का प्रचार करता रहेगा. केवल आप ही लोगों के बीच ऐसी धारणा बना सकते हैं.
एक और मुद्दा है जिस पर हमें बहुत सतर्क रहने की जरूरत है. यह तकनीकी बुद्धि का उपयोग है. इसके अपने फायदे हैं लेकिन साथ ही हम मानवीय बुद्धि से मुंह नहीं मोड़ सकते. यह कुछ ऐसा है जो 100 वर्षों से प्रचलन में है और प्रौद्योगिकी में कई प्रगति के बावजूद अगले 100 वर्षों में पुलिस कर्मियों के लिए उपयोगी बना रहेगा. जितना हो सके मानव बुद्धि को मजबूत करें. इसमें अपार संभावनाएं हैं. यह एक ऐसे पुलिसकर्मी की बड़ी ताकत है जो अपराधी की आंखों में देखकर और उससे बात करके सच्चाई को उजागर कर सकता है. मानव बुद्धि और तकनीकी बुद्धि का संयोजन आपके लिए जीवन को आसान बना सकता है. यदि आपको लोगों की कुछ अनुचित आवाजाही का संदेह है, तो आपको तुरंत पता चल जाएगा. मुझे लगता है कि इन दो प्रणालियों का इष्टतम उपयोग एक स्मार्ट बदलाव ला सकता है और यह एक अपराधी को अपराध करने से पहले 50 बार सोचने के लिए मजबूर करेगा.
मित्र, हमें एक और सच्चाई से अवगत होने की जरूरत है. भारत जिस तरह से वैश्विक स्तर पर तेजी से आर्थिक प्रगति कर रहा है, हमें नई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. शुरू-शुरू में आप को नीचा दिखाया जाएगा और आपका मजाक उड़ाने की कोशिश की जाएगी, लेकिन आगे बढ़ते रहना चाहिए. यदि आप अच्छा करते हैं तो प्रतिस्पर्धा अक्सर शत्रुता की ओर ले जाती है. दुनिया में ऐसी कई ताकतें होंगी जो नहीं चाहतीं कि भारत उनसे ज्यादा सफल हो. वे नहीं चाहेंगे कि भारत उस क्षेत्र में अतिक्रमण करे जिसमें उन्हें विशेषज्ञता हासिल है. यदि किसी उत्पाद पर उनका एकाधिकार है, तो उन्हें डर है कि यदि भारत इसके उत्पादन का सहारा लेता है तो भारत उनके बाजारों पर कब्जा कर लेगा. भारत का एक बड़ा बाजार है और अगर भारत उत्पाद का उत्पादन शुरू करता है तो वे अपना उत्पाद कहां बेचेंगे. इसलिए, हम कई रूपों में चुनौतियों का सामना करते हैं और ऐसी चुनौतियां अक्सर शत्रुतापूर्ण हो जाती हैं. इसलिए हमें ऐसी चुनौतियों से सावधान रहने की जरूरत है.
साथ ही हमें दूसरों के बारे में बुरा नहीं सोचना है. यह मानव स्वभाव है. उदाहरण के लिए, यदि आपके विभाग के दो अधिकारियों में से एक की पदोन्नति होने वाली है तो भी बेचैनी की भावना होगी. नतीजतन, पदोन्नति होने से 10 साल पहले दोनों अधिकारियों के बीच छिपी प्रतिद्वंद्विता शुरू हो जाएगी. ऐसा हर जगह होता है भाइयों. इसलिए, मैं दोहराता हूं कि हमें अपनी क्षमता की रक्षा करते हुए अपने दृष्टिकोण में दूरदर्शिता रखनी चाहिए. पहले और अब की कानून-व्यवस्था के सामने मौजूद चुनौतियों में बहुत बड़ा अंतर आने वाला है.
हमें न केवल पुरानी चुनौतियों का सामना करना है, बल्कि नई चुनौतियों के लिए खुद को तैयार करना है. यह हमारी जिम्मेदारी है कि देश के खिलाफ ऐसी विरोधी ताकतों के उद्भव के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें और कानून का पालन करने वाले लोगों की सुरक्षा और अधिकारों को सुनिश्चित करें. कोई भी उदारता बर्दाश्त नहीं की जा सकती, वरना हमारे कानून का पालन करने वाले नागरिक कहां जाएंगे ? वे देश के 99% नागरिक हैं और समस्या एक प्रतिशत के साथ है. 99 प्रतिशत आबादी के बीच विश्वास पैदा करने के लिए हमें एक प्रतिशत लोगों के प्रति उदार होने की आवश्यकता नहीं है.
मित्र, हमें सोशल मीडिया की ताकत को भी कम नहीं आंकना चाहिए. छोटी-छोटी फेक न्यूज भी पूरे देश में हलचल मचा सकती है. आरक्षण के खिलाफ फैली अफवाहों से देश को हुए नुकसान से हम वाकिफ हैं. जब लोगों को लगा कि यह फेक न्यूज है और 6-8 घंटे बाद शांत हुए तो काफी नुकसान हो चुका था. इसलिए, हमें लोगों को शिक्षित करने की आवश्यकता है कि उन्हें विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्राप्त होने वाली किसी भी चीज़ को फॉरवर्ड करने से पहले दस बार सोचना चाहिए. उन्हें फॉरवर्ड की गई किसी भी खबर की सत्यता की जांच करनी चाहिए और सभी प्लेटफार्मों में सत्यापन की एक प्रणाली उपलब्ध है. अगर आप एक-दो-दस प्लेटफॉर्म पर जाते हैं, तो आपको असली खबर मिलेगी. हमें फेक न्यूज के खिलाफ लोगों को जागरूक करने की जरूरत है. हमें नकली दुनिया संचालित समाज के खिलाफ एक बड़ी ताकत बनाने की जरूरत है. हमें इस संबंध में तकनीकी शक्ति बनाने की जरूरत है.
मित्र, अमितभाई सिर्फ नागरिक सुरक्षा के महत्व के बारे में बात कर रहे थे. ऐसे कई मुद्दे हैं जिन पर हमारा ध्यान भटका है. अमित भाई ने सही मुद्दे पर संज्ञान लिया है. नागरिक सुरक्षा कई दशकों से चलन में है और इसकी अत्यधिक उपयोगिता है. हमें हमारे स्कूलों और कॉलेजों में नागरिक सुरक्षा के बारे में पढ़ाया जाता था. हम पहले भी अग्निशमन की व्यवस्था करते थे. यह हमारे स्वभाव का हिस्सा होना चाहिए. मैंने अक्सर कहा है कि फायर ब्रिगेड के कर्मचारी और पुलिस हर हफ्ते हर नगर पालिका के एक स्कूल में फायर फाइटिंग ड्रिल का आयोजन करें. इस तरह के अभ्यास से न सिर्फ छात्र शिक्षित होंगे बल्कि दमकल विभाग के अधिकारी भी अभ्यास कराएंगे. यह सभी विद्यालयों में सप्ताह दर सप्ताह किया जाना चाहिए. शहर के किसी स्कूल में इस तरह के अभ्यास का अगला मौका 10 साल बाद आएगा लेकिन हर पीढ़ी को नागरिक सुरक्षा और अग्निशमन कौशल की उपयोगिता के बारे में पता चल जाएगा. यह आपके लिए भी बहुत बड़ी उपलब्धि होगी. यह कुछ ऐसा है जिसे आसानी से किया जा सकता है.
मित्र, पिछले कुछ वर्षों में सभी सरकारों ने आतंकवाद की गंभीरता को देखते हुए बड़ी जिम्मेदारी के साथ जमीनी नेटवर्क को तबाह करने के लिए कुछ न कुछ करने की कोशिश की है. कहीं सफलता पहले मिल गई हो, कहीं देर हो गई हो, लेकिन ऐसा नहीं है कि आज हर किसी को इसकी गंभीरता को समझाना पड़े. अब हमें ताकत जोड़कर इसे संभालना है. इसी तरह हमें हर तरह के नक्सलवाद को हराना है. बंदूक चलाने वाले के साथ-साथ कलम चलाने वाले भी नक्सली हैं. हमें इस समस्या का समाधान खोजने की जरूरत है.
हमारी युवा पीढ़ी को भ्रमित करने के लिए लोग इस तरह के अपरिपक्व मुद्दों का सहारा ले रहे हैं और देश को बहुत नुकसान उठाना पड़ रहा है. अगर तत्काल कदम नहीं उठाए गए तो कोई भी इसे संभाल नहीं पाएगा. जैसा कि हमने नक्सल प्रभावित जिलों को लक्षित किया है, वे (नक्सली) अब अपने बौद्धिक दायरे को उन जगहों तक विस्तारित करने का सहारा ले रहे हैं जहां वे आने वाली पीढ़ियों को लक्षित कर सकते हैं और विकृत मानसिकता पैदा कर सकते हैं. वे लोगों के बीच नफरत पैदा कर सकते हैं. वे अनुपात से बाहर भावनात्मक मुद्दों को उठाकर समाज में एक कील बना सकते हैं और देश की एकता और अखंडता को नष्ट कर सकते हैं. जब सरदार वल्लभभाई पटेल हमारे प्रेरणा स्रोत हैं, तो हम ऐसी ताकतों को सफल नहीं होने दे सकते लेकिन इसे समझदारी और समझदारी से करना होगा.
हमें अपने सुरक्षा ढांचे में विशेषज्ञता बनाने की जरूरत है. किसी भी राज्य में ऐसी किसी भी अवांछित घटना के मद्देनजर, हमारे शीर्ष विशेषज्ञों को मौके पर अध्ययन करने के लिए वहां पहुंचाना चाहिए. उन्हें वहां कुछ दिन बिताने चाहिए और यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि स्थिति कैसे विकसित हुई और इसे कैसे संभाला गया. हमें सीखने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए. ऐसी ताकतों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी काफी मदद मिलती है. वे बहुत चतुर हैं और वे बहुत मासूम लगते हैं. वे कानून और संविधान की भाषा बोलते हैं लेकिन उनके कार्य बिलकुल अलग हैं. हमारे सुरक्षा तंत्र में सही और गलत के बीच अंतर करने की क्षमता होनी चाहिए. स्थायी शांति के लिए ऐसी ताकतों के खिलाफ तेजी से आगे बढ़ना हमारे लिए बहुत जरूरी है.
मित्र, जम्मू-कश्मीर हो या उत्तर-पूर्व, हम लोगों का विश्वास हासिल कर रहे हैं. विनाशकारी ताकतें भी मुख्यधारा में शामिल होने को तरस रही हैं. जब वे तेजी से विकास और बुनियादी ढांचे और लोगों की आकांक्षाओं की पूर्ति देखते हैं, तो वे भी अपने हाथों को छोड़कर मुख्यधारा में शामिल होने की तैयारी कर रहे हैं. इसी तरह हमें अपनी सीमा और तटीय क्षेत्रों में विकास पर ध्यान देना होगा. बजट प्रस्तुति के दौरान वाइब्रेंट विलेज की अवधारणा पर भी जोर दिया गया है. आपको इसके बारे में सोचना चाहिए. आला अधिकारी कुछ रातें इन सीमावर्ती गांवों में बिताएं. मैं मंत्रियों से एक साल में कम से कम पांच या सात सीमावर्ती गांवों में कुछ घंटे बिताने का भी अनुरोध करूंगा. चाहे राज्य का सीमावर्ती गांव हो या अंतरराष्ट्रीय सीमा का गांव, आपको बहुत सारी बारीकियां पता चल जाएंगी.
मित्र, हथियारों और ड्रग्स की चल रही तस्करी में ड्रोन सबसे नई चिंता है. हमें अपनी सीमा और तटीय इलाकों में सतर्क रहने की जरूरत है. हम सिर्फ एक या दूसरी एजेंसी पर दोष लगाने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं या आराम नहीं कर सकते हैं कि यह केवल तट रक्षकों की जिम्मेदारी है. हमें बेहतर तालमेल की जरूरत है. मुझे यकीन है कि अगर हम राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखते हुए आगे बढ़ते हैं तो ये सभी चुनौतियां बौनी हो जाएंगी. हम अन्य मुद्दों को भी संभालने के लिए बेहतर तरीके से तैयार होंगे.
मुझे विश्वास है कि इस विचार-मंथन सत्र में चर्चा के परिणामस्वरूप कार्रवाई योग्य बिंदु निकलेंगे. हर राज्य के सहयोग से एक सामूहिक रोडमैप होगा. यदि हम अधिकार क्षेत्र की लड़ाई में उलझे रहते हैं तो असामाजिक तत्व जो कानून के प्रति कम सम्मान रखते हैं, वे इस अराजकता का पूरा फायदा उठाएंगे. हमारे बीच पेशेवर समझ और विश्वास होना चाहिए और यह जिम्मेदारी हमारे कार्यकर्ताओं की है. यह एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है. मुझे विश्वास है कि अगर हम एक साथ काम करेंगे तो हमें वांछित परिणाम मिलेगा. किसी देश के सामने कोई भी अवसर अपनी ताकत वर्दी से प्राप्त करता है. ट्रस्ट के पीछे वर्दीधारी बल एक महत्वपूर्ण कारक हैं. यदि हम उन्हें अधिक शक्तिशाली, दूरदर्शी और नागरिकों के प्रति संवेदनशील बनाते हैं तो हमें बहुत लाभ होगा.
मैंने डीजीपी सम्मेलन के दौरान कुछ सुझाव दिए. मैं सभी मुख्यमंत्रियों और गृह मंत्रियों को बताऊंगा कि डीजीपी सम्मेलन एक बहुत ही उपयोगी सम्मेलन के रूप में उभरा है. जीरो पोलिटिकल एलिमेंट के साथ पूरे दिल से चर्चा हो रही है. मैं उस सम्मेलन के परिणाम को उन सभी सचिवों के साथ साझा करता हूं जो आईएएस कैडर से संबंधित हैं और निर्वाचित प्रतिनिधि जो सरकार चलाते हैं. आप डीजीपी सम्मेलन की पूरी ब्रीफिंग प्राप्त करें और अपने संबंधित राज्यों में कार्रवाई योग्य बिंदुओं को तुरंत लागू करें. यह बहुत उपयोगी होगा.
हमारे शीर्ष बॉस ने जिस डीजीपी सम्मेलन में भाग लिया है, उसके प्रति आकस्मिक दृष्टिकोण नहीं होना चाहिए और यह इसका अंत है. यह सम्मेलन देश की सुरक्षा के लिए है. उदाहरण के लिए पुलिस कर्मियों के लिए मकानों के संबंध में एक प्रस्ताव था. उस सम्मेलन में मैंने सुझाव दिया था कि क्या बड़े शहरों में हमारे पुलिस थानों को बहुमंजिला इमारतों में बदला जा सकता है. यदि बहुमंजिला इमारत है तो उसी परिसर से पुलिस थाना भी काम कर सकता है और उसी 20 मंजिला इमारत में पुलिसकर्मियों के आवास क्वार्टर भी हो सकते हैं. जिस पुलिसकर्मी का तबादला किया जाता है, वह परिसर खाली कर देता है और उसके बदले में उसे वही घर मिल जाता है.
आज पुलिस कर्मियों को शहर से 25 किमी दूर घर मिल जाते हैं. वे आने-जाने में दो घंटे बर्बाद करते हैं. हम ऊंची इमारतों के निर्माण के लिए संबंधित राज्य सरकार और नगर पालिका से बात कर सकते हैं. हम ऐसी चीजें व्यवस्थित कर सकते हैं. स्टैंडअलोन थाना आधुनिक पुलिस थाना बन सकता है और उसी परिसर में 20-25 मंजिला ऊंची इमारत में पुलिसकर्मियों के लिए आवास की व्यवस्था भी की जा सकती है.
मेरा मानना है कि हम बड़े शहरों में ऐसे 25-50 पुलिस थानों की पहचान आसानी से कर सकते हैं जहां ऐसी संभावना विकसित की जा सके. वरना हो क्या रहा है कि शहरों से 20-25 किमी दूर पुलिस क्वार्टर बन रहे हैं. जैसा कि अमितभाई कह रहे थे, बजट का सही उपयोग नहीं हो रहा है और पैसा सोच-समझकर खर्च नहीं किया जा रहा है. मैं बार-बार इस बात पर जोर देता रहा हूं कि जो राशि किसी विशेष प्रयोजन के लिए स्वीकृत की गई है, उसे उसी पर खर्च किया जाए और वह भी समय सीमा के भीतर. समस्या यह है कि हम स्वीकृत राशि खर्च नहीं कर पा रहे हैं. हम अपने देश में ऐसी स्थिति नहीं चाहते हैं. हमें अपनी क्षमता बढ़ाने और निर्णय लेने की प्रक्रिया में तेजी लाने की जरूरत है. तभी हम समय सीमा के भीतर धन का उपयोग कर पाएंगे. जब धन को समय सीमा के भीतर खर्च किया जाता है, तो यह न केवल धन की बर्बादी को रोकता है, बल्कि इससे कई लाभ होते हैं.
मैं आपका ध्यान एक अन्य मुद्दे की ओर आकर्षित करना चाहता हूं. सभी राज्यों की पुलिस और भारत सरकार को पुराने वाहनों की स्क्रैपिंग नीति का अध्ययन करना चाहिए. पुराने वाहनों को स्क्रैप करने की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करें. पुलिस के पास पुराने वाहन नहीं होने चाहिए क्योंकि मामला दक्षता से जुड़ा है. दो फायदे होंगे. स्क्रैपिंग व्यवसाय में शामिल लोगों को आश्वस्त किया जाएगा कि किसी विशेष राज्य में स्क्रैपिंग के लिए लगभग 2,000 वाहनों की पहचान की गई है और वे तुरंत उस उद्देश्य के लिए एक इकाई स्थापित करेंगे. पुराने वाहनों के पुनर्चक्रण से एक चक्रीय अर्थव्यवस्था होगी.
अगर कार निर्माता 2,000 वाहनों की खरीद का आश्वासन देते हैं तो वे अच्छी छूट पर गुणवत्ता वाले उत्पादों की पेशकश करेंगे. हमारे सभी पुलिस विभागों के पास आधुनिक वाहन हो सकते हैं. हमें इस पर गौर करना चाहिए और मैं चाहता हूं कि राज्यों के संबंधित मंत्री स्क्रैपिंग कारोबार में शामिल लोगों की बैठक बुलाएं. हम उन्हें जमीन की पेशकश कर सकते हैं और उन्हें पुराने वाहनों के पुनर्चक्रण के लिए अपनी इकाइयां स्थापित करने के लिए कह सकते हैं. उन्हें बताया जाए कि पुलिस विभाग पुराने वाहनों को कबाड़ में देने की पहल करेगा. बहुत जरुरी है.
भारत सरकार के विभिन्न विभाग भी समय-समय पर अपना सारा पुराना कचरा हटाते रहते हैं. नए वाहनों से हमारे पर्यावरण पर भी फर्क पड़ेगा. यदि आप ऐसे छोटे मुद्दों पर समयबद्ध तरीके से निर्णय लेते हैं तो आप लोगों को सुरक्षा प्रदान करने के साथ-साथ देश के विकास में भी महत्वपूर्ण भागीदार बनेंगे. और मुझे विश्वास है कि इस बैठक में आपने जो गंभीरता दिखाई है, उसके बेहतर परिणाम सामने आएंगे. इस बैठक में इतनी बड़ी संख्या में मुख्यमंत्रियों के शामिल होने से मुझे लगता है कि मुझे आपके बीच होना चाहिए था लेकिन कुछ जरूरी कामों के कारण मैं नहीं आ सका.
हालांकि, जब इतने सारे माननीय मुख्यमंत्री हैं, एक प्रधानमंत्री होने के नाते मुझे लगता है कि मुझे आपके साथ होना चाहिए था और चाय पर आपके साथ कई मुद्दों पर चर्चा की लेकिन इस बार मैं ऐसा नहीं कर सका. गृह मंत्री व्यक्तिगत रूप से इस सम्मेलन में भाग ले रहे हैं और मुझे आपके साथ उनके आदान-प्रदान के बारे में सूचित किया जाएगा. मैं सभी मुख्यमंत्रियों और गृह मंत्रियों को विश्वास दिलाता हूं कि भारत सरकार आपकी उम्मीदों पर खरा उतरने की पूरी कोशिश करेगी. मैं आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद करता हूं और आपको शुभकामनाएं देता हूं.
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