पं. किशन गोलछा जैन, ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ
‘लोग परेशानी झेल रहे हैं, लोग मर रहे हैं, सम्पूर्ण पर्यावरण मर रहा है, हम सब ध्वंस की तरफ बढ़ रहे हैं और आप लोग सिर्फ भौतिक विकास जैसी परी कल्पनाओं वाली आर्थिक उन्नति की कहानी सुना रहे हैं. कुछ दिन पहले विश्व के सबसे बड़े जंगल अमेज़न में आग लगी और यह इतनी भयानक थी कि आसमान से भी दिख रही थी लेकिन सरकार सुनने तक को तैयार नहीं हुई, बल्कि उल्टा इस बात को राजनीतिक बनाते हुए उन्होंने फ्रांस के राष्ट्रप्रमुख की पत्नी की उम्र को लेकर टिप्पणी कर सनसनी फैलायी ताकि लोगों का ध्यान अमेज़न से हट जाये.’ इससे ज्यादा कटुसत्य कुछ और हो ही नहीं सकता आज के समय में कि झूठे विकास के नाम पर हम जान-बूझकर प्रकृति और पर्यावरण की अनदेखी कर रहे हैं जबकि असल में ये झूठा विकास हमें विनाश की तरफ ले जा रहा है – ग्रेटा थेंबर्ग के भाषण का हिंदी भावार्थ.
इस भाषण से मुझे मणिपुर की वो नौ साल की बच्ची याद आ गयी, जो अपने घर के पास पेड़ों के काटे जाने पर ऐसे ही रो पड़ी थी जैसे ग्रेटा थेंबर्ग. उस नौ साल की बच्ची को पेड़ काटने से ऐसी पीड़ा हुई जैसे उसके माता-पिता की मृत्यु हो गयी हो या उसके किसी भाई-बहन को उसकी आंंखों के सामने मारा जा रहा हो (ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि उसे पेड़ों से भी उतना ही प्यार था, जितना किसी दूसरे इंसान से या अपने पालतू जानवर से).
आपको याद होगा उसकी वीडियो वायरल होने के बाद मणिपुर के मुख्यमंत्री ने उसको ग्रीन मणिपुर मिशन का ब्रांड एम्बेसडर बना दिया था, लेकिन मुंबई में ठीक इसके उलट सरकार ने पूरे आरे फॉरेस्ट का सफाया कर देने का षड्यंत्र रचा और अब तक आरे फॉरेस्ट में क्या हुआ, ये आप सबको पता ही है.
पॉलिटिकल दबाव और पैसे की ताकत दिखाकर एक जबरिया फैसला करवाया गया और सारी तैयारी पहले से ही कर रखी थी. इसलिये रातो-रात आरे के जंगल को साफ करने का कार्य शुरू कर दिया गया ताकि वहां फर्जी विकास के नाम पर मेट्रो शेड पार्किंग बनायीं जा सके. जबकि असल में ये सब जमीन हथियाने का पैंतरा था क्योंकि इसकी कीमत अरबों रूपये है (आप में से ज्यादातर तो यह जानते ही होंगे न कि मुंबई में मेट्रो प्रोजेक्ट अम्बानी के हाथ में है) अथवा कहीं ये सब इसलिये तो नहीं करवाया गया ताकि एक और जगह से नेहरूजी का नाम मिटाया जा सके ?
आप में से शायद बहुत से लोग ये नहीं जानते होंगे कि 1951 में मुंबई में डेयरी उद्योग को बढ़ावा देने के लिए पंडित नेहरू ने आरे मिल्क कॉलोनी की नींव रखी थी और उस मौके पर उन्होंने जो पौधारोपण किया था, उसी से प्रेरित होकर लोगों ने 3166 एकड़ में फैले उस पूरे इलाके में ही पौधे रोपे, जिससे कुछ ही वर्षों में ये इलाका बियावन जंगल में तब्दील हो गया और आरे फॉरेस्ट कहलाने लगा. सलंग्न फोटो में ये वो पूरा इलाका है, जिसमें चारों तरफ सिर्फ पेड़ ही पेड़ नजर आते हैं (ये फोटो गूगल मेप की सेटेलाइट इमेज से लिया गया है, आप भी आरे फॉरेस्ट डालकर इसे देख सकते हैं).
2702 पेड़ों वाला ये आरे बियावन मुंबई जैसे कंक्रीट वाले शहर में महापद्म की तरह है क्योंकि इतने बड़े ग्रीन पैच की वजह से ही वहां का वातावरण शुद्ध बना हुआ है और लोगों को दिल्ली के ओखला की तरह दमघोंटू हवा में सांंस नहीं लेनी पड़ती. प्रोजेक्ट में मेट्रो शेड के नाम पर 2238 पेड़ों को पूरी तरह काटा और 262 को हटाकर दूसरी जगह शिफ्ट किया जाना था, और बचे हुए 202 पेड़ मेट्रो शेड के डेकोरेशन के नाम पर रखे जाने थे वर्ना तो उनका भी सफाया कर दिया जाता. सुप्रीम कोर्ट के आदेश आने तक रात-दिन देखे बिना लगातार जिस तरह पेड़ों को काटा गया, वो आप सबने अब तक पढ़ ही लिया होगा कि 2702 में से 1500 के लगभग पेड़ काट डाले गये हैं.
सरकार को ये सोचना चाहिये कि वो आने वाले पीढ़ी को क्या देना चाहती है ? पैसा और सुविधाओं वाला झूठा विकास या जीने के लिये हरे परिवेश युक्त शुद्ध हवा और साफ पानी ? क्योंकि ऐसा होगा तभी तो आने वाली पीढ़ी स्वस्थ जीवन जी पायेगी लेकिन जो किया गया है, उस हिसाब से तो आनेवाली पीढ़ी के लिये सिर्फ धुंए वाली दमघोंटू हवा, बिना पेड़ों के तपती जमीन और प्रदूषित पानी की विरासत ही तैयार हो रही है.
क्या सुप्रीम कोर्ट 1500 पेड़ों की कटाई पर सख्त फैसला देगी या सिर्फ जुर्माना (वो भी मामूली) लगाकर ऐसे प्रकृति के हत्यारों को खुला छोड़ दिया जायेगा ?
सामाजिक कार्यकर्ता रविन्द्र पटवाल बताते हैं – मुंबई में सबकी आंंखों के सामने सरकार ने पेड़ काट दिये और अमेरिका में प्रधानमंत्री मोदी को ग्लोबल गोलकीपर की ट्राफ़ी भी मिल गई.
कभी न सोने वाली मुंबई, आंंख बंद कर सो गई. 29 लोगों को उल्टा पकड़ लिया. पेड़ काटने से रोकने वाले आज ज़मानत के लिए भाग रहे हैं. कल छूट पाएंंगे.
अब आरे फॉरेस्ट की लड़ाई में कोई celebrity नहीं हैं. अब वहांं पर सिर्फ़ जंगल में रहने वाले आदिवासी रह गए हैं. सेलेब्रिटीज़ की तरह मध्य वर्ग भी अपनी पूंंछ संभालकर बैठ चुका है. कुल मिलाकर भारतीय संविधान, लोकतंत्र और न्यायपालिका महान है. जैसे नागरिक होंगे वैसा ही संविधान और सरकार नज़र आयेगी.
रविन्द्र पटवाल आगे कहते हैैं देेेश की सारी संपत्ति देश के नागरिकों की है. बिना राष्ट्रीयकरण किये 95% लोग को मारकर सरकार की सारी नीतियांं सिर्फ़ 0.01% बेहद धनी परिवरों का ही विकास कर रहे हैं.
यह पिछले 8 साल में काफ़ी तेज़ी से बढ़ा है और पिछले 5 साल में द्रुत गति से, लेकिन इस लोकसभा चुनाव के बाद तो बुलेट ट्रेन की गति से उनके लिए लागू की जा रही है.
कोई लोकसभा, न्यायपालिका और जनता की आवाज़ कुछ भी नहीं सुनने का संकल्प सरकार ने लिया है. पता नहीं आपको ऐसा लग भी रहा है या कुछ साल बाद महसूस होगा, मुझे नहीं पता.
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