आरक्षण भारतीय समाज में तब से लागू है जब से भारतीय समाज में राजसत्ता अस्तित्व में आयी है. सत्ता पर काबिज शक्तियां अपने स्थायित्व के खातिर जातिव्यवस्था को स्थापित किया, जिसकी मनुस्मृति में स्पष्ट व्याख्या की गयी है. ब्राह्मणवाद को स्थायित्व प्रदान किया गया और आरक्षण को शत् प्रतिशत स्थापित किया और शिक्षण को एक खास ब्राह्मण और सत्ता तक सीमित कर दिया गया. आरक्षण के इस व्यवस्था को सख्ती के साथ लागू किया गया और ज्ञान को पीढ़ीगत रूप से चलाने हेतु बिल्कुल खानदानी तरीके को अपनाया गया और जाति व्यवस्था को सख्त बना दिया गया.
ज्ञान को पाने की पिपासा दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों में भी प्रारम्भ से ही रही है. यही कारण है कि वक्त के साथ शम्बुक, एकलव्य और कर्ण ने जन्म लिया और जातिवादी ब्राह्मणवादी सत्ता ने उसे खत्म करने के लिए हिंसा का सहारा लिया. बाद के दिनों में भी ज्ञान पर यह ब्राह्मणवादी सख्ती बढ़ती गयी तभी तो शिक्षा की बात करने पर दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों की जिह्वा काटना, सुनने पर कान में पिघला शीशा डालना, गले में घंटी बांधना, कमर में झाड़ू बांधना, दण्ड विधान, अर्थ दण्ड विधान आदि व्यवस्था की गयी थी ताकि शिक्षा पर ब्राह्मण और सत्तासीन जाति का एकाधिकार बना रहे. गलती से भी किसी निम्न जाति के लोग शिक्षा ग्रहण न कर सके इसके लिए सौ प्रतिशत आरक्षण की फुल फ्रुफ व्यवस्था किया गया था.
प्राचीन काल से ही आरक्षण की ऐसी सौ प्रतिशत फुल फ्रुफ व्यवस्था लागू किया गया था जिसका परिणाम भारत को सदियों से गुलामी के तौर पर झेलना पड़ा. देश की बड़ी आबादी को ज्ञान, शिक्षा, युद्ध की अस्त्र-शस्त्र कला से विहीन रखा गया और दृढ़ जातिगत व्यवस्था होने के कारण अज्ञानी ब्राह्मण भी ज्ञान की कुर्सी पर कब्जा बनाये रखा और कायर क्षत्रिय भी सत्ता से चिपका रहा. परिणामतः “ज्ञानियों” और “शासकों” की ऐसी बड़ी संख्या प्रभाव में आ गये जो अज्ञानी, व्यभिचारी, अय्यास, कायर, लालची, दलाल और गद्दार बन गये थे. जिसने अफगानिस्तान के गजनी से लकर महमूद गजनी लूटेरों तक को भारत को लूटने के लिए आमंत्रित किया और विश्वनाथ तक पहुंचकर लूटा.
इन जातिगत व्यवस्था के तहत् पैदा हुए अज्ञानी, व्यभिचारी, अय्यास, कायर, लालची, दलाल और गद्दार बने शासक वर्ग के कारण लूट-खसोट का यह सिलसिला अंग्रेजों के आगमन तक लगातार चलता रहा. पहली बार इस जातिगत व्यवस्था को तोड़कर बाहर निकलने का प्रयास अंग्रेजों के खिलाफ 1857 ई. में उभरे राष्ट्रीय की प्रथम शोर्यपूर्ण, शानदार, एकजुट वीरतापूर्ण लड़ाई के दौरान हुई. जो धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए आजादी के आंदोलन के दौरान तेजी से टुटता गया. आजादी की इस शानदार चली लड़ाई ने देश में पहली बार तमाम जातियों को सशस्त्र और शिक्षित किया. दलित, पिछड़े और आदिवासियों को पहली बार शिक्षण और शस्त्र ज्ञान से परिचित होने का मौका मिला, जिसका परिणाम देश से अंग्रेजों को 1947 ई. में देश से बाहर निकालने के रूप में आया. देश में राष्ट्रीय भावना की लहर भी पहली बार दौरी थी और देश के तमाम जातियों के लोगों में एकजुट होने की भावना भी मजबूती के साथ सामने आया और इसी भावना के कारण दलित, पिछड़ों और आदिवासियों को शिक्षित और अस्त्र ज्ञान देने के लिए ब्राह्मण और क्षत्रिय जैसी जातियों के सौ प्रतिशत आरक्षण को घटाकर दलित, पिछड़ों और आदिवासियों के लिए कुछ प्रतिशत आरक्षण देने का विचार भी इस देश में पहली बार सामने आया, जो ब्राह्मण और क्षत्रिय जातियों के अहंकार के तमाम अडंगों के बावजूद 1977 इसे लागू करने का फैसला लिया पर इससे खिलाफ ब्राह्मण और क्षत्रिय जातियों ने बावंडर किया और उसकी यह प्रक्रिया आज तक चल रही है. ब्राह्मण और क्षत्रिय जैसे ने अपने सौ प्रतिशत आरक्षण को कम कर सदियों से ज्ञान और अस्त्र शिक्षा को दलित, पिछड़ों और आदिवासियों को दिया जाना उसके जातिय अहंकार पर प्रहार करता है, यही कारण है कि वह विभिन्न तरीके से आरक्षण जैसी समानता के खातिर की जा रही छोटी सी इस प्रक्रिया के विरूद्ध एक संघर्ष छेड़ दिया गया है.
आजादी के खातिर लड़े जा रहे संघर्ष और 1947 के बाद तक के अंतराल ने चूंकि इस जातिय व्यवस्था को एकहद तक तोड़ा है, जिस कारण तमाम जातियों में एक जागरूकता का संचार भी हुआ है, जिसका परिणाम इस रूप में सामने आया है कि ब्राह्मण-क्षत्रिय जैसी जातियों ने भी सदियों से जारी ब्राह्मणवादी जातिय व्यवस्था के अहंकार के खिलाफ सवाल उठाया है और ब्राह्मणवादी जातिय व्यवस्था के तहत दमित दलित, पिछड़े और आदिवासियों के अन्दर भी ब्राह्मणवादी जातिय व्यवस्था के अहंकार की तुष्टि जड़ जमाये हुए है, जिसके खिलाफ भी संघर्ष का किया जाना जरूरी है. यही कारण है कि आरक्षण की ढ़ांचागत व्यवस्था के तहत दलित, पिछड़े और आदिवासियों सहित सभी को शिक्षित करना देश को बचाये रखने के लिए एक जरूरी शर्त है, वरना इस देश पर नाकारा साबित हो चुके अज्ञानी, व्यभिचारी, अय्यास, कायर, लालची, दलाल और गद्दार काबिज हो जायेगा और फिर से यह देश हजारों सालों की गुलामी पर जा टिकेगा.
विरेन्द्र मिश्रा
May 24, 2017 at 1:15 pm
आरक्षण सत्ता हथियाने कि व्यवसथा है. न कि जरुरी ढांचागत व्यवस्था. आरक्षण एक तरह से योग्यता वालो का दोहन करता है. आरक्षण से किसी गरीब को कतई लाभ नही जिनकी बुनियादी ढाचा मजबुत नही है सरकार उनकी बुनियादी ढाचा को अगर मजबूत करके ऊनको शिक्षित करने कि अगर व्यवस्था करती तो आरक्षण कि कही जरुरत नही पडती. गरीब तो हर वर्ग मे है. चाहे वह अगडा हो चाहे पिछडा हो चाहे कोई भी वर्ग हो आरक्षण को समाप्त कर सबकी शिक्षा कि ऊचित व्यवस्था करनी चाहिये किसी भी.समाज.तथा राष्ट्र के विकास का प्रथम सोपान शिक्षा होता है लेकिन यहा.शिक्षा के लिये कोई.हो हल्ला नही केवल वोट के लिये आरक्षण रहना चाहिये किसी समाज. के विकास के लिये नही
Rohit Sharma
November 9, 2019 at 2:13 pm
जातिगत ऊंच नीच के भाव को खत्म करना ही भारत में आरक्षण का मुख्य उद्देश्य है.
Masihuddin Sanjari
May 24, 2017 at 3:12 pm
धन्यवाद