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आप इनसे जीत ही नहीं सकते, हर बहस को अपने नैरेटिव में ढाल लेंगे

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आप इनसे जीत ही नहीं सकते, हर बहस को अपने नैरेटिव में ढाल लेंगे

गिरीश मालवीय

आज तक चैनल पर चल रही रामदेव और IMA के पूर्व अध्यक्ष और वर्तमान सचिव के साथ चल रही बहस अभी देख रहा था. रामदेव ने डॉक्टरों के पूरे मजे ले लिये. तर्क तो उनके पास कुछ थे नहीं लेकिन आज तक वालों ने डेढ़ श्यानापन दिखाते हुए रामदेव के माइक की आवाज को क्लियर रखा था और IMA के डॉक्टरों की आवाज को थोड़ा दबा दिया था.

रामदेव ठसके के साथ बोल रहा था कि हमें मिलकर काम करना चाहिए ? यानी अकेले उसकी पतंजलि और दूसरी तरफ पूरी डॉक्टरों की जमात दोनों बराबर है ? और वह आयुर्वेद जैसी परम्परा का एक इकलौता ठेकेदार बन गया है. वैसे सच यह है कि IMA के साथ रामदेव सही कर रहा है. IMA की भी बहुत बड़ी गलती है सांप को फन उठाने से पहले ही कुचल देना चाहिए था. अब रामदेव की जो मर्जी आती है वो एलोपैथी के बारे में बयान दे देता है और बेचारे डॉक्टर कसमसाते हुए देखते रहते हैं.

अगर ये तमाम डॉक्टर जो अभी लाल-पीले हो रहे हैं ये तभी स्वास्थ्य मंत्री को पत्र लिख कर बोल देते, जब रामदेव ने कोरोनिल बनाई थी और इसके ट्रायल जयपुर के एक मेडिकल कॉलेज में करवाए थे कि अब आप कोरोनिल से ही इलाज करवा लो. कोरोना के केस हमारे पास मत लाना, तो एक मिनट में डॉ. हर्षवर्धन को अक्ल आ जाती और स्वास्थ्य मंत्रालय सूत सावल में चलने लगता.

पिछले साल जून-जुलाई में जब रामदेव की दवा के गैर-कानूनी ट्रायल के लिए पतंजलि रिसर्च फाऊंडेशन के प्रस्ताव को अनुमति दी जा रही थी, तब एक डॉक्टर की आवाज नहीं आई कि यह गलत हो रहा है. कोरोना एक वायरस जनित बीमारी है, इसका इलाज रामदेव करने के दावे कैसे कर रहा है ? राजस्थान सरकार तक लाला रामदेव को फ्रॉड घोषित कर दिया था. राजस्थान सरकार का कहना है कि कि पतंजलि ने उनसे कोई परमिशन नहीं ली थी. बाबा रामदेव ने बिना परमिशन ट्रायल किया है.

उस वक्त उस पर तीन मुकदमे दर्ज किए गए थे. ये केस IMA दर्ज करवाता और अपनी तरफ से लड़ता तो आज रामदेव की इतनी हिम्मत नहीं होती कि वह अपने ट्रायल के डाटा आपको दिखा-दिखा कर आपकी हंसी उड़ाता. अगर IMA में थोड़ी भी अक्ल होती तो वह उसी वक्त उन तमाम न्यूज़ चैनलों पर मुकदमा ठोकता, जो रामदेव की कोरोनिल लॉन्च का सीधा प्रसारण कर रहे थे और रामदेव की चार सौ बीसी में सबसे बड़े सहयोगी बने हुए थे. आज आप देखिए कि रामदेव कैसे टीवी पर आपको जोकरों की तरह ट्रीट कर रहा है लेकिन अब पछताने से होत का, जब चिड़ियां चुग गयी खेत.

यकीन मानिए कुछ ही दिनों बाद खबर आएगी कि पतंजलि की कोरोनिल दवा की बिक्री में 200 फीसदी का इजाफा हुआ है. कुछ लोग डिबेट के एक दो शॉट देख कर लिख रहे कि डॉ. लेले ने रामदेव की ले ली लेकिन हकीकत यह है कि रामदेव ने तमाम डॉक्टर की ले ली. माफ कीजिएगा यदि भाषा गलत लगी हो तो लेकिन यही हकीकत है.

आप डिबेट का वीडियो देखिए. पूरे समय रामदेव कोरोनिल की ब्रांडिंग सामने टेबल पर लगा कर बैठा रहा. आप क्या सोचते हैं कि आप और हम किसी न्यूज़ चैनल पर लाइव जाए और अपने किसी प्रोडक्ट की वैसी ही ब्रांडिंग करे जैसे रामदेव ने की है तो क्या वह न्यूज़ चैनल उसकी इजाजत देगा ? हरगिज नहीं देगा. तो फिर आज तक ने ऐसी इजाजत रामदेव को क्यों दी ?

क्या बहस कोरोनिल पर हो रही थी ? बहस तो रामदेव की गलत बयानबाजी पर हो रही थी तो ऐसी बहस में रामदेव को कोरोनिल की ब्रांडिंग की इजाजत कैसे दे दी गई ? साफ है कि पतंजलि जितने विज्ञापन ‘आज तक’ को देता आया है, उसी को ध्यान में रखते हुए उसे कोरोनिल की ब्रांडिंग की इजाजत दी गयी है. अगर IMA के पदाधिकारियों में थोड़ी भी अक्ल होती तो वह कोरोनिल की ऐसी ब्रांडिंग देखते ही बहस को छोड़ उठ गए होते.

इस प्रकरण में IMA पूरी तरह से गलत प्रेक्टिस पर है, बल्कि मैं तो कहूंगा कि उसने जनता के सामने ऐसी डिबेट में भाग लेकर उसने एक गलत नजीर पेश की है. अब यही होगा कि रामदेव जैसा कोई एरा ग़ैरा नत्थू खैरा कभी भी खड़ा होकर दो चार गाली एलोपैथी को बकेगा और विवाद बढ़ने पर ऐसी पब्लिक डिबेट आयोजित करने को कहेगा जिसमें शान से IMA जैसे प्रतिष्ठित संगठन की ओर से उसके पदाधिकारी भाग लेने जाएंगे.

अगर IMA को रामदेव के बयान पर आपत्ति थी तो उसे सीधे-सीधे महामारी एक्ट में एफआईआर दर्ज करानी चाहिए थी. और सरकार को कह देना चाहिए था कि यदि रामदेव को गिरफ्तार कर मुकदमा नहीं चलाया जाता है तो निर्धारित तारीख से सारे डॉक्टर हड़ताल पर जा रहे हैं. लेकिन नहीं, उसने पब्लिक डिबेट का रास्ता चुना.

रामदेव अच्छी तरह से जानता था कि ICMR और एम्स जैसी संस्थाओं द्वारा बार-बार कोरोना के इलाज की गाइडलाइंस बदले जाने और परस्पर विरोधी बयानों से पब्लिक पहले से ही डॉक्टरों के एक वर्ग से चिढ़ी हुई है. उसके लिए तो यह गोल्डन अपॉरचुनिटी थी, यह उसके लिए विन विन गेम था. वह इसमें कामयाब हुआ.

सोशल मीडिया के वह मित्र जो इसमें रामदेव की हार देख रहे हैं वो समझ नहीं पा रहे हैं कि इस बहस का ओवर ऑल क्या प्रभाव पड़ा. अचानक से रामदेव लाइम लाइट में आ गया है. उसने जनता के बड़े वर्ग में डॉक्टरों के प्रति गुस्से को अपने पक्ष में मोड़ लिया है. कहते हैं न कि सुअर के साथ लड़ाई लड़ने जाओ तो कीचड़ में तुमको उतरना पड़ेगा. सुअर का क्या है वो तो पहले से ही कीचड़ में लोट लगाए हुए हैं. IMA कीचड़ में उतरा है. इस डिबेट में यही हुआ है.

आप इनसे जीत ही नहीं सकते. हर बहस को अपने नैरेटिव में ढाल लेंगे. अगर रामदेव वाली डिबेट आपने ध्यान से देखी हो तो उसमें शुरुआत में डॉ. राजन शर्मा जो IMA के पूर्व अध्यक्ष रहे हैं, वह रामदेव को चैलेंज करते हैं कि आप में इतना ही दम है तो आप लेवल 3 कोविड वार्ड में जाकर तीन हफ्ते तक ये धोती कुरता पहन कर काम कीजिए, मैं फिर बात करूंगा ?

यह पॉइंट रामदेव ने तुरन्त पकड़ लिया और जवाब दिया कि ये धोती-कुरता पर आप बात मत करिए. ये धोती लंगोटी मैंने आपकी मेहरबानी से नहीं पहनी. इस पर मत आइये. जवाब में डॉ. राजन शर्मा को एक जगह कहना पड़ा कि मैं भी एक सनातन ब्राम्हण परिवार से हूं. यानी बहस जिस दिशा में जानी चाहिए थी, वहां न जाकर किसी और दिशा में चली गयी और इसमें पॉइंट रामदेव ने बना लिए. एक तरह से उन्होंने यह कहने की कोशिश की कि धोती कुर्ते की बात कर आप हमारी संस्कृति पर हमला कर रहे हो !

अब अगली खबर पढिए जो आज आई है. रामदेव के अनन्य सहयोगी आचार्य बालकृष्ण कह रहे हैं कि ‘पूरे देश को क्रिश्चियानिटी में कन्वर्ट करने के षड्यंत्र के तहत, रामदेव जी को टारगेट करके योग एवं आयुर्वेद को बदनाम किया जा रहा है. देशवासियों, अब तो गहरी नींद से जागो, नहीं तो आने वाली पीढ़ियां तुम्हें माफ नहीं करेंगी.’ बालकृष्ण ने आईएमए के अध्यक्ष डॉ. जयालाल के एक कथित बयान को सोशल मीडिया में पोस्ट किया. इसमें बताया गया है कि जयालाल अस्पतालों और स्कूलों में क्रिश्चियानिटी को बढ़ावा देने की बात करते हैं.

यानी जबरा मारे और बेचारे डॉक्टरों को रोने भी न दे. बहस कोरोना को लेकर रामदेव के ऊलजलूल बयानों पर थी लेकिन बहस को धर्म पर कन्वर्ट कर दिया गया. संस्कृति पर कन्वर्ट कर दिया गया. ये ही काम देश का सत्ताधारी दल भी करता है और रामदेव को पॉवर भी वही से मिलती है. नहीं तो यही रामदेव जो आज गर्व से धोती कुरते की बात कर रहा था, वो एक रात मुंह छिपाकर सलवार कुरता पहनकर दिल्ली के रामलीला मैदान से भाग खड़ा न हुआ होता.

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