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आग की कहानी

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एक लड़की आती है
और मेरे कंधे लग कर रोती है

मेरा कोई नहीं रहा
न बाप न भाई न मां
कोई भी नहीं

एक मुल्क तो है तुम्हारे नाम
तुम्हारी फ़िक्र
और तुम्हारे फ़ख़्र के लिए

काश कि ऐसा होता
लड़की कहती है

जाड़े की ठंडी रात
कंधे से लग कर
ऊपर बतायी लड़की रोती रही
और गीला करती रही
अंदर और बाहर
रिसते घड़े की तरह

मैं चाहता था
उसे एक चादर की गर्मी दूंं
मगर चादर दोनों में से
किसी के पास नहीं थी
लिहाज़ा हमें आग की तलब हुयी
मगर आग खोजने से पहले
ज़रूरी था कि आंंसुओं को
समंदर होने से रोका जाए

मेरे आग खोजने की ख़बर सुल्तान को लगी
सुल्तान के हुक्म से हमें हवालात भेज दिया गया
जहांं बाद मेें पता चला कि
आग की खोज
मुल्क के ख़िलाफ़ बग़ावत थी

ऐसे सुल्तान रहम दिल इंसान था
सो उसने हमारी मौत की सज़ा
बामुशक्कत उम्र क़ैद में बदल दी
और तब से अब तक
सुल्तान के रहमो करम
हम नज़रबंदी के सुख लूट रहे हैं

रात फिर भी उसी तरह आज भी ठंडी है
और लड़की कंधे लग कर
अब भी उसी तरह रोती है
और गीला करती है
अंदर और बाहर

फ़ौज के फ़्लैग मार्च के बीच
बच्चे वतनपरस्ती के गीत गाते हैं
और रोज़ रात ज़िद करते हैं
आग की वही कहानी
फिर से सुनाने की

  • राम प्रसाद यादव
    22.10.2016

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