Home गेस्ट ब्लॉग भारत की मेहनतकश जनता के सच्चे मित्र सीपीआई (माओवादी) के केंद्रीय कमेटी सदस्य कॉ. मिलिंद बाबूराव तेलतुमब्डे अमर रहें !

भारत की मेहनतकश जनता के सच्चे मित्र सीपीआई (माओवादी) के केंद्रीय कमेटी सदस्य कॉ. मिलिंद बाबूराव तेलतुमब्डे अमर रहें !

12 second read
0
0
371
आम मेहनतकश जनता के सच्चे मित्र सीपीआई (माओवादी) के केंद्रीय कमेटी सदस्य कॉ. मिलिंद बाबूराव तेलतुमब्डे अमर रहें !
आम मेहनतकश जनता के सच्चे मित्र सीपीआई (माओवादी) के केंद्रीय कमेटी सदस्य कॉ. मिलिंद बाबूराव तेलतुमब्डे अमर रहें !

13 नवंबर, 2021 को महाराष्ट्र व छत्तीसगढ़ राज्यों के सीमावर्ती ग्राम पारेवा के पास ठहरे गुरिल्ला बलों पर गढ़चिरोली के सी-60 कमांडों द्वारा किए गए एक भीषण हमले का सामना करते हुए 27 कामरेडों ने अपनी जान की कुरबानी दी. शहीदों में भाकपा (माओवादी) के केंद्रीय कमेटी सदस्य कामरेड मिलिंद बाबूराव तेलतुमब्डे भी शामिल थे. ‘प्रभात’ उन्हें विनम्र श्रद्धांजली अर्पित करता है. उनके परिजनों के प्रति गहरा शोक व्यक्त करता है. आएं ! उनकी आदर्शवान जिंदगी से रूबरू होंगे.

दीपक, जीवा, प्रवीण, अरुण, सुधीर, सह्याद्री आदि नामों से क्रांतिकारी शिविर में अपनी छाप छोड़ने वाले कामरेड मिलिंद ने 5 फरवरी, 1964 को महाराष्ट्र राज्य, यवततमाल जिला, वणी तहसील, राजूरा गांव के एक गरीब दलित महर जाति के मजदूर परिवार में जन्म लिया.

अनसूया व बाबूराव तेलतुमब्डे दंपति की आठ संतान में कामरेड मिलिंद एक थे. उनकी 92 वर्षीय मां हैं, जबकि उनके पिता नहीं रहे. मां ईंट-भट्ठी में काम करते थे जबकि पिता दैनिक मजदूर थे. बेहद गरीबी के बावजूद उन दोनों ने अपने बच्चों को अच्छी तरह पढ़ाया. ज्ञात हो कि कॉ. मिलिंद तेलतुबंड़े के बड़े भाई, जाने-माने दलित बुद्धिजीवी व मानवाधिकार कार्यकर्ता प्रोफेसर आनंद तेलतुमब्डे को भीमा कोरेगांव फर्जी केस में फंसा कर मुंबई के तलोजा जेल में दो वर्ष से बंधक बना दिया गया.

शासक वर्गों की अमनवीयता यह है कि जब प्रोफेसर आनंद ने अपने छोटे भाई की शहादत की खबर सुनी थी, तब उन्होंने अपनी बुजुर्ग मां के साथ फोन पर बात करने के लिए एनआईए कोर्ट की अनुमति मांगी. हालांकि अदालत ने अनुमति दी लेकिन जेल प्रशासन ने अभी तक ऐसा मौका नहीं दिया. कामरेड मिलिंद के छोटे भाई जब उनके पीएचडी के तहत आदिवासियों के बारे में शोध करने गढ़चिरोली आए थे तब वहां मलेरिया का शिकार होने की वजह से उनकी मौत हुई.

ऐसे दमित, उत्पीड़ित, श्रमिक व प्रगतिशील परिवार में पलने-बढ़ने वाले कामरेड मिलिंद ने इस दुनिया से शोषण और उत्पीड़न को मिटाने के महान लक्ष्य के लिए अपनी पूरी जिंदगी को समर्पित किया. इस क्रम में वह भाकपा (माओवादी) की उच्चतम कमेटी में हिस्सा लेकर एक लोकप्रिय नेता बन गए. उनकी हत्या के खिलाफ महाराष्ट्र-मुंबई में क्रांतिकारियों, मानवाधिकार व दलित संगठनों द्वारा कई आंदोलन किए गए.

कामरेड मिलिंद का प्रारंभिक जीवन

कामरेड मिलिंद ने अपनी हाई स्कूल पढ़ाई पूरी होने के बाद आईटीआई ज्वाइन करके फिट्टर कोर्स में प्रशिक्षण लिया. बाद में उन्होंने बलारपुर पेपर मिल में अप्रेंटिस (शिक्षार्थी) बन गए. उसके बाद पश्चिमी कोयला खदान में मजदूर बन गए. मजदूरों की बुरी हालातों ने उन्हें संघर्ष का रास्ता दिखाया. मजदूरों की समस्याओं के हल के लिए संघर्ष करने के क्रम में वे मजदूरों के नेता बन गए.

पहले खदान श्रमिक ट्रेड यूनियन के नेता के रूप में बाद में इंडियन माइन वर्कर्स फेडरेशन के नेता के रूप में विकसित होकर उन्होंने मजदूरों की कई समस्याओं के हल के लिए संघर्ष का नेतृत्व किया. 1982 तक तत्कालीन भाकपा (माले) (पीपुल्सवार) के साथ उनका परिचय हुआ. मजदूर आंदोलन में क्रांतिकारी राजनीति को ऊंचा उठाते हुए काम करने के क्रम में 1992 में वे पेशेवर क्रांतिकारी बन गए. चंद वक्‍त के लिए उन्होंने महाराष्ट्र में कार्यरत ‘नवजवान भारत सभा’ के अध्यक्ष की जिम्मदारी निभायी. इस तरह आंदोलन में आगे बढ़ने के क्रम में 1994 में अपनी पसंदीदा कामरेड एंजिला के साथ उन्होंने शादी कर ली.

सीपीआई (माओवादी) के साथ जुड़ाव

सन्‌ 2000 में आयोजित महाराष्ट्र राज्य की पार्टी के अधिवेशन में वे राज्य कमेटी में चुने गए. विदर्भा के कई शहरों के श्रमिक, छात्रों व युवाओं को उन्होंने संगठित किया. मुंबई के बिजली क्षेत्र के श्रमिकों व सूरत के कपड़े करखाने के मजदूरों के साथ उनके विस्तारपूर्वक संबंध होते थे. वहां के ‘नवजावन भारत सभा’ के कार्यकर्ताओं के साथ मिल कर उन्होंने कई हड़तालों में न सिर्फ भाग लिया बल्कि उनका नेतृत्व किया.

2005 तक विदर्भा के चंद्रपुर को मजदूरों, छात्रों व युवाओं की संगठित शक्ति के केंद्रबिंदु के रूप में खड़ा करने में कामरेड मिलिंद की विशिष्ट भूमिका रही. विदर्भा में क्रांतिकारी आंदोलन को मजबूत होने से रोकने के लिए चंद्रपुर पुलिस द्वारा ‘मिशन-मृत्युंजय’ अभियान छेड़ा गया. इस अभियान के तहत छात्राओं-छात्रों पर निगरानी बढ़ायी गयी. उसके बावजूद उन्होंने अपनी निपुणता को दर्शाते हुए काम किया. नतीजतन चंद्रपुर, बल्‍लारपुर, राजूरा आदि शहरों से कई मजदूर, छात्र व युवती-युवक क्रांतिकारी राजनीति में संगठित हो गए.

एक ओर शहरी क्षेत्र की जिम्मेदारी निभाते हुए दूसरी ओर जंगली क्षेत्र के आंदोलन पर अपनी समझदारी बढ़ाते हुए 2008 में उन्होंने जंगली क्षेत्र की जिम्मेदारी भी उठायी. बाद में दीपक के नाम से वे लोकप्रिय हो गए.

पार्टी निर्माण में मौजूद दक्षिणपंथी रुझान के खिलाफ संघर्ष

दक्षिण व पश्चिम रीजनल ब्यूरो में 2009 में पहली बार संचालित एलटीपी अध्ययन कक्षाओं में शामिल होकर गहराई से विचार-विमर्श करने वाले कामरेड दीपक ने बाद में महाराष्ट्र के पार्टी निर्माण में मौजूद दक्षिणपंथी रुझान के खिलाफ अपनी आलोचना पेश की. इस पृष्ठभूमि में 2010 में महाराष्ट्र राज्य कमेटी द्वारा लिए गए विदर्भा परस्पेक्टिव के तहत आंदोलन के विस्तरण का नेतृत्व करते हुए बालाघाट जाकर उन्होंने काम किया. उसी कार्यभार को पूरा करने के तहत ही एमएमसी का गठन हुआ जिसकी जिम्मेदारी उन्होंने उठायी.

2006 सितंबर में महाराष्ट्र के खैरलांजी के दलित परिवार के ऊपर दबंग जाति के लोगों द्वारा किए गए घृणित हत्याकांड ने देश को झकझोर कर दिया. इसके खिलाफ महाराष्ट्र धधक गया. दलित और जनवादी संगठनों व व्यक्तियों द्वारा बड़े पैमाने पर आंदोलन किए गए. उन आंदोलनों में शामिल होने वाले कामरेड मिलिंद ने उन्हें और जुझारू रूप दिया.

चंद्रपुर में एक बस को आग के हवाले कर दिया गया, इससे शासकों के दिल में डर पैदा हुआ. इन आंदोलनों के सामने झुकने वाली सरकार ने पीड़ित परिवार की सुरक्षा प्रदान करने और उसे मुआवजा देने के लिए अनुमोदन किया. यह आंदोलन एक ऐसी.मिसाल बन गई जिसने कामरेड मिलिंद के संघर्षरत जज्बा व जुझारूपन का परिचय दिया.

2007 में संपन्‍न भाकपा (माओवादी) की ऐतिहासिक एकता कांग्रेस – 9वीं कांग्रेस में शामिल होकर उन्होंने देशभर के आंदोलन के बारे में अच्छी समझदारी हासिल की.

2008 से महाराष्ट्र आंदोलन को लगातार भारी नुकसानों को उठाना पड़ा. कई नेतृत्वकारी कामरेडों की गिरफ्तारी हुई. 2011 में उनकी जीवन संगिनी कामरेड एंजेला की गिरफ्तारी हुई. कई फर्जी मामलों में फंसा कर उन्हें लगभग 6 वर्ष तक जेल में बंधक बना दिया गया. हालांकि सितंबर 2016 में दी गई जमानत पर उनकी रिहा हुई लेकिन कामरेड दीपक को निशाना बना कर लगातार किए जा रहे हमलों के बीच में इन दोनों कामरेडों को साथ में रहने का मौका नहीं मिला. बेहद दुःखद बात यह है कि जीवनसाथी को मिलने के इंतजार में रही कामरेड एंजेला को उनकी लाश देखनी पड़ी.

महाराष्ट्र के क्रांतिकारी आंदोलन में मिलिंद की भूमिका

महाराष्ट्र के क्रांतिकारी आंदोलन को पुनरविकसित करने के लिए कामरेड दीपक ने आखिरी सांस तक परिश्रम किया. लेकिन यह लक्ष्य अधूरा रह गया. उनकी दी गई राजनीतिक चेतना से लैस सैकड़ों मजदूर व छात्र, उनके मित्र व हितैषियों को उस लक्ष्य को हासिल करने के लिए आगे बढ़ना चाहिए.

कामरेड दीपक को 2013 में केंद्रीय कमेटी में लिया गया. 2016 में नव गठित एमएमसी जोन का प्रभारी बनकर उन्होंने क्षतिग्रस्त हुए महाराष्ट्र आंदोलन को फिर मजबूत करने के लिए प्रयास किया.

कामरेड दीपक ने कई बार दुश्मन का सामना किया. 2016 में वे क्रांतिकारी जरूरतों के अनुसार ओडिशा गए थे और चार महीने वहां पर रुक गए. इसकी सूचना मिलने पर पुलिस बलों ने लगातार गश्ती अभियान चलाए. उन चार महीनों में उनके ऊपर तीन बार पुलिस बलों ने हमले किए. उन हमलों का कामरेड दीपक ने हिम्मत से प्रतिरोध किया. उन हमलों से पीएलजीए के बलों ने अपनी जान की कुरबानी देकर उन्हें बचा लिया. विगत तीन वर्षों में उनके ऊपर दुश्मन बलों ने कई बार हमलें किए. उन सभी हमलों का सामना करने में उन्होंने गुरिल्ला बलों का नेतृत्व किया और सुरक्षित रूप से रिट्रीट होने में वे सफल हुए.

वे एक निरंतर अध्ययनशीली थे. मार्क्सवादी रचनाओं के अलावा उन्होंने अंबेडकर रचनाओं का भी गहराई से अध्ययन किया. भारत देश के लिए खास कर जाति व्यवस्था के उन्मूलन के लिए अंबेडकर द्वारा किए गए प्रयास के बारे में वे साथी कामरेडों को समझाते थे. न सिर्फ भारत देश की दलित जनता की मुक्ति के लिए बल्कि तमाम जाति व्यवस्था के उन्मूलन के लिए आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक व सांस्कृतिक क्षेत्रों में संचालित किए जाने वाले आंदोलनों के बारे में उनकी अच्छी समझदारी होती थी.

पार्टी के ‘भारत देश में जाति का सवाल : हमारा दृष्टिकोण’ दस्तावेज को समृद्ध करने में उन्होंने अपनी भूमिका निभाई. मजदूरों की समस्याओं के प्रति भी उनकी अच्छी खासी पकड़ होती थी. देश के संविधान के तहत आदिवासियों को प्राप्त हुए कानूनन अधिकारों के अमल की मांग पर आदिवासी जनता को संघर्षरत करने में उन्होंने अच्छा-खासा अनुभव हासिल किया.

कृषि संकट व किसानों की समस्याओं का उन्होंने गहराई से अध्ययन किया. कृषि संकट पर 2019 में सीसी द्वारा जारी की गई बुकलेट का मसौदा उन्होंने बनाया. इस तरह कई विषयों के प्रति स्पष्ट समझदारी हासिल करके उन्होंने क्रांति के पुरोगमन में अपना योगदान दिया.

वे एक अच्छे लेखक भी थे. कई विषयों का गहराई से अध्ययन करके उन्होंने कई लेख लिखे थे. कृषि समस्या के बारे में उन्होंने कई लेख लिखे थे. पर्यावरण संबंधित विषयों के बारे में भी उन्होंने अध्ययन शुरू किया और कुछ लेख लिखे थे. उनका अध्ययन अब अधूरा रह गया. मराठा समाज के आरक्षण के बारे में भी अच्छे विश्लेषण के साथ उन्होंने लेख लिखा जिसे ‘प्रभात’ में छापा गया.

कभी महाराष्ट्र कमेटी का नेतृत्व करके, भाकपा (माओवादी) केंद्रीय कमेटी के पोलित ब्यूरो सदस्य रहे कोबड घैंडी ने राजनीतिक रूप से पतन होकर ‘फ्राक्चर्ड फ्रीडम ए प्रिजन मेमोयर’ नाम से एक किताब लिखी. उस किताब में प्रकट हुए दक्षिण पंथी, आध्यात्मिक व क्रांति विरोधी विचारों की कड़ी आलोचना करते हुए कामरेड दीपक ने एक पुस्तिका लिख कर पार्टी के सामने रखी थी.

अध्ययन व लेखन में पकड़ हासिल करने वाले कामरेड दीपक ने अलग-अलग समयों में दो पत्रिकाओं – पहाट और जनपथ- को संचालित किया. महाराष्ट्र राज्य कमेटी के मुखपत्र ‘पहाट’ और एमएमसी एसजेडसी के मुख पत्र ‘जनपथ’ के संचालन में संपादक मंडल के सदस्य और प्रधान संपादक के रूप में उन्होंने प्रधान भूमिका निभायी.

इन पत्रिकाओं में उनके कई लेख छापे गए. राजनीतिक व सैद्धांतिक विषयों के अलावा साहित्य के प्रति भी वे दिलचस्पी रखते थे. ज्वालामुखी, अनसूया (अपनी मां का नाम) आदि कई कलम नामों से वे अक्सर कविताएं और गानें लिखते थे. वे एक अच्छे गायक भी थे.

कामरेड दीपक एक अच्छे अध्यापक थे. वे जितनी गहराई से राजनीतिक व सैद्धांतिक अध्ययन किया करते थे, उतनी गहराई से अध्यापन भी करते थे. विभिन्‍न अवसरों पर निचले स्तर से लेकर एसजेडसी स्तर तक संचालित अध्ययन कक्षाओं के दौरान शिक्षक के रूप में शामिल होकर उन्होंने अपना योगदान दिया था. पढ़ने, नोट्स बनाने व संबंधित विषयों के बारे में साथी कामरेडों के साथ चर्चा करने के प्रति वे दिलचस्पी रखते थे.

हाल ही में मोदी सरकार द्वारा लाए गए किसान विरोधी व देशद्रोही तीन कृषि कानूनों का उन्होंने गहराई से अध्ययन किया और कई लेख लिखे. उतना ही नहीं इन कानूनों के बारे में एसजेडसी से लेकर निचले स्तर के कामरेडों तक उन्होंने अध्ययन कक्षाओं को संचालित किया. वे एक अच्छे वक्ता भी थे. देशीय व अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों के बारे में समग्र समाचार व अच्छे विश्लेषण देते हुए वे भावात्मक व धाराप्रवाह भाषण देते थे.

दण्डकारण्य आंदोलन में योगदान

डीके आंदोलन में भी उनका अविस्मरणीय योगदान रहा. डीके के पश्चिम सब जोन आंदोलन को कुचलने के लिए दुश्मन द्वारा संचालित भीषण दमन में वहां के आंदोलन को भारी नुकसान हुआ. ऐसी परिस्थिति में वहां के आंदोलन को बचाने के लिए नए रूपों में जनता को संगठित करने के लिए वहां की पार्टी को तैयार करने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा.

जल, जंगल, जमीन के लिए संघर्षरत आदिवासी जनता को क्रांतिकारी राजनीति तले संगठित करके कोरची तहसील के जेंडेपार, अग्री व मसेली में प्रस्तावित खदानों के खिलाफ जनांदोलन संचालित किया गया. लगभग 40 हजार एकड़ की जमीन में 25 जगहों पर प्रस्तावित उन खदानों के खिलाफ वहां के युवाओं को मिलिशिया में संगठित किया गया. दूसरी ओर ग्राम पंचायतों के सरपंचों को गोलबंद करके जंगलों को बचाने के लिए संघर्षरत होने का आह्वान किया गया.

उस आह्वान के तहत सरपंचों ने भूख हडताल की. उनका संघर्ष महाराष्ट्र की विधानसभा में चर्चित विषय बन गया. सरकार ने तुरंत ही हस्तक्षेप करके प्रस्तावित खदानों पर तात्कालिक ही सही रोक लगायी. इस संघर्ष में कामरेड दीपक की उल्लेखनीय भूमिका रही.

इस प्रयास के फलस्वरूप गढ़चिरोली जिले के सभी आदिवासी गांवों में पेसा कानून के तहत ग्रामसभाओं का आविर्भाव होकर जंगलों पर आदिवासियों को कुछ हद तक अधिकार हासिल हुए. गढ़चिरोली आदिवासियों के संघर्ष के चलते महाराष्ट्र के नंदुरबार सहित कई जिलों के आदिवासियों को कई फायदें मिलें.

दूसरी ओर देशभर के आदिवासियों को पेसा-ग्रामसभा के विषय में जागरूक करने में उस जिले का आंदोलन दिक्सूचक बन गया. नतीजतन 2018 तक देश के प्रबल आदिवासी अंचल में खासकर छत्तीसगढ़, ओडिशा, झारखंड व मध्यप्रदेश में पत्थलगड़ी आंदोलन ने
जनसंघर्ष का रूप ले लिया.

एक मार्क्सवादी शिक्षक के रूप में भी कामरेड दीपक ने डीके आंदोलन में अविस्मरणीय भूमिका निभाई. पश्चिम ब्यूरो में कई स्तरों के कामरेडों के लिए संचालित अध्ययन कक्षाओं में शामिल होकर कैडर की राजनीतिक व सैद्धांतिक.स्तर को बढ़ाने के लिए उन्होंने सराहनीय भूमिका निभाई.

स्थानीय समस्याओं के अलावा 5वीं व 6वीं अनुसूची, पेसा कानून व ग्रामसभाओं के बारे में उनकी समझदारी बढ़ा कर उनका आत्मविश्वास बढ़ाने में कामरेड दीपक का योगदान रहा. कई अवसरों पर डीके एसजेडसी सदस्यों को भी उन्होंने पढ़ाया. डीके एसजडसी, विभिन्‍न सब जोनल व डिविजनों के बैठकों व प्लीनमों में शामिल होकर उनका सही मार्गदर्शन देने में भी उन्होंने अपनी भूमिका निभाई.

इस तरह डीके आंदोलन से उनका आत्मीय रिश्ता बन गया. डीके कैडर के लिए वे प्यारे ‘दीपक दादा’ बन गए.

अंत में …

अध्ययन व अनुभवों से हासिल चेतना को आत्मसात करने वाले कामरेड दीपक आंदोलन के क्रम में सामने आए उतार-चढ़ावों में डटे रह कर एक ऐसे नेता के रूप में विकसित हुए कि क्रांतिकारी आंदोलन में कई क्षेत्रों का वे नेतृत्व कर सकें. अब जब कई इलाकों व क्षेत्रों में क्रांतिकारी परिस्थितियां विकसित हो रही हैं कामरेड दीपक जैसे अनुभवी, योग्य व कर्मठ नेता को खोना भारत की क्रांति के लिए निश्चित रूप से बड़ा नुकसान होगा. इस नुकसान से उबरने के लिए कामरेड दीपक के द्वारा स्थापित आदर्शो को ऊंचा उठाते हुए उनके दिखाए रास्ते पर आगे बढ़ेंगे. उनके अधूरे सपनों को पूरा करेंगे. वह ही उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी.

कामरेड दीपक अमर रहें !

  • सीपीआई (माओवादी) के दण्डकारण्य स्पेशल जोन का मुखपत्र ‘प्रभात’ से साभार

Read Also –

कालजयी अरविन्द : जिसने अंतिम सांस तक जनता की सेवा की
CPI (माओवादी) के पीबी सदस्य ‘कटकम सुदर्शन’ की सत्ता द्वारा ईलाज बाधित करने से हुई शहादत
चारु मजुमदार के शहादत दिवस पर ‘ऐतिहासिक आठ दस्तावेज़’ (1965-1967)

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…