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नक्सलवाद : लड़ाई तो सुरक्षाबलों और जनता के बीच है

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नक्सलवाद : लड़ाई तो सुरक्षाबलों और जनता के बीच है

हिमांशु कुमार, सामाजिक कार्यकर्त्ताहिमांशु कुमार, प्रसिद्ध गांधीवादी कार्यकर्ता

आज एक सुरक्षा बल के अधिकारी का मैसेज मिला यह मैसेज उन्होंने नक्सलवादियों, उनके समर्थकों और उन्हें बढ़ावा देने वालों के नाम लिखा है. यह अधिकारी मुझ से काफी लंबे समय से बातचीत कर रहे हैं और यह आजकल बस्तर में पदस्थ है. इस पत्र में उन्होंने लिखा है कि ^नक्सलवादियों को नरेंद्र मोदी के हाथ मजबूत करने चाहिए. और वह भी भारत माता के बेटे हैं. उन्हें भी भारत की प्रगति में सहयोग करना चाहिए’ इत्यादि-इत्यादि.

मैंने उनसे फोन पर बात की. यह अधिकारी चाहते थे कि मैं उनकी इस बात को सुनूं और फिर इसे जनता के बीच में फैलाऊं. मैंने उन अधिकारी को समझाया कि बस्तर की समस्या नक्सलवादियों और सुरक्षाबलों के बीच की लड़ाई की नहीं है क्योंकि आजादी के बाद से लेकर आज तक सरकार ने कोई भी भूमि अधिग्रहण बिना सिपाहियों, बंदूक और ताकत के बगैर नहीं किया है. भारत में कोई भी परियोजना या औद्योगिकरण जनता की सहमति और जनता से पूछकर नहीं किया गया. इसके अलावा सरकारों ने यह भी माना कि विकास का मतलब है कि बड़े पूंजीपतियों को जमीने दे दो, बैंक से पैसा दे दो और वे पूंजीपति लोग देश का विकास कर देंगे. बदले में हुआ यह कि जनता ने जब जमीन देने के लिए मना किया तो सरकारों ने पुलिस और सुरक्षा बल का इस्तेमाल करके जनता को पिटवाया, उनकी हत्या की और उन्हें जेलों में ठूस दिया.

जब यह ग्रामीण लोग उजड़कर शहरों में मजदूर बनने गए और जब उन्होंने पूरी मजदूरी मांगी तब सरकार ने फिर उसी पुलिस के द्वारा इन गरीबों को पिटवाया.
आजादी के बाद से आज तक सरकार, सुरक्षा बल और पुलिस की बंदूक के बल पर गरीब की जमीनें छीन रही है और उनकी मेहनत का फल छीन रही है, और इस काम के लिए सुरक्षा बलों का इस्तेमाल किया जाता है. अगर भारत में नक्सलवादी नहीं होते तो भी बस्तर में इतनी तादाद में ही सुरक्षाबलों को भेजा जाता और उनके द्वारा आदिवासियों की जमीनें छीनी जाती, आदिवासियों को पिटवाया जाता, इसलिए यह लड़ाई नक्सलवादियों और सुरक्षाबलों के बीच नहीं है बल्कि यह सरकार और जनता के बीच की लड़ाई है, जिसमें सरकार द्वारा सुरक्षा बलों का इस्तेमाल किया जा रहा है, और सुरक्षा बलों का इस्तेमाल जनता के खिलाफ किया जा रहा है, इसलिए लड़ाई तो सुरक्षाबलों और जनता के बीच है, इसलिए सुरक्षा बल के सिपाहियों को यह नहीं समझना चाहिए कि उनकी लड़ाई नक्सलियों के खिलाफ है,

अगर बस्तर में नक्सली ना भी होते तो भी सुरक्षाबलों को इसी तरह जंगलों में रहना पड़ता और जनता को मारना पड़ता इसलिए सुरक्षाबलों को अपनी भूमिका समझनी चाहिए और यह समझ लेना चाहिए कि उन्हें भारत की जनता के खिलाफ इस्तेमाल किया जा रहा है और पूंजीपतियों की सेवा में जनता के ऊपर गोलियां चलाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है इसलिए आदिवासियों को ज्ञान देने की बजाय ज्ञान देने की जरूरत सरकार और उनका समर्थन करने वालों को है.

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