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न्यूज चैनल न देखें – झुग्गियों, कस्बों और गांवों में पोस्टर लगाएं

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न्यूज चैनल न देखें - झुग्गियों, कस्बों और गांवों में पोस्टर लगाएं

Ravish Kumarरविश कुमार, मैग्सेस अवार्ड प्राप्त जनपत्रकार

रमित वर्मा के पास न्यूज चैनलों का हिसाब-किताब है. कुछ साल से रमित डिबेट को फोलो करते हैं और उनके खेल को official peeing human के नाम से उजागर करते हैं. 19 अक्टूबर तक चार चैनलों के पिछले 202 डिबेट का रिसर्च किया है. आज तक, न्यूज-18, जी-न्यूज और इंडिया-टीवी.

पाकिस्तान पर हमला – 79 डिबेट
विपक्ष पर हमला – 66 डिबेट
मोदी / संघ / बीजेपी की तारीफ – 36 डिबेट
राम मंदिर – 14 डिबेट
बिहार बाढ़ – 3 डिबेट
चंद्रयान मून मिशन – 2 डिबेट
स्वामी चिन्मयानंद पर बलात्कार के आरोप – 1 डिबेट
पीएमसी बैंक घोटाला – 1 डिबेट
अर्थव्यवस्था – कोई डिबेट नहीं
बेरोजगारी – कोई डिबेट नहीं
शिक्षा – कोई डिबेट नहीं
स्वास्थ्य – कोई डिबेट नहीं
पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर – कोई डिबेट नहीं
किसानों की परेशानी – कोई डिबेट नहीं
गरीबी और कुपोषण – कोई डिबेट नहीं
महिला सुरक्षा – कोई डिबेट नहीं
पर्यावरण सुरक्षा – कोई डिबेट नहीं
मॉब लिंचिंग – कोई डिबेट नहीं
सरकार के फैसलों पर सवाल – कोई डिबेट नहीं

यह साफ हो जाता है कि न्यूज चैनल कैसे आपको अंधेरे में रख रहे हैं इसलिए आप सभी से अपील है कि न्यूज चैनल देखना बंद करें. आप सभी लोगों से कहें कि वे न्यूज चैनल न देखें. देश के लिए कुछ करने का इससे आसान कुछ नहीं हो सकता. आपका पैसा बचेगा. गांव-गांव और आस-पड़ोस हर जगह अभियान चलाएं. लोगों को जागरूक करें.

मोदी के सपोर्टर से भी आग्रह करें कि वे इस आंदोलन में साथ दें. उनका साथ भी बहुत जरूरी है. उन्होंने मोदी को इसलिए वोट नहीं दिया है कि भारत का मीडिया झूठ बोलने लगे, सरकार के झूठ पर पर्दा डाले और जनता को दूर कर दे. मुझे यकीन है मोदी सपोर्टर भी समझते हैं कि मोदी को वोट देना और घटिया न्यूज चैनल देखना, दोनों में अंतर है.

आप सभी से आग्रह है कि न्यूज चैनल न देखने के अभियान को घर-घर पहुंचाएं. गरीब मोहल्लों, झुग्गियां और कस्बों में जाकर बताएं कि मीडिया भारत के लोकतंत्र की हत्या कर रहा है. अगर मुमकिन है तो अपने सामथ्र्य के अनुसार इलाके में पोस्टर लगाएं. पर्चा बांटें और कहें कि टीवी न देखें.

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