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हत्यारों की ‘टी’-पार्टी

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हत्यारों की 'टी'-पार्टी

 ‘They have nearly a half-millennium between them, and no end of war stories to share, tales of pressing the buttons and pulling the levers behind some of major conflicts of modern times.’ Photograph: @narendramodi/Twitter

22 अक्तूबर को प्रधानमंत्री ने एक तस्वीर ट्वीट की थी. उनके साथ ब्रिटेन के टोनी ब्लेयर हाथ पकड़ कर खड़े हैं. अमरीका के पूर्व राजनयिक हेनरी किसिंगर बैठे हैं. कोंडलिज़ा राइस खड़ी हैं. राब्रट गेट्स और जॉन हावर्ड खड़े हैं. कोई भी इस तस्वीर को देखकर समझेगा कि विदेशी पटल पर प्रधानमंत्री की कितनी धकम हो गई है. अचानक ये सारे लोग बचपन के दोस्त की तरह खड़े हैं. राजनयिक मामलों से दूर रहन वाले पाठक इस तस्वीर पर गौरवान्वित भी हो सकते हैं. हिन्दी अख़बारों के ज़रिए यह तस्वीर गांव गांव पहुंचेगी तो लोगों को इसमें कमाल दिखेगा.

जुलाई 2016 में सर जॉन चिल्कॉट की 6000 पन्नों की रिपोर्ट ब्रिटेन की संसद में पेश की गई थी. सात साल लगे थे इस रिपोर्ट को तैयार करने में. इसका नाम है – द इराक़ इन्क्वायरी. इस बात को लेकर जांच हुई थी कि 2001 से 2009 के बीच इराक को लेकर ब्रिटेन की क्या नीतियां थीं और 2003 के इराक युद्ध में ब्रिटेन के शामिल होने का फ़ैसला क्यों ज़रूरी था ? भारत में विदेश नीति को लेकर इस तरह की जांच की कल्पना बेमानी है. जांच रिपोर्ट में पाया गया कि इस बात को लेकर दुनिया से झूठ बोला गया कि सद्दाम हुसैन के पास रसायनिक हथियार थे. इसके पक्ष में जो सबूत पेश किए गए उनका कोई औचित्य नहीं था.

टोनी ब्लेयर लेबर पार्टी के नेता था. उनकी ईमानदार छवि के पीछे ये सब खेल खेला गया. ब्लेयर एक झूठ के आधार पर एक मुल्क के लाखों लोगों के परिवार को मरवाने के खेल में शामिल हुआ. अपने मंत्रिमंडल से झूठ बोला. यह बात ब्रिटेन की संसद में पेश रिपोर्ट में कही गई है. भारत में ऐसा हो तो सार मूर्ख सड़क पर उतर आएंगे कि विदेश नीति को लेकर जांच कैसे हो सकती है. प्रधानमंत्री की भूमिका को लेकर कैसे जांच हो सकती है. लेबर पार्टी के नेता जेर्मी कोब्रिन ने अपनी पार्टी के नेता की इस करनी पर माफी मांगी थी.

इराक युद्ध के खिलाफ ब्रिटेन में दस लाख लोग सड़क पर उतरे थे. 2003 में डेली मिरर अखबार ने ब्लेयर की दोनों हथेलियों को ख़ून से सना दिखाया था. लिखा था ब्लड ऑन हिज़ हैंड्स – टोनी ब्लेयर. पूरी दुनिया को झूठ बेचने के लिए मीडिया को युद्ध के लाइव कवरेज़ का मौका दिया गया. चिल्काट रिपोर्ट के बाद ब्रिटेन के अखबार बदल गए हैं. The Times लिखता है – ‘Blair’s Private war.’ Daily Star लिखता है – ‘Blair is world’s worst Terrorist.’ Daily Mail लिखता है – ‘A monster of delusion.’

ब्लेयर को हत्यारा और आतंकवादी कहा गया. ब्रिटेन के जो सैनिक शहीद हुए थे उनके परिवार वालों ने भी ब्लेयर को हत्यारा कहा. पूर्व प्रधानमंत्री को हत्यारा कहा. इन उदाहरणों से भारत के संदर्भ में सीखने की ज़रूरत है. उस ब्लेयर के साथ तस्वीर जब हिन्दी प्रदेशों में जाएगी तो लोगों को लगेगा कि भारत के प्रधानमंत्री विश्व नेता बन रहे हैं. हिन्दी अखबार इन लोगों की करतूत कभी नहीं बताएंगे. युद्ध के ऐसे अपराधियों के साथ खड़े होकर ‘वसुधैव कुटुंबकम’ वाला भारत न तो विश्व गुरु बन सकता है और न ही विश्व नेता.

अब आइये हेनरी किसिंगर पर. अगर आपके घर में नेटफ्लिक्स है तो massacre at the stadium नाम की एक डॉक्यूमेंट्री देखिए. इन दिनों चिली में दस लाख लोग बेरोज़गारी और महंगाई के सवाल को लेकर सड़क पर हैं. 70 के दशक में सोशलिस्ट नेता सल्वाडोर अलांडे राष्ट्रपति चुने जाते हैं. लोकतांत्रिक तरीके से चुए गए पहले सोशलिस्ट नेता था. इनकी सरकार सफल न हो जाए हेनरी किसिंगर जैसे लोग प्लान तैयार करते हैं. चिली के एक दक्षिणपंथी अखबार में पैसा लगाकर वहां प्रोपेगैंडा फैलाया जाता है और सेना के पिनोशे के नेतृत्व में तख्ता पलट होता है. सल्वाडोर अलांडे की हत्या कर दी जाती है. चिली के एक लोकप्रिय गायक विक्टर हारा की भी हत्या कर दी जाती है. एक स्टेडियम में पढ़ने-लिखने वालों को लेकर जाकर गोलियों से भून दिया जाता है. एक घंटे की यह डाक्यूमेंट्री आप ज़रूर देखें. इस पर आगे और विस्तार से लिखूंगा.

उस किसिंगर के साथ प्रधानमंत्री बैठे हैं. राइस की भी पृष्ठभूमि वही है. इनके साथ कई प्रधानमंत्रियों की तस्वीरें मिल जाएंगी, मगर ये तस्वीरें गौरव की नहीं हैं. दु:ख की बात है कि हिन्दी के अखबार अपने पाठकों को बताते भी नहीं हैं. गार्डियन ने इस तस्वीर को लेकर एक लेख लिखा है. उस लेख का लिंक आपको दे रहा हूं. क्या भारत का कोई अख़बार ऐसे छाप सकता है ?

रविश कुमार, मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त जन-पत्रकार

 

[ लिंक में दिये गये ‘द गार्जियन’ में छपे आलेख का हिन्दी अनुवाद यहां पाठकों के लिए प्रस्तुत है. इसका हिन्दी अनुवाद प्रतिभा एक डायरी की टीम ने किया है. ]

 

युद्ध के गुरूघंटाल :

कैमरा के लिए आधुनिक युद्ध के शिल्पकारों की विद्रुप मुस्कान

(इस आलेख में प्रस्तुत किया गया तस्वीर ऊपर दिया गया है.)

छबि: हेनरी किसिंगर, टोनी ब्लेयर, नरेन्द्र मोदी, कोंडोलिजा राईस, राॅबर्ट गेट्स और जाॅन हाबर्ड के बीच याराना के क्षण

इनके बीच साझा करने हेतु लगभग आधी सहस्त्रावधि में हुए युद्धों की कहानियों और आधुनिक समय के कुछ महत्वपूर्ण लड़ाईयों को अंजाम देने और उसके संचालन के लिए बटन दाबने और लिवर खींचने जैसी करतूतों का अंत नहीं है

यदि सर्वनाश के घुड़सवारों ने अपने करतूतों को विराम दे दिया हो तो यह उनके फुर्सत के क्षणों का एक फोटो हो सकता है. बहुत अलग-अलग पृष्ठभूमि और अलग महादेशों से आये पांच पुरूष और एक महिला जिन्हें एक निवेश बैंक ने साथ लाया और जिन्होंने तबाहियों के इतिहास को साझा किया.

नई दिल्ली के जेपी माॅगर्न इन्टरनेशनल कांउसिल में लिये गये इस समूह फोटो में इनकी मुस्कुराहट और याराना अंदाज इनके अतीत के दिलचस्प स्मृतियों और साथियाना भाव का अहसास देता है. इनके पास साझा करने को आधी सहस्त्रावधि है और युद्धों की अंतहीन कहानियां हैं, आधुनिक समय की बड़ी लड़ाईयों के संचालन में इनके द्वारा की गई अनगिनत करतूतें हैं.

दाहिनी ओर बैठा हुआ है इन लंठों का सरदार : हेनरी किसिंजर, 96 वर्ष का शीत युद्ध की ठेठ राजनीति का जीता जागता अवतार, जिसके पास विदेश नीति के ज्ञान का खजाना है और जिसके नाम पर चस्पां हो कई बड़े युद्ध, जिसमें शामिल है कम्बोडिया की आम जन पर किया गया अघोषित व गैर-कानूनी बमबारी.

पीछे खड़े हैं 2003 ई. में इराक पर किये गये हमले के तीन शातिर दिमाग. झुलसी त्वचा और मुस्कुराहट के अपने ट्रेडमार्क के साथ बांये खड़े हैं पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर. उनके बगल में हैं कोडोलिजा राईस, जो उस समय जाॅर्ज बुश की राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार थी. उनके दाहिने हैं जाॅन हाबर्ड, जिन्होंने उस समय, बतौर आस्ट्रेलियाई नेता, अपने देश की सेना को इस हमले में भेजा था.

सामूहिक विनाश के उन हथियारों को, जो कभी सद्धाम हुसैन के पास थे ही नहीं, तलाशने के बहाने इराक पर किया गया वह हमला इतिहास के सबसे विनाशकारी गलतियों में से एक था, जिसमें हिंसा का झंझावात पैदा किया जिसमें 5 लाख से ज्यादा लोग मारे गये और जिसने मध्य-पूर्व में अतिवादी हिंसा का एक ऐसा दौर शुरू किया जो आज तक जारी है.

यह तथ्य कि उन्हें अभी भी विदेश नीति के पंडितों के रूप में प्रतिष्ठा दी जाती है, इस बात को दिखाता है कि एक बार अगर आप एक खास ऊंचाई को हासिल कर लेते हैं तो आपकी असफलतायें आपको ऊपर ले जाने की सीढ़ियां बन जाती है.

इन त्रिदेवों में हैं राॅबर्ट गेट्स, जो सीआईए के पूर्व निदेशक और रक्षा सचिव, जिन्होंने इराक युद्ध को तो छोड़ दिया पर सीआईए के उपनिदेशक के रूप में निकारागुआ में बमबारी अभियान चलाने की वकालत करते रहे.

बीच में बैठे इस छोटे से समूह के केन्द्र बिन्दु हैं इसके सबसे नये सदस्य नरेन्द्र मोदी. भारतीय प्रधानमंत्री इनमें से इकलौते हैं जो अभी काम पर लगे हुए हैं. पर उन्हें इस समूह में थोड़ा पहले शायद इसलिए शामिल कर लिया गया कि पाकिस्तान से नाभिकीय युद्ध के खतरे की कीमत पर भी उन्होंने कश्मीर में अपनी सेना भेजी और उसकी स्वयत्ता को खत्म कर मुस्लिमों की घेराबंदी की.

फोटा में मोदी एक सौम्य मेजबान है, ब्लेयर व हावर्ड हाथ थामे, और किसिंजर पर दोस्ताना दृष्टि डाले हुए है, जाहिराना तौर पर उन्होने बुढ़े राजनयिक को उसके द्वारा पाकिस्तानी तानाशाही को जिसकी सेना ने आज के बांग्लादेश में 30,000 लोगों (जिनमें अधिकांश बंगाली हिन्दु थे ) की हत्या कर और एक करोड़ लोगों को भारत भागने के लिए मजबूर किया – दृढ़ समर्थन दिये जाने की बात को माफ कर दिया है. कुख्यात निक्सन टेप मामले में, किसिंजर को भारतीयो को ‘ऐसे हरामी‘ व इन्दिरा गांधी को ‘कुतिया ‘ बोलते सुना जा सकता है.

‘यदि मोदी खिसियाना चाहते तो उनके पास वजह उपलब्ध थे ‘ गैरी वास कहते है जो नरसंहारों व उनमें निक्सन व किसिंजर की भूमिका पर लिखे पुस्तक ‘ब्लड टेलीग्राम ‘के लेखक है पर जेपी माॅर्गन वाले जश्न में तो खिसियाहट का कोई चिन्ह न था. यह तथ्य कि जब ब्लेयर व राइस के कार्यकाल में , मोदी के देख-रेख में किये गये मुस्लिम विरोधी दंगों, जिसने हजार लोगों कि जाने ली, के बाद उनकी सरकारों ने मोदी की यात्राओं पर प्रतिबंध लगा दिया था.

शायद ऐसा है कि जब आप किसी भव्य राजनीतिक के शीर्ष पर चले जाते हैं, तब यह मायने नहीं रखता कि आप किस तरफ हैं या आपने किसे मारा. वह आपके प्लेटिनम कार्ड के तगमें बन जाते हैं. साझीदार बनो और दुसरी तरफ से सफलता से गद-गद, मुस्कुराते हुए निकल आओ, काफी है.

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