जब से ‘हमारी अपनी’ सरकार ने 2 करोड़ लोगों को हर साल नौकरी देने का वादा करके सत्ता में आयी है, लोगों ने नाक में दम कर रखा है. जिधर देखो, उधर नौकरी की ही चर्चा हो रही है. ‘नौकरी’ आज एक ऐसा शब्द बन गया है जिसे लेकर हर कोई परेशान रह रहा है. जिसके पास है वे भी, जिसके पास नहीं है वे भी. ‘है’ वाले परिस्थितियों को देखते हुए वे छंटनी, डिमोशन, तनख्वाह में कटौती होने के डर से परेशान हैं. वहीं नौकरी मिलेगी, नहीं मिलेगी, अच्छी मिलेगी, खराब मिलेगी, सरकारी मिलेगी, गैर-सरकारी मिलेगी, परमामेंट मिलेगी या डेली-वेज मिलेगी, अफसर की मिलेगी या मजदूर की मिलेगी, ज्यादा पैसा वाला मिलेगी या कम पैसा वाला, यही सोच कर ‘नहीं’ वाले परेशान हो रहे हैं.
नौकरी यानी नौकर का काम करना यानी एक तरह अर्ध या पूर्ण-गुलामी करना. एक समय था जब लोग स्वतंत्र रहने के लिए संघर्ष कर रहे थे, जी-जान लगा रहे थे. आज लोग गुलाम बनने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. जी-जान लगा रहे हैं. पर हमारी सरकार लोगों को स्वतंत्र रखना या देखना चाहती है. वह लोगों को नौकरी देकर गुलाम बनने नहीं देना चाहती. वह इसलिए नौकरी पाने या नौकरी पाने लायक बनने के हर रास्ते को बंद करती जा रही है.
‘हमारी सरकार’ दूरदर्शी है. वह जानती है पढ़ाई-लिखाई के बाद भी फिर वही गुलामी (नौकरी) करने की बात लोग बोलेंगे. अतः वह वैकेंसी बन्द करने के साथ-साथ पढ़ाई को भी मंहगी करती जा रही है या निजी हाथों में दे रही है. एक सेशन की पढ़ाई काम चार सेशन में पूरा करवा रही है. लोगों की इस मानसिकता को बदलने के लिए और भी कई उपाय कर रही है.
‘हमारी अपनी’ सरकार से किसी का दुःख देखा नहीं जाता इसलिए वह हमेशा लोगों के दुःख का कारण बनी मुख्य जड़ ‘नौकरी’ को ही खत्म करने में विश्वास रखती है. अब किसानों की ही बात लीजिए. हमारे किसान दिन-रात, खाद-बीज-पटवन के साथ-साथ उत्पादित वस्तुओं को लेकर परेशान रहते हैं. वह बाढ़-सुखाड़, लाभ-हानि के मकरजाल में फंसकर लगातार अपनी जान दे रहे हैं. ‘हमारी अपनी’ सरकार ने तुरन्त उसका हल निकाला. ‘सेज’ जैसा कानून बनाकर उपरोक्त समस्याओं की जड़ जल, जंगल और जमीन किसानों-आदिवासियों से छीन कर उन्हें बिल्कुल ‘स्वतंत्र’ कर रहे हैं. पूंजीपति को ही जमीन देकर दुःख के इस जंजाल में डाल दे रही है. आखिर ‘हमारी अपनी देशभक्त’ सरकार है. पर पता नहीं क्यों लोग ‘अपनी सरकार’ को पूंजीपतियों की सरकार कहते हैं ! बताईये कितनी गलती बात है !!
अच्छा, सोचकर बताईये. चुनाव लड़ने के लिए पैसा क्या हम देते हैं ? हम पर प्रभाव डालने के लिए 50-50 करोड़ के स्टेज पर भाषण देना पड़ता है. 40-50 हेलिकाॅप्टर की जरूरत पड़ती है. इतना पैसा हम दे सकते हैं ? नहीं न् ! उल्टे हमारे लिए ही दारू, पैसा, गाड़ी का इन्तजाम करना पड़ता है. इ बताईयें, जो लोकतंत्र के ‘महान पर्व’ में सरकार चुनने में तन-मन-धन से हर तरह की मदद करता है. अपनी पसंद की सरकार बनवाने में जी-जान लगा देता है. मीडिया का सहयोग (शेयर खदीदकर) सरकारी भोंपू बना देता है. फिर उसके साथ ‘हमारी सरकार’ गद्दारी कैसे कर सकती है ? क्या यह हमारे खून में है ? हमने तो कभी विदेशियों के साथ भी गद्दारी नहीं की. फिर हमारे ‘देशभक्त’ पूंजीपति जिन्हें नींद के लिए नींद की गोली और जागने के लिए अलार्म की जरूरत पड़ती है, के साथ भला गद्दारी कैसे कर सकती है ?
‘हमारी अपनी’ सरकार हमें बिल्कुल स्वतंत्र रखना चाहती है. पर पता नहीं हमारी क्या समझदारी है कि हम गुलाम बनना ही पसंद करते हैं. हालांकि कुछ लोगों पर अंतर पड़ा है. वे स्वतंत्र रूप से धर्मरक्षक, गौ-रक्षक, लव-जेहादियों को सबक, देशद्रोहियों को सबक के नाम पर कई ‘फैक्ट्रियां’ खोले हुए हैं. उसमें खुद नौकरी करते हैं. साथ-साथ सैकड़ों लोगों को नौकरी भी दे रहे हैं. इन्हें तनख्वाह देने की भी चिन्ता सरकार की नहीं होती है. इसका जुगाड़ वे खुद भक्तिभाव से कर लेते हैं. बस समय पर हमारी सरकारी उनके पीठ पर हाथ रख देती है. इतने से ही उनकी फैक्ट्री दौड़ने के साथ-साथ भरपूर मुनाफा देने लगती है. अब अगर आप आलसी आदमी हैं, कुछ करना ही नहीं चाहियेगा तो भला सरकार का क्या दोष ? आपको अपनी फैक्ट्री खोलने से कौन रोक रहा है. हमारी सरकार तो इसके लिए पूरा ‘वातावरण’ आपको उपलब्ध कराती है.
खैर छोड़िये, मैं आपको एक पते कि बात बताता हूं लेकिन किसी से कहियेगा नहीं. दो साल बाद फिर चुनाव होने वाला है इसलिए ‘हमारी सरकार’ अधिकांश लोगों को नौकरी देने की योजना बना ली है. ये योजना अगले साल कार्यान्वित होगी, जब हमारी सरकार का अपना राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, लोकसभा, राज्यसभा में बहुमत हो जायेगा. चूंकि ये तो हमारी सरकार है ही. बस ‘रामजी की कृपा से’ इसका हल निकल जायेगा और अधिकांश लोगों को नौकरी मिल जायेगी. स्थायी होगा या अस्थायी यह समय और परिस्थिति पर निर्भर करेगा. योजना कार्यान्वित होगी तो जनसंख्या भी घटेगी. इसका मंहगाई पर भी असर पड़ेगा और मंहगाई ‘कम’ होगी. चुनाव आने दीजिए. ‘हमारी सरकार’ विरोधी तो विरोधी, अपने लोगों का भी कालाधन निकलवा लेगी. बस आंकड़ा नहीं मिलेगा. पर आप महसूस जरूर कर लीजिएगा. समय आ रहा है. थोड़ा धैर्य रखिये. हमारी सरकार वादा पूरा करेगी और सभी को बिना काॅल, इन्टरव्यू के नौकरी देगी.
By Suman
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