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विजय कुमार नायडू उर्फ़ कल्कि भगवान : धार्मिक ढोंगों की आड़ में बिजनेस

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विजय कुमार नायडू उर्फ़ कल्कि भगवान : धार्मिक ढोंगों की आड़ में बिजनेस

पं. किशन गोलछा जैन, ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ

स्वयं को विष्णु का दसवां अवतार बताने वाले विजय कुमार नायडू उर्फ़ कल्कि भगवान के यहां आईटी रेड में 1000 करोड़ से ज्यादा बेनामी संपत्ति का खुलासा हुआ है. इस देश में वास्तव में मूर्खों की कमी नहीं है, खासकर पढ़े-लिखे धार्मिक मूर्खों की. ये अमीरों का भगवान था क्योंकि सुना है कि ये फर्जी बाबा विशेष दर्शन देने के लिये ₹25,000 दक्षिणा लेता था और ₹25,000 देने वाले गरीब तो हो नहीं सकते न !

इस कल्कि भगवान और उसके बेटे कृष्णा के आश्रमों का जाल दक्षिण भारत के चार राज्यों तम‍िलनाडु, तेलंगाना, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में फैला हुआ है, जहांं इसके 40 ठिकानों पर एक साथ रेड की गयी, जिसमें एक यून‍िवर्सिटी और एक आध्यात्मिक स्कूल भी शाम‍िल है. इस फर्जी बाबा का मुख्य आश्रम आंध्र प्रदेश के च‍ित्तूर ज‍िले के वैरादेहपलेम में है. और मुख्य आश्रम के कैंपस को चारों तरफ से इस तरह से कवर किया गया है कि अंदर जाने के बाद कोई भी बाहर न‍िकल नहीं सकता है और बाहर का कोई आदमी बिना परमिशन प्रवेश नहीं कर सकता. अभी तो आईटी ने सिर्फ कल्कि ट्रस्ट के फंड में घोटाले और बेनामी जमीनों के संदर्भ में ही जांंच शुरू की है लेकिन इसकी जांंच अगर सीबीआई करे तो पता नहीं कितनी लड़कियों और महिलाओं के अत्याचारों और दफ़न किये शवों का पता चलेगा (पता नहीं ऐसा होगा या नहीं).

दूसरे फर्जी बाबाओं की तरह ये भी एक लम्बे अरसे तक गायब रहा, फिर बाबा बनकर आया (इसी तरह अन्य कई बाबा आशाराम वगैरह भी हुए हैं. मुझे तो लगता है कि कोई गुप्त ट्रेनिंग कैम्प है, जो ऐसे लोगों को जो पब्लिक रिलेशन में माहिर रहे हैं, उन्हें विशेष ट्रेनिंग देकर बाबा बनाकर भारत के धार्मिक मूर्खों के लिये भेज रहे हैं. अब ये किसी दुश्मन देश का काम है या कोई हिंदुत्ववादी संगठन ऐसा करता है, ये भी एक अलग जांंच का विषय है. मगर दोनों ही हालातों में ये देश के लिये बहुत बड़ा खतरा है).

ये कल्कि भगवान् उर्फ़ विजयकुमार नायडू पहले एलआईसी में क्लर्क था, बाद में नौकरी छोड़कर एक एजुकेशन संस्थान की स्थापना की. परंतु संस्थान का दिवालिया निकल गया तो वह भूमिगत हो गया. अपने आप को विष्णु के दसवें अवतार ‘कल्कि भगवान’ बताते हुए विजय कुमार 1989 में फिर से चित्तूर में प्रकट हुआ. अब ये समझने की बात है कि एलआईसी का क्लर्क एक एजुकेशन संस्थान की स्थापना करने लायक पैसा कहांं से लाया ?

उसके बाद उसने अपने आश्रम आंध्र प्रदेश सहित तमिलनाडु, तेलांगना और कर्णाटक तक में विस्तार किया. पर यहांं पर भी सवाल एक ही है कि इस विस्तार के लिये अनाप-शनाप धन उसे किसने दिया ? वो लोग कौन हैं और कहांं से आते हैं, जो इतना धन ऐसे फर्जी बाबाओं को गुप्त रूप से चुपचाप देकर चले भी जाते हैं ?

मैंने पहले भी कई बाबाओं के बारे में लिखा है, जो अपनी पत्नियों को भी देवी के रूप में स्थापित कर पुजवाते हैं (सबसे आखिर में सद्गुरु के बारे में लिखा था) और ये फर्जी ‘कल्कि भगवान’ ने भी ऐसा ही किया. अर्थात अपनी पत्नी पद्मावती को देवी के रूप में स्थापित किया और लोगों ने मान भी लिया. क्या दक्षिण भारत के लोग भी उत्तर भारत के लोगों की तरह महामुर्ख हैं ?

और सबसे कमाल की बात ये है कि ऐसे ढोंगियों के आश्रमों में देश के धनी लोग स्वयं तो जाते ही हैं और अपने साथ विदेशियों को भी ले जाकर फंसाते हैं. फेसबुक पर धार्मिक ढकोसलों के खिलाफ तर्क देने वाले और उन्हें पढ़कर उनके फेवर में कमेंट देने वाले लोग कौन-से भारत में बसते हैं, जो सिर्फ वर्चुअल वर्ल्ड में तो अपने आपको बड़ा होशियार बताते हैं, मगर अक्सर ऐसे ही धार्मिक ढोंगों में उलझकर ऐसे पाखंडियों की सेवा में अपनी मेहनत का पैसा भी बर्बाद करते हैं. क्या आप जानते हैं इस ‘कल्कि भगवान’ के साधारण दर्शन के लिये 5 हजार और विशेष दर्शन के लिये 25 हजार रुपए देने पड़ते थे. फिर भी कतारे लगती थी. क्या इससे साबित नहीं होता कि धार्मिक मूर्खों के मामले में भारत अब भी 2000 साल पीछे जी रहा है ?

आशाराम से लेकर रामदेव तक और श्री श्री रविशंकर से लेकर कल्कि भगवान् तक सबने इन्हीं धार्मिक ढोंगोंं की आड़ में अपना बिजनेस खड़ा किया हुआ है. इस ‘कल्कि भगवान’ के बेटे कृष्णा ने भी दूसरे फर्जी बाबाओंं की ही तरह अपने बाप के धंधे की आड़ में सैकड़ों एकड़ जमीनों पर कब्जा कर हड़पा, जिसकी शिकायत भी नहीं लिखी गयी. लेकिन बाद में किसी तरह मामला कोर्ट तक पहुंचा तो 2010 में आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने मामले की जांच के आदेश दिये थे. इससे पहले 2008 में चित्तूर जिले के कल्कि आश्रम में मची भगदड़ में पांच लोगों की मौत होने के अलावा कई लोग घायल हुए थे जबकि मृतकों के परिजनों ने संदेह जताया गया था कि उन्हें मारा गया है !

ऐसे लोगों का पॉलिटिकल सपोर्ट भी बड़ा जबरदस्त होता है. बड़े-बड़े नेता इनके आश्रमों में जाते हैं (कहीं ऐसा तो नहीं कि ये नेताओं की काली कमाई रखने के लॉकर की तरह हो, जो नेताओं के काले धन को लेकर उसे फर्जी ट्रस्टों के सहारे सफ़ेद कर रहे हो ?? इस एंगल से भी जांंच जरूरी है क्योंकि इसने कई टैक्स हेवन देशों में भी लम्बा-चौड़ा इन्वेस्टमेंट किया हुआ है (भारत में जिस तरह ऐसे फर्जी बाबाओं का जमावड़ा पिछले 50 सालों में हुआ है, वो कत्तई शक के घेरे में है. आखिरकार कुछ टुच्चे से लोग कैसे इतने प्रतिष्ठित बाबा कैसे बन जाते हैं, जिनकी ट्र्स्टों में करोडों अरबोंं रूपये अट्ठनी-चवन्नी की तरह लगने लगते हैं ?).

आईटी की जब्ती वाली लिस्ट से पता चला कि लगभग 43 करोड़ नकद और 18 करोड़ से ज्यादा के अमेरिकी डॉलर बरामद हुए. साथ ही 88 किलो सोने के गहने और 1271 कैरेट हीरे भी बरामद हुए. सवाल ये है कि क्या स्मगलर है जो सोने और हीरो की स्मगलिंग करता है ? अथवा हवाला व्यापारी है जो इसके पास से दो देशों की इतनी नकद करेंसी बरामद हुई है ? जबकि आम आदमी के पास तो जहर खाने को भी पैसे नहीं है. अथवा ये कोई विदेशी (अमरीकी) एजेंट है या फिर किसी बड़े नेता का किसी अमरीकी कम्पनी का कमीशन था, जो इसके पास नकद पहुंचाया गया ताकि उसे सफ़ेद करके उसे दिया जा सके ?या फिर उस नेता तक कमीशन पहुंंचाया जा सके. कहीं ये सीआईए का एजेंट तो नहीं और उसे अमरीकी करेंसी भारत में कोई उत्पात करने की एवज में तो नहीं दी गयी थी ? खेल बहुत बड़ा और गहरा है, जिसकी सच्चाई शायद ही कभी बाहर आये !

इस फर्जी बाबा ने विदेशों (चीन, अमेरिका, सिंगापुर, यूएई इत्यादि) में कई फर्जी कम्पनियांं बना रखी है, जिसके जरिये विदेशी लोगों के पैसे दिखाये जाते हैं और इस तरह सीधा-सीधा भारत का टैक्स हड़प लिया जाता है. सवाल तो और भी है (कम से कम 50 सवाल इस वक़्त भी जेहन में है. मगर मैं जानता हूंं कि ये खेल बहुत गहरा है और इसकी सच्चाई कभी बाहर नहीं आयेगी). (न्यूज मीडिया ने इस खबर को सिर्फ फॉर्मल तरीके से दिखाया और सोशल मीडिया पर भी इसकी कोई धमक दिखाई नहीं दे रही. दो चार दिन में शायद मैं भी भूल जाऊंगा क्योंकि यहांं तो रोज नयी खबर चाहिये न (दो-चार दिन में ये खबर भी पुरानी हो जायेगी, फिर बासी खबरों में कौन मगजमारी करेगा !!).

ऐसे ही मैंने पहले तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. सी. राव द्वारा काली मंदिर में चढ़ाये गये 11 किलो 700 ग्राम सोने के गहनों के बारे में भी लिखा था, जिसकी कीमत तब तीन करोड़ चौवन्न लाख छियासी हज़ार एक सौ रूपये थी. और कोई इतनी कीमत का दान करता है ? मतलब उसके पास उससे कम-से-कम 50 गुना ज्यादा धन होगा, मगर सीएम की जांंच करने की हिम्मत किस अधिकारी में हो सकती है ?? सो मामला रफा-दफा हो ही चूका है.

वैसे भी मोदी सरकार तो कांग्रेस-कांग्रेस खेलने में और नेहरू को गरियाने में व्यस्त है तो अधिकारी भी कुंभकर्णी नींद में ही सोयेंगे. इस ‘कल्कि भगवान’ की कितनी जांंच होती है वो तो आने वाले कुछ दिनों में स्पष्ट हो ही जायेगा लेकिन नतीजा तो ‘ढाक के तीन पात’ ही निकलने वाला है !

देश की अर्थव्यवस्था डूबने की कगार पर है और हम सब आपस में धर्म-जाति के नाम पर लड़-मर-खप रहे हैं. हमारे पास समय बहुत ही कम हैं क्योंकि शासक वर्ग हमेशा अपनी सत्ता कायम रखने के लिये धार्मिक जूनून, अंधी आस्थाओंं और रूढ़िवाद को अपना हथियार बनाते हैं और अन्धविश्वास को हवा देते हैं ताकि हम सब धर्म-जाति के नाम पर उलझे रहे. लेकिन हमेशा याद रखिये कि हमारी आर्थिक आजादी की लड़ाई भी तभी सफल होगी, जब हम सब मजहबी भिन्नता से ऊपर उठकर एक साथ आवाज बुलन्द करेंगे.

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